प्रभात रंजन दीन : चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने नासमझ बयान जारी कर लोगों का आक्रोश अपनी तरफ कर लिया, लेकिन जमीनी वास्तविकता यही है कि गोरखपुर अस्पताल हादसा यूपी के चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन के विभाग की बुरी सेवाओं का भी प्रतिफल है. प्रदेश के पूर्वांचल के जिन जिलों में तथाकथित जापानी इंसेफ्लाइटिस या एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम बीमारी फैली है, वहां-वहां वेंटिलेटर सुविधा स्थापित करने और संचालित करने के लिए बजट मुहैया कराने और उनके रख-रखाव की जिम्मेदारी यूपी की परिवार कल्याण मंत्री डॉ. रीता बहुगुणा जोशी के तहत चलने वाले राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) पर है, जिसपर कोई उंगली नहीं उठा रहा है, क्योंकि लोगों को इस प्रकरण में एनएचएम की अंदरूनी ‘खलनायकी’ भूमिका की जानकारी ही नहीं है.
वर्ष 2013 में तत्कालीन समाजवादी सरकार के चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री अहमद हसन के चहेते चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण महानिदेशक डॉ. बलजीत सिंह अरोरा ने प्रदेश के जापानी इंसेफ्लाइटिस व एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम प्रभावित जिलों में इंसेफ्लाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर के निर्माण के लिए उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) को प्रस्ताव भेजा और टर्न-की प्रॉसेस पर अहमद हसन की चहेती कंपनी ‘पुष्पा सेल्स’ को काम दे दिया. बजाज स्कूटर बेचने वाली इस कंपनी को स्वास्थ्य से सम्बन्धित करोड़ों का काम देने का तब विरोध भी हुआ था, लेकिन अहमद हसन और डॉ. बलजीत सिंह अरोरा पर इसका कोई असर नहीं पड़ा. इस कंपनी को गोरखपुर स्थित बीआरडी मेडिकल कालेज में सौ वेंटिलेटर लगाने और मरीजों के इलाज में सुविधा देने के लिए टेक्नीशियन मुहैया कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.
वर्ष 2014 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तत्कालीन निदेशक अमित कुमार घोष ने इस क्षेत्र में एक टीम भेज कर ‘पुष्पा सेल्स’ के काम की समीक्षा की थी और गोरखपुर में दो मंडलों के मंडलायुक्तों और जिलाधिकारियों सहित जिम्मेदार अधिकारियों की बैठक में ‘पुष्पा सेल्स’ की ख़राब सेवाओं को उजागर किया था. सेंट्रल ऑक्सीजन यूनिट को बिजली की हाई-टेंशन लाइन के नीचे स्थापित करने और पुरानी पाइप-लाइन से ऑक्सीजन सप्लाई करने का मामला भी उनके समक्ष आ चुका था. उस समय प्रदेश के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री अहमद हसन के दबाव में घोष के न चाहने के बावजूद डॉ. बलजीत सिंह अरोरा रिटायरमेंट के बाद भी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के प्रधान सलाहकार बना दिए गए. स्वाभाविक है कि उपकृत अरोरा ने ‘पुष्पा सेल्स’ पर कोई कार्रवाई नहीं होने दी. ‘पुष्पा सेल्स’ कंपनी ने जैसे-तैसे मनचाहे तरीके से इंसेफ्लाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर्स स्थापित किए और अयोग्य एवं अक्षम कर्मचारियों को भर कर जानलेवा तरीके से पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट चलाया. कंपनी जो भी बिल भेजती महानिदेशालय के जरिए एनएचएम उसका भुगतान करता जाता.
अहमद हसन ने अपनी सरकार के आखिरी महीनों में डॉ. विजय लक्ष्मी को चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग का महानिदेशक बना दिया और सपा सरकार के आखिरी समय तक लूटपाट वाली व्यवस्था जारी रही. उस दरम्यान ही हाईकोर्ट ने डेंगू, मलेरिया, जापानी इंसेफ्लाइटिस और एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम से बेतहाशा हो रही मौतों पर राज्य सरकार को कड़ी चेतावनी दी थी. आप यह जानते चलें कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) में जापानी इंसेफ्लाइटिस और एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम सहित सभी संचारी रोगों के कार्यक्रम के संचालन और नियोजन की जिम्मेदारी ‘राष्ट्रीय कार्यक्रम’ नामक अनुभाग के पास है. एनएचएम के तत्कालीन निदेशक अमित कुमार घोष ने डॉ. विजय लक्ष्मी के दबाव में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन उत्तर प्रदेश में ईमानदार छवि के ‘राष्ट्रीय कार्यक्रम’ के महाप्रबंधक डॉ. अनिल कुमार मिश्र को हटा कर उनके खास डॉ. मनीराम गौतम को महाप्रबंधक बना दिया था, ताकि महानिदेशालय में डॉ. विजय लक्ष्मी की करतूतें जारी रह सकें. यह भी बताते चलें कि दिसम्बर 2015 में डॉ. विजय लक्ष्मी भी डॉ. बलजीत सिंह अरोरा की तरह ही एनएचएम में सवा लाख के वेतन पर चोर-रास्ते से मिशन निदेशक के वरिष्ठ सलाहकार के गैर-सृजित पद पर काबिज हो गईं. उन्हें एनएचएम में ‘राष्ट्रीय कार्यक्रम’ सहित कई महत्वपूर्ण अनुभागों का नोडल अधिकारी बनाया गया था.
