नीतीश सरकार ने नए साल पर बिहार को शराबबंदी का तोहफा दिया है. सूबे में अगले वित्तीय वर्ष के पहले दिन यानी एक अप्रैल, 2016 से देसी और मसालेदार शराब की बिक्री बंद हो जाएगी, लेकिन विदेशी शराब और बीयर की बिक्री बदस्तूर जारी रहेगी. हालांकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी तीसरी पारी की शुरुआत के तुरंत बाद सूबे में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा की थी, लेकिन यह सीमित शराबबंदी में तब्दील हो गई. राज्य की नई शराब नीति मंत्रि परिषद ने मंजूर कर ली है और उसे लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी गई है.
नई उत्पाद नीति (शराब) के तहत राज्य में देसी और मसालेदार शराब की बिक्री पर एक अप्रैल, 2016 से पूर्ण प्रतिबंध लग जाएगा, लेकिन सूबे के शहरी क्षेत्रों में विदेशी शराब और बीयर उपलब्ध रहेगी. इस नीति के तहत नगर निगम और नगर परिषद के क्षेत्रों को शहरी क्षेत्र माना गया है. नीतीश कुमार ने राज्य की जनता को भरोसा दिलाया है कि उनकी सरकार पूर्ण नशाबंदी लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है.
महा-गठबंधन सरकार छह महीने बाद इस सीमित शराबबंदी की समीक्षा करेगी और उसके बाद सितंबर से सूबे में शराबबंदी का विस्तार किया जाएगा. उम्मीद है कि उसके बाद विदेशी शराब और बीयर की बिक्री पर भी रोक लग जाएगी. शराबबंदी लागू करने की ज़िम्मेदारी ज़िलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को सौंपी गई है. नई उत्पाद नीति लागू करने के लिए वे जवाबदेह होंगे और नियमों का पालन कराना उनकी ज़िम्मेदारी होगी. शराबबंदी की मॉनिटरिंग को लेकर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य स्तर पर एक समिति गठित की जाएगी, जिसमें पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) भी शामिल होंगे.
नई उत्पाद नीति के तहत भारत में निर्मित विदेशी शराब शहरी क्षेत्रों में मिलेगी. यह बात दीगर है कि इन दुकानों की संख्या काफी कम हो जाएगी. सूबे में शराब बेचने का काम अब स़िर्फ बिहार राज्य बिवरेज कॉरपोरेशन (बीएसबीसी) के ज़िम्मे रहेगा. निगम अभी तक शराब का थोक कारोबार करता रहा है. राज्य की क़रीब साढ़े पांच हज़ार लाइसेंसी दुकानों को शराब की आपूर्त्ति उसका काम रहा है. नई नीति के तहत अब वह खुद शराब की दुकानें संचालित करेगा. फिलहाल बिहार में शराब की लाइसेंसी दुकानों की संख्या 5,467 है.
ग्रामीण बिहार में सभी तरह की शराब की बिक्री प्रतिबंधित रहेगी, लेकिन शहरों में विदेशी शराब की बिक्री बदस्तूर जारी रहेगी. बीएसबीसी को पूरे राज्य में 656 दुकानें खोलनी हैं. इस योजना के तहत सबसे अधिक 123 दुकानें राजधानी पटना और अन्य स्थानों पर खुलनी हैं, जबकि सबसे कम तीन दुकानें अरवल में. मुजफ्फरपुर में 41, दरभंगा में 31 एवं रोहतास में तीस दुकानें खोली जाएंगी, लेकिन बांका एवं शिवहर में शराब की कोई दुकान नहीं खुलेगी. इन ज़िलों में नगर परिषद नहीं है और दोनों ज़िला मुख्यालय नगर पंचायत ही हैं. जगह की व्यवस्था ज़िला प्रशासन को करनी है.
