आज महात्मा गाँधी जी की हत्या को 77 साल हो रहे हैं. और उसके बावजूद महात्मा गाँधी की हत्या की अनबुझी पहेलियाँ आज भी उलझी हुई है, इसलिए उनपर रोशनी डालने की कोशिश मैं इस लेख में कर रहा हूँ.
साथियों महात्मा गाँधी की हत्या के मामले में तत्कालीन कांग्रेस के नेताओं की भी भूमिका गैरजिम्मेदाराना होने की वजह से हमें महात्मा गाँधी जी को 30 जनवरी 1948 दिन खोना पडा है.
यह अंग्रेजी भाषा में ‘OPEN’ शिर्षक की पत्रिका में रवि विश्वेश्वरय्या शारदा प्रसाद के लेख से और मनोहर मलगांवकर की किताब ‘द मैन हूँ किल्ड गांधी’ से अधिक स्पष्ट रूप से पता चलता है.
क्योंकि महात्मा गाँधी की हत्या को समय रहते रोकने के सुराग मुंबई, पुणे , ग्वालियर, और अहमदनगर में गांधीजी की हत्या के मामले में चल रही तैयारियों को, तत्कालीन मुंबई राज्य की, और केंद्र की सरकारों ने जानबूझकर हिंदू महासभा की जांच-पड़ताल करने में कोताही बरती गई है.
और सबसे हैरानी की बात, महात्मा गाँधी जी की हत्या के बाद की जांच-पड़ताल को जानबूझकर, तत्कालीन उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री श्री. सरदार वल्लभभाई पटेल ने, बाकायदा विनायक दामोदर सावरकर और ग्वालियर के हिंदू महासभा के नेताओं को मुक्त रखने के लिए विशेष सावधानी बरती है. जबकि गांधी जी की हत्या में नाथूराम गोडसे ने इस्तेमाल किया हुआ हथियार, बहुत ही अत्याधुनिक इटालियन बेरेट्टा पिस्तौल जो ग्वालियर महाराजा के मिलिटरी सेक्रेटरी का था.
यह पिस्तौल नाथूराम गोडसे और नारायण आपटे तक पहुंचाने में, ग्वालियर के पांच लोगों की भूमिका रही है. जगदीश प्रसाद गोयल, ग्वालियर का सब से बड़ा शस्त्रास्त्र बेचने वाला एजेंसी का मालिक था. लेकिन अचरज की बात है, महात्मा गाँधी जी की हत्या के मामले के आरोपपत्र में इस आदमी का नाम तक नहीं है !
इस कड़ी में जो नेतृत्वकारी भूमिका अदा कर रहा था, वह डॉ. दत्तात्रय सदाशिव परचुरे जो ग्वालियर स्टेट हिंदू महासभा का प्रमुख, और ग्वालियर राजपरिवार का डाक्टर था. जिन्हें आजीवन कारावास की शिक्षा ट्रायल कोर्ट ने दी थी. लेकिन शिमला कोर्ट ने तकनीकी मुद्दे पर उसे बरी कर दिया था.
और अन्य तीनों ही ग्वालियर हिंदू महासभा के सब से महत्वपूर्ण नेता थे. जिन्हें आरोप पत्र में गुमशुदा की फेहरिश्त में ट्रायल कोर्ट के जस्टिस आत्मा राम ने डाल दिया था. और वह तीनों के तीनों ग्वालियर में ही आराम से घुम रहे थे.
मेरी स्वर्गवासी मां कमलाम्मा मदिकेरा शारदा प्रसाद महात्मा गाँधी हत्या को लेकर चल रहे ट्रायल कोर्ट 1948 में जिसे जस्टिस आत्मा राम लाल किले के कोर्ट में चला रहे थे, उस कोर्ट की प्रॉसिक्युशन टीम में शामिल थी. उन्होंने कहा कि, अॉस्कर हेन्री ब्रॉउन चिफ प्रेसिडेंसि मॅजिस्ट्रेट मुंबई की भूमिका संदेहास्पद रही है. उन्होंने इस बात को पहले पकड़ा था, क्योंकि वह सायकॉलॉजी में पोस्टग्रॅज्यूएट थी. तथा स्वतंत्रता सेनानी थी, 1942 के भारत छोडो आंदोलन में गिरफ्तार हुई थी, और मशहूर लॉ फर्म के लिए काम कर रही थी. और गृहमंत्रालय मुंबई राज्य और अन्य सरकारी विभागों के लिए भी काम करती थी.
उन्हें शंकर किशतैया जो दिगंबर बडगे पुणे का, शस्त्रास्त्रे बेचने वाला और हिंदू महासभा का सदस्य भी था, जो बाद में सरकारी गवाह बनने की वजह से, उसका नौकर था शंकर किश्तैया से पुछताछ करके उससे कुछ जानकारी मालूम करने की जिम्मेदारी थी. क्योंकि शंकर को सिर्फ तेलुगु भाषा आती थी, और थोडी बहुत मराठी.
ब्राउन जो स्कॉटिश था और भारत की आजादी बाद भी भारत में रह रहा था. इस कारण मेरी माँ की पोस्टग्रॅज्यूएट डिग्री सायकॉलॉजी में होने से, और उनकी मातृभाषा तेलगू होने से, शंकर किश्तैया जो बिल्कुल अनपढ था, इस वजह से वह सिर्फ तेलुगु में बोल सकता था. और थोडी बहुत, टुटी- फुटी मराठी. इस वजह से मेरी माँ पर्याप्त मात्रा में शंकर किश्तैया से जानकारी निकालने के लिए सक्षम थी.
