पुनर्मूल्यांकन की मांग पर डटे सैकड़ों भूधारी
न्यूनतम मूल्य निर्धारण में भारी अनियमितता, करोड़ों के सरकारी राजस्व का नुकसान
मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम-2014 द्वारा बिहार में दो केंद्रीय विश्वविद्यालय के निर्माण की स्वीकृति मिली. इसमें से गया स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय में विधिवत पढ़ाई शुरू हो गई है. वहीं दूसरी ओर मोतिहारी के महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय में इस सत्र से शिक्षण कार्य आरंभ करने की कवायद तेज़ है. कुलपति डॉ अरविन्द अग्रवाल ने विश्वविद्यालय भवन के निर्माण तक वैकल्पिक भवन की व्यवस्था करने को कहा है, जहां पठन-पाठन शुरू किया जा सके. जिला प्रशासन ने कई विकल्प सुझाए हैं. जिसमें मोतिहारी के डॉ. रविन्द्रनाथ मुखर्जी आयुर्वेद कॉलेज एवं अस्पताल, एम एस कॉलेज सहित कई संस्थाओं के भवनों को चिन्हित किया जा रहा है. वहीं विश्वविद्यालय भवन के निर्माण के लिए 301 एकड़ भूमि चिन्हित की गई है. लेकिन प्रशासनिक गलती के कारण भू-अधिग्रहण पर ही ग्रहण लगता नज़र आ रहा है. इसके कारण महात्मा गांधी विश्वविद्यालय के भवन निर्माण पर ही प्रश्न चिन्ह लगता जा रहा है. भूमि के मूल्यांकन को लेकर सैकड़ों ग्रामीण आक्रोशित हैं. उन्होंने मांग की है कि भूमि का मूल्य निर्धारण किया जाए, अन्यथा वे भूमि नहीं देंगे. जिलाधिकारी से लेकर केंद्रीय मूल्यांकन कमेटी के अध्यक्ष तक को इस संदर्भ में मांग पत्र दिया गया है. हालांकि, जिला प्रशासन अपनी गलती सुधारने के बजाए पल्ला झाड़ता नज़र आ रहा है.
आखिर कल तक स्वेच्छा से महात्मा गांधी विश्वविद्यालय के लिए भूमि देने की बात करने वाले सैकड़ों किसान क्यों आक्रोशित हैं और भूमि के पुनर्मूल्यांकन की मांग क्यों कर रहे हैं? इसकाकारण प्रशासनिक ब्लंडर है जो पूरी तरह प्रशासनिक कार्यप्रणाली की पोल खोल रहा है. ज्ञात हो कि महात्मा गांधी विश्वविद्यालय के लिए चन्द्रहिया पंचायत के तीन गांव बनकट, राजस्व थाना सं.-194, बैरिया राजस्व थाना सं.-192, और फुर्सतपुर राजस्व थाना सं.-208 की भूमि का चुनाव स्थल चयन समिति ने किया है. जिला प्रशासन द्वारा इन तीनों गांवों की कुल 301.97 एकड़ भूमि को चिन्हित कर प्रस्ताव दिया गया था. केन्द्र सरकार की नई भू-अर्जन नीति के अनुरूप राज्य सरकार ने नई नियमावली आने के नाम पर पूरा एक वर्ष गुजार दिया.
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इसके अनुसार भूमि-अधिग्रहण के पूर्व अधिग्रहित होने वाले क्षेत्र और भू-स्वामियों के ऊपर पड़ने वाले आर्थिक और सामाजिक प्रभावों का सर्वेक्षण कराना था. पटना के प्रतिष्ठित संस्थान अनुग्रह नारायण सिंह समाज अध्ययन संस्थान को सर्वेक्षण का कार्य सौंपा गया. डॉ. विद्यार्थी विकास के नेतृत्व में आई टीम ने बड़ी सूक्ष्मता से एक-एक भू-स्वामी से बात की. जमीन की पूरी स्थिति का आकलन किया और भू-अर्जन के बाद पड़ने वाले सामाजिक, आर्थिक प्रभाव के साथ ही पर्यावरण और कालान्तर में होने वाले बदलाव का आकलन कर दस्तावेज जिला प्रशासन को सौंपा. इसके पूर्व जन-सुनवाई के लिए सभा बुलाई गई. इसमें कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. जन-सुनवाई में पता चला कि एक ही पंचायत के तीन गांवों की भूमि के न्यूनतम मूल्य निर्धारण में भारी अनियमितता की गई है. सूत्रों के अनुसार भू-माफियाओं द्वारा यह भ्रम फैलाया गया कि केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए जो भूमि सरकार द्वारा अधिग्रहित की जा रही है उसके एवज में सरकार द्वारा भू-स्वामियों को बहुत कम पैसा दिया जाएगा. इसके बाद विगत दो-तीन वर्षों में बड़े पैमाने पर ज़मीन की खरीद-बिक्री औने-पौने दाम पर की गई. सूत्रों की मानें तो भू-माफियाओं के इशारे पर ही न्यूनतम मूल्य निर्धारण के पुनःनिरीक्षण (एमवीआर) में फुर्सतपुर और बैरिया ग्राम को छा़ेड दिया गया.
