हालांकि वर्तमान में हम जागतिकीकरण के समय में जी रहे हैं ! लेकिन परिवार इतना सिमटता जा रहा है कि ! हम और हमारे एक या दो से अधिक संख्या को घर में जगह नहीं है ! और कहा – कहा तो बुढे मा – बाप के लिए भी जगह नहीं है ! और प्रायवसी नाम के जंतू ने मेरे मोबाईल या कम्प्यूटर को क्यों हाथ लगाया ? कमरे में घुसने देना तो बहुत ही दूर की बात है ! ऐसे जमाने में एक बंगाली ब्राम्हण परिवार में पली-बढ़ी मनिषा इतनी सहजता से डीक्लास से लेकर डीकास्ट, डीरिलिजन और सबसे महत्वपूर्ण बात डीवुमेन होकर बगैर किसी लफ्फाजी से बहुत ही सहजता से अपना जीवन जी रही है और दुसरो के जीवन को बनाने की कोशिश कर रही है ! पोस्ट कोरोना सायकी मेंसे अच्छे – अच्छे लोग निकल नहीं रहे हैं ! जो चलें गऐ वह मुक्त हो गऐ लेकिन जो रह गए वह कोरोना से भी भयानक पैरोनिया के शिकार हो गए हैं ! इस परिप्रेक्ष्य में मनिषा की जीवन शैली को देखते हुए मै अभिभूत हूँ !


इसलिये सबसे पहले इस मोहतरमा को विशेष सलाम ! क्योंकि 19 अगस्त को श्याम अपने शांतिनिकेतन के घर के आंगन में, काई के कारण फिसलकर गिरने से, उनका दाहिना हाथ फ्रॅक्चर होने के बावजूद ! डॉक्टर ने अॉपरेशन करके एक महिना रेस्ट के लिए कहने के बावजूद ! मनिषा ने प्लास्टर लगवाने के बाद ! बारह घंटे के भीतर 20 जून को सुबह बाय रोड कारसे ! शांतिनिकेतन से भागलपुर का तीनसौ किलोमीटर का फासला ! तय करने का फैसला लिया ! और सुबह के आठ बजे निकलकर दोपहर के दो बजने के पहले ही भागलपुर पहुंच गई ! यहां तो थोड़ा फोडा – फुन्सी होने के बाद भी लोग आमि खुब अस्वस्थ ! का बहाना बनाकर घर में बैठ जाते हैं !


क्योंकि हमारे सभी के वरिष्ठ मित्र, और बंगला भाषा के मुर्धन्य साहित्यकार, तथा पत्रकार ! श्री. गौर किशोर घोष की जन्मशताब्दी के उपलक्ष्य में भागलपुर के कार्यक्रम में शामिल जो होना था ! और गौरदा के संबंध में मनिषा बॅनर्जी ने, बत्तीस साल पहले भागलपुर दंगे के बाद (1989) ! गौरदा के साथ के, सांप्रदायिकता को लेकर ऐतिहासिक संस्मरण, जो गौरदा ने 46-47 के बंगाल के बटवारे के दौरान ! हुए भिषण दंगों में, महात्मा गांधी की वन मॅन आर्मी के नोआखाली, कलकत्ता के काम को पत्रकार के हैसियत से देखे प्रसंगों का विवरण प्रस्तुत किया है ! और गौर किशोर घोष की तबीयत ठीक रहने तक ! लगभग दस साल भागलपुर उनके साथ आने के अनुभवों से हमें अवगत कराया ! ( गौरदा भागलपुर दंगे के समय के पहले ही 1989 में तीन बार अपने हृदय रोग के कारण बायपास सर्जरी कर चुके थे ! )


मनिषा बॅनर्जी को भागलपुर दंगे की तीव्रता देखने के बाद, “लगा कि आने वाले पचास साल भारतीय राजनीति का केंद्रबिंदू सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिकता ही रहेगा ! और इसलिए उसने अपनी शांतिनिकेतन की एम ए अंग्रेजी में और बी ऐड करने के बाद, शांतिनिकेतन के पास बंगाल सरकार के शिक्षा विभाग में शिक्षा के क्षेत्र में नौकरी करने के साथ-साथ , बंगाल में बंगला सांस्कृतिक मंच नाम से एक प्रक्रिया चला रही है ! और उसके द्वारा बंगाल में भी सांप्रदायिक शक्तियों का मुकाबला करने की कोशिश कर रही है !


