अफ्शां एवं माजिद के उदाहरणों से यह बात साफ हो जाती है कि कश्मीर में हिंसा के रास्ते पर चलने वाले नौजवानों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है. सच यह है कि कश्मीरी नौजवान हालात के थपेड़ों का शिकार हो रहे हैं. विश्लेषकों का मानना है कि ये कश्मीरियों की चौथी नस्ल है, जो हिंसापूर्ण माहौल की भेंट चढ़कर अपना भविष्य खो रहे हैं. यही कारण है कि यहां के हालात एवं घटनाओं पर गहरी नजर रखने वाले विश्लेषकों में से अधिक लोगों का मानना है कि अगर कश्मीर की समस्या को शांति पूर्वक माध्यम से हल करने के लिए ठोस उपाय किए जाते हैं और इसके लिए गंभीर राजनीतिक प्रक्रिया शुरू की जाती है, तो शायद कश्मीर की नई नस्ल को तबाही और बर्बादी से बचाना संभव हो सकेगा.
सुरक्षा बलों पर पथराव करना कश्मीर घाटी में एक आम सी बात है. हज़ारों कश्मीरी नौजवान लड़के यह काम कर चुके हैं और करते रहते हैं. लेकिन इस वर्ष 24 अप्रैल को जब नीले रंग की सलवार कमीज पहनी एक नौजवान लड़की श्रीनगर की सड़कों पर सुरक्षा बलों पर पथराव करती हुई कैमरे में कैद हुई, तो इस तस्वीर पर सबकी नज़र गई. घाटी के स्थानीय समाचार पत्रों से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर के मीडिया संस्थानों ने इस तस्वीर को प्रकाशित किया. छानबीन के बाद पता चला कि पथराव करने वाली 21 वर्षीय अफ्शां आशिक़ वास्तव में एक प्रशिक्षित फुटबॉल खिलाड़ी हैं.
अफ्शां का कहना है कि उस दिन यानि 24 अप्रैल को वे अपनी टीम के साथ कॉलेज से टीआरसी ग्राउंड जा रही थीं. रास्ते में उन्होंने देखा कि मौलाना आजाद रोड पर लड़के सुरक्षा बलों पर पथराव कर रहे थे और उसके जवाब में सुरक्षा कर्मी उनपर आंसू गैस के गोले दाग रहे थे. अफ्शां का कहना है कि वे सारी लड़कियां शांतिपूर्वक जा रही थीं, तभी एक पुलिसकर्मी ने उन्हें गाली दी और टीम की एक लड़की को थप्पड़ मार दिया. इसके बाद इन लड़कियों ने पुलिस पर पथराव करना शुरू किया. अफ्शां खेल के मैदान की तरह सड़क पर भी पथराव की अगुवाई करती हुई दिखाई दीं.
शायद अगुवाई करना उनके मिजाज का हिस्सा है. 5 दिसंबर को नई दिल्ली में गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मिलने वाली जम्मू और कश्मीर महिला फुटबॉल टीम की अगुवाई भी अफ्शां ही कर रही थीं. अफ्शां 22 लड़कियों वाली अपनी टीम के साथ गृहमंत्री से मिलीं और उन्हें जम्मू और कश्मीर की महिला खिलाड़ियों तक सुविधाएं पहुंचाने की गुज़ारिश की. इनके साथ टीम के कोच सतपाल सिंह एवं मैनेजर सीरंग अंगमू भी थे. आधे घंटे की इस भेंट में गृहमंत्री जम्मू और कश्मीर की इन साहसी लड़कियों से इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने इस भेंट के दौरान ही जम्मू और कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को फोन कर कहा कि इस महिला फुटबॉल टीम को तमाम सुविधाएं मुहैया कराई जाएं. भेंट के चंद मिनट बाद ही राजनाथ सिंह ने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘मैं जम्मू और कश्मीर की पहली महिला फुटबॉल टीम की नौजवान एवं पूरजोश लड़कियों से मिला. वे फुटबॉल को लेकर उत्साहित हैं. ये लड़कियां एक उदाहरण बन रही हैं.
मैं इनकी सफलता और अच्छे भविष्य की कामना करता हूं.’ अफ्शां कहती हैं कि ‘मैं यह देखकर बहुत प्रभावित हुई कि गृहमंत्री ने हमारी बातें बड़ी खामोशी एवं ध्यान से सुनी. उन्होंने हमारे सामने ही मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को फोन किया और उनसे कहा कि इन लड़कियों की मदद की जाए. गृहमंत्री ने हमें यह भी बताया कि केंद्र सरकार प्रधानमंत्री विशेष पैकेज के अंतर्गत पहले ही जम्मू और कश्मीर राज्य को 100 करोड़ रुपए दे चुकी है.’
