बिहार में विधानसभा चुनाव दरवाज़े पर दस्तक देने लगी है. नीतीश कुमार अलग अलग इलाक़ों में जाकर जनसमर्थन जुटा रहे हैं, तो कांग्रेस भी उत्तरप्रदेश की तर्ज पर, बिहार में संगठन मज़बूत करने और अपनी खोई हुई ज़मीन वापस जीतने की जुगत में लगी है. भारतीय जनता पार्टी और संघ ने भी अपनी पूरी ताक़त बिहार में झोंक दी है. इस बीच लालू यादव ने एक मास्टर स्ट्रोक खेला है. यादव और मुसलमानों को फिर से एकजुट करने की एक ज़ोरदार योजना लालू प्रसाद यादव ने बनाई है. यह चाल एक मिलिट्री कमांडर की चाल जैसी है, जो दुश्मन को शिक़स्त देने के लिए लड़ाई के मैदान से दूर एक दूसरा मोर्चा खोल देता है.
राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने विधानसभा चुनाव के लिए जो रणनीति तैयार की है, उसे सुनकर कई राजनीतिक विश्लेषक हैरान रह जाएंगे. लालू अपनी योजना में सफल होंगे या असफल, यह तो व़क्त ही बताएगा, फिलहाल इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि उनकी योजना ऐसी है जिसका असर केंद्र की राजनीति पर भी पड़ने वाला है. लालू प्रसाद यादव बिहार में कांग्रेस बेनक़ाब आंदोलन शुरू करने वाले हैं. यह आंदोलन अगले सप्ताह से बिहार के हर ज़िले और कस्बे में शुरू होने जा रहा है. राष्ट्रीय जनता दल के ज़िला स्तरीय पदाधिकारियों को संदेश दिया गया है कि नीतीश कुमार से निपटने से पहले कांग्रेस से निपटना ज़रूरी है. उन्हें समझाया गया है कि बिहार की गद्दी का रास्ता कांग्रेस के घर के सामने से होकर गुज़रता है.
कांग्रेस बेनक़ाब आंदोलन, एक बार फिर से मुसलमानों के समर्थन प्राप्त करने के लिए किया जा रहा है. इस दौरान लालू प्रसाद यादव अल्पसंख्यकों को यह बताएंगे कि बाबरी मस्जिद गिराने वालों का साथ स़िर्फ कांग्रेस ने दिया है. मुसलमानों को 1991 की कांग्रेस सरकार के करतूतों से वाक़ि़फ कराया जाएगा. दरअसल राष्ट्रीय जनता दल बिहार में सक्रिय मुस्लिम संगठनों का विश्वास जीतने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस बेनक़ाब आंदोलन के दौरान यह खुलासा किया जाएगा कि किस तरह से कांग्रेस की सरकार ने बाबरी मस्जिद को गिराने में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की मदद की. राष्ट्रीय जनता दल का यह आरोप है कि लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट के बाद कांग्रेस ने नरसिम्हा राव की सरकार का बचाव क्यों किया. कांग्रेस सरकार ने बाबरी मस्जिद के ग़ुनहगारों को क्यों छोड़ दिया. बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में कांग्रेस की भूमिका को बेनक़ाब करने के लिए आरजेडी पूरी तैयारी कर रही है. अख़बार और किताबों में छपी उन सभी रिपोर्टों और दस्तावेज़ों को इकट्ठा करके आरजेडी यह साबित करने वाला है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए संघ और भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस भी बराबर की ज़िम्मेदार है. लालू यादव और आरजेडी के कार्यकर्ता बिहार के मुसलमानों तक यह बात पहुंचाना चाहते हैं कि जब भी सांप्रदायिक शक्तियों से लड़ने की बात होती है तो कांग्रेस पार्टी मैदान छोड़ देती है.
कांग्रेस बेनक़ाब आंदोलन से जुडा एक और पहलू है. लालू बिहार के मुसलमानों को यह बताएंगे कि किस तरह कांग्रेस ने आज़ादी के बाद से ही उन्हें एक वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया. वह इस दौरान रंगनाथ मिश्र कमीशन रिपोर्ट और सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के मुद्दे को भी हवा देने वाले हैं. कांग्रेस पर वह आरोप लगाते रहे हैं कि सच्चर कमेटी ने जब यह साबित कर दिया है कि सरकारी संस्थानों और उपक्रमों में मुसलमानों की हिस्सेदारी बहुत कम है और जब रंगनाथ मिश्र कमीशन रिपोर्ट ने मुसलमानों के आरक्षण को हरी झंडी दे दी तो फिर सोनिया गांधी और राहुल गांधी इसे लागू क्यों नहीं कर रहे. मुसलमानों को आरक्षण से वंचित रखने की आ़खिर वजह क्या है.