अभी बिल्किस बानो के गुनाहगारों को छोडने के खिलाफ भी उसने बंगला सांस्कृतिक मंच की तरफ से भर्त्सना करने का प्रयास किया है ! और इसके लिए हस्ताक्षर अभियान चला रही है ! अपने खुद के घर में अपनी एक बीस साल की लड़की के अलावा ! दर्जनों लडके लडकियां अपने बेटा- बेटी के जैसा ही परिवार में समाकर जीवन जीने की कोशिश कर रही है ! जिसमें कोई लेस्ली फोस्टर है ! तो कोई साबीर शेख तो कोई रुनी बेगम तो रुखसार, तो अत्यंत गरीब घर की चटर्जी नाम की जुडवा बहनों से लेकर, हफीजूर, खैरूल, सुमन दास से लेकर लगभग हर जाति धर्म के नाम के बच्चों को लेकर ! कम्यून के जैसा एकसाथ रहने का प्रयोग पच्चीस साल से भी अधिक समय से जारी है ! और इस कारण काफी बच्चों को अपनी जिंदगी बनाने के लिए, मनिषा के सहयोग के कारण आज कोई प्रोफेसर बनकर तो कोई अलग – अलग तरह के कामों में ! अपने घर – परिवार का भरण पोषण करने में सक्षम हो सके हैं ! मै पचास साल से भी अधिक समय से लगभग देश और दुनिया में घुम – फिर रहा हूँ ! लेकिन कहीभी ऐसा प्रयोग नहीं देखा हूँ ! बहुत सारे संस्था, आश्रम और संघठनो के ठिकानों पर ठहरा हूँ ! वहां के चालक अपने अलग कमरे या क्वार्टर में ! या कुछ तो और भी दूर (मनसे भी और तनसेभी !) रहकर अपने कम्यून होने का दावा करते हैं ! मनिषा के घर में प्रायव्हसी नाम की कोई बात नहीं है ! नही उनका अलग कमरा है ! और न ही बाथरूम ! और खाने की व्यवस्था, सभी को मिलकर काम करने की है ! फिर अपने हाथों से बर्तन साफ करने से लेकर खाना बनाने तक ! और खाने में जो भी कुछ बनेगा वहीं सभी को खाना है ! मनिषाकी खुद की बेटी मेघना को भी वही प्रैक्टिस करनी पड़ती है !

 


राखी, दिपावली, दुर्गा – काली पूजा से लेकर ईद, ख्रिसमस, नागासाकी – हिरोशिमा दिवस या भागलपुर, गुजरात के दंगों की जधन्य घटना के, बिल्किस बानो, इशरत जहाँ तक के प्रसंग मनाने के लिए पोस्टर, चित्र, शिल्प तथा विभिन्न झांकियां, नुक्कड़ नाटक और गितो तक ! बनाने के लिए पूरी टीम रात-दिन एक करते हुए कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए लग जाते हैं !
और सबसे महत्वपूर्ण बात कोरोना के समय ! लगभग संपूर्ण दो साल, इसमे से कुछ बच्चे मुख्य रूप से लेस्ली फोस्टर तो आधी रात में भी ! अगर कोई कॉल आ जाये तो तुरंत अॉक्सिजन सिलंडर के साथ पेशंट के पास बैठ कर ! अॉक्सिजन देने से लेकर उनकी तिमारदारी करना !

