दरअसल यह पहला मौका नहीं है, जब चीफ जस्टिस दीपक मिश्र के ऊपर मनमाने तथा पक्षपातपूर्ण ढंग से काम करने के आरोप लगाए गए हैं. इसके पूर्व 12 जनवरी को भी जस्टिस चेल्मेश्वर की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट के 3 और वरिष्ठ जजों ने प्रेसवार्ता कर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्र पर कई गंभीर आरोप जड़े थे.
आज़ादी के बाद देश की न्यायपालिका शायद पहली बार विश्वसनीयता के गंभीर संकट के दौर से गुज़र रही है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्र के खिलाफ कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल महाभियोग लाने की तैयारी कर रहे हैं. जस्टिस दीपक मिश्र पर आरोप है कि वे अपने साथियों को विश्वास में लिए बगैर मनमाने तरीके से सरकार और कार्यपालिका के दबाव में कार्य कर रहे हैं. पिछले 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ जज जे. चेलमेश्वर ने एक और चिट्ठी-बम फोड़ा. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्र को लिखे अपने 6 पन्नों के ख़त में जस्टिस चेलमेश्वर ने दीपक मिश्र की कार्यशैली, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और विश्वसनीयता को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. इस पत्र की प्रतिलिपि सर्वोच्च न्यायालय के सभी बाईस जजों को भी भेजी गई है.
जस्टिस चेल्मेश्वर की इस चिट्ठी में उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ में चर्चा कराए जाने की ज़रूरत बताई गई है. उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार कॉलेजियम के सुझावों को मनमाने तरीके से स्वीकार कर रही है. कॉलेजियम द्वारा सुझाए गए जिन नामों से सरकार को तनिक भी परहेज़ है उनकी नियुक्ति या तो रद्द की जा रही हैं या उन्हें दरकिनार कर छोड़ा जा रहा है. यह स्थिति देश की न्यायिक स्वतंत्रता के लिए बेहद खतरनाक है. न्यायिक नियुक्तियों में केंद्र सरकार की इस मनमानी को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्ण बेंच गठित की जानी चाहिए, जहां इस मामले की न्यायिक सुनवाई की जा सके. न्यायपालिका के सरकार से मधुर रिश्ते लोकतंत्र के लिए खतरा बन सकते हैं.
इसी तरह जस्टिस चेल्मेश्वर ने कर्नाटक हाई कोर्ट में एक जज की नियुक्ति को लेकर भी गंभीर आपत्ति जाहिर की है. श्री चेल्मेश्वर ने कहा है कि कर्नाटक के एक जिला न्यायाधीश पी. कृष्णभट्ट का नाम कॉलेजियम ने हाई-कोर्ट में नियुक्ति के लिए सुझाया था. लेकिन केंद्र सरकार इस नाम को लेकर अनिच्छुक थी, अतः इसे कुछ आरोपों के आधार पर लौटा दिया गया. कर्नाटक हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा गठित एक समिति ने कृष्णभट्ट के ऊपर लगे इन आरोपों की जांच की और इन्हें झूठा पाया. इसी जांच के नतीजों के आधार पर कॉलेजियम ने पी. कृष्णभट्ट का नाम फिर हाई कोर्ट के जज के लिए केंद्र सरकार को भेजा, लेकिन उनकी नियुक्ति नहीं की गई, जबकि कॉलेजियम द्वारा दोबारा संस्तुति किए गए नाम को स्वीकार करने के लिए केंद्र सरकार बाध्य होती है. दरअसल यह पहला मौका नहीं है, जब चीफ जस्टिस दीपक मिश्र के ऊपर मनमाने तथा पक्षपातपूर्ण ढंग से काम करने के आरोप लगाए गए हैं.
इसके पूर्व 12 जनवरी को भी जस्टिस चेल्मेश्वर की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट के 3 और वरिष्ठ जजों ने प्रेसवार्ता कर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्र पर कई गंभीर आरोप जड़े थे. तब इन जजों ने देश के सामने यह खुलासा किया था कि न्यायपालिका में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है. प्रेस कॉन्फ्रेंस के कुछ दिन पहले इन चारों जजों ने जस्टिस मिश्र के नाम एक चिट्ठी लिखी थी, जिसमें मुकदमों की रोस्टरिंग में मनमानी करने तथा दो जजों की सुप्रीम कोर्ट में की गई नियुक्ति को लेकर सवाल खड़े किए थे. जब श्री मिश्र ने इस पत्र का कोई संज्ञान नहीं लिया, तब चारों वरिष्ठ जजों को देश के सामने अपनी राय रखनी पड़ी. कॉलेजियम द्वारा संस्तुत इन दोनों जजों जस्टिस केएम जोसफ और इंदु मल्होत्रा को अभी तक नियुक्ति नहीं दी गई है.