अब सवाल यह है कि लालू यादव ने कांग्रेस को निशाने पर क्यों लिया है, जबकि, चुनाव में उनकी सीधी लड़ाई नीतीश कुमार की जदयू और भारतीय जनता पार्टी से है? अब तक मिल रहे संकेतों से सा़फ है कि विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार अपने कामों पर जनता से समर्थन मांगने जा रहे हैं. उन्होंने विकास का काम किया है. बिहार की सड़कें पहले से का़फी बेहतर हो गई हैं. अपराध में कमी आई है. उन्होंने प्रशासनहीनता की स्थिति से बिहार को बाहर निकाला है और सरकारी तंत्र के प्रति लोगों के खोए विश्वास को फिर से जगाया है. उन पर किसी घोटाले या बेइमानी का कोई आरोप नहीं है. बिहार में अल्पसंख्यक हों या दलित, सभी इस बात को मानते हैं कि नीतीश कुमार एक अच्छी सरकार देने में कामयाब हुए हैं. नीतीश कुमार को लगता है कि उन्होंने जो काम किए हैं, वह जनता के सामने है और विकास के नारे पर वह आसानी से चुनाव जीत जाएंगे. लालू यादव ज़मीन से जुड़े और अनुभवी राजनेता हैं. वह बिहार की जनता की नब्ज़ भी अच्छी तरह से पहचानते हैं. वह यह भी जानते हैं कि बिहार में अच्छी सरकार देने के बावजूद चुनाव में जीत सुनिश्चित नहीं की जा सकती है. बिहार में चुनाव जीतने के लिए विकास कार्यों से ज़्यादा अहमियत समीकरण रखता है. वह इस बात को भी जानते हैं कि अगर उन्हें बिहार में फिर से अपनी सरकार बनानी है तो उन्हें मुसलमानों और यादवों के समर्थन की ज़रूरत पड़ेगी. जहां तक बात यादवों की है तो बीजेपी और जेडीयू में पिछले पांच सालों में कोई भी ऐसा यादव नेता नहीं उभरा है जो लालू यादव को चुनौती दे सके. साथ ही, बिहार की जातिगत राजनीति का मिजाज़ ही कुछ ऐसा है कि यादव मतदाता ख़ुद-ब-ख़ुद आरजेडी के समर्थक बन जाएंगे. बिहार की इस हक़ीक़त को सभी जानते हैं. लालू यादव अगर बिहार के मुसलमानों का वोट बटोरने में असफल हो गए तो उनका चुनाव जीतना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन होगा. पिछली बार लालू यादव ने लाल कृष्ण आडवाणी के रथ को रोककर और उन्हें गिरफ़्तार कर मुसलमानों के दिल में अपनी जगह बनाई थी. इस बार लालू यादव फिर से दिल को जीतने के लिए कांग्रेस बेनक़ाब आंदोलन शुरू कर तुरुप का इक्का चलने वाले हैं. लालू यादव को लगता है कि मुसलामानों को अपने पक्ष में करने के लिए कांग्रेस पर हमला करना ज़रूरी है.
बिहार विधानसभा चुनाव में नए दोस्तों, नए गठबंधनों और पार्टियों की अंदरूनी कलह भी खुलकर आमने आएगी. लालू यादव केंद्र की राजनीति में कांग्रेस के साथ पिछली यूपीए सरकार में मंत्री रहे. वर्तमान यूपीए सरकार को समर्थन दे रहे हैं. चुनावी राजनीति की मजबूरियां भी अजीब होती हैं. लालू अब तक जिसके साथ थे, उसी कांग्रेस के ख़िला़फ उन्होंने आग उगलने की योजना बनाई है. कांग्रेस बेनक़ाब आंदोलन की वजह पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनावों के परिणामों में मिलती है. यहां मुसलमानों ने समाजवादी पार्टी को छोड़कर कांग्रेस का साथ दिया. मुसलमानों के वोटों की बदौलत कांग्रेस एक मज़बूत पार्टी बनकर उभरी और छह सीटें जीतने में कामयाब हुई. जबसे कांग्रेस ने बिहार में अपने मंसूबे आम किए, राहुल गांधी के साथ-साथ केंद्र के कई नेताओं ने पटना पहुंच कर कांग्रेस को मज़बूत करने का ऐलान किया, राहुल गांधी ने बिहार में युवाओं और अल्पसंख्यकों को लुभाने का कार्यक्रम चलाया, तबसे बिहार की सेक्युलर पार्टियों के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगी हैं. लालू यादव को इस बात का डर है कि अगर बिहार में कांग्रेस का प्रदर्शन पूर्वी उत्तर प्रदेश की तरह रहा तो उनकी पार्टी कहीं की नहीं रहेगी. चुनाव जीतना तो दूर, विधानसभा में राजद की सीटें कम होने का ख़तरा पैदा हो जाएगा. राष्ट्रीय जनता दल के नेता भी इस बात को समझते हैं कि नीतीश कुमार से बड़ा ख़तरा उनके लिए कांग्रेस पार्टी है.
