समाजवादी पार्टी के अंतर्कलह का बहिर्लाभ बहुजन समाज पार्टी उठाने जा रही है. मायावती की पूरी कवायद सपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की है. समाजवादी पार्टी के मुस्लिम वोट बैंक में संशय की स्थिति है. यह संशय पार्टी की एकजुटता से लेकर टिकट बंटवारे के विरोधाभास तक है. सवा सौ टिकट मुसलमानों को देने के बसपाई ऐलान से मुसलमान खुश हैं और मायावती के पक्ष में वोट डालने का मूड बना रहे हैं.
दलित-मुस्लिम एकता के बसपाई एजेंडे को ठोस शक्ल देने की कोशिशें तेज होती जा रही हैं. मुस्लिमों के बीच बांटी जा रही एक बुकलेट मुसलमानों में काफी चर्चा में है. आठ पन्नों की इस किताब का नाम दिया गया है, ‘मुस्लिम समाज का सच्चा हितैषी कौन? फैसला आप करें.’ उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव में 128 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने की घोषणा मायावती पहले ही कर चुकी हैं.
मुसलमानों में बंट रही किताब के कवर पर मायावती की फोटो है और हिंदी व उर्दू भाषा में मायावती ने मुसलमान मतदाताओं के बीच से उठ रहे विभिन्न सवालों पर सफाई पेश की है. इनमें कई सवाल भाजपा-बसपा गठबंधन को लेकर हैं. यह किताब खास तौर पर पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में तेजी से वितरित की जा रही है.
भाजपा के साथ तीन बार सरकार बनाने के बारे में मायावती ने अपनी सफाई देते हुए कहा है कि उन्होंने सिद्धांतों के साथ कभी समझौता नहीं किया और भाजपा को अपना एजेंडा लागू करने की इजाजत नहीं दी. बसपा सरकार के रहते अयोध्या, मथुरा और काशी में कोई धार्मिक सुगबुगाहट नहीं होने दी. मायावती ने इस किताब में समाजवादी पार्टी पर तीखा हमला बोला है.
लिखती हैं कि राज्य में जब भी समाजवादी पार्टी की सरकार रही है केंद्र में भाजपा की ताकत बढ़ी है. इस तर्क पर मायावती ने वर्ष 2009 और 2014 का उदाहरण प्रस्तुत किया है. उनका कहना है कि 2009 में जब बसपा की सरकार थी तब भाजपा को केवल नौ लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी, जबकि 2014 में जब समाजवादी पार्टी सत्ता में थी तब भाजपा 73 लोकसभा सीटों पर जीती.
किताब में मायावती ने लिखा कि 1999 में भाजपा को बसपा ने ही सबक सिखाया था, जब एक वोट के कारण सरकार गिरी थी. बुकलेट में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के साथ निकटता का भी हवाला दिया गया है और इसके लिए यादव परिवार की शादी में मोदी की सैफई में मौजूदगी का उदाहरण पेश किया गया है.
बुकलेट में मायावती ने यह भी दावा किया है कि समाजवादी पार्टी का उदय भाजपा की मदद से हुआ था. कहा गया है कि जनसंघ की मदद से सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने पहली बार 1967 में जसवंतनगर सीट पर विजय हासिल की थी और चुनाव जीतने के बाद 1977 में उन्होंने जनसंघ की सहायता से सरकार बनाई और मंत्री बने थे.
वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव और विश्वनाथ प्रताप सिंह ने दो लोकसभा सीटें जीतकर भाजपा को नया जीवन दिया था. उस समय लोकसभा में भाजपा की संख्या बढ़कर 88 हो गई थी. पुस्तिका में यह भी आरोप है कि मुलायम सिंह यादव ने 1990 में सोमनाथ से अयोध्या रथयात्रा के दौरान लालकृष्ण आडवाणी को मदद दी थी. इसी तरह के तर्कों-कुतर्कों पर आधारित बसपा की किताब मुसलमानों के बीच काफी असर जमा रही है.
