416 वीं लोकसभा के लिए हुए आम चुनावों को भारतीय राजनीति में कई मायनों में याद किया जाएगा. उनमें सबसे प्रमुख उत्तर प्रदेश में क्षेत्रीय दलों का अवसान होगा. मोदी नाम की सुनामी के सामने प्रदेश की क्षेत्रीय क्षत्रप ढेर हो गए. समाजवाद के आधुनिक पुरोधा मुलायम सिंह और सर्वजन सुखाय की नाव पर सवार मायावती की नैया भी इस बार पार नहीं हो सकी. समाजवाजवादी पार्टी ने परिवार वाद के बल पर कुछ सीटें बचा लीं लेकिन मायावती खाता भी नहीं खोल पाईं. मायावती लोकसभा में राजनीतिक शून्य पर पहुंच गईं. इसके साथ ही अजीत सिंह के राष्ट्रीय लोकदल को भी मुंह की खानी पड़ी. पूर्वांचल में भारतीय जनता पार्टी ने अपना दल के साथ गठबंधन किया था, गठबंधन का फायदा अपना दल को हुआ और वह दो सीटें जीतने में कामयाब हुई. इन चुनावों में भारतीय राजनीति का एक नया चाल, चरित्र और चेहरा सामने आया है जिसमें केंद्र की राजनीति में दखल अच्छा खासा दखल रखने वाली सपा और बसपा की भूमिका नगण्य हो गई है. पिछले लोकसभा में बसपा और सपा  क्रमशः 21 और 21 सीटें जीतकर कांग्रेस और बीजेपी के बाद तीसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टियां थीं. यूपीए-2 सरकार को बाहर से समर्थन दे रही इन दोनों पार्टियों के सांसदों पर टिकी थी. लेकिन मोदी के अच्छे दिन इन दोनों पार्टियों के लिए बुरे दिन साबित हो गए.
चुनावी आंकड़ों पर नज़र डाली जाए तो मालूम होता है कि उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी को प्रदेश में 22.2 प्रतिशत और बहुजन समाज पार्टी को 19.7 प्रतिशत वोट मिले हैं. दोनों ही पार्टियां मिलकर भी भारतीय जनता पार्टी की बराबरी नहीं कर पाईं. भाजपा ने उत्तर प्रदेश में कुल वोटों में से 43.3 प्रतिशत वोट हासिल किए. इसका मतलब यह रहा कि मायावती अपना पारंपरिक वोट और मुलायम सिंह, यादवों का वोट हासिल करने में कामयाब हुए. बड़े पैमाने पर मुस्लिम वोट कांग्रेस और इन दोनों पार्टियों के बीच बट गया. उत्तर प्रदेश में 34 सीटों पर बहुजन समाज पार्टी दूसरे पायदान पर रही. मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी ने पांच सीटों पर विजय हासिल की और 31 सीटों पर दूसरे पायदान पर रही. संसद में उनका दायरा परिवार तक ही सीमित रह गया. मुलायम मैनपुरी और आजमगढ़ से, बहु डिंपल कन्नौज से, भतीजा धर्मेंद्र बदायुं से और दूसरे भतीजे अक्षय फिरोज़ाबाद से जीतने में सफल हुए. मायावाती का सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय का नारा एक बार फिर फुस्स हो गया. उनकी सोशल इंजीनियरिंग धरी की धरी रह गई. उत्तर प्रदेश में 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को महज 47 सीटें और कुल 15 प्रतिशत मत हासिल हुए थे. दो साल बाद उसी भाजपा ने अमित शाह के नेतृत्व में करिश्माई प्रदर्शन किया और 73 सीटों पर पार्टी का परचम लहराया. भाजपा के मत प्रतिशत में 18 प्रतिशत का जबरजस्त उछाल आया. भाजपा ने सपा और बसपा दोनों के वोटों में सेंध लगाई. सपा 29 प्रतिशत से 22 प्रतिशत और बसपा 26 से 19.7 प्रतिशत पर आ गई.