समाजवादी पार्टी की सरकार में मुख्य सचिव आलोक रंजन के स्टाफ अफसर रहे आलोक कुमार को अप्रैल में एनएचएम का मिशन निदेशक बनाया गया. उनके आने के बाद पूर्व महानिदेशक रहे डॉ. बलजीत सिंह अरोरा और डॉ. विजय लक्ष्मी की और तूती बोलने लगी. वर्ष 2016 के जुलाई महीने में डॉ. मनीराम गौतम के रिटायर होने के बाद डॉ. विजय लक्ष्मी ने अपने दूसरे खास व्यक्ति अस्थि रोग के सर्जन और संचारी रोग के वर्तमान संयुक्त निदेशक डॉ. एके पांडेय को एनएचएम में ‘राष्ट्रीय कार्यक्रम’ का महाप्रबंधक बनवा दिया. डॉ. पांडेय को सप्ताह के तीन दिन एनएचएम और दो दिन महानिदेशालय में काम करने का आदेश जारी करवाने में डॉ. विजय लक्ष्मी का विशेष हाथ था. दूसरी तरफ डॉ. मनीराम गौतम को जापानी इंसेफ्लाइटिस और एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम उन्मूलन में सहयोग देने के लिए प्रदेश में काम कर रहे गैर-सरकारी संगठन ‘पाथ’ में विशेषज्ञ के रूप में एक लाख से अधिक की सैलरी पर चयनित करवा दिया. वर्तमान मिशन निदेशक आलोक कुमार ने इस तरह इस अति महत्वपूर्ण अनुभाग को बेहद हल्के से लिया.
हद तो यह है कि एनएचएम के अनुश्रवण और मूल्यांकन विभाग ने अगले छह महीने के लिए भी डॉ. एके पांडेय को ही गोरखपुर मंडल का प्रभारी बनाया है. डॉ. पांडेय प्रत्येक महीने गोरखपुर मंडल में कम-से-कम तीन दिन बिताकर ‘राष्ट्रीय कार्यक्रम’ सहित सभी कार्यक्रमों की अद्यतन स्थिति से प्रदेश सरकार को अवगत कराने के लिए जिम्मेदार हैं. सवाल यह भी है कि अप्रैल से लेकर अगस्त महीने तक डॉ. पांडेय ने इन जिलों में जापानी इंसेफ्लाइटिस और एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम से बचाव के लिए क्या-क्या कदम उठाए? उनकी सलाह पर इस कार्यक्रम की नोडल अधिकारी डॉ. विजय लक्ष्मी ने क्या किया? इन अधिकारियों ने सरकार को किस तरह की ब्रीफिंग दी? यह तथ्य भी सामने आना जरूरी है कि क्लीनिकल सेवाओं के विशेषज्ञ माने जाने वाले डॉ. एके पांडेय को हाल में जब मुख्य चिकित्सा अधीक्षक बना दिया गया था तब डॉ. विजय लक्ष्मी ने उन्हें एनएचएम में ही क्यों रोक लिया?
उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मौजूदा मिशन निदेशक आलोक कुमार ने समाजवादी पार्टी की सरकार में भ्रष्ट गतिविधियों के लिए चर्चित रहे पूर्व महानिदेशक डॉ. बलजीत सिंह अरोरा और डॉ. विजय लक्ष्मी के इशारों पर काम करते हुए डॉ. एके पांडेय को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी और पॉलिटेक्निक से कम्यूटर शिक्षा प्राप्त सिफ्सा के कर्मचारी बीके जैन को मूल्यांकन और अनुश्रवण (रख-रखाव) का महानिदेशक बना कर इतने ढेर सारे बच्चों की तकलीफदेह मौत की साजिश रच दी. इसके बावजूद महामूर्धन्य योगी सरकार इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रही.
विडंबना यह है कि गोरखपुर हादसे की जांच के लिए योगी सरकार द्वारा मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित जांच समिति में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के निदेशक आलोक कुमार भी शामिल हैं. हादसे के लिए जो लोग दोषी हैं, वही जांच करेंगे तो पकड़ा कौन जाएगा? शासन के ही एक आला अधिकारी कहते हैं कि दोषी को ही जांच अधिकारी बनाने में योगी सरकार को महारत हासिल है. विधानसभा में अवैध नियुक्तियों के मामले की जांच भी योगी सरकार ने नियुक्ति घोटाले में लिप्त रहे विधानसभा के प्रमुख सचिव प्रदीप दुबे को ही दे दी थी. उस जांच का भी कोई नतीजा नहीं निकला, उसी तरह बच्चों की मौत के मामले की जांच का भी कोई परिणाम नहीं निकलेगा.