मध्य प्रदेश में जब बसपा और कांग्रेस का गठबन्धन नहीं हुआ तो कई कयास लगाए गए. लेकिन, चौथी दुनिया को मिली जानकारी के मुताबिक कई ऐसे महत्वपूर्ण कारण थे, जिसकी वजह से ये गठबन्धन नहीं हुआ. मसलन, एक तरफ जहां इसके पीछे केंद्रीय एजेंसियों के दबाव की बात कही जा रही हो वही ऐसा लगता है कि मायावती खुद चाहती थीं कि विधानसभा चुनाव के दौरान महागठबंधन न हो सके.
दरअसल, उनकी नजर लोकसभा चुनाव पर है और इसी हिसाब से वे अपनी चाल चल रही हैं. अगर तीनों राज्यों में कांग्रेस मजबूत होकर उभरती है तो उनके लिए लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के साथ अपनी शर्तों पर मोलभाव करना आसान नहीं होगा, इसलिए वे चाहती हैं कि विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस मजबूत होकर उभर न सके. इसके बदले भले ही उनकी पार्टी को नुकसान उठाना पड़े. ऐसे में उनके लिए राज्यों में कांग्रेस के बिना चुनाव लड़ना ज्यादा फायदे का सौदा लग रहा है.
दरअसल, लोकसभा चुनाव से पहले वे कांग्रेस को जताना चाहती हैं कि अगर कांग्रेस ने उनसे तालमेल नहीं किया तो वो भाजपा को नहीं हरा पाएगी और यह तालमेल उनकी शर्तों पर ही होगा. यह सही भी है, अगर राज्यों के चुनाव में कांग्रेस पिछड़ी तो फिर उसे बसपा और अन्य विपक्षी पार्टियों के साथ झुक कर उनकी शर्तों पर समझौता करना पड़ेगा.
दूसरा कारण, प्रदेश में दलित और सवर्ण आंदोलन के प्रभाव और इस दौरान उभरे सपाक्स के बाद परिस्थितयां बदली हैं, जिसमें मायावती को लग रहा है कि मध्य प्रदेश में बसपा के लिए स्थायी रूप से तीसरी ताकत के रूप में उभरने का सही मौका है. इसीलिए पिछले चुनाव में 2 सीटें जीतने के बाद भी वे कांग्रेस से 50 सीटों की मांग कर रही थीं. दरअसल, सूबे में जातीय राजनीति के उभार के बाद बसपा को लग रहा है कि उसकी एक दर्जन से अधिक सीटों पर संभावना मजबूत हुई है.