बहुत दिन हुए यार तेरे साथ बैठकर तसल्ली से बात तक नहीं हुई। ऐसे में तुम ही कहो ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है? इस दुनिया में मुझे जो कुछ भी पाना है वो सब स्थगित किये बैठा हूँ। सब कुछ परसों पर टाल रखा है कि शायद कल तुमसे मिलना हो सके। कितनी ही शामें हमने यूँ ही बतकही करते हुए गुज़ार दी हैं, उतने तो मैं तारों को भी नहीं पहचानता।

हाँ इकलौते चाँद को जानता हूँ जो गवाह रहा है हमारे मिलन का। एकांत की अपनी एक मर्यादा होती है, होनी भी चाहिए। लेकिन, कभी कभी यह एकांत अपनी सीमा लाँघ कर मुझ पर इस कदर हावी हो जाता है कि जैसे मेरे अस्तित्व पर कोई ग्रहण लग गया हो। कुछ नहीं सूझता। की-बोर्ड पर टाइप करते हुए ख़ुद को संभालने की कोशिश में जुट जाता हूँ। कभी कभी संभल भी जाता हूँ और कई बार बस केवल तड़प कर रह जाता हूँ। ऐसे में कोई मेरे सिरहाने आसमान भी रख दे तो भी वो व्यर्थ मालूम होता है। मुझे वो आसमान नहीं चाहिए जिसके चाँद में तुम्हारा चेहरा, जिसके सूर्य में तुम्हारे प्रेम की तपिश और जिसके इंद्रधनुष में तेरा रंग न हो।

हीरेंद्र झा

(एक प्रेमी की डायरी से चुनकर कुछ पन्ने हम आपके लिए ले  कर आते  रहेंगे)

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