यदि आप पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर की राजधानी इंफाल जाते हैं, तो आप शहर के बीचो-बीच स्थित ईमा कैथेल ज़रूर जाते हैं. स्थानीय भाषा में ईमा का मतलब होता है मां और कैथेल का मतलब होता है बाजार. यानी मांओं का बाजार. यह ऐसा बाजार है जहां दुकानों और यहां बिकने वाले सामानों में विविधता है, लेकिन एक चीज समान है और वह है दुकानदार. यहां के बाजार को महिलाएं ही संभालती हैं. इस बाजार के तीन हिस्से हैं, पहला लैमरेल शिदबी ईमा कैथेल (पुराना बाजार), दूसरा इमोइनु ईमा कैथेल (लक्ष्मी बाजार) और तीसरा फौउइबी ईमा कैथेल (न्यू मार्केट). ये तीनों हिस्से मिलकर बाजार के स्वरूप को व्यापक बनाते हैं. यह देश का इकलौता बाजार है, जिसका संचालन सिर्फ महिलाएं करती हैं. यही इस बाजार की खासियत भी है. यह अपने आप में महिला सशक्तिकरण का अनूठा उदाहरण है, जहां सभी महिलाएं एक दूसरे का हर तरह से सहयोग करती हैं.
लेकिन तकरीबन 600 साल पुराने इस बाजार को जनवरी 2016 में आए भूकंप के बाद एक नई चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. 4 जनवरी 2016 को आए भूकंप से इस बाजार के कॉम्प्लैक्स को बुरी तरह नुकसान पहुंचा. आज स्थिति यह है कि बाजार के इमोइनु ईमा कैथेल (लक्ष्मी बाजार) और फौउइबी ईमा कैथेल (न्यू मार्केट) के अधिकांश खंभे टूटने पर हैं. बाजार के फर्श पर दरारें आ चुकी हैं. लेकिन सरकार ने अब तक इस क्षतिग्रस्त बाजार को दुरुस्त करने के लिए किसी तरह के कदम नहीं उठाए हैं. इस वजह से यहां कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है. भूकंप के बाद इन दो क्षतिग्रस्त कॉम्प्लैक्सों को खाली करा दिया गया था. इन दोनों बाजारों में 1873 महिलाएं दुकानदार थीं, लेकिन मार्केट को खाली कराने के बाद ये अपनी दुकानें नहीं लगा पा रही हैं. इनके परिवार के समक्ष आजीविका की समस्या आ खड़ी हुई है.
गौरतलब है कि जनवरी 2010 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस बाजार के नवनिर्मित खंड की इमारत का उद्घाटन किया था. लेकिन केवल पांच साल के अंतराल में इमारत इतनी जर्जर कैसे हो गई कि उसके पिलर 6.7 तीव्रता के भूकंप के झटकों को नहीं झेल पाए. क्या इमारत के निर्माण में घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया था और निर्माण के दौरान गुणवत्ता के मानकों को दरकिनार कर दिया गया था. यदि ऐसा नहीं होता, तो बाजार के खंभों का यह हाल नहीं होता. एक ऐतिहासिक बाजार की इमारत के निर्माण में निश्ति तौर पर करोड़ों रुपये की हेरा-फेरी हुई होगी. लेकिन यहां के लोगों के मन में उठ रहे सवालों का जवाब देने वाला कोई नहीं है. राज्य सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है. दूसरी तरफ बाजार की महिलाएं आजीविका के संकट का सामना कर रही हैं.
