बुद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र महाबोधि मंदिर को बौद्धों के हाथों में सौंपने की मांग को लेकर एक बार फिर से विवाद गहराने लगा है. बोधगया के अंतरराष्ट्रीय मेडिटेशन सेंटर में 20-21 अगस्त 2016 को आयोजित दो दिवसीय पांचवें राष्ट्रीय बौद्ध धम्म संसद में देश भर से आए प्रतिनिधियों ने वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल महाबोधि मंदिर का प्रबंधन पूर्ण रूपेण बौद्धों के हाथों में देने की मांग की. धम्म संसद में वक्ताओं ने कहा कि जब अन्य धर्मों के धर्म स्थल उन्हीं धर्मों की देख-रेख में होते हैं, तो महाबोधि मंदिर का प्रबंधन बौद्धों के हाथों में क्यों नहीं दिया जा रहा है? इससे महाबोधि मंदिर के प्रबंधन को लेकर फिर विवाद बढ़ने की आशंका है. महाबोधि मंदिर की प्रबंधन कमिटी से हिन्दू सदस्यों को हटाने की मांग को लेकर पहले भी कई बार आंदोलन हुए हैं. 1994-95 में महाबोधि मंदिर को हिन्दुओं से मुक्त कराने की मांग को लेकर जापान के भंते सुरई ससई के नेतृत्व में बड़ा आंदोलन हुआ था, जिसमें भंते आनन्द, मविवि के प्रो. पीसी राय की भूमिका महत्वपूर्ण थी. तब नागपुर से हजारों अंबेडकरवादी बौद्धों ने बोधगया आकर उग्र आन्दोलन किया था. हालात बिगड़ते देख बिहार सरकार ने आंदोलन में शामिल भंते सुरई ससई, भंते आनन्द तथा उनके खास शिष्य प्रज्ञाशील को बोधगया मंदिर प्रबंधकारिणी समिति का बौद्ध सदस्य मनोनीत कर नई कमिटी बनाई और प्रज्ञाशील को सदस्य सचिव मनोनीत किया गया. इसके बाद महाबोधि मंदिर को बौद्धों को हाथों में सौंपे जाने की मांग कमजोर पड़ गई. इसके बाद
यदा-कदा किसी बौद्ध संगठन ने महाबोधि मंदिर के प्रबंधन को बौद्धों के हाथों में देने की मांग की, लेकिन ये मांग जोर नहीं पकड़ सकी. इस बार बोधगया में आयोजित पांचवें राष्ट्रीय बौद्ध धम्म संसद में महाबोधि मंदिर के प्रबंधन के सवाल को फिर से उठाया गया. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने 1949 में महाबोधि मंदिर प्रबंधन पर बराबर विवाद होते देख बोधगया मंदिर प्रबंंधकारिणी समिति एक्ट बनाकर संसद से पास करा दिया. इस एक्ट के अनुसार कमिटी में तीन हिन्दू और तीन बौद्ध सदस्य होंगे. इन्हीं 6 सदस्यों में से किसी को सदस्य सचिव बनाया जाता है. गया के जिला पदाधिकारी इस कमिटी के पदेन अध्यक्ष होते हैं. महाबोधि मंदिर की देख-रेख में हिन्दू सदस्यों के रहने के पीछे तर्क यह था कि जब भारत के मंदिरों पर मुस्लिम शासकों ने आक्रमण किया था, तब बोधगया के शंकराचार्य मठ के तत्कालीन महंथ ने महाबोधि मंदिर को बचाया था. तब से महाबोधि मंदिर की देखरेख बोधगया मठ के जिम्मे ही थी, लेकिन आजादी के तुरंत बाद इसके प्रबंधन को लेकर बौद्धों और हिन्दुओं में विवाद गहरानेे लगा. तब भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इस विवाद को हल करने के लिए बोधगया मंदिर प्रबंधकारिणी समिति एक्ट 1949 को संसद से पास करा दिया. बौद्धों द्वारा इस एक्ट में बदलाव की मांग भी समय-समय पर उठती रही है. इस मामले में उच्चतम न्यायालय में रिट पीटिशन सिविल 380/12 भंते आर्य नागार्जून बनाम भारत सरकार, रिट पीटिशन 41/12 सेरिंग बनाम भारत सरकार विचाराधीन है. लेकिन राष्ट्रीय बौद्ध धम्म संसद ने महाबोधि मंदिर की मुक्ति का मुद्दा उठाकर फिर इस विवाद को जन्म दिया है.
