ये वर्ष याने 2020 कभी भुलाया नहीं जा पायेगा ।सदियों तक सुनाई जाएगी इसकी कहानियां ।इस ने हमे बहुत डराया है तो सिखाया भी है । कुछ अपनों से दूर किया है तो कुछ बहुत पास भी आ गए इस कठिन समय मे । कुछ खट्टे -मीठे अनुभव से लबरेज रहा ये समय।सब बन्द ने मन को भी बंदी बनाया तो नेट के माध्यम से मिलना भी हुआ ।
कुछ दहशत कुछ सावधानियों के बीच भी मुझे कोरोना हो ही गया आखिर … पहले जुकाम हुआ फिर गला खराब फिर बुखार पर इन सबसे ज्यादा परेशान किया अवसाद ने । कोई कारण नही समझ आ रहा पर रोना ही रोना ।बच्चे भी घबरा गए। डॉक्टर के पास गए तो उन्होंने कोरोना की आशंका जताई ।
जांच करवाने पर बीमारी की पुष्टि हो गई ।दो दिन घर मे एक कमरे में बन्द हो गई । भूख लगना बन्द हो गया ।
लगता था पड़ी रहूँ ….हिलने का भी मन नहीं होता था …पर डॉक्टर के निर्देशानुसार आक्सिमिटर पर बार बार ऑक्सीजन लेबल चैक करती जो हमेशा नार्मल आया फिर भी कमजोरी इतनी लगती की बात करना मुश्किल ।
कोई कमरे में आ नही सकता ।हम बाहर जा नहीं सकते । इस बीमारी ने अकेला कर दिया ।सब साथ होते हुए भी अकेले ही अपनी देखभाल करने की सज़ा मिल गई । फोन पर ही बात होती । थकान बढ़ती ही जा रही थी। बच्चे समझ नही पा रहे थे क्या करें । जबरन बात करना पड़ता तो हांफने लगती।
अंततः मेरी सहमति से निर्णय लिया गया कि अस्पताल में भर्ती हो जाना उचित है । बेटे ने सब कार्यवाही की। वी वाय अस्पताल(रायपुर ) में जगह मिली …जनरल वार्ड में ।
रात दस बजे एम्बुलेंस मुझे लेने आई । आवश्यक समान रख लिया एक बैग में ।बहु ने आकर मेरी तैयारी करने का प्रस्ताव रखा जिसे मैंने खारिज कर दिया । अंततः अकेली ही एम्बुलेंस में चढ़ी ।ऊंची गाड़ी होने के कारण चढ़ने में बहुत दिक्कत हुई ।बेटे ने आगे बढ़ मुझे पकड़ कर चढ़ाना चाहा तो रोक दिया उसे । किसी तरह चढ़ी ।किसी की मदद भी नही ले सकती थी । ड्राइवर ने कहा चाहे तो बैठे चाहे तो साथ रखे स्ट्रेचर पर लेट जाएं । मैंने बैठना पसन्द किया ।बेटे बहु बच्चे सब लाचार से खड़े थे दूर । मुझे लग रहा था पता नही अब वापस आऊंगी या नही ।पता नही बच्चो के दिमाग मे भी यही आ रहा हो शायद । मैंने भरपूर नज़र सब पर डाली ।मन ही मन उन्हें खूब आशीर्वाद दिया । घर को निहारा और हाथ हिला दिया।उन्होंने भी चिता भरी मुस्कराहट उछाल दी । पता नही ये अंतिम विदा हो शायद ।