सपा बेरोज़गारी भत्ता और लपटॉप बांटकर युवाओं का वोट पाने की कोशिश कर रही थी. मोदी सिर्फ विकास और रोजगार श्रृजन के नाम पर युवाओं को अपनी ओर खींचने में कामयाब हुए. यह बाद उत्तर प्रदेश में हर कोई जानता है कि उनका राज्य देश में सबसे पिछड़े राज्यों में आता है. वोट बैंक की राजनीति से इतर युवाओं ने जाति, धर्म और समुदाय पर आधारित राजनीति को नकार कर विकास के नाम पर वोट दिया. उत्तर प्रदेश के लाखों युवक गुजरात नौकरी की तलाश में जाते हैं, वे गुजरात के विकास से वह वाकिफ हैं, इसलिए उन्होंने विकास के नाम पर वोट दिया. युवा रोजगार अपने घर में चाहते हैं. इस वजह से उत्तर प्रदेश की वर्तमान और पूर्ववर्ती सरकार चलाने वाली पार्टियोें के इस मसले पर असफल रहने के कारण भाजपा को वोट दिया. फलस्वरुप उत्तर प्रदेश में भाजपा की ऐतिहासिक विजय हुई.
मुलायम सिंह हर बैठक में अपने कार्यकर्ताओं से प्रधानमंत्री बनाने का आग्रह करते और बंद और खुुली आंखों से प्रधानमंत्री बनने के सपने देखते रहे. मुस्लिम तुष्टीकरण का कार्ड खेलते रहे. दो साल पहले विधानसभा चुनावों में जिस जनता ने समाजवादी पार्टी को अर्श पर पहुंचाया, उसी जनता-जनार्दन ने गलत नीतियों और खोखले वादों को ध्यान में रखते हुए उन्हें फर्श पर भी पहुंचा दिया. उत्तर प्रदेश की क़ानून व्यवस्था का पिछले दो सालों से भगवान ही मालिक है. अखिलेश यादव के नेतृत्व में चल रही समाजवादी सरकार के गठन के बाद उत्तर प्रदेश में हुए सौ से अधिक दंगे इस बात के गवाह हैं कि प्रदेश में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. सत्ता के कई केंद्र होने की बात भी समय समय पर जगजाहिर होती रही है. शिवपाल यादव से लेकर आज़म खान तक सभी अपने-अपने तरीके से सरकार चलाते दिखे. महिला आरक्षण विधेयक पर उनका विरोध और प्रमोशन में आरक्षण का मुद्दा भी उनके लिए मुसीबत बन गया, सरकारी महकमे में काम कर रहे दलित वर्ग के कर्मचारियों का विरोध करने की वजह से भी उन्हें नुक़सान पहुंचा है. मुुज़फ्फनगर दंगों में सरकार की भूमिका ने प्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण में मदद की जिसका सीधा फायदा नरेंद्र मोदी को मिला. जिस पिछड़े वर्ग के सहारे अब तक मुलायम की नैया पार लगती रही है वो वोट बैंक भी उनके हाथ से छिटक गया. जिस मुस्लिम वोट को साधने के लिए मुलायम-माया मोदी को लगातार सांप्रदायिक और देश के सांप्रदायिक हथियार बता कर हमले कर रहे थे, उसकी प्रतिक्रिया के रुप में प्रदेश का हिंदू समाज के लोगों ने जात-पात के दायरे से बाहर निकलकर मोदी और भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में वोट किया.
दोनों ही पार्टियों को केंद्र की यूपीए-2 सरकार को समर्थन देने की वजह से भी नुुक़सान हुआ है. अथाह  मंहगाई और भ्रष्टाचार केनए-नए मामलों के सामने आने के बाद भी दोनों ही पार्टियों ने केंद्र सरकार को समर्थन देना जारी रखा. सीबीआई की मदद से कांग्रेस दोनों दोनों ही पार्टियों को साधती रहीं. दोनों पार्टियों के लिए कांग्रेस को समर्थन देना गले की हड्डी बन गया. डूबते जहाज में बैठे दो पंक्षियों की तरह अब उन्हें पैर रखने की जगह नहीं मिल रही है. हार के बाद बहुजन समाज पार्टी अपना राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी खो दिया है. बहुजन समाज पार्टी ने देश भर में 474 उम्मीदवार मैदान में उतार थे, इनमें से एक का भी संसद में नहीं पहुंच पाना बसपा के लिए किसी सदमे से कम नहीं है. ऐसी स्थिति में माया और मुलायम को उत्तर प्रदेश मेंे एक बार फिर से जमीन तलाशनी होगी. यदि वे अपनी रणनीति में आमूलचूल बदलाव नहीं करेंगी और पारंपरिक राजनीतिक दायरे से बाहर आकर लोगों के हित के लिए काम नहीं कर, उनका देश की राजनीतिक धारा में वापसी करना बेहद अंसभव हो जाएगा.
वर्ष          सीटों की संख्या(बसपा) (सपा)
1989                                       03
1991                                       02
1996                                       11                                           20
1998                                       05                                           21
1999                                       14                                           26
2004                                       19                                           36
2009                                       21                                           21
2014                                       00                                           05

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