राममंदिर को लेकर जितनी बयानबाजी चल रही है, चुनावी मौसम के साथ बढती ही जाएगी. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि जिस तरह अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई थी, वैसी ही घटना पाकिस्तान में भी हुई थी. कमाल की बात ये है कि मुस्लिम देश होने के बाद भी आज भी वहां गुरूद्वारा है.
लाहौर लाहौर में वो गुरुद्वारा यथावत विद्यमान है, जिसे मस्जिद को गिराकर सिखों ने बनाया था. पाकिस्तान में इस्लामी शासन के बावजूद उसे अभी तक बदला नहीं जा सका है. भारत और पाकिस्तान में वही ज़ाब्ता-ए-दीवानी लागू है, जिसे अंग्रेजों ने 1864 में लागू किया था. देश विभाजन के बाद दोनों ने इसे स्वीकार कर इसमें थोड़े से परिवर्तन किए थे.
अंग्रेजों के काल के दीवानी मामलों में 12 वर्षों की वह सीमा भी लागू है, जो कब्जेदार को स्वामित्व का अधिकार प्रदान करती है. इसलिए इसे इस प्रसंग से अलग नहीं किया जा सकता.
बाबरी मस्जिद के ध्वंस होने के बाद 7 जनवरी 1993 को अयोध्या विशिष्ट क्षेत्र भूमि अधिग्रहण अध्यादेश आया था. बाद में संसद ने इसे कानून के रूप में परिवर्तित कर दिया. इसके बाद, 24 अक्टूबर 1994 को संविधान पीठ के पांच सदस्य इस स्थल पर राम मंदिर, मस्जिद, पुस्तकालय, वाचनालय, संग्रहालय और तीर्थयात्रियों की सुविधा वाले स्थानों का निर्माण करने के विचार से सहमत हुए.
संविधान पीठ ने इस अध्यादेश को वैध माना है और मुस्लिमों का यह कथन कि मस्जिद धार्मिक स्थल है, जिसका अधिग्रहण नहीं हो सकता, अस्वीकार कर दिया है. लेकिन संसद के कानून के बावजूद, इसके प्रावधानों के आधार पर निर्धारण नहीं हो पाया. संविधान पीठ द्वारा इस मामले में चल रहे मुकदमे को समाप्त करने के लिए की गई व्यवस्था को न्यायालय ने संविधानेत्तर मान लिया है, क्योंकि इसमें न्यायिक परिणति की कोई वैकल्पिक व्यवस्था ही नहीं की गई है.
लेकिन विहिप के लोग निरंतर यह प्रचार करते हैं कि अयोध्या में मस्जिद नहीं बनने देंगे. अब सवाल उठता है कि क्या यह देश और संविधान उनकी इच्छाओं के अनुसार चलेगा या निर्धारित प्राविधानों के हिसाब से? इस विचाराधीन अपील पर तीन न्यायधीशों की पीठ सुनवाई करेगी, जो संविधान पीठ के किसी निर्णय को समाप्त करने में सक्षम नहीं है.
अयोध्या में सरकारी अभिलेखों के अनुसार, 26 मस्जिद हैं जिनमें आठ का ही प्रयोग नमाज के लिए होता है. अब सवाल उठेगा कि बाकी मस्जिदों का क्या होगा? न्यायिक परिधि की समीक्षा के परिणाम क्या होगें?