झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास एवं पुलिस महानिदेशक डीके पाण्डेय जहां नक्सलियों पर पूरी तरह काबू पाने का दंभ भर रहे हैं, वहीं जमीनी हकीकत कुछ और है. वे लगातार यह दावा कर रहे हैं कि एक साल के भीतर राज्य को नक्सलमुक्त बना दिया जाएगा, लेकिन राज्य में उग्रवादी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. इसके साथ ही उग्रवादी संगठनों की संख्या में भी लगातार वृद्धि हो रही है. पहले जहां एमसीसी का एकछत्र राज था, वहीं इस संगठन से टूटकर उग्रवादियों ने अब अपना-अपना संगठन खड़ा कर लिया है. दो दर्जन नक्सली संगठनों का अपना-अपना इलाका है और अपना-अपना वर्चस्व. अपने क्षेत्रों से उग्रवादी संगठन प्रतिमाह करोड़ों रुपए लेवी वसूलते हैं. एक अनुमान के मुताबिक उग्रवादी संगठन प्रतिवर्ष तीन सौ करोड़ से अधिक की राशि लेवी के रूप में वसूलते हैं. उग्रवादियों के कारण ग्रामीण दहशत में जीने को मजबूर हैं. पहले तो केवल लेवी की वसूली होती थी, पर अब नक्सली संगठनों ने अपने संगठन के विस्तार का तुगलकी फरमान जारी किया है. वे हर परिवार से एक बच्चे की मांग कर रहे हैं. बच्चा नहीं देने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी जा रही है. नक्सली संगठन पहले छोटे-मोटे अपराधियों को संगठन में शामिल करते थे, लेकिन अब नाबालिग बच्चों एवं बच्चियों के मांगने से लोग गांव से अन्यत्र पलायन करने को मजबूर हैं. ग्रामीणों से बच्चा मांगने में सबसे आगे भाकपा माओवादी के सदस्य हैं.
नक्सलियों ने गुमला, लोहरदगा, लातेहार, सिमडेगा सहित कई जिलों के मुखियाओं को फरमान जारी कर कहा कि पंचायत चुनाव में हमलोगों ने तुम्हारी सहायता की है, अब अपने-अपने क्षेत्र से दस-दस बच्चे दिलाओ. इस फरमान से कई पंचायतों के मुखिया डरे-सहमे हैं. नक्सली संगठनों का साफ तौर पर कहना है कि हमलोगों को अब बाल दस्ता बनाकर संगठन को मजबूत करना है. इसलिए हर हाल में बच्चा उपलब्ध कराया जाए. बच्चे को ट्रेनिंग के दौरान हर सुविधा मुहैया कराई जायगी, उसके परिवार को प्रतिमाह एक निश्चित राशि देने की बात कही गयी है. इससे पहले माओवादी गांव में बैठक कर ग्रामीणों पर बच्चा देने का दबाव डालते थे. पूर्व में कई लोगों ने डर से संगठन को बच्चा दे दिया, लेकिन अब ग्रामीण बच्चा देने से इंकार कर रहे हैं. इसे देखते हुए नक्सलियों ने वनोत्पाद के प्रयोग पर रोक लगा दी, पर ग्रामीण नहीं झुके. ग्रामीणों को एकजुट होता देख माओवादी सहित अन्य उग्रवादी संगठन अब स्थानीय जनप्रतिनिधियों पर बच्चा दिलाने का दबाव बना रहे हैं. नक्सलियों के डर से बच्चे अब जंगल की ओर नहीं जा रहे हैं. ग्रामीणों के इंकार के बाद माओवादी वनोत्पाद लेने जंगल में भी नहीं घुसने दे रहे हैं. अगर ग्रामीण या बच्चे जंगल में लकड़ी चुनने जाते हैं तो नक्सली उन्हें उठाकर ले जाते हैं.