मेरी माँ के कहने पर से पता चला है, कि इस केस में दर्जनों महत्वपूर्ण राष्ट्रीय विषयों को देखते हुए, सरदार पटेल के निर्देश थे कि “हिंदू महासभा के बारे में कुछ भी जांच नहीं करना है. क्योंकि हिन्दू महासभा हैदराबाद के निजाम के खिलाफ चल रहे युद्ध में कठमुल्ले रझाकारो से हिंदूओ को बचाने के प्रयास में जुटी हुई हैं. ”
वैसे ही मुंबई के जमशेद दोराब नगरवाला नामके पुलिस उपायुक्त जो सावरकर के दादर स्थित घर पर निगरानी रखने का काम कर रहे थे. और वह भी इस नतीजे पर पहुंचे थे कि सावरकर गांधी के हत्या की साजिश के सुत्रधारो में से एक है. और इसिलिये उन्होंने 30 जनवरी के पहले ही तत्कालीन मुंबई राज्य के गृहमंत्री मोरारजी भाई देसाई को बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर को गिरफ्तार करने के लिए इजाजत मांगी थी, तो मोरारजी भाई देसाई ने कहा कि खबरदार सावरकर को गिरफ्तार किया तो . नगरवाला बादमें मुंबई पुलिस के आईजिपी के पद से रिटायर हुए और सावरकर गांधी हत्या के मामले में सभी आरोपों से मुक्त हुए. लेकिन सावरकर के उपर नज़र रखने वाले पुलिस अफसर नगरवाला ने ‘द मेन हूँ किल्ड गांधी’ किताब के लेखक मनोहर मलगांवकर को बताया कि सावरकर ने गांधीजी की हत्या की साजिश रचने में प्रमुख भूमिका निभाई थी.
क्योंकि सावरकर ने गांधीजी की हत्या में गिरफ्तार होने बाद कोर्ट में कहा कि “मैं नाथूराम गोडसे को जानता नहीं” . और नाथूराम ने भी कहा कि ” उसका सावरकर के साथ कोई संबंध नहीं है.” हालांकि नाथूराम मॅट्रिक की परिक्षा मे फेल होने के बाद अपने पिता के पोस्ट की नौकरी में रत्नागिरी के पोस्ट ऑफिस में तबादले के कारण आया था. और उसे पता चला कि यहाँ सावरकर गृहबंदी की सजा काट रहे हैं. तो वह सुबह सावरकर के घर चला जाता था, और रात को सोने के पहले अपने घर वापस आता था. और बाद में सावरकर ने उसे अखबार निकालने के लिए कुछ पैसे भी दिए थे. और उसका एक कॉन्ट्रैक्ट भी बनवाकर अपने पास रख लिया था. उन पैसौ का सावरकर ने एग्रीमेंट भी कर के अपने पास रखा था . उम्र के पंद्रह – सोलह साल के नाथूराम सावरकर के रत्नागिरी के गृहबंदी के दिनों में रोज सुबह से लेकर शाम तक उनके साथ रहने वाले “नाथूराम को मै जानता नहीं” और नाथूराम भी उन्हें बचाने के लिए यही कहता है. लेकिन सरकारी वकील को क्या हो गया था? जिसने इस झुठ का पर्दाफाश क्यों नहीं किया? जिस वजह से सावरकर सभी आरोपों से मुक्त हो गए यह देखकर हैरानी होती है.
और आज लगभग सभी हिंदूत्ववादी नाथूराम गोडसे को महिमामंडित करने में लगे हुए हैं. क्या यह पर्याप्त सबूत नहीं है ? उसे हिरो बनाने के लिए नाटक- सिनेमा तक बनाने की होड़ लगी हुई है. कुछ जगहों पर तो उसकी मुर्तियां तक बन रही है. नाथूराम बचपन से ही आर. एस. एस. की शाखा में जाता था. और बाद में वह हिंदूमहासभा और रत्नागिरी के सावरकर के गृहबंदी के दिनों में उनकी सोहबत में रहने वाले नाथूराम को सावरकर कोर्ट में ” मै इसे पहचानता नही” जैसा झुठ को बगैर क्रॉस किए कोर्ट ने कैसे मान लिया ? क्योंकि सावरकर ने अपने जीवन में नाथूराम के पहले अंग्रेजो के खिलाफ मदनलाल धिंग्रा से लेकर अन्य आतंकवादियों को भी तैयार करने के पर्याप्त मात्रा में प्रमाण उपलब्ध थे . कभी विषकन्याओ के बारे में पढ़ा है कि उन्हें शत्रुओं की हत्या करने के लिए तैयार किया जाता था. वैसे ही सावरकर ने अपने जीवन में कुछ युवाओं को तैयार किया था. उस कड़ी का आखिरी विषयुवा नाथूराम था. और उसने आज के दिन 77 वर्ष पहले महात्मा गाँधी की हत्या की योजना को अमली जामा पहनाया है. जिस योजना के पडदे के पिछे के सुत्रधार बैरिस्टर सावरकर थे. यह तत्कालीन मुंबई पुलिस के उपायुक्त जमशेद दोराब नगरवालाने ‘द मेन हू किल्ड गांधी’ किताब के लेखक मनोहर मलगांवकर को कहा है कि Long after Savarkar had been cleared of any complicity in the plot, and at least two years after Nagarvala, who having duly reached the pinnacle of a Policeman’s career and served as the Inspector – General of Police, had retired, Nagarvala was still to insist to the Other, To my dying day I shall belive that Savarkar was the man who organized Gandhi’s murder ‘.