अंचल और निबंधन विभाग की इस कारस्तानी से इस दौरान हुए ज़मीन की खरीद-बिक्री में सरकार को करोड़ों का चूना लगा और अब इसका खामियाजा दोनों गांवों के सैकड़ों कास्तकारों को भुगतना पड़ेगा. एमवीआर में की गई गड़बड़ी के कारण पंचायत चन्द्रहीया के बनकट ग्राम और फुर्सतपुर, बैरिया की भूमि के मूल्य में दस गुना का अंतर है. इतना ही नहीं बैरिया ग्राम एनएच-28 से जुड़ा हुआ है पर एमवीआर में इसे शून्य दर्शाया गया है जिसे ब्लंडर ही कहा जा सकता है. जिससे निबंधन में करोड़ों रुपये के राजस्व का सरकार को नुक़सान हुआ है. भू-माफियाओं की गोद में बैठे अंचल और जिला निबंधन विभाग ने एमवीआर में सरकारी आदेशों का खुलकर उल्लंघन किया है. बिहार स्टांप (लिखत का न्यूनतम मूल्यांकन निवारण) (संशोधन) नियमावली-2013 की कंडिका 2 (ड) में स्पष्ट प्रावधान है कि पेरिफेरल क्षेत्र से अभिप्रेत है, नगर परिषद की सीमा से 4 किमी. की परिधि वाले क्षेत्र की भूमि में यदि किसी ग्रामीण मौजा का अंश भी पेरिफेरल क्षेत्र में पड़ेगा, तो संपूर्ण मौजा को पेरिफेरल ही माना जाएगा. नियमावली के अनुसार ग्रामीण गैर कृषि, पेरिफेरल एवं शहरी क्षेत्रों की भूमि/संपत्ति के प्राक्कलित न्यूनतम मूल्य की मार्गदर्शक पंजी प्रत्येक वर्ष पुनरीक्षित की जाएगी. केंद्रीय मूल्यांकन समिति की अनुशंसा पर यदि आवश्यक हो तो वर्ष में दो बार पुनरीक्षित की जा सकेगी. स्पष्ट नियमों के बावजूद भू-माफियाओं से प्रभावित अंचल और निबंधन विभाग ने कई वर्षों से बैरिया और फुर्सतपुर राजस्व ग्राम की भूमि का मूल्य पुनरीक्षण नहीं किया.
इस कारण उक्त दोनों गांवों की भूमि का मूल्य बाजार मूल्य से कई गुना कम हो गया है जिसका सीधा प्रभाव अधिग्रहित होने वाली ज़मीन के मालिकों को भुगतना पड़ेगा. डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह समाज अध्ययन संस्थान ने भी अपनी रिर्पोट मेें इस बात को अंकित किया है और कहा है कि बनकट और फुर्सतपुर, बैरिया की भूमि के मूल्य में बहुत अंतर है. रिपोर्ट में कहा गया है कि जिला प्रशासन द्वारा मोतिहारी की ज़मीन की कीमत संबंधी कुछ दस्तावेज उपलब्ध कराए गए थे जिनमें मोतिहारी प्रखंड के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों की भूमि का न्यूनतम मूल्य (प्रति डिसमिल) दर्शाया गया है. जिला प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराए गए दस्तावेजों से यह स्पष्ट होता है कि 1 फरवरी 2016 को गांव बनकट, थाना-194 की ज़मीन की कीमत में संशोधन किया गया है, जबकि गांव बैरिया, थाना-192 एवं गांव फुर्सतपुर, थाना- 208 की जमीनों के न्यूनतम बाजार मूल्य में संशोधन नहीं किया जा सका है. भूमि के पुनर्मूल्यांकन की मांग को लेकर ग्रामीणों का प्रतिनिधिमंडल जिलाधिकारी से मिल चुका है. उन्हें मांग पत्र भी दिया गया है. जिलाधिकारी अनुपम कुमार इस मुद्दे पर जांच करने की बात तो करते हैं पर कोई स्पष्ट आश्वासन नहीं देते हैं. वहीं अवर-निबंधन पदाधिकारी इस भूमि के न्यूनतम मूल्य निर्धारण में हुई गड़बड़ी की बात मानते हैं पर इस मसले पर कोई कार्रवाई करने से इंकार करते हुए कहते हैं कि केंद्रीय मूल्यांकन समिति के आदेश पर ही कोई कार्यवाही हो सकेगी.