इंदू मल्होत्रा सुप्रीम कोर्ट की पहली वरिष्ठ महिला वकील हैं, जिन्हें सीधे सुप्रीम कोर्ट में बतौर जज चुना गया है. कहा तो यह भी जा रहा है कि कॉलेजियम द्वारा सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के लिए भेजे गए जस्टिस केएम जोसेफ के नाम पर केंद्र सरकार बुरी तरह भन्नाई हुई है. ये वही जस्टिस जोसेफ हैं, जिन्होंने उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाए जाने सम्बन्धी केंद्र के फैसले को असंवैधानिक घोषित कर दिया था. जस्टिस जोसेफ तभी से केंद्र सरकार की आंखों की किरकिरी बने हुए हैं और शायद इसी वजह से सरकार जस्टिस जोसेफ के सुप्रीम कोर्ट पहुंचने की राह में जानबूझ कर रोड़े अटका रही है. देश के प्रधान न्यायाधीश की कार्यशैली पर पहली बार सार्वजनिक तौर पर सवाल उठ रहे हैं.
शायद यह भी देश के न्यायिक इतिहास में पहला अवसर है, जब इतने बड़े पैमाने पर कॉलेजियम के सुझावों को केंद्र सरकार द्वारा रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया है. कॉलेजियम ने कुल 77 जजों की नियुक्ति की संस्तुति की थी, इनमें से सिर्फ 34 को ही अब तक नियुक्त किया गया है, जबकि 43 के नाम ठंढे बस्ते में डाल दिए गए हैं. विपक्ष का आरोप है कि मुख्य न्यायाधीश न्यायपालिका के स्थापित मूल्यों और उच्च आदर्शों को दरकिनार कर केंद्र सरकार के इशारे पर काम कर रहे हैं. इससे पूरी न्यायिक व्यवस्था की गरिमा व निष्पक्षता प्रभावित हो रही है. लोगों का अदालतों से भरोसा उठ रहा है. ऐसे में जस्टिस मिश्र को न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर बने रहने का कोई हक नहीं है.
इस बीच पूर्व कानूनमंत्री शान्ति भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर ‘मास्टर ऑ़फ रोस्टर’ के तहत मामलों को किसी पीठ के समक्ष भेजने की नीति व प्रक्रिया तय किए जाने की मांग की है. याचिका में कहा गया है कि प्रधान न्यायाधीश मास्टर ऑ़फ रोस्टर के अधिकार का अनियंत्रित, स्वच्छन्द और मनमाना इस्तेमाल नहीं कर सकते. उन्हें इस मामले में वरिष्ठ जजों से सलाह लेनी चाहिए. याचिका में सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार के साथ-साथ मुख्य न्यायाधीश को भी प्रतिवादी बनाया गया है.
गत 12 जनवरी को चारों वरिष्ठ जजों- जे.चेल्मेश्वर, रंजन गोगोई, एमवी लोकुर और कुरियन जोसेफ ने भी मास्टर रोस्टर में मनमानी किए जाने को लेकर सवाल खड़े किए थे. बहरहाल, जस्टिस दीपक मिश्र के खिलाफ लाए जा रहे महाभियोग के प्रस्ताव पर कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, तृणमूल कांग्रेस समेत कई वामपंथी दलों के सांसदों ने हस्ताक्षर कर दिए हैं. महाभियोग के लिए लोकसभा के 100 या राज्यसभा के 50 सदस्यों के हस्ताक्षर जरूरी हैं. विपक्ष यह महाभियोग सदन में ला पाएगा या नहीं- कहा नहीं जा सकता, लेकिन महाभियोग की चर्चा ने देश के लोगों के मन में न्यायपालिका की सा़फ तस्वीर तो मैली कर ही दी है.
कुरियन जोसेफ की नई चिट्ठी से न्यायपालिका में भूचाल
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज जस्टिस कुरियन जोसेफ की नई चिट्ठी से पूरी न्यायपालिका में भूचाल आ गया है. 12 अप्रैल की सुबह प्रधान न्यायाधीश को लिखे अपने इस पत्र में जस्टिस कुरियन ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का अस्तित्व और उसकी स्वतंत्रता खतरे में हैं. जजों की नियुक्ति के लिए बने कॉलेजियम की सिफारिशों पर सरकार की चुप्पी के बारे में यदि हम अब भी कुछ नहीं कहते हैं तो देश हमें कभी माफ़ नहीं करेगा. जस्टिस कुरियन का यह पत्र सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के तुरन्त बाद सुर्ख़ियों में आया, जिसमें चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने मास्टर ऑफ़ रोस्टर के मामले में चीफ जस्टिस की सर्वोच्चता को असंदिग्ध बताया था.
बेंच ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के मुकदमों को किस बेंच के सामने भेजा जाए, यह मुख्य न्यायधीश का विशेषाधिकार है और इसे चुनौती नहीं दी जा सकती. कोर्ट ने यह फैसला वकील अशोक पाण्डेय की याचिका पर दिया था. जस्टिस कुरियन के साथी सुप्रीम कोर्ट के दूसरे वरिष्ठ जज जस्टिस जे चेल्मेश्वर ने यह कह कर और सनसनी फैला दी है कि अगर वे किसी विशेष मामलें में फैसला देंगे तो उसे अगले 24 घंटे में फिर पलट दिया जाएगा. आपको याद दिला दें कि पूर्व कानून मंत्री शांतिभूषण द्वारा दायर की गई एक जनहित याचिका का जस्टिस चेल्मेश्वर के सामने स्पेशल मेंशन किया गया था. शांतिभूषण ने यह याचिका मास्टर ऑफ़ रोस्टर के लिए स्पष्ट नीति, नियम और सिद्धांत बनाने के लिए दायर की है.