देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के वर्सोवा इलाके में स्थित मशहूर फिल्म निर्माता साजिद नाडियाडवाला का घर. शाम क़रीब तीन बजे डोर बेल बजने की आवाज़ सुनकर जैसे ही साजिद की पत्नी ने दरवाजा खोला, तो उन्होंने देखा कि उनके सुरक्षा गार्ड ने उन पर रिवाल्वर तान रखी है. गार्ड ने उन्हें बंधक बना लिया. इसके बाद गार्ड और उसके साथ आए बदमाश डकैती को अंजाम देते हैं. साजिद के घर में इस बड़ी डकैती में चार लोग शामिल थे, लेकिन उनका सरगना आज उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही बन बैठा है. इसमें हैरान कर देने वाली बात यह है कि राज्य पुलिस के अधिकारियों को इस बात की भनक तक नहीं लगी कि उनके महकमे में एक ऐसा व्यक्ति काम कर रहा है, जिसने बड़ी डकैती को अंजाम दिया.
यह उत्तर प्रदेश पुलिस में भर्ती के फर्जीवाड़े का छोटा-सा नमूना है. अगर भर्ती करने के पहले पुलिस वेरीफिकेशन की हालत इतनी खस्ता है, तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि ऐसे न जाने कितने कर्मी उत्तर प्रदेश पुलिस में होंगे. साजिद नाडियाडवाला के घर यह वारदात 9 जनवरी, 2009 को हुई थी, जिसमें क़रीब 40 लाख रुपये के गहने और लगभग 10 लाख रुपये नगद दिनदहाड़े लूट लिए गए थे. चूंकि यह घटना मशहूर फिल्म निर्माता साजिद नाडियाडवाला से जुड़ी हुई थी, इस वजह से मुुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच ने जल्दी ही सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था. फिर इस कांड के मुख्य आरोपी प्रभात त्रिपाठी का नाम सामने आया, जिसे क्राइम ब्रांच ने लखनऊ से गिरफ्तार किया. प्रभात फिल्म अभिनेता सलमान खान के सिक्योरिटी गार्ड शेरा की कंपनी टाइगर में गार्ड का काम करता था. पुलिस की तफ्तीश में यह बात सामने आई कि मुख्य आरोपी प्रभात त्रिपाठी ने अपने तीन साथियों अनीस अनवारुल खान, शिवचंद रामकिशोर मौर्या और असगर रज्जब अली खान के साथ मिलकर इस वारदात को अंजाम दिया. प्रभात इलाहाबाद के जॉर्ज टाउन इलाके का रहने वाला है. मुंबई के वर्सोवा थाने में इन चारों अभियुक्तों के ख़िलाफ पुलिस ने आईपीसी की धारा 397, 341, 452, 120 बी, 506-2 और अवैध हथियार रखने के मामले में आर डब्ल्यू 3,25 के तहत मुकदमा दर्ज किया. वहीं पुलिस ने इस घटना के मुख्य अभियुक्त प्रभात त्रिपाठी के पास से 1,07,500 रुपये भी बरामद किए थे.
इस हाई प्रोफाइल वारदात की जांच कर रहे मुंबई क्राइम ब्रांच के ज्वाइंट कमिश्नर ने उस समय बताया था कि इस घटना को अंजाम देने के लिए इन लोगों ने तीन-चार महीने पहले ही योजना बनानी शुरू कर दी थी. इसके बाद प्रभात और उसके दो साथी अनीस अनवारुल खान के संपर्क में आए, जो छोटा राजन गैंग का सदस्य था. इस घटना को अंजाम देने के लिए अनवारुल ने ही रिवाल्वर मुहैया कराई थी. स़िर्फ इतना ही नहीं, एक शातिर अपराधी की तरह प्रभात ने शेरा की सिक्योरिटी एजेंसी में अपना पता भी गलत दे रखा था. इसे स़िर्फ एक अपराधी का शातिराना क़दम ही कहा जाएगा, क्योंकि इसकी वजह से मुंबई पुलिस को उसकी तलाश करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. काफी मशक्कत के बाद और मुंबई पुलिस की तेज कार्रवाई के चलते उसे खोज निकाला गया. मुुंबई पुलिस ने उसे लखनऊ में गिरफ्तार किया.
