महान साहित्यकार प्रेमचंद जी का एक कथन बार बार याद आता है और दायित्व के पथ पर अग्रसर होने हेतु प्रेरित करता रहता है ।

प्रेमचंद जी ने कहा था ,

साहित्य समाज और राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है ।

इस प्रेरक कथन का भावार्थ व्यापक अर्थों में विश्व दृष्टि के साथ समझना बेहद जरूरी है ।विश्व दृष्टि अर्जित करने करने के लिए विश्व नागरिक बनना चाहिए ।

विश्व नागरिक बनने पर ही सार्थक सृजन संभव है ।सार्थक सृजन किसी भी तरह की संकीर्णता और अंध विश्वासों से मुक्त होता है ।तर्क संगत विचारों से ही सार्थक सृजन की प्रेरणा मिलती है ।

साहित्यकार ,संस्कृति कर्मी ,पत्रकार यदि धर्म ,जाति ,भाषा ,क्षेत्र की संकीर्णताओं लिप्त रहेंगे और मेरा ,तुम्हारा या फिर देशी , विदेशी की झंझटों में फंसे रहेंगे तो तब वे विश्व दृष्टि अर्जित नहीं कर सकते ।

कोई भी विचार और ज्ञान मानव जाति की सामाजिक चेतना और इससे अर्जित उपलब्धियों की अभिव्यक्ति है ।दुनिया के किसी भी कोने में हो रहे अन्याय और अत्याचार का प्रतिरोध कर न्याय और मानवीय मूल्यों के पक्ष में किया गया सृजन ही सार्थक और कालजयी होता है ।

सार्थक सृजन विश्व शांति का पक्षधर और युद्ध के उन्माद का विरोधी होता है ।यदि सार्थक सृजन की आकांक्षा है तो विश्व नागरिक बनना ही होगा ।

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