अपने आदर्श और प्रेरणास्पद व्यक्तित्वों का स्मरण एक मानवीय मूल्य है ।लेकिन यह स्मरण तब ही सार्थक होगा ,जब स्मरण से कुछ अर्जित हो ।

यदि अपने आदर्श और प्रेरणास्पद व्यक्तित्वों के स्मरण से चेतना विकसित होती है,तर्क संगत क्षमता बढ़ती है ,प्रतिरोध मजबूत होता है ,हम अपने समय की चुनौतियों से जूझने में सक्षम होते हैं ,अपने प्रेरणास्पद व्यक्तित्वों की परम्परा के विकास में अपना योगदान दे सकते हैं ,तब ही स्मरण सार्थक है ।

स्मरण की यह सार्थकता अर्जित करना अंध विश्वासों और कर्मकांडों से संभव नहीं है ।यदि किसी प्रेरणास्पद व्यक्तित्व का स्मरण सिर्फ कर्मकांडो तक ही सीमित रहेगा तो इससे कुछ भी उल्लेखनीय हासिल नहीं होगा ।सिर्फ समय और संसाधनों की ही बर्बादी होगी ।

अपने प्रेरणास्पद व्यक्तित्वों के स्मरण से ऊर्जा तो मिलनी ही चाहिए ।भगत सिंह ने कहा था ,

हवाओं में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली ,
यह मुश्ते खाक है फानी ,रहे रहे न रहे ।

भगत सिंह के ख्याल की बिजली भगत सिंह को पूजने से हासिल नहीं होगी ।हमें अपनी तर्क संगत क्षमता को विकसित कर भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारों से जूझना होगा ।यह विचार करना होगा कि भगत सिंह आज होते तो क्या करते ? किसी को पूजने से तो चेतना के विकास की सारी संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं ।
भगत सिंह बनने की कोशिश से ही भगत सिंह का स्मरण सार्थक होगा ।

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