आइए, अब नज़र डालते हैं उस भर्ती की तरफ़, जिसमें प्रभात का चयन यूपी पुलिस में हुआ था. साल 2006-07 की मुलायम सिंह सरकार के दौरान हुई पुलिस की भर्ती में उसका चयन हुआ था. यह भर्ती शुरू से विवादों में रही. इसी बीच यूपी में 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा और बसपा ने भारी बहुमत से जीत दर्ज की थी. प्रदेश की बागडोर मायावती के हाथों में आ गई. सरकार आते ही बसपा के कई विधायकों ने आरोप लगाया कि इस पुलिस भर्ती के दौरान बड़े स्तर पर अनियमितताएं बरती गईं, जिन्हें देखते हुए मायावती सरकार ने यह भर्ती निरस्त कर दी थी, जिससे प्रभात त्रिपाठी भी प्रभावित हुआ था. भर्ती निरस्त होने के बाद प्रभात रोज़गार की तलाश में मुंबई पहुंचा और सिक्योरिटी गार्ड का काम करने लगा. फिल्म निर्माता साजिद नाडियाडवाला के घर तैनाती के दौरान उसकी नीयत में खोट आ गया और उसने अपने साथियों के साथ मिलकर इस चर्चित वारदात को अंजाम दिया.
साल 2009 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने अपना ़फैसला सुनाया और मायावती द्वारा निरस्त की गई भर्ती को फिर से बहाल कर दिया. कोर्ट के इस निर्णय का लाभ प्रभात त्रिपाठी को भी मिला. उसने अपने काले कारनामे को छिपाते हुए बहाली के दौरान झूठा हलफनामा दायर किया और नियुक्ति प्रमाणपत्र प्राप्त कर लिया. वह मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले में तैनात है. आरटीआई द्वारा इस बात की जानकारी मिली कि प्रभात के ख़िलाफ विभागीय जांच चल रही है. अधिकारियों से पूछताछ करने पर इस बात की पुष्टि हुई थी कि अभियुक्त प्रभात त्रिपाठी के क़ब्जे से 1,07,500 रुपये की बरामदगी करके उसे न्यायिक अभिरक्षा में भेजा गया था. माता सुशीला त्रिपाठी ने एक लाख रुपये की एनएससी लगाकर प्रभात की जमानत कराई गई थी.
अब सवाल यह उठता है कि अगर प्रभात के ख़िलाफ जांच चल रही है, तो वह अभियुक्त होते हुए भी पूरी तरह से ड्यूटी पर कैसे बहाल है? जबकि उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती नियमावली के अनुसार जिस व्यक्ति पर चार्जशीट दायर हो और वह 48 घंटे तक हिरासत में रहा हो, तो उसे विभाग द्वारा अयोग्य करार दिया जाता है. ऐसे में जब हमारी टीम द्वारा छानबीन की गई, तो ज्ञात हुआ कि आरोपी पर थाना कैंट इलाहाबाद में भी 22 दिसंबर, 2010 को एक व्यक्ति से मारपीट का आरोप है और धारा 395 के तहत मुकदमा दर्ज है, जिसमें न्यायालय द्वारा आरोपी प्रभात त्रिपाठी को पेश होने का आदेश जारी किया गया .
अब सवाल यह उठता है कि अगर प्रभात के ख़िलाफ जांच चल रही है, तो वह अभियुक्त होते हुए भी पूरी तरह से ड्यूटी पर कैसे बहाल है? जबकि उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती नियमावली के अनुसार जिस व्यक्ति पर चार्जशीट दायर हो और वह 48 घंटे तक हिरासत में रहा हो, तो उसे विभाग द्वारा अयोग्य करार दिया जाता है. ऐसे में जब हमारी टीम द्वारा छानबीन की गई, तो ज्ञात हुआ कि आरोपी पर थाना कैंट इलाहाबाद में भी 22 दिसंबर, 2010 को एक व्यक्ति से मारपीट का आरोप है और धारा 395 के तहत मुकदमा दर्ज है, जिसमें न्यायालय द्वारा आरोपी प्रभात त्रिपाठी को पेश होने का आदेश जारी किया गया है. इतना ही नहीं, आरोपी प्रभात साल भर तक कोर्ट में पेश नहीं हुआ और उसने जमानत भी नहीं कराई. ऐसे में यह सोचना और समझना मुश्किल हो जाता है कि लूट का आरोपी पुलिस वाला जनता की सुरक्षा में कितनी दिलचस्पी लेता होगा! उधर, विभागीय जांच के नाम पर यूपी पुलिस द्वारा जो खेल हो रहा है, उसे सहज ही समझा जा सकता है.