पांचवें राष्ट्रीय बौद्ध संसद के समापन अवसर पर बोधगया घोषणा पत्र जारी किया गया. इस घोषणा पत्र में महाबोधि मंदिर पर बौद्धों का अधिकार व प्रबंधन, स्मार्ट सिटी के रूप में बोधगया का विकास, मोनोरेल का परिचालन, महाबोधि मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था आदि मांगें शामिल थीं. वक्ताओं ने कहा कि महाबोधि मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था में काफी कमी है व सुरक्षाकर्मियों द्वारा बौद्धों की आस्था व भावनाओं को अक्सर आहत किया जाता है. बौद्धों ने कहा कि अत्याधुनिक तकनीक से जोड़कर इस कुव्यवस्था को दूर किया जा सकता है. साथ ही, महाबोधि मंदिर में सुरक्षाकर्मियों द्वारा बौद्ध भिक्षुओं व विदेशी पर्यटकों के साथ अभद्रता किए जाने के मामले में पटना उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करने का निर्णय लिया गया. बौद्ध संगठनों के राष्ट्रीय समन्वय समिति के प्रवक्ता व सह संयोजक और बोधगया स्थित चकमा मोनेस्ट्री के संचालक भिक्षु प्रियपाल ने बताया कि बौद्धों का चीवर पवित्र होता है, उसे हाथ लगाना सही नहीं माना जाता है. 3 मार्च 2014 को महाबोधि मंदिर की सुरक्षा में तैनात एक महिला सुरक्षाकर्मी ने एक नेपाली बौद्ध भिक्षुणी के चीवर को पकड़कर उनके साथ मारपीट की थी. इस मामले को प्रशासन ने रफा-दफा करने की कोशिश की, लेकिन भंते प्रियपाल की पहल पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस पर संज्ञान लिया.
बौद्ध धम्म संसद में संविधान के अनुच्छेद 25 को भेदभावपूर्ण बताया गया है. डॉ. भिक्षु सत्यपाल महाथेरा ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 25 कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अंत:करण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता है. किसी नियम द्वारा व्यक्ति को अपने धर्म के लिए संस्थाओं की स्थापना व पोषण करने, विधि सम्मत संपत्ति के अर्जन, स्वामित्व व प्रशासन के अधिकार को बाधित नहीं किया जा सकता है. बौद्धों का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 25 के उपखंड बी के खंड दो में बौद्धों को हिन्दुओं के साथ जोड़ दिया गया है, जबकि संविधान पुनर्निरीक्षण आयोग की रिपोर्ट में बौद्धों को इससे अलग करने की सिफारिश की गई है. बौद्धों ने अलग बौद्ध विवाह मान्यता बिल के लागू नहीं होने पर भी चिंता प्रकट की. जनवरी 1985 में इसे बहस के लिए संसद में प्रस्तुत किया गया था, लेकिन इसपर आजतक कोई निर्णय नहीं लिया गया.
धम्म संसद के मुख्य अतिथि भंते ज्ञानेश्वर महाथेरा ने प्राचीन पाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की और कहा कि केन्द्र और राज्य सरकार इस भाषा को स्कूल के पाठ्यक्रमों में शामिल करे. राष्ट्रीय बौद्ध धम्म संसद में महाबोधि मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था पर भी सवाल उठाये गए. देश के 15 राज्यों से आए करीब सौ प्रतिनिधियों ने एक स्वर में महाबोधि मंदिर की सुरक्षा का जिम्मा केंद्रीय बल के हवाले किए जाने की मांग की. इस मामले में उन्होंने सरकार से मिलने का भी निर्णय लिया. अभी महाबोधि मंदिर की सुरक्षा बीएमपी और जिला पुलिस के जिम्मे है. महाबोधि मंदिर में जाने को लेकर आए दिन बौद्ध भिक्षु और सुरक्षाकर्मियों में विवाद होता रहता है. कुल मिलाकर कहा जाए तो बोधगया में राष्ट्रीय बौद्ध धम्म संसद ने बोधगया घोषणा पत्र में जहां बोधगया के विकास की बात कही है, वहीं महाबोधि मंदिर के प्रबंधन पर सवाल उठाकर एक नये विवाद को जन्म दिया है.