इतिहास गवाह है कि यहां की महिलाएं जीवट वाली हैं और उन्होंने कभी किसी के सामने घुटने नहीं टेके. ये महिलाएं अबला नहीं सबला हैं. यहां की महिलाओं ने विषम परिस्थितियों में भी मोर्चा संभाला है. यह बाजार सन् 1535 के आसपास अस्तित्व में आया था. हालांकि अंग्रेजों द्वारा मणिपुर पर कब्जा करने के बाद इस बाजार को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई. इस दौरान ब्रिटिश सेना और यहां की महिलाओं के बीच कई बार संघर्ष भी हुआ. 1904 में जब ब्रिटिश सरकार ने राज्य से चावल बाहर भेजना शुरू किया था. तब यहां की महिलाओं ने ब्रिटिश सरकार के इस अन्याय के ख़िला़ङ्ग आवाज उठाई और कपड़ा बनाने में इस्तेमाल होने वाले लकड़ी के टुकड़े (तेम) को अपना हथियार बनाया. इन महिलाओं ने पुरुषों से एक क़दम आगे बढ़कर लड़ाई का मोर्चा संभाल लिया. इस संघर्ष के दौरान कई महिलाएं शहीद हो गईं, कुछ महिलाओं को जेल भी जाना पड़ा था. इस लड़ाई को मणिपुर के इतिहास में नुपी लाल यानी महिलाओं के युद्ध के रूप में जाना जाता है. उसके बाद भी 1939 में हुए दूसरे संघर्ष में इस बाजार की महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. आज भी इस संघर्ष में शहीद महिलाओं को हर साल 12 दिसंबर को याद किया जाता है.
अब यहां की महिलाएं सरकार के साथ दो-दो हाथ करने को भी तैयार हैं. यहां की महिलाओं का मानना है कि पांच साल के अंदर इमारत इतनी कमजोर कैसे हो सकती है. इससे यह बात पूरी तरह साफ हो जाती है कि इस कॉम्प्लैक्स निर्माण के दौरान बड़े स्तर पर घोटाला हुआ होगा. इसलिए यह आज धराशाई होने की कगार पर है. निर्माण कार्य कराने वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार के ऊपर कई तरह के सवाल खड़े होते हैं. अब राज्य सरकार अपनी सफाई पेश करते हुए कह रही है इन कॉम्प्लैक्सों का निर्माण पीडब्लूडी ने नहीं किया था. इसका निर्माण एनबीसीसी (नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन) ने किया था. हालांकि सरकार ने वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर दुकानदार महिलाओं को इंफाल के थांगाल बाजार के करीब विकल्प के तौर पर अस्थाई जगह देने की कोशिश की, लेकिन महिलाओं ने अस्थाई बाजार का जमकर विरोध किया. इस वजह से अस्थाई बाजार के निर्माण का काम भी रुक गया. राज्य सरकार ने आईआईटी रुड़की के तीन इंजीनियरों को बुलाकर बाजार का निरीक्षण कराया है, लेकिन 4 महीने बीत जाने के बाद भी कॉम्प्लैक्स के जर्जर खंभों की मरम्मत होगी या इसका दोबारा निर्माण किया जाएगा, यह स्थिति साफ नहीं हो सकी है. महिलाओं ने बिना गुणवत्ता के इस बाजार (कॉम्प्लैक्स) का निर्माण करने वाली ऐजेंसी को दंडित करने की मांग की है.
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ईमा कैथेल के माध्यम से मणिपुर की महिलाओं ने व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में आर्थिक जिम्मेदारी ली है. इस बाजार में कार्यरत महिलाओं को समय-समय पर राजनीतिक और सैन्य हलचल का भी सामना करना पड़ता है. मणिपुरी जीवन शैैली को स्वदेशी बनाए रखने में इन महिलाओं की बड़ी भूमिका है. यहां हरी सब्जियों, खाद्य पदार्थ, लोहे के औजार, मछलियां, कपड़े, बांस निर्मित वस्तुएं एवं मिट्टी के बर्तन आदि का व्यवसाय होता है. अपने परिवार और समुदाय में यहां की महिलाएं आर्थिक स्तंभ की तरह खड़ी हैं. इनका अपने परिवार, राज्य और देश की अर्थव्यवस्था में एक अलग योगदान है. यहां की 5,000 से ज्यादा महिलाएं अपने बेहतर भविष्य के लिए हमेशा सजग, जागृत और एकजुट रहती हैं.
