leechiभारत में सबसे ज्यादा लीची का उत्पादन बिहार प्रदेश में होता है और बिहार में सबसे ज्यादा पूर्वी चम्पारण जिला के मेहसी परिक्षेत्र में होता है. कभी केन, कैश और क्राइम के लिए पहचाने जाने वाले चम्पारण में चीनी मिलों के बन्द होने के बाद गन्ना का उत्पादन नाम मात्र रह गया है. केन (गन्ना) को एकमात्र कैश (नकदी) फसल माना जाता था. गन्ना के फसल से इतना नकद प्राप्त होता था कि केन और कैश जिले की पहचान बन गए थे.

कालान्तर में चीनी मिल बन्द होते चले गए और किसानों की आर्थिक स्थिति बदतर होती चली गई. सरकारें बदलती रहीं, लेकिन किसानों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ. गन्ना के फसल की बदहाली के बाद एक लीची का ही फसल है जो आज कैश क्रॉप के रूप में देखा जाता है. राजनैतिक और प्रशासनिक उदासीनता के कारण लीची से उत्पादकों को इसका पूरा लाभ नहीं मिल पाता है.

मेहसी परिक्षेत्र का अधिकतर भाग केंद्रीय कृषिमंत्री राधामोहन सिंह के संसदीय क्षेत्र एवं कुछ भाग शिवहर सांसद रमा देवी के संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है. यहां व्यापक पैमाने पर शाही लीची के साथ चायना लीची का उत्पादन होता है. पिछले दस साल से उत्कृष्ट लीची उत्पादन एवं उत्पादकों के विकास के लिए स्थानीय स्तर पर लीचीपुरम उत्सव का आयोजन किया जाता है.

किसानों के सहयोग से आयोजित होनेवाले इस कार्यक्रम के जरिए लीचीपुरम उत्सव समिति केंद्र एवं राज्य सरकार का ध्यान अपनी ओर खींचने का प्रयास करती है, ताकि उच्च गुणवत्ता की लीची का व्यापार देश से लेकर विदेशी बाजारों तक हो सके और युवाओं को भी रोजगार मिल सके.

शहद उत्पादन की भरपूर क्षमता

इसी प्रकार वर्तमान में करीब 5 हजार टन शहद का उत्पादन होता है, जिसे 5 लाख टन तक ले जाया जा सकता है. लीची के बाग के अनुपात में मधुमक्खियों की संख्या कम होने के कारण पूरी तरह मंजर से निकलनेवाली शहद का दोहन नहीं हो पाता और शहद जमीन पर टपक कर बर्बाद हो जाता है.

मधुमक्खियां कम होने के कारण लीची के मंजरों का दशमलव एक प्रतिशत से भी कम परागण हो पाता है. यही कारण है कि हजार मंजर से ज्यादा में पांच से दस फल लगते हैं. अगर शहद उत्पादन पर ध्यान दिया गया होता तो किसानों की आर्थिक समृद्धि ही नहीं बढ़ती, बल्कि उत्पादन भी सौ गुना ज्यादा होता, जिससे देश-विदेश की जरूरतों को पूरा किया जा सकता था.

लीची का शहद स्वाद एवं गुणवत्ता के अलावा खनिज पदार्थों, मिनरल व विटामिन से भी भरपूर होता है. इसे बढ़ावा दिया जाए तो हजारों लोगों को रोजगार मिल सकता है. यहां बाबा रामदेव की पतंजलि जैसी या अन्य समकक्ष कोई बड़ी कंपनी की इकाई लगे तो इस परिक्षेत्र के हजारों किसानों एवं युवाओं की किस्मत बदलते देर नहीं लगेगी.

पारंपरिक तरीक़े से कर रहे उत्पादन

यहां के लीची उत्पादकों को बेहतर उत्पादन के लिए नियमित प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है. प्रशिक्षण के अभाव में  किसान वैज्ञानिक तरीके की बजाय पारंपरिक तरीके से ही लीची का उत्पादन करते हैं. लीची का फल मौसम की मार से ज्यादा प्रभावित होता है. कई बार ऐसा होता है कि बारिश या तेज धूप की वजह से फसल पूरी तरह से बर्बाद हो जाती है.

यहां के किसान केंद्र एवं राज्य सरकार से प्रतिवर्ष लीची के फसल की बीमा कराने की मांग कर रहे हैं, लेकिन इस पर अब तक कोई प्रयास नहीं हुआ है. लीची किसानों को मौसम की मार का डर सताता रहता है. प्राकृतिक प्रकोप से बचाव के लिए निरंतर शोध की आवश्यकता है. लीची के फलों का एक बार ही एक साथ पकना एक बड़ी समस्या है. पेड़ से तोड़ते ही इसे मंडी तक पहुंचाने की हड़बड़ी रहती है, क्योंकि इसका रंग तेजी से खराब होने लगता है और यह अनाकर्षक दिखने लगती है. इस क्षेत्र में भी शोध की आवश्यकता है.