लालू यादव के कांग्रेस बेनक़ाब आंदोलन का असर केंद्र की राजनीति पर भी होने वाला है. भाजपा के कमज़ोर होने के बाद नए समीकरण उभरने तय हैं. देश में एक बार फिर से कांग्रेस विरोध की लहर चलने वाली है. हमें यह भी याद रखना चाहिए कि यूपीए को समर्थन देने वाले ज़्यादातर राजनीतिक दल और नेता कांग्रेस विरोध की वजह से अपने-अपने राज्यों में मज़बूत हुए हैं. यही वजह है कि लालू यादव के इस आंदोलन को कई पार्टियों का साथ भी मिलने वाला है. इस आंदोलन में लालू यादव का साथ उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव देंगे. उत्तर प्रदेश में जिस तरह अल्पसंख्यकों ने समाजवादी पार्टी का साथ छोड़ा है, वैसा ही बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के साथ हो रहा है. कांग्रेस जिस तरह से बिहार में आक्रामक प्रचार और संगठन को मज़बूत करने में जुटी है, उससे तो यही लगता है कि कांग्रेस की इस मुहिम का सीधा असर राष्ट्रीय जनता दल पर होने वाला है. कांग्रेस की नज़र बिहार के दलित मतदाताओं पर भी है, इसलिए उसकी मुहिम का असर रामविलास पासवान पर भी होने वाला है. लालू यादव के कांग्रेस बेनक़ाब आंदोलन को रामविलास पासवान का भी साथ मिलने वाला है. साथ ही वाममोर्चा भी लालू यादव के साथ खड़ा नज़र आ रहा है. इसका मतलब यह है कि लोकसभा चुनाव के दौरान बना चौथा मोर्चा बिहार में एकजुट होकर नीतीश कुमार और कांग्रेस के ख़िला़फ चुनाव लड़ने वाला है.
लालू यादव द्वारा कांग्रेस को निशाने पर लेने की एक और वजह भी है, जो राजनीतिक होने के साथ-साथ व्यक्तिगत भी है. लालू यादव के साले साधू यादव अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस में आ चुके हैं, जिससे वह अच्छे-खासे नाराज़ हैं. इसे वह खुद पर हमला मानते हैं.
बिहार के चुनाव में देश के बड़े-बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. बिहार का चुनाव किसी भी पार्टी के लिए आसान नहीं होगा. चुनौतियां सबके सामने हैं. नीतीश कुमार की चुनौती यह है कि वह पांच साल के अपने कार्यकाल में हुए विकास को जनता के सामने किस तरह से पेश करें, जो कि वह वोट में तब्दील हो जाए. भारतीय जनता पार्टी के सामने दूसरी चुनौती है. उसकी समस्या यह है कि सरकार के अच्छे कामों का श्रेय नीतीश कुमार को मिलता है, लेकिन जो बुराइयां हैं, वे भाजपा के गले लग जाती हैं. भारतीय जनता पार्टी को बिहार में अपनी साख बनाने की चुनौती है. चुनाव से पहले संगठन को मज़बूत करना कांग्रेस की चुनौती है तो लालू प्रसाद यादव के सामने यह चुनाव अस्तित्व का सवाल लेकर खड़ा है. रामविलास पासवान पिछले विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बनने की रेस में थे, लेकिन आज स्थिति यह है कि वह ख़ुद लोकसभा चुनाव हार चुके हैं. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि हर बड़ी पार्टी और नेता के सामने बिहार का चुनाव एक कठिन चुनौती है.
कांग्रेस बेनक़ाब आंदोलन, एक बार फिर से मुसलमानों के समर्थन प्राप्त करने के लिए किया जा रहा है. इस दौरान लालू प्रसाद यादव अल्पसंख्यकों को यह बताएंगे कि बाबरी मस्जिद गिराने वालों का साथ स़िर्फ कांग्रेस ने दिया है. मुसलमानों को 1991 की कांग्रेस सरकार के करतूतों से वाक़ि़फ कराया जाएगा. दरअसल राष्ट्रीय जनता दल बिहार में सक्रिय मुस्लिम संगठनों का विश्वास जीतने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस बेनक़ाब आंदोलन के दौरान यह खुलासा किया जाएगा कि किस तरह से कांग्रेस की सरकार ने बाबरी मस्जिद को गिराने में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की मदद की.