प्रत्येक दुकान के लिए दो से तीन सौ वर्गफीट की जगह चाहिए. उनमें कंप्यूटर, जाली नोटों की पहचान करने एवं रुपये गिनने वाली मशीनें और फर्नीचर आदि सरकार की ओर से उपलब्ध कराए जाएंगे. दुकानों के लिए कर्मचारी ठेके पर रखे जाएंगे. इन दुकानों में पीने की अनुमति नहीं होगी. सरकार ने तय किया है कि रेस्तरां और बार को विदेशी शराब परोसने के लाइसेंस जारी किए जाएंगे, लेकिन स़िर्फ नगर निगम एवं नगर परिषद क्षेत्र में. हालांकि, अभी तक यह तय नहीं है कि मद्यपों (शराब का सेवन करने वालों) को शराब किसी परमिट या सामान्य तौर पर ही मिलेगी और कितने दिनों पर कितनी मिलेगी. आबकारी विभाग के सूत्रों पर भरोसा करें, तो सरकार ऐसी कोई बंदिश नहीं लगाने जा रही है.
नई नीति के तहत सुधारात्मक क़दम भी उठाए जा रहे हैं. राज्य के मद्यपों की शराब की लत छुड़ाने के ख्याल से हर सदर अस्पताल में नशा मुक्ति वार्ड शुरू करने का निर्णय लिया गया है, जहां ओपीडी और इंडोर इलाज की व्यवस्था रहेगी. एक पूरा तंत्र विकसित किया जाएगा, जो ज़िलाधिकारी के नियंत्रण में काम करेगा. यही नहीं, विकास आयुक्त की अध्यक्षता में एक कमेटी भी बनाई जा रही है, जो इसके लिए वित्तीय एवं प्रशासनिक निर्णय लेगी.
मुख्यमंत्री ने एक और घोषणा की है, नई शराब नीति से बेरा़ेजगार होने वाले लोगों के आर्थिक पुनर्वास की. उन्होंने शराबबंदी से प्रभावित लोगों को वैकल्पिक रोज़गार देने का एक प्रस्ताव पेश किया है. उनका कहना है कि बिहार के प्रतिष्ठित दुग्ध उत्पाद ब्रांड सुधा की मांग पूरी करने के लिए जितनी दुकानों की ज़रूरत है, उसके मुक़ाबले बहुत कम पॉर्लर हैं, जिसके चलते कॉम्फेड को काफी परेशानी हो रही है.
शराब की क़रीब साढ़े पांच हज़ार दुकानों पर ताले लटकने से उनसे संबद्ध लोग बेरा़ेजगार हो जाएंगे. किसी सरकारी नीति के चलते बेरा़ेजगार हुए लोगों के पुनर्वास पर विचार करने की नैतिक ज़िम्मेदारी सरकार की बनती है. ऐसी दुकानों से संबद्ध लोग यदि चाहें, तो उन्हें सुधा पॉर्लर आवंटित करने पर विचार किया जा सकता है.
मुख्यमंत्री की पूर्ण नशाबंदी की घोषणा सीमित शराबबंदी में तब्दील हो गई. इसके और जो भी कारण रहे हों, लेकिन सबसे बड़ा कारण राज्य का राजस्व रहा है. हालांकि, नीतीश कुमार ने बीते 26 नवंबर को पूर्ण शराबबंदी की घोषणा करते हुए कहा था कि सूबे की सामाजिक सेहत दुरुस्त रखने के लिए सरकार कोई भी परेशानी झेल लेगी. लेकिन बाद में लगा कि क़रीब साढ़े पांच हज़ार करोड़ रुपये के राजस्व के ऩुकसान की भरपाई कठिन है.
बिहार की मौजूदा उत्पाद नीति वर्ष 2006 में नीतीश राज (एनडीए) की पहली पारी में लागू की गई थी. उस समय सूबे में शराब से क़रीब 295 करोड़ रुपये की आमदनी थी. नीति बदलने के बाद राज्य में शराब कारोबार में उछाल आया. शराब की दुकानों के लिए उदारता से लाइसेंस दिए जाने लगे और राजस्व भी बढ़ा. फिलहाल इससे वैट सहित पांच-साढ़े पांच हज़ार करोड़ रुपये की आय का अनुमान है.
नीतीश कुमार के सात निश्चय लागू करने के लिए प्रतिवर्ष इतनी ही रकम अगले पांच वर्षों तक चाहिए. सरकार ने हिसाब लगाकर देखा, तो पाया कि देसी और मसालेदार शराब से उत्पाद शुल्क और वैट से क़रीब दो हज़ार करोड़ रुपये की आमदनी होती है, जबकि विदेशी शराब और बीयर से क़रीब तीन हज़ार करोड़ रुपये की. फिर सूबे के होटल व्यवसायियों एवं नौकरशाहों की भी राय यही रही. सबसे बड़ी बात यह कि उनके राजनीतिक बड़े-बुजुर्गों ने भी यही राय दी और राजद भी इसी पक्ष में रहा. सो, सरकार को यही मु़फीद लगा कि सांप भी मर रहा है और लाठी भी बच रही है.