लीची ही इस क्षेत्र के किसानों के लिए एक प्रमुख नकदी फसल है, जिसका व्यापार करीब सौ करोड़ के पास है. इसके विकास की काफी संभावनाएं हैं. अगर कोई फूड प्रोसेसिंग कंपनी यहां व्यापार शुरू करे तो उत्पादन एवं व्यापार 5 हजार करोड़ के आंकड़े तक पहुंच सकता है. चीनी मिलों के बंद होने के बाद हजारों किसानों की आर्थिक आमदनी टूट गई थी. लीची ने उनके बीच एक उम्मीद जगाई है, जिससे किसान समृद्ध हो सकते हैं.

लीचीपुरम उत्सव से जगी उम्मीद

लीचीपुरम उत्सव का आयोजन प्रतिवर्ष लीची के फल के पकने पर किया जाता है. इस वर्ष यह आयोजन 27 से 29 मई तक होगा. आयोजन के पूर्व किसानों को लीची उत्पादन के लिए जागरूक करने के लिए समिति अभियान चलाती है. किसान इस उत्सव का आयोजन आपसी सहयोग से करते हैं.

लीची के मौसम के दौरान इंसेफ्लाइटिस नामक जानलेवा बीमारी का कहर बच्चों पर होता था. पिछले साल समिति द्वारा सघन जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाने के कारण एक भी मौत दर्ज नहीं की गई.

लीचीपुरम उत्सव समिति एक गैर राजनीतिक मंच है. 4 जून 2008 को इसके प्रथम कार्यक्रम का उद्घाटन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया था. इसके बाद यहां बिहार सरकार के मंत्रीगण अपनी गौरवमयी उपस्थिति से मंच को सुशोभित करते रहे हैं. केंद्रीय कृषिमंत्री राधामोहन सिंह ने यहां लीची पौध अनुसंधान केंद्र की स्थापना की स्वीकृति दी है, जो अभी तक मूर्त रूप नहीं ले पाई है.

किसानों के विकास की असीम संभावनाएं

कहते हैं चीन में लीची ने जन्म लिया, लेकिन आज वह उत्पादन के मामले में भारत से काफी पीछे है. परंतु लीची के उत्पादों के कारण उसका विश्व बाजार पर 40 प्रतिशत कब्जा है, जबकि उसका उत्पादन महज 15 से 17 प्रतिशत है. चीन में शाही लीची का उत्पादन नहीं होता, जो पूरी दुनिया में अपने लाजवाब स्वाद एवं गुणवत्ता के लिए जानी जाती है. चीनी लीची भारतीय शाही लीची के सामने स्वाद एवं गुणवत्ता में कहीं नहीं टिकती. भारत में लीची की पैदावार विश्व का 37 प्रतिशत है, लेकिन निर्यात महज 4 प्रतिशत है. इसका मुख्य कारण लीची के उत्पादन पर ध्यान नहीं दिया जाना है.

चीन लीची के छिलके, फल एवं गुठली का प्रयोग कर उसका उत्पाद बनाता है, जबकि भारत में इसके गूदा का ही प्रयोग किया जाता है. छिलका एवं बीज को फेंक दिया जाता है. चीन लीची के छिलके से दवा एवं उसके अवशिष्ट से सनमाइका तैयार करता है, जो काफी आकर्षक होता है. उसके गूदा से सीधे खाए जानेवाले उत्पाद बनाता है.

बीज से चीन दवा एवं महंगा सौंदर्य प्रसाधन बनाता है. चीन में लीची के फलों का बीमा सरकार द्वारा किया जाता है. इसका सीधा लाभ किसानों को मिलता है. इसके अलावा किसानों को वहां रजिस्टर्ड किया जाता है. चीन लीची के फलों से उम्दा किस्म का अल्कोहल बनाकर शराब के लिए निर्यात करता है और उससे उसे करोड़ों डॉलर की आमदनी होती है.

लीची के बागों में औषधीय पौधे तैयार किए

जा सकते हैं, जो छाया में उगनेवाले होते हैं. लीची उत्पादक किसानों को इसका सीधा लाभ मिल सकता है. अगर सरकार की ओर से प्रोत्साहन मिले तो मेहसी परिक्षेत्र सहित पूर्वी चंपारण जिले में 5 हजार करोड़ के लीची का उत्पादन हो सकता है. यहां राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के माध्यम से किसानों को नवीनतम जानकारी व सहायता उपलब्ध कराई जानी चाहिए. किसानों के उत्पाद की सीधी बिक्री के लिए सरकारी स्तर पर खरीद केंद्र की व्यवस्था करा कर इस क्षेत्र में आर्थिक समृद्धि लाई जा सकती है.

