saccccनेपाल की सीमा से सटे उत्तर प्रदेश का ज़िला महाराजगंज वर्षों से उपेक्षा का शिकार है. यहां न तो सड़कें अच्छी हैं और न ही बिजली-पानी की सुविधा. अतिक्रमण और ट्रैफिक जाम की वजह से भी स्थानीय लोगों को काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. शहर का मुख्य चौराहा हो या मऊपाकड़ तिराहा यहां कमोबेश जाम लगा रहता है. शिक्षा के क्षेत्र में भी यह ज़िला प्रदेश के बाकी ज़िलों से पिछड़ा है. नतीजतन यहां के छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली जैसे शहरों में जाना पड़ता है. ज़िले में कल-कारख़ाने नहीं होने की वजह से स्थानीय मज़दूर रोजी-रोटी की तलाश में दूसरे राज्य जाने को विवश होते हैं.
तमाम उपेक्षाओं के बावजूद महाराजगंज की जनता राजनीतिक रूप से काफ़ी परिपक्व हैं. लोकसभा चुनाव के दौरान यहां सभी राजनीतिक दलों के उम्मीदवार ताल ठोंक रहे थे, लेकिन मुख्य मुक़ाबला भाजपा और बसपा के बीच ही रहा. चुनावी नतीजे की बात करें, तो महाराजगंज संसदीय सीट पर भाजपा ने क़ब्ज़ा जमाया है. यहां नरेंद्र मोदी की काट के लिए कांगे्रस, बसपा और सपा नेताओं सारी रणनीति फेल हो गई. ग़ौरतलब है कि वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में यहां मुख्य मुक़ाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच था, जबकि इस बार भाजपा और बसपा के बीच अहम मुक़ाबला रहा. इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार पंकज चौधरी ने बसपा के काशी नाथ शुक्ला को काफ़ी बडे अंतर से हराया. महाराजगंज में पंकज चौधरी की छवि अच्छी मानी जाती है. इसके अलावा, उन्हें मोदी फैक्टर का लाभ भी भरपूर मिला. यही वजह है कि महाराजगंज संसदीय सीट पर पंकज चौधरी को बड़ी कामयाबी मिली. सियासी जानकारों के मुताबिक़, इस बार कांग्रेस के ख़िलाफ़ लोगों में काफ़ी गुस्सा था. इसी वजह से कांग्रेस उम्मीदवार हर्षवर्धन चौथे स्थान पर रहे और उन्हें महज़ 57,193 मत मिले. हर्षवर्धन के लिए सत्ता विरोधी लहर के साथ-साथ मंहगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे भी घातक साबित हुए. मोदी का वाराणसी से चुनाव लड़ना भी भाजपा के लिए संजीवनी साबित हुआ. जिस तरह भाजपा ने उत्तर प्रदेश में अकेले 71 सीटों पर जीत हासिल की, उसे निश्‍चित रूप से मोदी लहर कहा जा सकता है. भाजपा उम्मीदवार पंकज चौधरी ने जिस तरह कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार की ख़ामियों को जनता के सामने रखा, उससे की उनके राजनीतिक अनुभवों का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. नरेंद्र मोदी ने अपनी जनसभाओं में जिस तरह सपा और बसपा पर कांग्रेस की बी टीम होने का आरोप लगाया, उसका भरपूर फ़ायदा भाजपा को मिला. लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में जहां बसपा का सूपड़ा साफ़ हो गया, वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी को महज पांच सीटों पर ही संतोष करना पड़ा. बहरहाल, लोकसभा चुनाव के नतीजों ने न सिर्फ उत्तर प्रदेश, बल्कि कई राज्यों में ढेर सारे मिथकों को तोड़ा है.

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