पूर्व सांसद एवं चौथी दुनियां अखबार के वरिष्ठ संपादक श्री संतोष भारतीय जी, द्वारा यू-टियूब के (लाउड इंडिया चैनल) पर किये प्रसारण में जो उल्लेख किया है, कि..Atom-Bomb कि पहल अमरीका ही करेगा..संतोष जी के कहे वाक्यों पर सहमति जताते हुए, मेरी टिपण्णी का सार 👇
श्री संतोष भारतीय साहब, नमस्कार
आपके प्रसारण कार्येक्रम में आपने जो चिंता एवं पल-पल बिगड़ती, बदलती रूस- यूक्रेन तथा अमरीका के सम्बन्ध में रखी है 100% सहमत हूँ। पिछली एक टिपण्णी में जो दिनेश वोहरा साहब के प्रसारण में मैंने की थी बात उसी दिशा की ही ओर संकेत भी दे रही है। रूस एक बहुत बड़ा मुल्क है जिसका 80% क्षेत्रीय हिस्सा एशिया महादीप में है लेकिन राजधानी मास्को जो रूस के उस 20% हिस्से में, और वो हिस्सा यूरोपीय क्षेत्र में आ जाता है अतः रूस यूरोपीय देश कहलाता है। चूँकि रूस एक शक्तिशाली देश रहा है और प्रथम तथा द्वितीय विश्वयुद्ध में भी अपना परिचय दे चुका है अतः यही कारण है कि अमरीका, रूस को अपना प्रतिद्वेंद्वी समझता आ रहा है। नाटो का विस्तार और यूरोपीय देशों को नाटो का सदस्य बनाना, यूक्रेन देश जो यूरोपीय हिस्सा है उसको और उसके देशवासियों को आधुनिक भौतिक, व्यापारिक, सैन्य संसाधन और भी बहुत से महत्वपूर्ण बुनयादी बिंदुओं से आकर्षित करने में सफल रहा है। जिसपर रूस की नज़र बराबर लगी रही और रूस का चिंता का सबब भी रहा। यही कारण था कि रूस और यूक्रेन में पिछले कई वर्षों से विवाद बना हुआ था और यूक्रेन में रूस के खिलाफ एक अलगाववादी संगठन भी तैयार हो गया था और यूक्रेनी जनता भी अमरीका को पसंद करने लगी। जेलंस्की से पूर्व रूस समर्थित राष्ट्रपति को तख्ता पलटने के बाद रूस की शरण लेनी पड़ी..जब जेलंस्की द्वारा नाटो का सदस्य बनने हेतू यूक्रेन की संसद में प्रस्ताव पास हुआ तो रूस के सब्र का बाँध टूट गया। यही सवाल किसी भी मुल्क के लिए खड़ा होता है कि कोई दूसरी शक्ति उसके मुल्क के पास कैसे अपने सैनिक अड्डे बना ले ??? जबकि नाटो तो आज 30 मुल्को के सैन्य से सुसज्जित है। ऐसी स्थिति में रूस नाटो के मुक़ाबले की कौन सी कीमत चुकाता ???अमरीका जो चाह रहा था आज वही हो रहा है बल्कि यूँ समझा जाए रूस यूरोपीय षड्यंत्र में फ़स गया है। यूक्रेन द्वारा यूरोपीय संघ का सदस्य बनने के लिए कल ही जेलंस्की ने पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए है। जाहिर है उसे 3 वर्षों की अस्थाई सदस्य्ता देकर नाटो का सदस्य बना लिया जाए और नाटो रूस के खिलाफ यूक्रेन में आ जाए जिसकी संभावनाएं प्रबल हो चुकी है। इन दिनों पुतिन को दुनियां के आगे खलनायक साबित कर ही दिया गया है तो जाहिर है अमरीका अपनी और से आपके कहे अनुसार कोई अपना दांव चल सकता है। लेकिन चिंता का विषय ये है कि, पुतिन ने कल अपने इरादे सार्वजनिक कर दिए है कि जब दुनियां में रूस ही नहीं रहेगा तो दुनियां की क्या जरुरत है ??? और रूस अपने वर्चस्व के लिए किसी भी हद तक जा सकता है यदि ऐसी स्थिति बन गई तो चीन को अपने अस्तित्व को बचाने के लिए आगे बढ़ना होगा। तब एक महासनकी मुल्क जो शायद ऐसी ही स्थिति के इंतज़ार में बैठा है नार्थ कोरिया वह भी अपनी नापाक चाल चलेगा। तीसरे विश्वयुद्ध की आहट साफ़-साफ़ दिख रही है। शायद कोई देवीय चमत्कार हो जाए तो कहा नहीं जा सकता। संतोष सर मैंने अपने लिखित शब्दों से आपकी बात को आगे बढ़ाया है कोई त्रुटि हुई हो तो क्षमा कीजियेगा..!! 😊🙏
विशेष- में व्यक्तिगत रूप से इस अनहोनी का गुनहगार अमरीका और नाटो को मानता हूँ !
संजय कनौजिया