मेरी मृत्यु पर पढ़ने के लिए जो लिख रखा है,

उसे आज ही तुम पढ़ दो,

क्यूँ जीते-जी मेरी अच्छाईयों को छिपा रखा है,

उसे आज़ ही बयान कर दो।

हूं आज भी मैं वही जो तूने लिख रखा है

बस वक्त ने मुझे  तेरा दुश्मन बना रखा है

तूने तो बचपन से ही मुझको जान रखा है

क्यूँ! हैसियत का पर्दा दोस्ती पर डाल रखा है

मेरी चिता पर पढ़ने के लिए जो लिख रखा है,

उसे तुम आज ही पढ़ दो,

क्यूँ जीते-जी मेरी सच्चाईयों को छिपा रहा है,

उसे खुशबु ए गुलदस्ता करदो

उसे आज़ ही बयान कर दो।

                                                   

जी वेंकटेश

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