यह भी सिर्फ उम्र के सोलह – सत्रहवे साल में ! और मेघना बॅनर्जी, मनिषाजी की बेटी ! और खुद मनिषा, और समिरूल इस्लाम नाम के सज्जन और उनके अपने सहयोगी साथियों के साथ ! आई आईआईटी पास, और फॉरेन रिटर्न ! इंजीनियरिंग की पढ़ाई खत्म करने के बाद ! अब कोलकाता में किसी इंजीनियरिंग कॉलेज में पढाने के साथ- साथ, अपने घर, विरभूम जिले के रामपुरहाट क्षेत्र में, एक ऐंबुलेंस और कुछ अॉक्सिजन मशीन लेकर, दवाईयों के साथ, इलाज करने से लेकर, अन्न बाटने ! और जरूरत पड़ने पर, पैसा भी ! जबरदस्त काम किया है ! अपने खुद के जानों की परवाह किए बिना काम किया है ! और झुग्गियों में रहने वाले बच्चों को कहा अॉनलाईन से शिक्षा मिलेगी ? उसके लिए चलत विद्यालय की स्थापना एक अनुठा उपक्रम कोरोना के कारण शुरू हो गया ! एक – एक करते हुए अब अनेक चलत विद्यालय चल रहे हैं ! और शिक्षा देने के लिए शिक्षक, मेघना से लेकर उसके हम उम्र के लोगों के द्वारा यह गतिविधि ! गत दो वर्षों से अधिक समय हो रहा है ! लगातार जारी है ! क्या यही सच्चे कोरोना वॉरियर्स नही है ?


फिर भागलपुर दंगे के तीस साल के उपलक्ष्य में कोई नाटक मंचन करना है ! तो गौर किशोर घोष की जन्मशताब्दी के उपलक्ष्य में कार्यक्रम में शामिल होने के लिए ! पूरी टीम भागलपुर, कोलकाता यात्रा के लिए चल पडती है ! अब ऐसा माहौल शायद ही विश्वभारती विश्वविद्यालय में, (कभी रविंद्रनाथ टागौर के समय में हुआ होगा ! ) और वह भी आज सांप्रदायिक मानसिकता के व्हाईस चांसलरोकी नियुक्ति के बाद तो, और भी असंभव होता जा रहा है !


लेकिन ओयासिस के जैसे मनिषा बॅनर्जी के जैसे प्रयोग, संपूर्ण दुनिया में हो तो ! दुनिया को बेहतर बनाने के लिए और कुछ अलग करने की आवश्यकता नहीं होगी ! क्योंकि परिवार की बराबरी कोई भी स्कूल कॉलेज तथा संस्था, संघटना नही कर सकते हैं ! यह सायलेंट रिव्हालुशनरी काम है ! इसलिए बहुत ही पेशंस की जरूरत है ! और पैसो की भी ! शायद ही मनिषा के प्रधानाचार्य की आय में से कुछ बचता होगा !


उसी में से, फोटो में मनिषा की बेटी मेघना के अलावा, दुसरी बेटी रूख्सार जो किसी संस्था में कार्यरत हैं ! और दुसरा लडका जापानी भाषा में पी एच डी करने के बाद अॉनलाईन अनुवादक का काम कर रहा है ! एस के साबीर नाम का ! रुखसार ने विश्वभारती विश्वविद्यालय से ही, एम एस डब्लू करने के बाद ! मनिषा के सिफारिशों के आधार पर पहले मधुपूर, फिर मुजफ्फरपुर और अब बंगाल में, मालदा में किसी संस्था में काम कर रही है ! वैसे ही साबीर जापानी भाषा का अॉनलाईन अनुवादक, तो खैरूल बंगला देश में कोई विदेशी संस्थागत काम में ! तो हफीजूर मुजफ्फरपुर के कॉलेज में फारसी में, विश्वभारती विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट करने के बाद पढाने के लिए नियुक्त हुआ है ! तो बशिरूद्दीन तिब्बती विस्थापित लोगों के उपर शोध कार्य कर रहा है ! तो कोई रुनी ट्यूशन और छोटी मोटी नौकरी करते हुए अपने कचरा बुनकर घर चलाने वाले मां-बाबा को मदद करने की कोशिश कर रही है ! इससे ज्यादा कमाओ और पढ़ाई करते हुए अपने घर परिवार की मदद करने के उदाहरण कितने होंगे ?