समाजवादी पार्टी के ही मझोले दर्जे के एक मुस्लिम नेता कहते हैं कि इस बार मुसलमान सबसे अधिक अधर में हैं. वे पसोपेश में हैं कि वे किसके साथ जाएं. समाजवादी पार्टी का घरेलू कलह मुसलमानों को अधिक हताशा से भर रहा है, क्योंकि मुसलमान उसी दल को अपना समर्थन देंगे जो भाजपा से सीधा मुकाबला करता हुआ दिखेगा.
सपा नेता अगर यह कहे कि मुसलमान मतदाता बसपा की तरफ खिसकता दिख रहा है, तो इसकी गंभीरता का एहसास किया जा सकता है. उल्लेखनीय है कि बाबरी विध्वंस के बाद से उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक मुस्लिम मतदाता मुलायम सिंह यादव और समाजवादी पार्टी से जुड़े रहे. पिछले कुछ चुनावों से मुसलमानों का मुलायम से मोहभंग भी होता दिखा. 2002 के विधानसभा चुनाव में सपा को 54 फीसदी मुस्लिम वोट मिला था, लेकिन 2007 के विधानसभा चुनाव में यह प्रतिशत घटकर 45 रह गया.
2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को सबसे बड़ी जीत मिली, लेकिन उसे मिलने वाले मुस्लिम मत का प्रतिशत घटकर 39 पर आ गया. आंकड़े स्पष्ट बताते हैं कि मुस्लिमों का रुझान धीरे-धीरे बसपा की तरफ बढ़ा. वर्ष 2002 में बसपा को नौ प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले थे. 2007 के चुनाव में यह बढ़ कर 17 फीसदी हो गया.
वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में हालांकि बसपा हार गई लेकिन उसे मिलने वाला मुस्लिम वोट 17 से बढ़ कर 20 प्रतिशत हो गया. मुसलमानों की थोड़ी तरजीह कांग्रेस को भी मिली. वर्ष 2002 के चुनाव में कांग्रेस को 10 फीसदी मुस्लिम वोट मिले थे जो 2012 में बढ़ कर 18 फीसदी हो गया. यानि, बसपा के साथ-साथ कांग्रेस की गतिविधियों पर भी मुसलमान मतदाताओं की गहरी नजर है.
उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की जनसंख्या 19 फीसदी के करीब है. तकरीबन 140 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम आबादी 10 से 20 फीसदी तक है. 70 सीटों पर 20 से 30 फीसदी और 73 सीटों पर 30 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी है.
स्पष्ट है कि मुस्लिम मतदाता 140 सीटों पर सीधा असर डालते हैं. यही कारण है कि चुनाव के समय सारे दल खास तौर पर मुस्लिम वोटरों को अपनी ओर खींचने में सक्रिय हो जाते हैं. बुद्धिजीवी डॉ. मुहम्मद सरफे आलम कहते हैं कि मुस्लिम मतदाताओं का मत-चरित्र विधानसभा चुनाव में कुछ और होता है और लोकसभा चुनाव में कुछ और. डॉ. आलम मानते हैं कि मुस्लिम समुदाय का वोट कभी-कभार बंट भी जाता है, लेकिन अधिकतर एकमुश्त एक ही दल को जाता है.
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मायावती इसी कोशिश में हैं कि सपा के खिलाफ चल रही स्थितियों का पूरा फायदा बसपा को मिले और मुसलमानों का एकमुश्त वोट उसे मिले. मायावती का सोशल इंजीनियरिंग फार्मूला इस बार बदल कर ‘सोशियो रिलीजियस इंजीनियरिंग’ फार्मूला बन गया है, जिसमें केवल मुसलमान और दलित केंद्र में हैं. इस बार ब्राह्मण बसपा की राजनीति के केंद्र में नहीं हैं.
मुसलमानों का समाजवादी पार्टी से बिदकाव मुजफ्फरनगर दंगे के समय से ही होने लगा था. दादरी की घटना ने इसे और गहरा किया. बिहार चुनाव के दौरान महागठबंधन से अलग होने के मुलायम के ऐलान से भी उत्तर प्रदेश के मुसलमान मतदाता अचानक सकते में आ गए थे.