अफ्शां ने ठान लिया है कि वे एक अच्छी फुटबॉल खिलाड़ी बनकर अपना नाम रौशन करेंगी. सुरक्षा बलों पर पथराव करने के कुछ ही दिनों बाद 13 मई को मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने उन्हें बुलाया था. अफ्शां का जोश और जज्बा देखकर मुख्यमंत्री ने राज्य के खेल विभाग के सेक्रेटरी को निर्देश दिया कि महिला फुटबॉल टीम की तमाम आवश्याक्ताओं को पूरा किया जाय. 22 सदस्यों वाली इस टीम में राज्य के तीनों क्षेत्रों यानि घाटी, जम्मू और लद्दा़ख की लड़कियां शामिल हैं. अफ्शां टीम की कप्तान एवं गोलकीपर हैं. इतना ही नहीं, अफ्शां मुम्बई क्लब के लिए भी खेल रही हैं.
उन्हें पुलिस पर पथराव करने की अपनी हरकत पर आज भी कोई शर्मिंदगी नहीं है. लेकिन भविष्य में इस तरह की हरकत करने का अफ्शां का कोई इरादा नहीं है. अफ्शां का कहना है कि ‘मुझे कोई शर्मिंदगी नहीं है. अगर कोई आपको गाली देता है, तो उसपर प्रतिक्रिया करना एक स्वाभाविक बात है. मैंने भी यही किया. लेकिन मैं भविष्य में इस तरह की हरकत नहीं कर सकती, क्योंकि अब जम्मू और कश्मीर महिला फुटबॉल टीम की कप्तान होने की हैसियत से मेरी एक पहचान है. मुझे अपनी छवि की हिफाजत करनी है और खेल पर ध्यान देना है.’
दिलचस्प बात यह है कि कश्मीर के बहुत सारे नौजवान लड़के-लड़कियां खेल-कूद एवं शिक्षा के क्षेत्रों में प्रतिभाशाली होने के बावजूद घाटी के हिंसापूर्ण माहौल से प्रभावित हो रहे हैं और अक्सर खुद भी हिंसक माहौल का भाग बन जाते हैं. इसका एक और उदाहरण हाल ही में उस समय देखने को मिला, जब दक्षिणी कश्मीर के अनंतनाग का एक 20 वर्षीय फुटबॉलर माजिद ़खान अपना घर छोड़कर लश्कर-ए-तैयबा में शामिल हो गया. मिलिटेंसी का भाग बनने के कुछ ही दिनों बाद माजिद ़खान ने अपना एक फोटो फेसबुक पर अपलोड किया, जिसमें उसके हाथ में एक राइफल देखी जा सकती थी. यह तस्वीर वायरल हो गई और इसे माजिद के माता-पिता ने भी देखी. जिस माध्यम यानि फेसबुक को इस्तेमाल करके माजिद ने अपने मिलिटेंट बनने का ऐलान किया, उसकी बुजुर्ग मां ने भी उसी फेसबुक का इस्तेमाल करके अपने बेटे को घर लौटने पर मजबूर कर दिया.
माजिद की मां ने एक वीडियो संदेश के द्वारा माजिद को मिलिटेंसी छोड़कर घर लौटने की दर्द भरी अपील की. अपने बेटे को हिंसा की राह पर जाते हुए देखकर उसके पिता को गहरा सदमा लगा और उन्हें दिल का दौरा पड़ा. इस घटना की भी फेसबुक पर चर्चा हुई. मां के आंसू एवं बाप की बीमारी ने माजिद को घर वापस लौटने पर मजबूर कर दिया. पुलिस एवं सुरक्षा बलों ने परम्परा के विपरीत माजिद के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की. कश्मीर पुलिस के आईजी मुनीर खान ने पत्रकारों को बताया कि माजिद ने न ही आत्मसमर्पण किया और न ही हमने उसे गिरफ्तार किया, वो अपने घर लौटा है और यह हमारे लिए खुशी की बात है. माजिद के आत्मसमर्पण को सरकार ने उसकी घर वापसी का नाम देकर उसका स्वागत किया.
सेना ने माजिद को फुटबॉल का प्रशिक्षण एवं शिक्षा देने का ऐलान किया है. माजिद की घर वापसी के बाद अब तक 4 और नौजवान, जो मिलिटेंट बन चुके थे, वापस घर लौटे हैं. पलिस एवं सुरक्षा बलों ने इनमें से किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया है. वास्तव में सरकार मिलिटेंसी छोड़कर वापस घर लौटने वाले नौजवानों की हौसला अ़फज़ाई करना चाहती है. उल्लेखनीय है कि चर्चित मिलिटेंट कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद पुलिस के अनुसार, 100 से अधिक कश्मीरी नौजवानों ने मिलिटेंसी ज्वाइन कर ली है. सेना ने एक ओर मिलिटेंसी को समाप्त करने के लिए ऑपरेशन ऑलआउट शुरू कर रखा है, जिसमें इस साल अब तक 200 मिलिटेंट्स को मारा जा चुका है, परन्तु दूसरी ओर कश्मीरी मिलिटेंट्स को घर वापस लौटने पर आमादा करने की कोशिशें भी की जा रही हैं. इस नई रणनीति के क्या नतीजे सामने आएंगे, वो तो आने वाला समय ही बताएगा.