हम जब आठवीं – नौवीं कक्षा में पढ़ने के समय शायद ( 1966 – 67) बाबा आमटे के सोमनाथ प्रोजेक्ट मे गर्मी की छुट्टियों में, कमा कर शिक्षा करने वाले, किसी शिबिर की जानकारी साधना साप्ताहिक में पढकर ! हमारे शिंदखेडा राष्ट्र सेवा दल के दस पंधरा की संख्या में शाखा के सैनिकों को लेकर ! मै शाखा नायक और हमारे पूर्ण समय कार्यकर्ता श्री प्रभाकर पाटील के नेतृत्व में, जीवन मे पहली बार किसी लंबे सफर में गये थे ! और कमाई कर के रहने की जानकारी पढ़ने के कारण ! सिर्फ जाने के टिकट पर यात्रा के लिए निकल पड़े ! और वहां जाकर देखा तो ! काम तो बांध बनाने से लेकर, गड्ढे खोदते हुए ! हाथों में छाले हो गये ! लेकिन दो समय का खाना छोड़कर कुछ भी नहीं मिला ! फिर मुझे अकेले को बड़ी मुश्किल से आपस में पैसे इकठ्ठा करने के बाद सिर्फ ट्रेन के टिकट पर यात्रा करने भेज दिया ! ताकि मैं शिंदखेडा के सेवा दल के अध्यक्ष श्री ठानसिंग राजपूत और अन्य पदाधिकारियों से अन्य लोगों के टिकट के पैसे भेज सकू ! लेकिन भूक क्या होती है ? यह जीवन में पहली बार मूल – मारोडा से नागपुर, और नागपुर से भुसावल, और भुसावल से शिंदखेडा की यात्रा के दौरान पहली बार अनुभव हुआ ! क्योंकि यात्रा के टिकट के अलावा मेरे पास एक धेला भी जेब खर्च के लिए नही था ! और शायद जीवन के पहले सफर की शुरुआत ऐसे होने के कारण ! कमअधिक प्रमाण में वही सिलसिला अभिभी जारी है !


मनिषा के घर में रहने वाले सभी बच्चों का पारिवारिक परिवेश निम्न आय वर्ग के लोगों से होने के कारण, विश्वभारती विश्वविद्यालय में दाखिला लेने के बावजूद उन्हें इस तरह का पारिवारिक जीवन जीने का लाभ ! और साथ ही इंग्लैंड अमेरिका से लेकर हमारे जैसे देश भर में घुमना-फिरना करने वाले लोगों से लेकर, जापान, कोरिया तथा बंगाला देश और दुनिया के और भी जगह के लोगों का मनिषा बॅनर्जी के घर में आना-जाना होते रहता है ! इस कारण उन बच्चों को भी अनायास हमारे जैसे लोगों की सोहबत और बातचीत करने का मौका मिलता है ! इस कारण बच्चों को सही मायने में विश्वभारती का परिचय मिलता है ! जिसकी वजह से बच्चे काफी आत्मविश्वासी और बहुश्रुत होते जा रहे है ! मनिषा खुद ही एक स्कूल बन चुकी है ! जिसे वह मेरी एक्सटेंडेड फॅमिली बोलते रहतीं है ! मैं इस एक्सटेंडेड फॅमिली का ऐसा ही और एक्सटेंडेड होने की कामना करता हूँ !


डॉ सुरेश खैरनार 28, अगस्त 2022, नागपुर

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