जदयू के प्रदेश प्रवक्ता संजय सिंह कहते हैं कि रीतलाल यादव को मनाने पहुंचे लालू यादव ने बिहार को फिर से जंगलराज की याद दिला दी. बहरहाल, रामकृपाल के लिए यह चुनौती है कि वह यादव वोट में किस हद तक सेंध लगा पाते हैं. भाजपा का कोर वोट भूमिहार-वैश्य उनके साथ दिख रहा है, लेकिन यहां भी एक समस्या आ खड़ी हुई है.
बिहार की राजनीति की नब्ज पहचाननी हो, तो पटना में सत्ता के गलियारों में घूमना ज़रूरी है, लेकिन अभी तो इन गलियारों में पटना की दो वीआईपी सीटों यानी पाटलिपुत्र और पटना साहिब की ही चर्चा है. पाटिलीपुत्र में चाचा रामकृपाल यादव और भतीजी मीसा भारती के बीच महाभारत छिड़ा है, तो पटना साहिब में सबकी नज़र शत्रुघ्न सिन्हा के डायलॉगों पर लगी है. पहले इन दोनों सीटों की चर्चा इस बात को लेकर हो रही थी कि यहां से लड़ेगा कौन और अब जब चेहरे साफ़ हो गए हैं, तो गरमागरम बहस यह हो रही है कि चाचा और भतीजी की इस जंग में आख़िरी वार कौन करेगा. इसी तरह पटना साहिब को लेकर यह चर्चा आम है कि क्या यह फिल्म स्टार अपना जादू फिर चला पाएगा या खामोश हो जाएगा.
पाटलिपुत्र लोकसभा संसदीय क्षेत्र की बात करें, तो परिसीमन के बाद 2009 में यह सीट अस्तित्व में आई. पहली बार हुए चुनाव में यहां से एनडीए उम्मीदवार के रूप में जदयू के रंजन प्रसाद यादव के सामने राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव थे, लेकिन पहले ही चुनाव में लालू को 23 हजार मतों से हारना पड़ा था. फिलहाल जो तीन प्रत्याशी मैदान में मुकाबले में दिख रहे हैं, उनकी पृष्ठभूमि राजद की ही है. मीसा भारती लालू की विरासत संभालने के लिए मैदान में आई हैं, तो रामकृपाल लालू के सबसे वफादार माने जाते रहे हैं, वहीं रंजन भी लालू के खासमखास रह चुके हैं. लालू ने ही उन्हें राज्यसभा तक पहुंचाया था. कहा जाता है, चूंकि रंजन फिलहाल यहां से सांसद हैं, इस वजह से उन्हें सत्ता विरोधी लहर का शिकार होना पड़ेगा. वहीं इस बार रंजन को भाजपा का साथ भी नहीं मिलेगा. रंजन के साथ सकारात्मक पक्ष यह है कि उनके साथ कुर्मी मतदाता रहेंगे. मालूम हो कि इस लोकसभा सीट के दो विधानसभा क्षेत्र फुलवारी और मसौढी में कुर्मी निर्णायक स्थिति में हैं, वहीं अन्य विधानसभा क्षेत्रों में भी कुर्मी
मतदाताओं की संख्या ठीकठाक बताई जाती है. प्रेक्षकों की मानें तो रंजन कुछ न कुछ यादव वोट खींच सकते हैं, वहीं नीतीश के नाम पर अतिपिछड़ा और महादलित भी उन्हें वोट कर सकते हैं. रही बात भाजपा के रामकृपाल यादव की, तो मजबूत स्थिति में वह भी दिख रहे हैं. इस संसदीय क्षेत्र में रामकृपाल की पकड़ अच्छी मानी जाती है. इस क्षेत्र के कई मतदाताओं से बात होती है, जो रामकृपाल की सहजता एवं सुलभता को बताते हैं. रामदरशन पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र के मतदाता हैं. बोरिंग रोड के एक अपार्टमेंट में गार्ड का काम करने वाले रामदरशन राजनीति में रमे रहते हैं.
रामदरशन कहते हैं, देखिए, रामकृपाल को कखनो खोजिएगा वो मिल जाएंगे, यादव उन्हीं को वोट करेगा. यह कहने पर कि मीसा खुद उम्मीदवार हैं और लालू जमकर उनका प्रचार कर रहे हैं, रामदरशन कहते हैं, लालू की बपौती नहीं हैं न यादव! यह भ्रम निकाल दीजिए. रामदरशन भले ही ज़्यादा पढ़े-लिखे न हों, लेकिन वह क्षेत्र की नब्ज पहचानते हुए मालूम पड़ते हैं. हाल के दिनों में लालू जिस तरह की व्यग्रता के साथ मीसा का प्रचार कर रहे हैं, यह दिखाता है कि उन्हें इस बात का डर है कि कहीं यादव मतदाता ही न उनसे खिसक जाएं. इसका नमूना पिछले दिनों देखने को भी मिला. लालू अपने बेटे एवं बेटी मीसा के साथ रीतलाल यादव के घर पहुंचे. उनके पिता से आशीर्वाद लिया. बताते चलें कि रीतलाल अपराधी छवि के व्यक्ति हैं और फिलहाल जेल में हैं. लालू ने रीतलाल को रातोरात पार्टी का महासचिव बना दिया. लालू के इस क़दम की जमकर आलोचना भी हुई.