मुसलमान सपा के इस फैसले को भाजपाई मिलीभगत के तौर पर देख रहे थे. इसे भांपते हुए ही मायावती ने मुसलमानों को टिकट बांटने की दरियादिली दिखानी शुरू कर दी. विश्लेषकों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में 30 फीसदी तक वोट पाने वाली पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में आ जाती है. यूपी में दलित और मुस्लिम समुदाय का मत प्रतिशत मिलकर 39 फीसदी होता है.
यह आंकड़ा मायावती को लुभा रहा है और वे इसी प्रयास में हैं कि इन दो तबकों के वोट के सहारे वे सत्ता तक पहुंच जाएं. हालांकि कांग्रेस और छोटी पार्टियों का संभावित गठजोड़ और इसमें असदुद्दीन ओवैसी की मुस्लिम-दलित राजनीति मायावती के प्रयास में रोड़े डाल सकती है.
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में छोटे-छोटे मुस्लिम संगठनों के इत्तेहाद फ्रंट में डॉ. मोहम्मद अय्यूब की पीस पार्टी समेत कई मुस्लिम संगठन शामिल हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में चार सीटें जीतने वाले डॉ. अय्यूब इस बात की संभावना जताते हैं कि फ्रंट में अभी कई और पार्टियां जुड़ेंगी. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, एमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस से भी एक साथ आने की बात चल रही है.
कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी इस दिशा में सक्रिय हैं. कांग्रेस ने मुस्लिमों को प्रभावित करने के लिए ही गुलाम नबी आजाद को यूपी का प्रभारी बनाया, लेकिन फिलहाल इसका कोई खास असर पड़ता नहीं दिख रहा है.
बसपा के एक नेता ने यह संभावना जताई कि असदुद्दीन ओवैसी बसपा के साथ आ सकते हैं, इसके प्रयास चल रहे हैं. बसपा नेता ने कहा कि ओवैसी भी दलित-मुस्लिम एकता की हिमायत करते हैं और मायावती पर कभी प्रहार नहीं करते. ओवैसी सैद्धांतिक रूप से बसपाई स्टैंड के साथ दिखते हैं.
इस चुनाव में मायावती मुस्लिम कार्ड खुल कर खेल रही हैं. उन्होंने स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि अगर मुस्लिमों ने उनका साथ दिया तो बसपा भाजपा को हरा सकती है. मायावती सोच-समझ कर यह बयान दे रही हैं कि भाजपा और सपा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और कांग्रेस उत्तर प्रदेश में हारी हुई लड़ाई लड़ रही है, लिहाजा मुसलमान मतदाताओं को अपना वोट बेकार नहीं करना चाहिए.
मायावती ने तीन तलाक के मसले पर और भोपाल में जेल से भागे सिमी के आठ कथित आतंकियों के मुठभेड़ में मारे जाने पर भी सीधी प्रतिक्रिया देकर मुसलमानों का ध्यान अपनी ओर खींचा. सिमी से प्रतिबंध हटाने से लेकर सिमी के समर्थन में खुला बयान देने वाले मुलायम सिंह की इस बार की चुप्पी मुसलमानों को खली है. मुसलमानों के कल्याण के लिए की गई
घोषणाओं को अमल में नहीं लाए जाने के कारण भी मुसलमान सपा से नाराज हैं. सपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में मुसलमानों को 18 प्रतिशत आरक्षण देने, सच्चर समिति और रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशों को अपने स्तर से लागू करने और आतंकवाद के आरोप में जेलों में बंद बेकसूर मुसलमानों के मुकदमे वापस लेने समेत कई वादे किये थे लेकिन ये वादे अधूरे ही रह गए.
