mwati2भले मध्य प्रदेश में कांग्रेस का गठबन्धन बसपा के साथ नहीं हो सका है लेकिन कांग्रेस ने अब अपने लिए एक नई रणनीति बना ली है. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, बसपा के साथ गठबन्धन करना कांग्रेस के लिए कई तरीके से महंगा साबित हो सकता था. इसमें सबसे प्रमुख था सीटों का बंटवारा.

इस गठबन्धन से कांग्रेस के पीछे हटने का प्रमुख कारण कांग्रेस का एक आंतरिक सर्वे भी बताया जा रहा है, जिसमें निकल कर आया था कि महागठबंधन के लिए कांग्रेस को दूसरे दलों के लिए करीब नब्बे सीटें छोड़नी पड़ती, अगर कांग्रेस ऐसा करती तो इसका कांग्रेस के लिए मध्य प्रदेश की राजनीति में दूरगामी असर पड़ता. इससे मध्य प्रदेश में उसके पैर उखड़ जाते.

गठबंधन के दौरान कांग्रेस पार्टी सहयोगी दलों के लिए अगर इतनी बड़ी संख्या में सीटें छोड़ती, तो इसका गलत सन्देश तो जाता ही, साथ ही इन सीटों पर उसके कार्यकर्ता हमेशा के लिए भाजपा या अन्य दलों में जा सकते थे. तात्कालिक रूप से उसे कुछ फायदा जरूर हो जाता, लेकिन लांग टर्म में उसे जमीन खिसक जाने का खतरा था. इसीलिए कांग्रेस महागठबंधन से पीछे हट गई.

दरअसल, इससे पहले कांग्रेस उत्तर प्रदेश में ऐसी ही गलती दोहरा चुकी है, जिसके बाद से कांग्रेस वहां हाशिए पर पहुंच गई है. शायद इसीलिए कांग्रेस के रणनीतिकारों को एहसास हो चुका था कि अगर मध्य प्रदेश में कांग्रेस बसपा को वो सीटें दे देती, जहां उसे 6 प्रतिशत वोट भी नहीं मिलते हैं, तो फिर उन सीटों पर कांग्रेस अपने वोटरों को हमेशा के लिए खो सकती थी. कांग्रेस को एहसास हो चुका था कि महागठबंधन की कीमत पर इतनी बड़ी संख्या में दूसरी पार्टियों के लिए सीटें छोड़ने का सौदा उसके लिए आत्मघाती साबित होगा.

इसके बाद से कांग्रेस का जोर इस बात को लेकर था कि किसी भी तरह से महागठबंधन को खत्म करने का दोष बीएसपी पर मढ़ दिया जाए. मायावती के मध्य प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने के ऐलान पर कमलनाथ ने पलटवार करते हुए कहा कि गठबंधन न होने से कांग्रेस को कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि बसपा ने जो 50 सीटें मांगी थीं, उनमें 11 सीटों पर ही बसपा का प्रभाव है, जबकि उनमें से 14 सीटों पर कांग्रेस और 25 सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवार जीतते आए हैं.

ऐसी सीटें अगर बसपा को दी जाती तो इसका फायदा बीजेपी को ही होता. गठबंधन न हो पाने के लिए मायावती द्वारा दिग्विजय सिंह को दोषी ठहराने को लेकर भी कमलनाथ का कहना था कि मायावती को कुछ न कुछ कहना था, लेकिन दिग्विजय पर आरोप लगाना सही नहीं है.

कांग्रेस के पीछे हटने का एक और कारण सवर्ण का भाजपा के खिलाफ गुस्सा भी है. प्रदेश में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 35 सीटों में से 28 पर भाजपा का कब्जा है. इस परिस्थिति में कांग्रेस के रणनीतिकारों को लगता है कि बसपा के साथ गठबंधन न होने की दिशा में सवर्ण मतदाता कांग्रेस के पक्ष में आ सकता है.

 

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