बिहार के लाल को अगर अपने ही राज्य में भूला दिया जाय तो फिर बिहारी अस्मिता और स्वाभिमान की बात करना बेमानी होगी. जिनकी ख्याति देश और दुनिया में फैली हुई है और जिन्होंने अपने ज्ञान व विचार से करोड़ों लोगों के दिलों में जगह बनाई, उन्हें अपनी जन्मभूमि में वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हकदार हैं. इसी पीड़ा का अहसास करते हुए पुरी पीठाधीश्र्वर जगत गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज के जन्मदिवस को सनातन गौरव दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया गया है. यह पहल की है गोवर्धन मठ पुरी पीठ से जुड़े बिहार के उनके अनुनानियों ने. उस दिन सनातन धर्म के लोेग अपने घरों में दीप जलाकर उत्सव मनाएंगे. इसके अलावा वृक्षारोपण और सांस्कृतिक आयोजन भी प्रस्तावित है.
यह पहली बार है कि बिहार में इतने बड़े स्तर पर शंकराचार्य का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है. गौरतलब है कि भारत को फिर से विश्र्वगुरू के रूप में उभारने वाले पूज्यपाद जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज का जन्म 75 वर्ष पूर्व बिहार के मिथिलांचल के मधुबनी जिले के हरिपुर बख्शीटोल नामक गांव में साल 1943 को हुआ था. इसलिए इस साल 11 जुलाई के दिन लोग पूरे भारत में उत्सव मनाएंगे. देश भर में यह आयोजन पहले भी होता रहा है, लेकिन इसमें बिहार की भागीदारी बहुत ही कम थी. बिहार के इस लाल को अपने ही राज्य में तवज्जो न मिलने का मलाल बहुत सारे लोेगों के दिलों में था. इसलिए इस बार इस कसक को दूर करने का बीड़ा उनके अनुनानियों ने उठाया है. पीठ के प्रचार मंत्री एवं गौरव दिवस के संयोजक शैलेश तिवारी कहते हैं कि यह कर्यक्रम व्यापक विचार विमर्श के बाद तय किया गया है. 11 जुलाई को सभी घरों में दीपक जलाकर नकारात्मक ऊर्जा को रोका जाएगा.
श्री तिवारी कहते हैं कि इस आयोजन का मुख्य मकसद यह है कि बिहार के लोेग अपने इस महान विभूति को जानें तथा बिहार सरकार को भी यह अहसास हो कि शंकराचार्य को अपने ही राज्य में उपेक्षित रखा गया है. गौरतलब है कि शंकराचार्य के पुरी पीठ पर आसीन हुए इस साल 25 वर्ष पूरे हो रहे हैं एवं उनका 75वां जन्म महोत्सव इस वर्ष ही है. पहली बार एक बड़ा कार्य्रकम महराज जी के गांव मधुबनी के हरिपुर बख्शीटोला में भी होगा, जिसमें पीठ से जुड़े लोेग, विशेष कर बिहार के लोेग उनके पैतृक गांव में जुट कर 1 लाख 75 हजार दीप जलाएंगे व 75 आम वृक्षों का वृक्षारोपण भी करेंगे. इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए डॉ. इंदिरा झा के नेतृत्व में एक विशेष टीम बनाई गई है, जिसमें विवेक विकास, विनोद राय, डॉ. नरेश झा, डॉ. मनोज ठाकुर, श्री जयप्रकाश महंत प्रमुख हैं.
मधुबनी से पुरी तक
मधुबनी के छोटे से गांव हरिपुर बख्शीटोला में पुरी पीठाधीश्र्वर महाराज निश्चलानंद सरस्वती का जन्म हुआ. उनके पिताजी पं श्री लालवंशी झा दरभंगा नरेश के राज पंडित थे. उनकी माताजी का नाम गीता देवी था. इनके बचपन का नाम नीलाम्बर था. दसवीं तक बिहार में विज्ञान के विद्यार्थी रहे. दो वर्षों तक तिब्बिया कॉलेज दिल्ली में अपने अग्रज डॉ. श्री शुक्रदेव झा जी की छत्रछाया में शिक्षा ग्रहण की. वह फुटबॉल के भी अच्छे खिलाड़ी रहे.
उन्होंने पूज्य करपात्री जी महाराज को अपना गुरूदेव माना. 18 अप्रैल 1974 को हरिद्वार में 31 वर्ष की आयु में स्वामी करपात्री जी महाराज के करकमलों से उनका संन्यास संपन्न हुआ और इनका नाम निश्चलानंद सरस्वती रखा गया. श्री गोवर्धन मठ पुरी के तत्कालीन 144वें शंकराचार्य पूज्यपाद जगतगुरु स्वामी निरंजनदेव तीर्थ जी महाराज ने स्वामी निश्चलानंद सरस्वती को अपना उपयुक्त उत्तराधिकारी मानकर 9 फरवरी 1992 को उन्हें गोवर्धनमठ पुरी के 145वें शंकराचार्य पद पर पदासीन किया. संयुक्त राष्ट्र ने दिनांक 28 से 31 अगस्त 2000 को न्यूयार्क में आयोजित विश्र्वशांति शिखर सम्मेलन तथा विश्र्व बैंक ने वर्ल्ड फेथ्स डेवलपमेंट डायलॉग-2000 के वाशिंगटन सम्मेलन के अवसर पर उनसे लिखित मार्गदर्शन प्राप्त किया था.