एक अनुमान के अनुसार नक्सली अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने के उद्देश्य से लगभग एक हजार बच्चों को उठा चुके हैं, इसमें कुछ नक्सली कैम्प से भागने में सफल रहे हैं. उच्च न्यायालय की कड़ी फटकार के बाद पुलिस हरकत में आई और अभी तक 250 बच्चे, जिसमें कुछ लड़कियां भी हैं, को नक्सलियों से मुक्त करा लिया गया. इन बच्चों को पुनर्वासित करने के लिए सरकार ने कल्याण विभाग द्वारा संचालित आवासीय विद्यालयों में नामांकन करा दिया है. गुमला के पुलिस अधीक्षक चंदन झा ने बताया कि इस सूचना के तहत नक्सलियों के खिलाफ मरुद्र-वनफ ऑपरेशन चलाया गया था, जो पूरी तरह सफल रहा. अब जल्द ही मरुद्र-टू’ ऑपरेशन चलाया जायेगा. उन्होंने कहा कि नक्सलियों द्वारा मुखिया से बच्चा मांगने की सूचना पुलिस को अभी तक नहीं मिली है. अगर इस तरह की सूचना सही पायी गयी, तो मुखिया एवं अन्य के खिलाफ भी कार्रवाई की जायेगी. नक्सलियों के कब्जे से मुक्त कराये गये बच्चों से जब यह पूछा गया कि उन्हें किस तरह की ट्रेनिंग दी जाती है, तो डरे-सहमे बच्चों ने कोई जानकारी नहीं दी. उन्होंने बताया कि अब भी सैकड़ों बच्चे नक्सलियों के कब्जे में हैं. नक्सली इन बच्चों से सामान एवं हथियार ढोने का काम करवाते हैं. लड़कियों को नक्सली परेशान करते हैं और उनलोगों के साथ गलत भी होता है. डरे-सहमे बच्चों ने बताया कि एक साल पहले नकुल यादव उनलोगों को उठाकर ले गया था. वे लोग संगठन के शीर्ष कमांडर नकुल यादव की देख-रेख में थे. दस्ते से वे खाना बनवाते थे और कुछ गलती करने पर उनलोगों की पिटाई भी की जाती थी. बच्चे हमेशा कैम्प से भागना चाहते थे, पर डर से वे लोग हिम्मत नहीं जुटा पाते थे. लेकिन जब पुलिस के आने की सूचना मिली तो वे लोग भाग निकले. भागे हुए बच्चों में से एक लड़की ने कहा कि उसे बाल दस्ते में शामिल किया गया था. दरअसल नक्सली अपने बचाव के लिए बाल दस्ते का गठन करना चाहते हैं, ताकि बच्चों को आगे कर वे अपना काम आसानी से करा सकें. इधर, एक अन्य नक्सली संगठन पीएलएफआई ने भी लेवी वसूली के लिए 300 नया कैडर तैयार किया है. इसका मकसद है कि रांची सहित अन्य जिलों में जहां माओवादी कमजोर हुए हैं, उन क्षेत्रों में पीएलएफआई संगठन को मजबूत करना और सरकारी योजनाओं से चल रहे निर्माण कार्यों से लेवी वसूलना. एक अनुमान के अनुसार पीएलएफआई नामक उग्रवादी संगठन पचास करोड़ रुपये लेवी प्रतिवर्ष वसूली करता है. पुलिस जो भी दावा करे, पर हाल के दिनों में उग्रवादी घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हुई है. 2015 में जहां 83 उग्रवादी घटनाएं हुई थीं, वहां मई तक ही 102 घटनाएं सामने आ चुकी हैं. उग्रवादियों के साथ 2015 में 9 मुठभेड़ हुई थी, वहीं मई 2016 तक 19 मुठभेड़ की घटनाएं हुई हैं. नक्सलियों ने मई 2016 तक 48 लोगों की हत्या की, जबकि 2015 में 33 लोगों की हत्या उग्रवादियों ने की थी. इस तरह अन्य घटनाओं में भी वृद्धि होती जा रही है.