जदयू के प्रदेश प्रवक्ता संजय सिंह कहते हैं कि रीतलाल यादव को मनाने पहुंचे लालू यादव ने बिहार को फिर से जंगलराज की याद दिला दी. बहरहाल, रामकृपाल के लिए यह चुनौती है कि वह यादव वोट में किस हद तक सेंध लगा पाते हैं. भाजपा का कोर वोट भूमिहार-वैश्य उनके साथ दिख रहा है, लेकिन यहां भी एक समस्या आ खड़ी हुई है. बरमेश्वर मुखिया के पुत्र इंदुभूषण यहां से खड़े हैं. वहीं आम आदमी पार्टी ने यहां से कुंदन सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है. यही वजह है कि रामकृपाल के भूमिहार वोटों में सेंध लगने की गुंजाइश दिख रही है. लालू ने पिछले लोकसभा चुनाव में जिस माय समीकरण को साधने की कोशिश में यह सीट हाथ से गंवा दी थी, इस बार भी वह उसी समीकरण पर भरोसा कर रहे हैं.
राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र सुमन कहते हैं कि रामविलास और रामकृपाल ऐसे नेताओं में हैं, जो किसी भी पार्टी में रहें, उनकी अपनी पहचान होती है. इस मामले में रामविलास टेस्टेड हैं और रामकृपाल का टेस्ट होना है. वह कहते हैं कि बिहार में पिछले कुछ सालों से यह ट्रेंड देखने को मिल रहा है कि ब्लॉक और प्रखंड स्तर पर यादव जाति के लोग भाजपा में मिल रहे हैं. भाजपा ने तो 1993 में ही नंदकिशोर यादव को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया था, आज बीस वर्षों के बाद उसे इसका फ़ायदा मिलेगा. रीतलाल के मामले को लेकर सुमन कहते हैं, लालू को लगने लगा है कि यादव वोट उनसे छिटक रहा है. बिहार में तो माय समीकरण ही सिरियसली चैलेंज्ड है. इस संसदीय सीट के अंतर्गत छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं, दानापुर, मनेर, पालीगंज, फुलवारीशरीफ, मसौढी एवं बिक्रम. दानापुर एवं मनेर यादव बहुल क्षेत्र हैं, जबकि पालीगंज एवं बिक्रम भूमिहार बहुल. वहीं फुलवारीशरीफ एवं मसौढी सुरक्षित क्षेत्र हैं. अब तक की स्थिति को देखते हुए पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र में त्रिकोणीय मुकाबले के आसार दिख रहे हैं.
रही बात पटना साहिब की, तो यह राज्य की हाईप्रोफाइल सीट मानी जा रही है. फिलहाल यहां से भाजपा के शत्रुघ्न सिन्हा सांसद हैं. इस बार भी पार्टी ने उन्हें ही मैदान में उतारा है. जब तक उनके नाम की घोषणा नहीं हुई थी, बिहारी बाबू नाराज़ चल रहे थे, लेकिन उनके नाम की घोषणा के साथ ही उनका विरोध भी होने लगा है. पिछले दिनों नाम की घोषणा के बाद जब वह पार्टी दफ्तर पहुंचे थे और जब नामांकन कराने गए थे, तब भी उन्हें काले झंडे दिखाए गए. इस बात की आलोचना भी हुई थी कि विरोध कर रहे लोगों को भाजपा कार्यकर्ताओं ने जमकर पीटा. कांग्रेस ने यहां से इस बार भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता कुणाल और जदयू ने शहर के चर्चित डॉक्टर गोपाल प्रसाद सिन्हा को मैदान में उतारा है, वहीं आम आदमी पार्टी की तरफ़ से जदयू से इस्तीफ़ा दे चुकी पूर्व मंत्री परवीन अमानुल्लाह मैदान में हैं.