अब सभी इस प्रशासनिक अनियमितता से पल्ला झाड़ने की फिराक में दिख रहे हैं और भू-स्वामियों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है. इस मांग को लेकर ग्रामीणों ने मानवाधिकार उल्लंघन नियंत्रण प्रकोष्ठ और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भी आवेदन दिया है. वहीं केंद्रीय मूल्यांकन समिति के अध्यक्ष और निबंधन, उत्पाद एवं मद्यनिषेध विभाग बिहार सरकार के प्रधान सचिव के के पाठक एवं महानिरीक्षक निबंधन कुंवर जंग बहादुर को भी मांग पत्र दिया है. मोतिहारी के विधायक प्रमोद कुमार को भी ग्रामीणों ने अपनी व्यथा सुनाई और उन्हें आवेदन दिया. प्रमोद कुमार ने इसे भू-माफियाओं और पदाधिकारियों के गठबंधन का नतीजा बताया और कहा कि किसानों और भू-स्वामियों को न्याय दिलाया जाएगा. उन्होंने बिहार सरकार के मुख्य सचिव अंजनी कुमार से मिलकर उन्हें मामले की जानकारी देते हुए आवश्यक कार्रवाई करने की मांग की है. वहीं बिहार सरकार के शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी से मिलकर केंद्रीय विश्वविद्यालय के पठन-पाठन का कार्य शुरू कराने का अनुरोध किया है.
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वहीं बिहार सरकार के निबंधन, उत्पाद एवं मद्यनिषेध विभाग के प्रधान सचिव केके पाठक से मिलकर स्थानीय विधायक प्रमोद कुमार ने ़उन्हें जमीन के मूल्यांकन के घोटाले की जानकारी दी और बताया कि इससे जहां एक ओर सरकार को करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है. वहीं दूसरी ओर इसका विपरीत असर स्थानीय भू-स्वामियों को भुगतना पड़ेगा. कुमार के अनुसार केके पाठक ने इस मामले की जांच कर दोषियों को सजा दिलाने का आश्वासन दिया है. उधर भू-धारी विभूति नारायण सिंह, शिव कुमार यादव, इन्द्र यादव, अनिल पाण्डेय, रविन्द्र पाण्डेय, सीता राम पासवान सहित सैकड़ों ग्रामीणों का कहना है कि जब तक भूमि का सही मूल्यांकन नहीं किया जाएगा तब तक वे अपनी ज़मीन नहीं देंगे. इसके लिए वे आन्दोलन करेंगे और न्यायालय की शरण में जाएंगे.
दूसरी तरफ चम्पारण विकास मोर्चा ने भी विश्वविद्यालय द्वारा पठन-पाठन शुरू करने में हो रहे विलम्ब को लेकर आक्रोश व्यक्त किया है. मोर्चे के अध्यक्ष राय सुन्दरदेव शर्मा ने कहा कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार केंद्रीय विश्वविद्यालय को लेकर राजनीति कर रही है. उन्होंने चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष में केंद्रीय विश्वविद्यालय के शैक्षणिक कार्यों को आरम्भ करने की मांग की और आन्दोलन का शंखनाद किया. इसी के साथ मोतिहारी के मुख्य गांधी चौक से गांधी संग्रहालय तक कैंडल मार्च का आयोजन किया. उन्होंने कहा कि उनके मोर्चे का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलकर उन्हें पूरे प्रकरण की जानकारी देगा और इसमें तेज़ी लाने की मांग करेगा.
बहरहाल, भूमि के मूल्यांकन को लेकर उठे विरोध के कारण महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के निर्माण पर ग्रहण लगता दिख रहा है. किसानों की मांग जायज है. वे वर्तमान बाजार मूल्य के अनुसार पेरिफेरल एरिया के रूप में भूमि का न्यूनतम मूल्य निर्धारण करने की मांग कर रहे हैं. मूल्यांकन पुनःनिरीक्षण में इतना बड़ा घोटाला करने वालों को चिन्हित कर सजा देने की मांग भी उठने लगी है, जिसके कारण सरकारी खजाने को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है साथ ही भूमि-अधिग्रहण से प्रभावित होने वाले लोगों को उचित मुआवजा मिलने की आशंका है इस वजह से प्रभावित भू-स्वामी विरोध के स्वर बुलंद कर रहे हैं. इन वजहों से महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के निर्माण में आने वाली अड़चनों और विलम्ब का जिम्मेदार कौन होगा?