इसके बावजूद, अफ्शां एवं माजिद के उदाहरणों से यह बात साफ हो जाती है कि कश्मीर में हिंसा के रास्ते पर चलने वाले नौजवानों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है. सच यह है कि कश्मीरी नौजवान हालात के थपेड़ों का शिकार हो रहे हैं. विश्लेषकों का मानना है कि ये कश्मीरियों की चौथी नस्ल है, जो हिंसापूर्ण माहौल की भेंट चढ़कर अपना भविष्य खो रहे हैं. यही कारण है कि यहां के हालात एवं घटनाओं पर गहरी नजर रखने वाले विश्लेषकों में से अधिक लोगों का मानना है कि अगर कश्मीर की समस्या को शांति पूर्वक माध्यम से हल करने के लिए ठोस उपाय किए जाते हैं और इसके लिए गंभीर राजनीतिक प्रक्रिया शुरू की जाती है, तो शायद कश्मीर की नई नस्ल को तबाही और बर्बादी से बचाना संभव हो सकेगा.
कश्मीर में पथराव अब भी जारी, लेकिन मीडिया को नज़र नहीं आता
8 दिसंबर की सुबह मध्य कश्मीर के पखरपुरा इलाके में कानून व्यवस्था की स्थिति उस समय तनावपूर्ण हो गई, जब उस क्षेत्र की घेराबंदी कर सर्च ऑपरेशन करने आए सुरक्षा बलों पर नौजवानों की एक बड़ी संख्या ने पथराव शुरू कर दिया. सुरक्षाबलों को पखरपुरा गांव में मिलिटेंट्स के होने की खबर मिली थी. लेकिन पथराव कर रहे नौजवानों ने सेना के जवानों को इस हद तक बेबस कर दिया कि उन्हें आंसू गैस के दर्जनों गोले दागने पड़े और हवाई फायरिंग भी करनी पड़ी.
इसके बावजूद, सुरक्षा बल सर्च ऑपरेशन में असफल रहे. केवल यही एक उदाहरण नहीं है. घाटी के किसी न किसी इलाके में रोजाना पथराव की घटना हो रही है. लेकिन केंद्र सरकार ने दिल्ली के समाचार पत्रों और चैनलों के माध्यम से यह प्रोपेगेंडा फैला दिया है कि नोटबंदी के बाद घाटी में पथराव की घटनाएं बंद हो गई हैं. अब तो अखबारों और चैनलों में यहां आए दिन होने वाली पथराव की घटनाओं की कवरेज भी नहीं होती.
8 दिसंबर को ही अधिकारियों ने श्रीनगर के संवेदनशील इलाकों में कर्फ्यू जैसे प्रतिबंध लागू कर दिए, क्योंकि अधिकारियों को आशंका थी कि जुम्मे की नमाज के बाद लोग प्रदर्शन करेंगे. इस प्रदर्शन की अपील सैयद अली शाह गिलानी, मीर वाइज़ उमर फारूक़ और मोहम्मद यासीन मलिक ने संयुक्त रूप से की थी. अधिकारियों ने संभावित प्रदर्शन को असफल बनाने के लिए न केवल श्रीनगर के संवेदनशील इलाकों में लोगों के आने-जाने पर पाबंदी लगा दी, बल्कि प्रदर्शन की अपील करने वाले कई नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार भी कर लिया.
कश्मीर के हालात पर नजर रखने वाले विश्लेषकों का कहना है कि घाटी में शांति स्थापित करने के लिए राज्य में एक राजनीतिक प्रक्रिया अनिवार्य है. हालांकि इसके लिए केंद्र ने एक पहल कर यहां वार्ताकार के रूप में दिनेश्वर शर्मा को भेजा है. कश्मीर में शांति बहाली के लिए दिनेश्वर शर्मा द्वारा अब तक उठाए गए कदमों की बात करें, तो उन्होंने अपने स्तर पर सबसे बड़ा कदम उठाते हुए केंद्र और राज्य सरकार को इसके लिए राजी किया कि नौजवानों के खिलाफ दर्ज फौजदारी मुकदमों को खत्म किया जाय. कश्मीर सरकार ने उनकी बात मानी भी और मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने एलान किया कि 4 हजार से ज्यादा कश्मीरियों पर दर्ज फौजदारी मुकदमे वापस होंगे.
लेकिन सच यह भी है कि इस कदम के बावजूद घाटी में शांति के आसार दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं, जिसके लिए मोदी सरकार ने दावे किए थे. दिनेश्वर शर्मा के मिशन के लिए सबसे बड़ा धक्का यही है कि वे सिर्फ उनलोगों को बातचीत की मेज पर लेकर आए हैं, जिन्हें कभी सरकार से कोई शिकायत ही नहीं रही है और न ही वे लोग कश्मीर के मसले को समाधान योग्य मानते हैं. बातचीत की प्रक्रिया का तभी कोई नतीजा निकल सकता है, जब वे लोग मेज पर आ जाएंगे, जो कश्मीर को विवादित मानते हैं और जिनके कारण यहां के हालात सरकार के नियंत्रण से बाहर हैं. लेकिन फिलहाल इस तरह की बातचीत के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं, क्योंकि ऐसा लगता है कि मोदी सरकार ने कश्मीर पर सख्त नीति जारी रखने का निश्चय कर रखा है.