एम्बुलेंस चल दी उसके साथ ही अपने मन को समझाया …बहुत पा चुकी जीवन में …पर जो इच्छाएं बची है उन्हें यही स्थगित करती हूँ। अपने को इच्छाओं से खाली करती रही । मृत्यु का स्वागत करने की तैयारी करने लगी । मेरी जरूरत भी नही अब ।सब ज़िम्मेदारी पूरी हो गई है । चली भी गई तो ठीक ही रहेगा बस अपनी कविताओं की चिंता थी ।उन्हें उचित हाथ मे सौंप देना चाहती थी । सब मोबाइल में ही थी । फिर सोचा क्या करना ।छोड़ो । जो लिख चुकी वो अब मेरा नहीं ।जब तक विचार भाव मेरे पास थे तभी तक वो मेरे थे । हल्की हो चुकी थी ।मुस्कराहट आ गई होठों पर ।कोई गीत गुनगुनाने का मन कर रहा था पर इतनी शक्ति नही थी ।
एम्बुलेंस चल रही रही साथ ही मेरे विचार और वैराग्य भी । भीड़ भरी सड़क पर आ गए थे ।एम्बुलेंस का सायरन बजने लगा । बड़ा अच्छा लगा वो सायरन । गाड़ी के छत कीनीली लाइट घूमने लगी । अपने वी आई पी होने का अहसास हुआ ।मन खुश हो गया । आज कितनी महत्वपूर्ण हो गई ।मंत्री की तरह । मेरी गाड़ी में सायरन बज रहा । गाड़ियां और लोग रास्ता दे रहे थे ।
एक घण्टे के सफर के बाद एम्बुलेंस अस्पताल पहुंची । शहर से दूर होने के कारण आसपास सब सुनसान था ।पिछले दरवाजे पर जाकर एम्बुलेंस खड़ी हो गई ।एक व्यक्ति पूरी किट पहने जो मुझे एक्सिमो की याद दिला रहा था आया और मुझे हाथ पकड़ कर उतारा । सोच रही थी ये अजनबी अपने कर्तव्य पर डटा है ।जिसे कोई नही छू रहा था उसे ये हाथ पकड़ कर भरोसा दे रहा ।मन ही मन उसके लिए दुआ की । आधे घण्टे की लिखापढ़ी के बाद मुझे वार्ड में ले जाया गया ।
मुझे जोरो से प्यास लगी थी ।मांगते ही नर्स ने पानी दिया ।दस मिनिट के बाद ही मेरा इलाज शुरू हो गया ।ड्रिप, इंजेक्शन
दवाई आदि सब . . नर्स बार बार आती ।बुखार और ऑक्सीजन नापती ,नोट करती । हाल चाल पूछती ।और चली जाती ।
सब पूरी किट पहने हुए थे ।मुझे बार बार दुसरीं क्लास में पढ़े एक्सिमो का पाठ याद आता रहा और उसमे बना चित्र ।लगा वही चित्र जीवंत हो गया । समझ नही आ रहा था कौन डॉक्टर ,कौन नर्स ,कौन वार्डब्याय । सब एक्सिमों की तरह पूरे ढके हुए . …
दूसरे दिन से ही दवाइयों ने असर दिखाना शुरू कर दिया ।भूख लगने लगी , नींद आने लगी । खाना बहुत स्वादिष्ट लगने लगा ।
धीरे धीरे आसपास भी परिचय हुआ । कुछ अकेले तो कुछ पति पत्नी दौनो भर्ती थे ।
डॉक्टर ,नर्स ,सफाईकर्मी सब अपने कर्तव्य पर डटे हुए थे ।सबसे ज्यादा खतरा तो उनको ही था बीमारी का ।वे हमें छू रहे थे ,जांच कर रहे थे ।इंजेक्शन दवाई दे रहे थे । समय पर चाय,नाश्ता ,काढ़ा और खाना और गर्म पानी दे रहे थे ।
अस्पताल में दो वार्ड थे कोरोना रोगियों के । रोगी कम हो रहे थे । नए भी कम आ रहे थे । हमारे वार्ड के सभी रोगियों को दूसरे वार्ड में शिफ्ट किया जाने लगा । जाकर देखा तो उस वार्ड में बाथरुम आदि में अव्यवस्था थी साथ ही हम सब अपने वार्ड वालो के साथ ही रहना चाहते थे ।कोई अलग नही जाना चाहता था ।सब एक दूसरे से आत्मीय हो गए थी ।दूसरे वार्ड में हमे दूर दूर पलंग मिले । हम सभी अपने वार्ड में खुश थे ।