समाजवादी पार्टी के किले में दिख रहे इन छेदों को और बड़ा करने और मुस्लिमों को अधिक से अधिक ‘उकसाहित’ और प्रभावित करने का दायित्व मायावती ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी को सौंपा है. नसीमुद्दीन सिद्दीकी के बेटे अफजल सिद्दीकी को भी इस अभियान में शरीक किया गया है. अफजल सिद्दीकी को मेरठ, सहारनपुर, बरेली, मुरादाबाद, अलीगढ़ और आगरा डिवीजन का प्रभारी बनाया गया है.
मायावती ने अपने नेताओं को निर्देश दिया है कि वे बूथ स्तर तक जाकर मुसलमानों के बीच काम करें और खास तौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम युवकों को बसपा के साथ जोड़ें. इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर नसीमुद्दीन के बेटे को खास जिम्मेदारी सौंपी गई है. मायावती ने पिछले दिनों औपचारिक बयान जारी करते हुए कहा कि मुसलमानों का हित सपा में सुरक्षित नहीं है और सपा को वोट देने का मतलब है भाजपा की जीत सुनिश्चित करना.
मायावती ने कहा, ‘उत्तर प्रदेश के सर्वसमाज के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय को यह समझना बहुत जरूरी है कि उनका हित सपा में बिल्कुल सुरक्षित नहीं है, अब दो खेमों में बंटी सपा को वोट देने का मतलब है भाजपा को मजबूत करना और उसे जिताना.’ मायावती ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश में जबसे सपा सरकार बनी है, तबसे कानून का राज समाप्त हो गया है और उसकी जगह गुंडों, बदमाशों, माफियाओं, अराजक, भ्रष्ट और साम्प्रदायिक तत्वों का जंगलराज चल रहा है.
मायावती ने दावा किया कि 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट उनकी पार्टी को ही मिलेगा. मायावती का कहना है कि यूपी के मुस्लिम बहुजन समाज पार्टी के साथ वापस आ रहे हैं. मायावती ने कहा, ‘अब मुस्लिम हमारे साथ आ गए हैं. अब उनके मन में कोई संशय नहीं है. सपा के अंदरूनी कलह से मुस्लिम वोट उनसे दूर हुआ है.’
बसपा महासचिव नसीमुद्दीन सिद्दीकी कहते हैं कि समाजवादी पार्टी मुसलमानों का बिरयानी में तेजपत्ते की तरह इस्तेमाल करती है. इसका एहसास मुसलमानों को अब खुद ब खुद हो रहा है. समाजवादी पार्टी मुस्लिमों को धोखा देने वाली पार्टी है. मुसलमान पिछले 25 साल से समाजवादी पार्टी को वोट दे रहे हैं, लेकिन मुसलमानों को क्या मिला?
चुनाव होने के बाद सपा मुसलमानों को अकेला छोड़ देती है. सिद्दीकी ने मुसलमानों और दलितों के एकजुट होने का दावा किया और कहा कि अपने परिवार में ही एक-दूसरे से लड़ने वाले सपा नेताओं के लिए अब मुसलमान वोट नहीं डालने वाले. नसीमुद्दीन ने यह भी कहा कि मुसलमानों ने बसपा को वोट नहीं दिया तो यूपी में एक भी मुस्लिम विधायक नहीं बन पाएगा.
लेकिन ये नहीं मानते मायावती के दावे में दम
कुछ मुसलमान नागरिक मायावती के दावे को जमीनी हकीकत नहीं मानते. इलाहाबाद के डॉ. नूर आलम कहते हैं कि मुसलमान सपा से अलग नहीं हो सकते. हालांकि वे यह भी कहते हैं कि जो कुछ काम होना चाहिए था, उतना नहीं हुआ, लेकिन फिर भी मुसलमान अखिलेश से नाराज नहीं हैं.
शिवपाल ने भी बहुत संघर्ष किया है, उनसे भी लोगों को हमदर्दी है. पार्टी के टूटने की हालत में ही वोटों का बिखराव हो सकता है और तब मुसलमान बसपा की तरफ जा सकते हैं. लखनऊ के फुरकान का कहना है कि मुसलमान मुलायम के साथ ही रहेंगे.