कांग्रेस ने सबसे पहले पटना साहिब सीट के लिए राजकुमार राजन के नाम की घोषणा की थी. बाद में कुणाल को यहां से उम्मीदवार बनाया गया. इस बात को लेकर पार्टी के अंदर ही विरोध देखने को मिल रहा है. हालांकि बिहार कांग्रेस का कहना है कि राजन को मना लिया गया है. वहीं आप की उम्मीदवार परवीन का भी पार्टी के अंदर विरोध चल रहा है. पिछले दिनों दिल्ली के विधायक मनीष सिसोदिया के आने पर उनका विरोध भी किया गया था. बहरहाल, बिहारी बाबू यहां से सांसद हैं, इस लिहाज से उन्हें सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है, वहीं क्षेत्र में सहज उपलब्ध न होना भी उनके विरोध का एक मुख्य कारण बना हुआ है. इस लोकसभा क्षेत्र में दीघा, बांकीपुर, कुम्हरार, पटना साहिब, फतुहा एवं बख्तियारपुर विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इनमें से दीघा विधानसभा सीट पर जदयू का कब्जा है, वहीं फतुहा एवं बख्तियारपुर सीटें राजद के पास हैं. बांकीपुर, पटना साहिब एवं कुम्हरार सीटों पर भाजपा का कब्जा है.
नए परिसीमन के बाद शामिल हुए फतुहा एवं बख्तियारपुर यादव बहुल इलाके माने जाते हैं. इस लोकसभा क्षेत्र में कायस्थ वोटरों की संख्या भी अच्छी-खासी है. साथ ही यह शहरी मतदाता वाला क्षेत्र माना जाता है. इस लिहाज से भाजपा यहां मजबूत दिखाई पड़ती है. पिछले लोकसभा चुनाव में शत्रुघ्न सिन्हा को यहां 3.17 लाख वोट मिले थे और दूसरे स्थान पर रहे राजद के विजय कुमार को 1.50 लाख. शत्रुघ्न सिन्हा की राह इस बार आसान नहीं दिख रही है. वजह साफ़ है कि वह जनता के लिए सहज उपलब्ध नहीं हो पाते, साथ ही इस बार नीतीश का भी साथ उन्हें नहीं मिल रहा है. इसलिए उन्हें कुर्मी मतदाताओं के मत मिलना संभव होता नहीं दिख रहा है. जिन शहरी मतदाताओं पर भाजपा को भरोसा है, उनमें पिछले आठ सालों में जदयू ने भी सेंध लगाई है. बिहारी बाबू के लिए मुश्किल इसलिए भी है कि इस बार जदयू ने भी कायस्थ जाति के गोपाल सिन्हा को अपना उम्मीदवार बनाया है.
आंकड़े बताते हैं कि इस क्षेत्र में लगभग चार लाख कायस्थ मतदाता हैं. अगर गोपाल सिन्हा कायस्थ मतों में सेंध लगा पाते हैं, तो यह बिहारी बाबू के लिए परेशानी खड़ी करने वाली बात होगी. इसकी संभावना इसलिए भी है कि सिन्हा कायस्थ संगठनों में लगातार सक्रिय भी रहे हैं. प्रेक्षकों की मानें, तो कांगे्रस उम्मीदवार मुकाबले को त्रिकोणीय कर सकने की स्थिति में हैं. कुणाल राजद के आधार वोट के साथ बेदाग छवि वाले नेता हैं. आंकड़ों के लिहाज से इस संसदीय क्षेत्र में यादव मतदाताओं की संख्या 4.3 लाख है. कुणाल को भरोसा है कि उन्हें मंत्री एवं प्रभावी नेता रह चुुके उनके पिता बुद्धदेव यादव की छवि का फ़ायदा मिलेगा. वहीं परवीन के मैदान में आ जाने से शत्रुघ्न के लिए और परेशानी खड़ी हो गई है. जानकारों का मानना है कि परवीन शहरी मतदाताओं को प्रभावित करेंगी और उससे भाजपा को नुकसान होगा. वह मुस्लिम मतदाताओं को भी प्रभावित कर सकती हैं, जो कांग्रेस के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है.
दोनों सीटों के मद्देनज़र अब तक की गतिविधियों को देखें, तो लड़ाई प्रो-मोदी और एंटी-मोदी वोटों के बीच है. फिलहाल यह साफ़-साफ़ दिखता है कि एंटी-मोदी वोट दो हिस्सों राजद एवं जदयू में बंटता दिख रहा है और उसका फ़ायदा भाजपा को ही मिलेगा. वहीं दोनों सीटों पर राजद ने यादव-मुस्लिम समीकरण को ही साधने की कोशिश की है. जिस तरह से लालू यादव स्वजातीय वोटों को गोलबंद करने की कोशिश में लगे हुए हैं, वैसे में यह आशंका जायज है कि ग़ैर यादव वोट पोलराइज हो सकता है.
लड़ाई प्रो-मोदी और एंटी-मोदी वोटों के बीच
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