शराबबंदी लागू होगी, पर ज़रूरी है कि यह प्रभावशाली हो. आ़खिर ऐसा होगा कैसे? यह एक ऐसा यक्ष प्रश्न है, जिसका उत्तर किसी के पास नहीं है. मुख्यमंत्री ने कहा कि इसे शत प्रतिशत प्रभावी बनाने के लिए महिला स्वयं सहायता समूहों, अन्य महिला संगठनों, आंगनबाड़ी सेविकाओं-सहायिकाओं एवं आशा कार्यकर्ताओं की मदद ली जाएगी. इसके अतिरिक्त पुलिस थानों का सहयोग लिया जाएगा. सरकार ने नई परिस्थितियों में उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग के प्रवर्तन तंत्र को अधिक मजबूत बनाने का फैसला लिया है.
इस विभाग का यह तंत्र फिलहाल मानव-बल संकट से जूझ रहा है. हालात से निपटने और मानव-बल की कमी दूर करने के लिए पुलिस विभाग से प्रतिनियुक्ति पर अधिकारियों एवं जवानों को बुलाकर इसमें तैनात किया जाएगा. यही नहीं, शराबबंदी को सफल बनाने की दिशा में बेहतर काम करने वाले अधिकारियों एवं जवानों को सम्मानित करने का भी फैसला लिया गया है. इसके साथ ही शराब के अवैध कारोबार पर भी नियंत्रण करना होगा, जो एक मुश्किल काम है.
शराबबंदी लागू करने में थानों से सहयोग की बात सरकार करती है, लेकिन यह भी सच है कि राज्य के ग्रामीण इलाकों में शराब का अवैध कारोबार धड़ल्ले से जारी है. राज्य के पूर्व मंत्री एवं बुजुर्ग समाजवादी हिंदकेशरी यादव पर मुजफ्फरपुर ज़िला समाहरणालय परिसर में हथियारबंद शराब माफिया द्वारा जानलेवा हमला और उस सिलसिले में प्रशासन, पुलिस एवं राजनेताओं की भूमिका भी सवालों के घेरे में है. बहरहाल, बेहतर सामाजिक सेहत और शराब के कारण बर्बाद होते परिवारों को बचाकर उनमें जीवन-रस भरने, उनके बच्चों के बेहतर भविष्य के ख्याल से सरकार के इस साहसिक क़दम का स्वागत जरूरी है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि सरकार ग़रीब महिलाओं की मांग पर सूबे में शराबबंदी लागू कर रही है. पिछले एक दशक में बिहार में आधी आबादी एक सुनिश्चित वोट बैंक बनकर उभरी है. नीतीश कुमार ने महिलाओं के राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण के उपायों और नारी शिक्षा के कार्यक्रमों के ज़रिये इस वोट बैंक का किसी अन्य राजनेता से बेहतर पोषण किया है.
लिहाजा इस वोट बैंक के वह चहेते रहे हैं. यह बात पिछले कई चुनावों के साथ-साथ गत विधानसभा चुनाव में भी साबित हो चुकी है. धर्म एवं जाति जैसी नकारात्मक राजनीति से अलग काम और कार्यक्रम के ज़रिये विशाल वोट बैंक जुटाना एक बड़ी बात है और कोई भी राजनेता इसके लिए कुछ तो करेगा ही.
नीतीश कुमार यही कर रहे हैं. यह उनकी मौजूदा राजनीतिक ज़रूरत है. उनके सामने अब 2019 का संसदीय चुनाव है. बिहार के रणक्षेत्र में विजयी होने के बाद अब वह
राष्ट्रीय राजनीति में छाना चाहते हैं. पटना में महा-गठबंधन सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में देश के ग़ैर भाजपाई राजनीतिज्ञों की मौजूदगी और दिल्ली में जद (यू) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के राजनीतिक-आर्थिक प्रस्तावों एवं उन पर हुए विचार-विमर्श से यह बात सा़फ ज़ाहिर है.