राजनीतिक पंडितों की नकारात्मक भविष्वाणियों को ध्वस्त करते हुए आज भारत खुद को एक जीवंत लोकतंत्र के रूप में स्थापित कर चुका है, लेकिन आज भी भारतीय राजनीति में कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जो चिंता का विषय हैं. उनमें से एक है सत्ता में महिलाओं की नाममात्र भागीदारी. भारत में एक महिला प्रधानमंत्री बन सकती है, राष्ट्रपति बन सकती है, राजनीतिक दल की अध्यक्ष बन सकती है, लेकिन इसके बावजूद लोकसभा में उनका प्रतिनिधित्व महज़ 10.86 प्रतिशत है और इंटर-पार्लियामेंट्री यूनियन की 2011 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक़, महिलाओं के संसद में प्रतिनिधित्व के हिसाब से भारत 98वें स्थान पर है. पाकिस्तान और नेपाल इस मामले में भारत से आगे हैं.
महिला सदस्यों के लोकसभा में प्रतिनिधित्व और आम चुनाव में बतौर उम्मीदवारी उनकी भागीदारी में बढ़ोत्तरी हो रही है. आम चुनाव 2009 में महिलाओं की सबसे बड़ी संख्या 59 लोकसभा में आई थी, जबकि उसके पहले लोकसभा में महिला सदस्यों की संख्या 45 थी. 15वीं लोकसभा में महिलाओं की सदस्यता 10.86 प्रतिशत थी और 13वीं लोकसभा भी 9.02 प्रतिशत सदस्यता के साथ इसके काफी क़रीब थी. 1996 से निचले सदन में सदैव कम से कम 40 महिलाएं चुनी जाती रही हैं. लोकसभा में महिलाओं की सबसे कम संख्या 1977 में थी, जब मात्र 19 महिला सदस्य निचले सदन में पहुंच सकीं, जो लोकसभा की कुल सीटों का महज 3.50 प्रतिशत ही था. इसके अतिरिक्त इतिहास में और कोई दूसरा अवसर नहीं है, जिसमें महिलाएं 20 की संख्या तक भी नहीं पहुंच पाईं.
चुनाव लड़ने के संबंध में महिला प्रतिभागियों की सर्वाधिक संख्या 1996 के चुनाव में 599 थी. उसके बाद यह संख्या 2009 में 556 और 2004 में 355 थी. यह 1980 की सातवीं लोकसभा थी, जब महिला उम्मीदवारों ने 100 का आंकड़ा पार किया. उससे पहले महिला उम्मीदवारों की संख्या हमेशा 100 के नीचे ही रही. चुनाव लड़ने में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना में काफी कम है. 9वें आम चुनाव तक महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से 30 गुना कम थी. 10वें आम चुनाव से इस भागीदारी में सुधार हुआ, परंतु पहले चुनाव से लेकर 15वीं लोकसभा के गठन तक महिला उम्मीदवारों की जीत का प्रतिशत हमेशा पुरुषों की तुलना में अधिक रहा है. भारतीय राजनीति में महिलाओं की सफलता दर खेदजनक है और यह लगातार खराब होती जा रही है.
द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने भारतीय चुनाव आयोग के आंकड़ों के विश्लेषण से पाया कि 2009 में एक महिला के लोकसभा के लिए दोबारा चुने जाने की संभावनाएं 1957 के समान थीं. निस्संदेह, पुरुषों की सफलता दर इसलिए कम हो रही है, क्योंकि प्रतिस्पर्धा में शामिल लोगों की संख्या बढ़ गई है. 1957 में चुनाव में खड़े एक पुरुष के जीतने की संभावनाएं 31 फ़ीसद थीं, जो 2009 में मात्र 6 फ़ीसद रह गईं, लेकिन लोकसभा में महिला सांसदों का कुल आंकड़ा अब भी दो अंकों वाला ही बना हुआ है, जबकि पुरुष सांसदों की संख्या 90 फ़ीसद से थोड़ी ही कम है. ज़्यादा महिलाओं (2004-2009 के बीच उम्मीदवारों की संख्या में 57 फ़ीसद वृद्धि) के चुनाव में हिस्सा लेने के बावजूद इस दौरान महिला विजेताओं में 31 फ़ीसद की बढ़ोत्तरी हुई. संसद के निचले सदन लोकसभा में 543 सीटें हैं. 2009 के चुनाव में इनमें से महज़ 11 फ़ीसद महिलाएं चुनाव जीती थीं.