मूल कारण हम ही जानते थे पर अव्यवस्था को मुद्दा बनाकर मैनेजमेंट से झगड़ा किया । मुझे योग्य मानकर नेता बना दिया ..। क्या करे मूर्ख होते हुए भी चेहरे से पढ़े लिखे लगते है ना ..। झगड़े का असर हुआ ।हम सभी को सखेद अपने वार्ड में भेज दिया ।सब खुश हो गए । इतना जोश आ गया कि अपना सामान खुद ही ले आये और अपने पलंग की चादर भी खुद बिछा कर लेट गए ।
अस्पताल में आठ दिन रही ।कुछ लोगो से दोस्ती हो गई ।सब कोरोना के रोगी । हमने नया नाम दिया जैसे गुरु भाई ,धर्म भाई ,वैसे ही कैरोना भाई । सबकी अलग अलग कहानी । कुछ लोग ठीक होकर जाते थे तो हम भी उम्मीद करते कि हम भी ऐसे ही घर चले जायेंगे एक दिन । कुछ से अच्छी दोस्ती हुई ।मोबाइल नम्बरों का आदान प्रदान हुआ ।हम सब ने स्वस्थ होकर घर पहुंचने पर एक ग्रुप बनाया जिसका नाम टनाटन ग्रुप रखा ।अभी भी बात होती है सबसे ।
मेरी बीमारी को लेकर सभी चिंतित थे ।परिवार ,परिचित ,मित्र सब फिक्र कर रहे ।फोन कर रहे ।मुझ्से बात करते नहीं बन रहा था तो किसी का फोन नही उठाया ।सब घर मे फोन करते ।बच्चे भी जवाब देते धैर्य से ।
मोबाइल ही एक सहारा था पर उसमे भी मन नही होता था कुछ देखने को । सभी के मैसेज भी आते रहते ।कभी कुछ लिख देती या इमोजी भेज देती ।
साहित्य समूह के मेरे मित्र भी चिंतित । उन्होंने मुझे पत्र लिखना शुरू किया ….साहित्य की बात समूह खोला तो उसमे सबकी लिखी चिट्ठियां मिलने लगी । कुछ चिठ्ठियाँ अलग भी मिली। एक ,दो या तीन नहीं पूरी 26 चिठ्ठियाँ ….
दुआओं के अंबार लगे थे ..जिसमें मधु डुबकियां ले रही थी । होठों पर मुस्कान पर आँखे भरी हुई थी ।जया शर्मा केतकी, अर्चना नायडू , मौसमी परिहार ,प्रतिभा श्रीवास्तव , प्रवेश सोनी , खुदैजा खान , पद्मा शर्मा ,ब्रज श्रीवास्तव , वनिता बाजपेयी , , श्रीकांत , दिनेश मिश्र , अविनाश तिवारी एवं अन्य मित्रों के प्रेम एवं स्नेह से लबालब पत्रों ने मुझे उत्साह से भर दिया ।मेरा सारा अवसाद खत्म हो गया । एक हास्य कवि महेश दूबे की चिट्ठी ने तो खूब हँसाया । सभी का दिल से बार बार आभार । प्रेम अभी बहुत है दुनिया में ।भरोसा हुआ मन में । ये समय भी काट लेगें यूँ ही साथ चलते – चलते ।
इस तरह हँसते -रोते , अवसाद -आनन्द लिए हुए जीवन का ये समय भी निकल ही गया ।
कहने को तो बहुत है पर बस इतना ही …
अब इंतज़ार है सब कुछ सामान्य होने का ।फिर से मिलने जुलने गले लगने का ….
शुभकामनाएँ ….सभी के लिए ।
|| मधु सक्सेना ||