यहां दुकान लगाने वाली 30 वर्षीय पुष्पा तीन बच्चों की मां है. 9 वर्ग फुट की दुकान में वह चावल और आटे से बने लड्डू बेचती हैं. उन्हें प्रतिमाह 90 रुपये दुकान का किराया देना होता है. उनकी यह दुकान परिवारिक विरासत की तरह है, पहले उनकी सास यहां दुकान चलाती थीं. उनके देहांत के बाद पुष्पा ने दुकान की जिम्मेदारी संभाल ली. सास के देहांत के बाद घर की आर्थिक स्थिति कुछ डांवाडोल हुई थी, लेकिन जब से उन्होंने यहां काम करना शुरू किया और परिवार की आर्थिक स्थिति फिर से सुदृढ़ हो गई है. बाजार में इस तरह की हजारों पुष्पा हैं, जो न केवल खुद को सशक्त बना रही हैं, बल्कि अपने परिवार के साथ-साथ राज्य की प्रगति में योगदान दे रही है. पैंतालीस वर्षीय नुंगशीतोम्बी लाइश्रम हर महीने लगभग चार से पांच हजार रुपये कमाती हैं, जिससे वह अपने पांच लोगों के परिवार का पेट पालती हैं. उनके तीन बच्चे पढ़ाई करते हैं. नुंगशीतोम्बी ताजा सब्जियां बेचती हैं. उनकी शादी 18 साल की उम्र में हो गई थी, तब से वह यहां सब्जी बेचकर अपना परिवार चलाती हैं. उनके पति एक साधारण किसान हैं. ईमा कैथेल एक अद्भुत बाजार है. इस बाजार में काम करने वाली लगभग 5000 से ज्यादा महिलाएं अपने परिवार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं. यह बाजार न केवल भारत में बल्कि, विश्व स्तर पर भी अपनी पहचान कायम बनाए हुए है.
इस बाजार में व्यवसाय करने वाली सरोजनी कहती हैं कि नई इमारतें बनने से पहले यहां किसी को किसी से कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन सरकार के हस्तक्षेप और सही योजनाओं न होने की वजह से हमारे लिए परेशानियां बढ़ गईं. उनका कहना है कि सरकार तो केवल दिखावे या कहें कि बाहरी सौंदर्य पर ध्यान दे रही है. लेकिन आंतरिक तौर पर यहां की महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उसने कुछ नहीं किया है. यहां पर काम करने वाली महिलाओं के पास अपना बैंक अकाउंट तक नहीं है, जिसकी वजह से उन्हें ॠण की सुविधा भी नहीं मिल पाती है. इन महिलाओं और उनकी समस्याओं पर सबसे अधिक ध्यान देने की जरूरत है. देश के इस गौरवशाली बाजार को जहां सहायता की बेहद जरूरी है, तो अनावश्यक हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है. मणिपुर नगर निगम ने नई इमारतों के निर्माण के बाद यहां दुकान के लिए लाइसेंस दिए, जिसमें कई महिलाओं को लाइसेंस नहीं मिल पाया. जिन महिलाओं के लाइसेंस नहीं मिला पाया, जिसमें बहुत सारी वे महिलाएं हैं, जिनके पति सेना, पुलिस और अलगाववादियों के साथ हुई मुठभेड़ में मारे जा चुके हैं.
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दुनिया के एकमात्र महिलाओं के बाजार को भूकंप से नुकसान पहुंचना दुःखद बात है. इस भूकंप में पुराने जमाने के घर और बिल्डिंग को कोई नुकसान नहीं हुआ, लेकिन मात्र पांच साल पहले बने इस मार्केट को नुकसान होना अफसोस की बात है. इस मार्केट की स्थिति के बारे में एक रिपोर्ट तैयार कर प्रधानमंत्री और संबंधित मंत्रियों को सूचित किया जाएगा. जितना हो सकेगा, सरकार मदद करने के लिए तैयार है.
-प्रकाश जावड़ेकर, केंद्रीय मंत्री
भूकंप से मार्केट को नुकसान होने की वजह हम लोग पिछले कई महीनों से इस मार्केट में बैठ नहीं पा रही हैं. इस वजह से जीवन यापन में संकट पैदा हो गया है. क्योंकि कई महिलाओं के परिवारों के लिए आमदनी का एकमात्र जरिया यह मार्केट ही है. इसलिए सरकार समय रहते इस मार्केट (कॉम्प्लैक्स) को बनाकर हमारे पुराने दिन वापस नहीं करती है, तो हम इस टूटे हुए मार्केट में ही बैठेंगे. यदि इस दौरान कोई बड़ा हादसा होता है, तो इसकी जिम्मेदारी पूरी तरह सरकार की होगी.
-टीएच शांति देवी, अध्यक्ष, ईमा कैथेल महिला संगठन