नक्सली लैला नक्सली मजनूं
अब कुख्यात नक्सलियों का शौक कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है. सुरा और सुन्दरी उनकी आदतों में शुमार हो रही है. इस दीवानगी में कुछ नक्सलियों की जान भी जा चुकी है. नक्सली भी प्रेमिका के कारण एक-दूसरे के दुश्मन बनते जा रहे हैं. नक्सली बंदूक के बल पर महिलाओं से जबरन संबंध बनाते हैं, कुछ नक्सलियों के तो एक दर्जन से भी ज्यादा महिला मित्र हैं. नक्सली संगठन द्वारा प्यार की इजाजत नहीं दिये जाने एवं इसे सख्ती से लागू करने के बाद भी नक्सली खुलेआम प्यार के पीछे पागल होते देखे जा रहे हैं. संगठन इसकी इजाजत नहीं देता है, लेकिन लड़कियों के चक्कर में संगठन के भीतर खूनी संघर्ष होता रहता है. कुछ दिन पूर्व तृतीय प्रस्तुत कमेटी के वरिष्ठ कमांडर दलाल गंझू और उसके दस्ते ने एमसीसी के एरिया कमांडर रामचरण सिंह की हत्या इसलिए कर दी कि उसने गंझू की भतीजी से जबरन शादी रचा ली थी, जबकि उसकी पहले से दो बीवियां थीं. इसी तरह पतरातू में सोना मांझी नामक युवती के चक्कर में भाकपा माओवादी के कमांडर जगेश्वर यादव की नृशंस हत्या कर दी गई. इस तरह कई नक्सली लड़कियों के चक्कर में नक्सली संगठन छोड़कर महिला नक्सलियों के साथ फरार हो गये हैं. कुख्यात नक्सली कुंदन पाहन के एक दर्जन से अधिक, विशाल जी की चार महिलाओं के साथ, राजबल्लभ गोप, प्रसाद जी एवं निर्मल जी जैसे कुख्यात नक्सलियों के कई महिलाओं के साथ मधुर संबंध हैं, जबकि यही नक्सली नेता दूसरे नक्सलियों को महिलाओं के साथ इसलिए संबंध नहीं बनाने देते हैं, ताकि वे घर न बसा लें और संगठन न छोड़ दें. पर बड़े नक्सली नेता इस नियम को तोड़ कर महिलाओं के साथ संबंध बना रहे हैं.
नक्सली मुख्यधारा में लौटें या परिणाम के लिए तैयार रहें: रघुवर
झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास का कहना है कि नक्सली मुख्यधारा में लौटें, अन्यथा परिणाम भुगतने को तैयार रहें. मुख्यमंत्री ने कहा है कि राज्य में अब कोई नक्सली गतिविधि बर्दाश्त नहीं की जाएगी, उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया जायेगा. उन्होंने कहा कि नक्सलियों को बंदूक छोड़कर अब मुख्यधारा में लौट जाना चाहिए. राज्य सरकार ने नक्सलियों के लिए नई सरेंडर नीति भी बनायी है. इसके तहत नक्सलियों को नगद राशि के साथ उन्हें पुनर्वासित करने की योजना है. मुख्यमंत्री ने माना कि नक्सलियों की आड़ में अपराधी तत्व सक्रिय हैं और विकास में बाधक बने हुए हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि पूरे राज्य में नक्सलियों के खिलाफ अभियान तेज किया गया है. सरकार की सख्ती से नक्सली दुबक गये हैं. अब पहले से नक्सली घटनाओं में काफी कमी आयी है. छिटपुट घटनाएं तो होती ही रहती हैं. पुलिस को यह आदेश दे दिया गया है कि नक्सली घटना रोकने के लिए जो भी कदम उठाना पड़े, उठायें. पूरे राज्य में सीमावर्ती राज्यों की मदद से नक्सल विरोधी अभियान चलाया जा रहा है. मुख्यमंत्री ने दावा किया कि पूरे राज्य से नक्सलवाद खत्म कर दिया जायेगा.
नक्सलियों के खिलाफ राज्यव्यापी अभियानः डीजीपी
झारखंड के पुलिस महानिदेशक डीके पाण्डेय इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं कि राज्य को जल्द नक्सलमुक्त बना दिया जायेगा. वे ये दावा भी करते हैं कि झुमरा पहाड़ एवं पारसनाथ जो नक्सलियों का गढ़ माना जाता है, से नक्सलियों को पूरी तरह से भगा दिया गया है. नक्सलियों के विरुद्ध राज्यव्यापी अभियान शुरू किया गया है. इस अभियान का यह असर हुआ है कि नक्सली अपनी मांद में छुपने को मजबूर हो गए हैं. डीजीपी ने दावा किया कि दो साल के भीतर राज्य में नक्सलियों का नामोनिशान मिटा दिया जाएगा. उन्होंने यह भी दावा किया कि पारसनाथ को पूरी तरह से नक्सलमुक्त कर दिया गया है, पर हाल में पारसनाथ में पुलिस एवं नक्सलियों की मुठभेड़ में दो पुलिसकर्मियों की मौत हुई. इस पर उन्होंने कहा कि पारसनाथ को पूरी तरह नक्सलमुक्त बना दिया गया है, पर कुछ नक्सली पुलिस का अभियान देखकर घने जंगलों में छुप गये थे. कुछ नक्सली जो बच गये थे, उन्होंने इस घटना को अंजाम दिया है.