यह संकल्प कर लेने के बाद ही चयन पक्का माना जाएगा. निर्वाचक मंडल एक स्थायी संगठन होगा. उसके कई काम होंगे. लोक उम्मीदवार का चयन करना उसका सबसे पहला महत्वपूर्ण काम होगा. इसके अलावा निर्वाचक मंडल अपने क्षेत्र के मतदान केंद्रों की मतदाता सूचियों को अप-टू-डेट रखेगा, मतदाताओं के शिक्षण की व्यवस्था करेगा और इस बात की निगरानी रखेगा कि सरकार के किसी संगठन के या स्वयं लोगों के किसी काम से संविधान में मिले किसी नागरिक के अधिकारों पर आघात न पहुंचे.
क्या निर्वाचक मंडल का कोई सदस्य लोक उम्मीदवार चुना जा सकता है?
निर्वाचक मंडल का सदस्य रहते हुए कोई व्यक्ति लोक उम्मीदवार नहीं चुना जा सकता. अगर निर्वाचक मंडल अपने किसी सदस्य को उम्मीदवार बनाना ही चाहे, तो उसे पहले मंडल की सदस्यता से त्यागपत्र देना पड़ेगा.
लोक उम्मीदवार के लिए क्या योग्यता होनी चाहिए?
प्रथम तो यह कि वह किसी राजनीतिक दल का सदस्य न हो. दूसरी बात यह है कि लोग उसे अच्छे चरित्र का आदमी मानते हों. अच्छे चरित्र की पहचान में ये बातें हो सकती हैं:-
- जो भ्रष्टाचार, जमाखोरी, चोर-बाज़ारी न करता हो.
- जो जाति, धर्म, संप्रदाय, छुआछूत आदि का भेदभाव न रखता हो.
- जो स्त्री-पुरुष को समान मानता हो.
- जो स्वयं शराब न पीता हो और शराबबंदी का समर्थक हो.
- जो नागरिक की आज़ादी, प्रेस की स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और लोकतंत्र के मूल्यों के लिए काम करने की पूरी तैयारी रखता हो.
एक बात और है, जो महत्व की है. जहां तक संभव हो, ऐसे परिवार (पति, पत्नी, नाबालिग, बच्चे को मिलाकर) से ही लोक उम्मीदवार को चुनना चाहिए, जिसकी कुल मासिक आय 5 हज़ार रुपये से अधिक न हो. इस शर्त का आशय यह है कि लोक उम्मीदवार सामान्य परिवार का हो, उसके पीछे धन का बल न हो.
लोक उम्मीदवार और निर्वाचक मंडल का क्या संबंध होगा?
लोक उम्मीदवार का चयन निर्वाचक मंडल द्वारा होगा, इस नाते वह मंडल के प्रति ज़िम्मेदार होगा. इसका अर्थ यह है कि वह एक प्रकार से मंडल का सिपाही होगा, जो संसदीय मोर्चे पर मतदाताओं की लड़ाई लड़ेगा. विधायक या सांसद बन जाने के बाद भी लोक उम्मीदवार निर्वाचक मंडल के संपर्क में रहेगा और उसके निर्देशों का पालन करेगा. चयन होते ही लोक उम्मीदवार को निर्वाचक मंडल के सामने संकल्प करना पड़ेगा कि:-
1. वह हर वर्ष अपनी संपत्ति और कमाई का ब्यौरा मंडल के सामने देता रहेगा.
2. वह अपने निर्वाचक मंडल की हर बैठक में, जो तीन महीने में एक बार होगी, अपने काम का ब्यौरा देगा और क्षेत्र की समस्याओं को समझेगा, ताकि विधानसभा या संसद में सही स्थिति रख सके.
3. पद या पैसे के लोभ में दलबदल नहीं करेगा और न तो राजनीतिक सौदेबाजी का शिकार होगा.
4. जो कार्यक्रम तैयार होगा, उसे अमल में लाने के लिए वह बराबर तैयार रहेगा.
5. किसी के लिए नाजायज पैरवी या सिफारिश नहीं करेगा.
6. निर्वाचक मंडल की मांग पर विधानसभा या संसद से त्याग-पत्र देने के लिए तैयार रहेगा.
यह संकल्प कर लेने के बाद ही चयन पक्का माना जाएगा. निर्वाचक मंडल एक स्थायी संगठन होगा. उसके कई काम होंगे. लोक उम्मीदवार का चयन करना उसका सबसे पहला महत्वपूर्ण काम होगा. इसके अलावा निर्वाचक मंडल अपने क्षेत्र के मतदान केंद्रों की मतदाता सूचियों को अप-टू-डेट रखेगा, मतदाताओं के शिक्षण की व्यवस्था करेगा और इस बात की निगरानी रखेगा कि सरकार के किसी संगठन के या स्वयं लोगों के किसी काम से संविधान में मिले किसी नागरिक के अधिकारों पर आघात न पहुंचे. अगर पहुंचता हो, तो मंडल आवाज़ उठाएगा और आवश्यकतानुसार प्रतिकार की कार्रवाई करेगा. निर्वाचक मंडल का उद्देश्य है कि शुद्ध लोकतंत्र का विकास हो. लोक उम्मीदवार इस उद्देश्य को पूरा करने में अपना रोल पूरे तौर पर अदा करेगा.
लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के लिए लोक उम्मीदवार का चयन कैसे होगा?
एक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंदर कई विधानसभा क्षेत्र होते हैं. जितने विधानसभा क्षेत्र होंगे, उतने निर्वाचक मंडल होंगे, जिनमें से हर निर्वाचक मंडल के प्रतिनिधियों को मिलाकर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के लिए निर्वाचक मंडल बनाया जा सकता है. इस आधार पर कुल संख्या और प्रतिनिधियों की संख्या तय की जा सकती है.
हर दल अपने विधायकों या सांसदों के काम का समन्वय करता है. लोक उम्मीदवारों के काम का समन्वय कैसे होगा?
समन्वय आवश्यक है, उसके बिना काम नहीं चल सकता. पक्की व्यवस्था धीरे-धीरे विकसित होगी, लेकिन फिलहाल यह हो सकता है कि लोक उम्मीदवारों के चयन और उनके काम का समन्वय एक संसदीय बोर्ड द्वारा हो. इस बोर्ड में विधानसभाओं के निर्वाचक मंडलों के प्रतिनिधि हों और स्वराज्य संगम के प्रतिनिधि हों. दोनों के सम्मिलित तत्वावधान में समन्वय का काम हो सकता है. स्वराज्य संगम एक ऐसा संगठन है, जिसका लक्ष्य है, आज की सत्ता की राजनीति के स्थान पर जनता की राजनीति विकसित करना. इसे लोकनीति कहेंगे. स्वराज्य संगम का कोई सदस्य स्वयं उम्मीदवार नहीं हो सकता. स्वराज्य संगम द्वारा राष्ट्र और प्रदेश, दोनों स्तरों पर संसदीय मंडलों (पार्लियामेंट्री बोर्ड) की स्थापना की जा सकेगी. यह भी विचार है कि स्वराज्य संगम के नाम से देश भर में लोक उम्मीदवारों के लिए एक ही चुनाव चिन्ह हो. इसी प्रकार लोक उम्मीदवार अपने-अपने राज्य की विधानसभा या संसद में क्या काम करेंगे, इसकी सुव्यवस्थित योजना भी बनाई जाएगी.