मनोज बाजपेयी के चुनाव लड़ने की चर्चा से बढ़ी हलचल
पश्चिमी चंपारण में दो संसदीय क्षेत्र है. दोनों, वाल्मीकि नगर व पश्चिमी चम्पारण पर भाजपा का कब्जा है. सांसद सतीश चंद्र दूबे के लिए इस बार पुन: अपनी जीत को दोहराना एक चुनौती है. सबसे पहले तो भाजपा को इन दोनों सीटों, खासकर वाल्मीकिनगर पर, जदयू के दावेदारी से निपटना होगा. सीट शेयरिंग को लेकर जदयू के सांसद आरसीपी सिंह, अशोक चौधरी, मंत्री मदन सहनी से लेकर कई दिग्गज नेता लगातार जिले का दौरा व विभिन्न प्रकोष्ठों का सम्मेलन कर जमीनी हकीकत को तलाशने में लगे हैं. पूर्व में यह सीट जदयू के खाते में रही है.
इसको फिर से बरकरार रखने की कोशिश जारी है. जदयू की तरफ से वाल्मीकिनगर के पूर्व सांसद बैद्यनाथ महतो व वरीय चिकित्सक डॉ. एनएन शाही समेत कई टिकट की दौड़ में शामिल हैं. वाल्मीकिनगर क्षेत्र पर महागठबंधन में शामिल दलों के नेताओं की तो भरमार है ही, जिऩकी नजर इस पर लगी हुई है. वहीं, भाजपा के ही एक विधायक इस संसदीय सीट पर नजर रखे हुए हैं. दल के अंदर रहकर भी वर्तमान सांसद से इनकी नाराजगी जगजाहिर है.
इसके अतिरिक्त, महागठबंधन में शामिल कांग्रेस के नेताओं के संभावित उम्मीदवारों की अच्छी खासी संख्या है. कांग्रेस नेताओं में चार बार विधायक व दो बार मंत्री रह चुके तथा अपनी स्वच्छ छवि के लिए चर्चित विश्वमोहन शर्मा से लेकर बगहा की राजनीति में अपना खास दबदबा रखनेवाले पूर्व सांसद पूर्णमासी राम का नाम उछल रहा है.
वहीं, दिल्ली में पत्रकारिता जगत में अच्छा खासा नाम कमाने वाले इस जिले के लौरिया प्रखंड के परसौना निवासी प्रवेश मिश्रा व कांग्रेस के पूर्व उम्मीदवार मो. इरशाद मुखिया, विधायक विनय वर्मा भी रेस में शामिल हैं. प्रवेश मिश्रा दिल्ली यूनिवर्सिटी में अपने शैक्षणिक काल में एनएसयूआई से जुड़े रहें हैं. साथ ही, पश्चिमी चंपारण के दो विधान सभाओं में कांग्रेस की जीत से भी दलीय उम्मीदवारों की संख्या निरतंर बढ़ रही है.
इस सबसे इतर गौनाहा के बेलवा गांव से निकलकर बॉलीवुड में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले सिने स्टार मनोज बाजपेयी का नाम भी हवा में एकाएक तैरने लगा है. उनके समर्थकों का दावा है कि वे सीधे कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के संपर्क में हैं. अगर बाजपेयी फिल्म जगत से राजनीति में प्रवेश करते हैं तो वाल्मीकिनगर का चुनाव काफी दिलचस्प व रोचक हो जाएगा. वहीं, राजद ने अभी तक वाल्मीकिनगर संसदीय सीट को लेकर अपना पत्ता नहीं खोला है. इसके शीर्ष नेता क्षेत्र में भाग-दौड़ से परहेज कर चुप्पी साधे हुए हैं.
प.चम्पारण सीट पर भाजपा के डॉ. संजय जायसवाल दो बार से काबिज हैं. अपने पिता डॉ. मदन प्रसाद जायसवाल की तरह वे जीत की हैट्रिक लगा पाते हैं कि नहीं, सबकी निगाह इसी पर टिकी हुई है. दल में इनके बढ़ते कद को छोटा करने के लिए विरोधियों की भी कमी नहीं है. अक्खड़ स्वभाव व स्पष्ट वादिता इनकी स्वभाव की खूबी और राजनीति के लिए एक कमजोरी भी है.
सीटों की अदला-बदली से लेकर कई तरह के अफवाहों का बाजार गर्म है. डॉ. संजय जायसवाल को राजनीति पिता से विरासत में मिली है. इस बार उनके लिए अपने विरोधियों से निपटना एक बड़ी चुनौती होगी. हालांकि, शहर में हरिवाटिका से लेकर मनुआपुल तक फोर लेन रोड, जिला में पासपोर्ट कार्यालय इनकी महत्वपूर्ण उपलब्धि रही है. परंतु राजद की जातीय समीकरण के आगे इनके पिता डॉ. मदन प्रसाद जायसवाल को एक बार पराजय का मुंह देखना पड़ा था. राजन तिवारी खुद को राजद की टिकट का दावेदार बता कर अपने खास समर्थकों के साथ यहां की स्थानीय राजनीति को साध रहें हैं.
वहीं, कांग्रेस के स्थानीय विधायक मदन मोहन तिवारी ने भी अंदर ही अंदर महागठबंधन के टिकट के लिए अपनी लॉबी तेज कर दी है. पिछले दिनों कांग्रेस संगठन ने छावनी ओवर ब्रिज के मुद्दे पर आंदोलन कर डॉ. संजय जासवाल को घेरा था. परंतु हाल में 266 करोड़ की लागत से छावनी ओवर ब्रिज व सड़कोें के कायार्ंे की शुरूआत व शिलान्यास कर डॉ. जायसवाल ने इस समस्या को हाशिए पर ला खड़ा कर दिया है.
लेकिन इसके बावजूद भाजपा के लिए इस बार का चुनाव आसान नहीं होगा. पार्टी में आंतरिक कलह भाजपा के लिए कोढ़ में खाज साबित हो रहा है. भाजपा के एक पराजित विधायक से इस मुहिम को हवा मिल रही है. राज्य के कई शीर्ष नेता भी यहां के गुटबंदी में दिलचस्पी ले रहें हैं. जिसके कारण दल के अंदर दलदल से लेकर जन आकांक्षाओं व समस्याओं से अपने को उबार कर पुन: क्षेत्र में भगवा लहराना एक कठिन टास्क है.