2015 में बजट सत्र को सम्बोधित करने के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मनरेगा को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधते हुए लोकसभा में कहा था, ‘मेरी राजनीतिक सूझबूझ कहती है कि मनरेगा कभी बंद मत करो, क्योंकि मनरेगा आपकी विफलताओं का जीता-जागता स्मारक है और मैं गाजे- बाजे के साथ इस स्मारक का ढोल पीटता रहूंगा.’ इसके एक साल बाद ही 2016 में मनरेगा योजना के 10 साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री मोदी ने इसे राष्ट्रीय गर्व का विषय बताया था.
हालांकि वर्तमान समय में मनरेगा की स्थिति का अवलोकन करें, तो ये पता चलता है कि ये राष्ट्रीय गर्व का विषय नहीं बन सका और इसे लेकर 2015 में प्रधानमंत्री जी द्वारा कही गई बात ही सच साबित हो रही है. अंतर सिर्फ इतना है कि अब ये कांग्रेस की नहीं बल्कि भाजपा की विफलताओं का स्मारक बनती जा रही है. इस योजना के जरिए एक जॉब कार्ड होल्डर के लिए 100 दिनों के रोजगार की बात कही गई है, लेकिन सूखा ग्रस्त राज्यों में इसे 150 दिनों तक बढ़ाने के बाद भी इसके जरिए रोजगार सृजन का राष्ट्रीय औसत 38 दिन ही है. 2017-18 के बजट में मनरेगा के लिए 48,000 करोड़ का एलान करते हुए सरकार ने अपनी पीठ इसलिए थपथपाई क्योंकि ये राशि इससे पिछले साल 38,500 करोड़ थी. लेकिन हकीकत ये है कि पिछले साल के 11,000 करोड़ के बकाए के कारण 2016-17 में ही ये राशि 38,500 करोड़ से बढ़कर 47,499 करोड़ रुपए हो गई थी.
रोजगार में 7 लाख कमी, मांग में 12 लाख बढ़ोतरी
16 राज्यों में मनरेगा के जरिए रोजगार पाने वाले परिवारों की तादाद में बीते तीन सालों में 7 लाख की कमी आ गई है. हाल में आई केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि 2013-14 में पूरे 100 दिनों का रोजगार पाने वाले परिवारों की संख्या 46,59,347 थी, जो 2016-17 में घटकर 39,91,169 रह गई. गौर करने वाली बात ये भी है कि नवंबर 2016 से मार्च 2017 के बीच बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओड़ीशा में मनरेगा के अंतर्गत काम मांगने वालों की संख्या में 30 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज हुई है.
मजाक है मजदूरी में एक रुपए की वृद्धि
2017-18 के बजट में जब मनरेगा के लिए 48,000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया, तो ये संभावना जगी थी कि मनरेगा कर्मियों के भी अच्छे दिन आएंगे. लेकिन काम मिलने में कमी और विभिन्न राज्यों में मनरेगा कर्मियों की मजदूरी में नाम मात्र की बढ़ोतरी ने उस संभावनाओं पर पानी फेर दिया. दरअसल, इस वित्तीय वर्ष यानि अप्रैल 2017 के बाद यूपी, बिहार, असम और उत्तराखंड में मनरेगा कामगारों की मजदूरी में सिर्फ एक रुपए की वृद्धि हुई है. वहीं ओड़ीशा में दो रुपये और पश्चिम बंगाल में चार रुपए मजदूरी बढ़ाई गई है.