लीचीपुरम देश का एकमात्र फल महोत्सव है, जो पिछले 10 साल से नियमित रूप से किसानों के सहयोग के माध्यम से नियत समय पर (लीची के फल के पकने पर) लगातार आयोजित किया जाता रहा है. अब इस आयोजन को सरकार के स्तर से कराने पर इस क्षेत्र में लीची सहित अन्य फलों की बागवानी की पहल की जा सकती है. लीचीपुरम महोत्सव समिति ने प्रधानमंत्री से गुहार लगाई है कि वे सरकारी स्तर पर लीची के फसल को प्रोत्साहित कर पूरे क्षेत्र के किसानों की जिन्दगी में मिठास घोलने का प्रयास करें.

इतिहास में मेहसी

मेहसी एक ऐसी जगह है, जहां से अकबर के नौ-रत्नों में से एक टोडरमल ने भूमि की पैमाइश शुरू की थी. मेहसी मुगलकाल में कमिश्नरी का दर्जा रखती थी. आज भी यहां  उसके कुछ अवशेष मौजूद हैं. यहां अकबर के शासन के पूर्व के एक सूफी संत दाता मिर्जा हलीम साहब का मजार है, जहां प्रतिवर्ष बकरीद पर उर्स मनाया जाता है. यहां के नागरिक पुस्तकालय में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की पुस्तकालय के बारे में हस्तलिखित टिप्पणी मौजूद है, जो इस बात का प्रमाण है कि यहां वे आए थे.

मेहसी में 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में विश्व प्रसिद्ध सीप बटन उद्योग था. यहां के बने हुए बटन यूरोपीय देशों को निर्यात किए जाते थे. इंग्लैंड की महारानी की कोट में मेहसी की सीप के बटन टंकने की बात यहां रहनेवाले अंग्रेज अधिकारी भी कहते थे. सीप बटन उद्योग के बारे में विद्यालयों के पाठ्यक्रम में भी पढ़ाया जाता था.

मेहसी का सीप बटन उद्योग हजारों लोगों को रोजगार देता था, लेकिन जबसे चीन में स्वचालित मशीनों से सीप की कटाई आरंभ हुई है और प्लास्टिक के बटनों की मांग बढ़ी है सीप बटन उद्योग दम तोड़ चुका है. इसका कारण है कि इस उद्योग को  अत्याधुनिक तकनीक उपलब्ध नहीं कराई जा सकी है.

विश्व का सबसे ऊंचा और पुराना केसरिया बौद्ध स्तूप यहां से 25 किलोमीटर की दूरी पर है, जहां प्रतिवर्ष हजारों विदेशी सैलानी आते हैं. विश्व का सबसे बड़ा मंदिर कल्याणपुर के कैथवलिया में बन रहा है, जो मेहसी से 20 किलोमीटर की दूरी पर है. मेहसी रेल एवं राजमार्ग से जुड़ा हुआ है. ईस्ट-वेस्ट कोरीडोर यहीं से गुजरी है.

एक नज़र लीची पैदावार पर

  • पूर्वी चंपारण के 17 प्रखंडों के 15 हजार हेक्टेयर भूखंड पर लीची की पैदावार होती है. इसमें मेहसी, तेतरिया, मधुबन, पताही, पकड़ीदयाल, मोतिहारी, पिपरा कोठी, कोटवा, कल्याणपुर, केसरिया, संग्रामपुर, हरसिद्धि, सुगौली, बंजरिया, चकिया एवं तुरकौलिया का नाम शामिल है.
  • इसमें मेहसी, चकिया, तेतरिया, कल्याणपुर, केसरिया, कोटवा, पिपरा कोठी, संग्रामपुर, हरसिद्धि, मोतिहारी एवं तुरकौलिया प्रखंड केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह के संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है, जहां लीची का उत्पादन होता है. जबकि मधुबन, पताही, पकड़ीदयाल प्रखंड शिवहर सांसद रमा देवी के संसदीय क्षेत्र में आता है.
  • इसके अलावा मुजफ्फरपुर जिले का मोतीपुर एवं साहेबगंज प्रखंड का अधिकतर हिस्सा इसी परिक्षेत्र में आता है. दो डिस्मिल जगह में लीची का एक पेड़ होता है, ऐसे में 15 हजार हेक्टेयर में करीब 15 लाख लीची के पेड़ लगे हुए हैं. औसतन एक पेड़ से 60 किलोग्राम लीची का उत्पादन होता है, मतलब पूर्वी चंपारण जिले में 3.6 लाख टन लीची का उत्पादन हो रहा है. यहां शाही एवं चायना लीची का प्रमुखता से उत्पादन किया जा रहा है. इसके उत्पादक क्षेत्र में लगातार वृद्धि हो रही है. मेहसी की शाही लीची का जवाब पूरे देश में नहीं है. इस स्वाद एवं गुणवत्ता का फल देश के किसी भी क्षेत्र में नहीं मिलता है.
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