शैक्षणिक अराजकता और फर्जी डिग्री के मामले में देश में चर्चित मगध विश्वविद्यालय में इन दिनों एक और घोटाले की चर्चा खूब हो रही है. पीएचडी घोटाला के आरोप में सामने आये इस मामले की जांच बिहार सरकार की निगरानी विभाग द्वारा की जा रही है. मगध विश्वविद्यालय से पीएचडी करने वाले तीन सौ विदेशी जांच के घेरे में आ गये हैं.
निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने मगध विश्वविद्यालय से जांच के दायरे में आये इन पीएचडी धारकों से संबधित पूरी जानकारी मांगी है. निगरानी का पत्र मिलते ही मगध विश्वविद्यालय में हड़कंप मच गया है. मगध विश्वविद्यालय ने निगरानी विभाग द्वारा मांगे गये 15 बिंदुओं पर जवाब देने के लिए अपने कर्मचारियों की छुट्टी भी रद्ध कर दी है. जवाब 6 जनवरी 2017 तक मांगा गया है.
निगरानी की टीम ने जब मगध विश्वविद्यालय में आकर जांच के घेरे में आये पीएचडी धारकों से संबधित कागजात तथा पूरे विवरण की जानकारी मांगी तो अधिकारियों के पसीने छूटने लगे. क्योंकि इस मामले में मगध विश्वविद्यालय के अधिकतर कर्मी जानते हैं कि यहां एक पीएचडी की उपाधि देने में लाखों का खेल होता रहा है.
पिछले ढाई दशक में मगध विश्वविद्यालय से पीएचडी करने वाले विदेशियों की उपाधि जांच की जाये, तो हजारों मामले सामने आ सकते हैं. लेकिन निगरानी विभाग ने 2011 से 2015 तक डिग्री लेने वाले विदेशियों को ही जांच के घेेरे में लिया है. सभी पीएचडी की उपाधि मगध विश्वविद्यालय के बौद्ध अध्ययन विभाग से दी गयी है. इसकी जांच कर रही निगरानी ब्यूरो की डीएसपी प्रतिभा सिन्हा और महाराजा कनिष्क कुमार सिंह पीएचडी उपाधि लेने वाले विदेशियों से संबधित कागजात लेकर पटना लौट चुके है.
मगध विश्वविद्यालय से 15 विभिन्न बिदुओं पर जवाब की मांग निगरानी की ओर से की गई है. निगरानी को यह जानकारी मिली थी कि मगध विश्वविद्यालय से सैकड़ों ऐसे विदेशी छात्रों को पीएचडी की उपाधि दी गयी है, जो योग्यता नही रखते है. ऐसे विदेशियों को भी पीएचडी की उपाधि दी गयी है, जो टूरिस्ट तथा बिजनेस वीजा पर भारत आये थे. इनमें अधिकतर ऐसे थे, जिन्होंने मगध विश्वविद्यालय परिसर में अध्ययन ही नही किया.
आरोप तो यह भी है कि कभी भारत नहीं आने वाले विदेशियों को भी पीएचडी की उपाधि दे दी गई. मगध विश्वविद्यालय के बौद्ध अध्ययन विभाग में एडहॉक पर काम कर रहे कई शिक्षकों ने अपने अधीन विदेशियों को पीएचडी कराकर लाखों का खेल खेला है. यह मामला मगध विश्वविद्यालय के उच्च अधिकारियों तक पहुंचा तो जरूर होगा, लेकिन इसे किसी भी तरह से रफा दफा करा दिया गया होगा. हालांकि अब इस पीएचडी घोटाले की जांच बिहार सरकार के निगरानी विभाग ने अपने जिम्मे लिया है.
निगरानी विभाग ने कहा है कि मगध विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री लेने वाले विदेशी छात्रों के नाम, पिता का नाम, स्थायी आवास, अस्थायी आवास, पासपोर्ट नम्बर, वीजा से संबधित कागजात, वीजा का नेचर, यानी टूरिस्ट वीजा है या बिजनेस वीजा आदि की जानकारी मांगी गयी है. सबसे महत्वपूर्ण बात है कि टूरिस्ट व बिजनेस वीजा वाले विदेशी किसी भी भारतीय विश्वविद्यालय में नामांकन के लिए योग्य नहीं हैं. निगरानी की तरफ से पीएचडी सुपरवाईजर, सुपरवाईजर की योग्यता व पीएचडी डिग्री पाने वाले छात्रों की पूरी शैक्षणिक योग्यता की मांग की गई है.
निगरानी टीम ने मगध विश्वविद्यालय के परीक्षा विभाग के कई बैंक एकाउंट का विस्तृत विवरण भी मांगा है, जिससे यह पता चल सके कि किस खाते में कितनी राशि जमा है और वह राशि किसी दूसरे खाते से ट्रांसफर तो नहीं हुई है. निगरानी की जांच के बाद मगध विश्वविद्यालय के कर्मियों में दहशत व्याप्त है, क्योंकि निगरानी सूत्रों के अनुसार मगध विश्वविद्यालय से जवाब मिलने पर यह तय होगा कि जवाब संतोष जनक है या नही.
यदि इस मामले में ग़डबड़ी पायी गयी, तो 6 जनवरी 2017 के बाद दोषी कर्मियों पर प्राथमिकी दर्ज कर कार्रवाई की जायेगी. वहीं दूसरी ओर मगध विश्वविद्यालय के बौद्ध अध्ययन विभाग के अध्यक्ष डा. सुशील कुमार सिंह का कहना है कि विदेशियों को दी गयी पीएचडी की उपाधि कही से भी गलत नहीं है. कुछ लोगों द्वारा इस संबंध में गलत अफवाह फैलाकर बिहार सरकार और मगध विश्वविद्यालय को परेशान करने का प्रयास किया जा रहा है.