उनके सामने कोई और विकल्प नहीं है. पूर्व विधायक शेख सुलेमान कहते हैं कि मुसलमानों के लिए नेताजी ने बहुत कुछ किया है. इसलिए मुसलमान नेताजी के साथ खड़े हैं. मुसलमानों को विश्वास है कि मुलायम के रहते समाजवादी पार्टी में टूट नहीं हो सकती. लिहाजा, मुस्लिम वोटों में कोई बिखराव नहीं है. कन्नौज के हाजी जरार खां का कहना है कि मुसलमान अखिलेश के साथ हैं. पार्टी अगर बंटी भी तो मुसलमान अखिलेश के साथ चले जाएंगे.
अखिलेश ने मुसलमानों को जो सहूलियतें दी हैं उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. मेरठ के गुलशेर मलिक कहते हैं कि मुसलमान तो अखिलेश की ही तरफ हैं. कब्रिस्तान की चारदीवारी बनाने का मसला हो या कई अन्य मामले, अखिलेश ने मुसलमानों के लिए बहुत काम कराए हैं. पार्टी में टूट हुई तो 80 फीसद मुसलमान अखिलेश की ही तरफ जाएंगे.
बलिया के परवेज रौशन का कहना है कि जो लोग यह कह रहे हैं कि अखिलेश ने मुसलमानों के लिए काम नहीं किया, वे ठीक जानकारी नहीं रखते. अखिलेश ने मुसलमानों के लिए कोई गलत काम नहीं किया. मुलायम की असली विरासत हैं अखिलेश, इसलिए मुसलमान उनसे अलग नहीं हो सकते.
पूर्वांचल के मोहसिन खान कहते हैं कि अगर टिकट का वितरण और उम्मीदवारों का चयन निष्पक्ष तरीके से हुआ और उस पर कलह हावी नहीं हुआ तो आने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा को स्पष्ट बहुमत मिलेगा. मोहसिन खान सपा के वे नेता हैं जिन्हें सपा के कलह का खामयाजा भुगतना पड़ा है.
इसके बावजूद वे बसपाई दावे को पूरी तरह ठुकरा देते हैं. गोरखपुर के जिला अध्यक्ष मोहसिन खान और गोंडा के जिला अध्यक्ष मो. महफूज खान को हटाया गया, लेकिन इनकी सपा के प्रति वफादारी कायम है. मोहम्मद मोहसिन खान स्टेट गेस्ट हाउस कांड में अभियुक्त बनाए गए थे और जेल भी गए थे.
वह मुकदमा आज भी चल रहा है. क्षेत्र के मुसलमान इस कार्रवाई से काफी खफा हैं कि पार्टी ने उन्हें टिकट भी नहीं दिया और जिला अध्यक्ष का पद भी छीन लिया.
मुसलमानों में भ्रम बढ़ा गया नेताजी का बयान
समाजवादी पार्टी के रजत जयंती समारोह में मुलायम सिंह यादव के बयान ने मुसलमानों में भ्रम बढ़ा दिया. मुलायम ने कहा कि आज अगर सबसे ज्यादा जुल्म किसी पर हो रहा है तो वह मुसलमानों के साथ हो रहा है. मुसलमानों पर अत्याचार सपा सरकार में भी हो रहा है. मुलायम ने कहा, ‘मैं अखिलेश यादव से कहता हूं कि वह प्रशासन को आदेश देकर ऐसा होने से रोकें. हमें देश के किसानों और युवाओं के साथ मिलकर साम्प्रदायिक शक्तियों से लड़ना है.
हमारी लड़ाई साम्प्रदायिक शक्तियों के खिलाफ है. जनता निराश हो रही है, कार्यकर्ताओं को जनता के बारे में सोचना है. बहुत कुछ करना है. जो नारा देते हो, उसका पालन करो.’ मुसलमानों में अधिक भरोसा पैदा करने के लिए कही गई मुलायम की बातों ने मुसलमानों के बीच मुलायम की हताशा को अधिक रेखांकित किया.