अब तक 12
अभी तक के लोकसभा चुनावों का इतिहास बताता है कि 15वें लोस चुनाव में सर्वाधिक 59 महिलाएं चुनी गई, जिनमें से तीन महिलाएं मुस्लिम थीं, जिन्होंने संसद में झंडा बुलंद किया. लगातार तीन बार जीत कर हैट्रिक बनाने का रिकॉर्ड एकमात्र मुस्लिम महिला सांसद मोहसिना किदवई (कांग्रेस) ने अपने नाम दर्ज कर रखा है. देश के पहले लोकसभा चुनाव में 23 महिलाएं चुनकर संसद पहुंचीं, जिनमें एक भी मुस्लिम महिला नहीं थी. दूसरे लोस चुनाव में चुनी गईं 24 महिलाओं में कांग्रेस के टिकट पर दो मुस्लिम महिलाएं, माफिदा अहमद (जोरहट) और मैमूना सुल्तान (भोपाल) लोकसभा में पहुंचीं. तीसरे लोस चुनाव में कुल 37 महिलाएं चुनी गई, जिनमें से दो मुस्लिम महिलाएं, जोहराबेन अकबरभाई चावदा (बांसकंथा-गुजरात) और मैमूना सुल्तान (भोपाल) से कांग्रेस के टिकट पर संसद में पहुंचीं. चौथे और पांचवें लोस चुनाव में मुस्लिम महिलाओं का प्रतिनिधित्व शून्य रहा. भारत के छठवें लोस चुनाव में कुल 18 महिला सांसद चुनी गईं. इनमें से तीन मुस्लिम महिलाएं, अकबर जहां बेगम (श्रीनगर) नेशनल कांफ्रेंस, राशिदा हक़ चौधरी (सिलचर-असम) और मोहसिना किदवई (आजमगढ़) कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा में पहुंचीं. सातवें लोस चुनाव में चुनी गईं 32 महिला सांसदों में दो मुस्लिम महिलाओं, बेगम आबिदा अहमद (बरेली) और मोहसिना किदवई (मेरठ) ने कांग्रेस के टिकट पर किला फतह किया. मोहसिना जो पिछली बार आजमगढ़ से जीती थीं, इस बार सीट बदल कर मेरठ से सांसद बनीं. आठवें लोकसभा चुनाव में 46 महिलाओं ने लोकसभा पहुंच कर अपने-अपने क्षेत्रों की रहनुमाई की. इनमें से तीन मुस्लिम महिलाओं, बेगम अख्तर जहां अब्दुल्ला (अनंतनाग) ने नेशनल कांफ्रेंस, बेगम आबिदा अहमद (बरेली) और मोहसिना किदवई (मेरठ) ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की. बेगम आबिदा ने लगातार दूसरी जीत दर्ज की, जबकि मोहसिना ने तीसरी बार जीत हासिल कर हैट्रिक बनाई. नौवीं और दसवीं लोकसभा में क्रमश: 28 और 42 महिलाएं सांसद बनीं, लेकिन इनमें एक भी मुस्लिम महिला नहीं थी. 11वें लोस चुनाव में 41 महिलाओं ने जीत दर्ज की, लेकिन इनमें एकमात्र मुस्लिम महिला प्रत्याशी बेगम नूर बानो थीं, जिन्होंने रामपुर से कांग्रेस के टिकट पर विजय हासिल की. 12वें लोस चुनाव में 44 महिलाएं जीतीं, लेकिन इनमें एक भी महिला सांसद मुस्लिम नहीं थी. 13वें लोस चुनाव में 52 महिलाएं सांसद चुनी गईं. इनमें स़िर्फ बेगम नूर बानो (रामपुर) बतौर मुस्लिम महिला दूसरी बार सांसद बनीं. 14वें लोस चुनाव में 45 महिलाएं सांसद चुनी गईं. इनमें से एकमात्र सैयदा रुबाब (बहराइच) मुस्लिम महिला के रूप में सपा के टिकट पर संसद पहुंचीं. वर्ष 2009 में हुए पिछले यानी 15वें लोस चुनाव में कुल 59 महिलाओं ने जीत का सेहरा बांधा और संसद पहुंचीं. इनमें से तीन मुस्लिम महिला सांसदों, तबस्सुम बेगम (कैराना-उत्तर प्रदेश), कैसर जहां (सीतापुर) ने बसपा और मौसम नूर (मालदा उत्तर) ने कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा में झंडा बुलंद किया.
मुस्लिम प्रतिनिधित्व
वर्ष संख्या
1952 21
1957 23
1962 23
1967 29
1971 29
1977 34
1980 49
1984 45
1989 29
1991 27
1996 27
1998 29
1999 31
2004 36
2009 28
महिलाओं का प्रतिनिधित्व
लोकसभा सीट संख्या निर्वाचित
दूसरी 494 45 22
तीसरी 494 66 31
चौथी 520 67 29
पांचवीं 518 86 21
छठवीं 542 70 19
सातवीं 542 143 28
आठवीं 542 162 42
नौवीं 543 198 29
दसवीं 543 326 37
ग्यारहवीं 543 599 40
बारहवीं 543 274 43
तेरहवीं 543 284 49
चौदहवीं 543 355 45
पंद्रहवीं 543 — 59