महीनों पहले भंग हो चुके निगम-मंडल, मसाजिद कमेटी हटने को राजी नहीं प्रभारी नियुक्त, सचिव ने हटने से किया इंकार
सरकार गिर गई, सरकार के उपकृत किए गए लोग भी विदा हो गए, लेकिन भोपाल रियासत के ईमाम-मुअज्जिनों को सहेजने वाली संस्था मसाजिद कमेटी के ओहदेदार अब भी अपने पदों पर आसीन हैं। नैतिकता के नाते दिए जाने वाले इस्तीफे की कवायद को परे रखते हुए इन ओहदेदारों ने करीब सात महीने खुद का वजूद बनाए रखा है। अब जब शासन की तरफ से मसाजिद कमेटी की जिम्मेदारी प्रभारी सचिव के हवाले की गई तो सचिव अदालत की तरफ दौड़ लगाने की बात कहते नजर आ रहे हैं। इन स्थितियों ने जहां ईमाम-मुअज्जिन और काजी-मुफ्ती की मौजूदगी वाले इदारे को बदनामियों की तरफ धकेल दिया है, वहीं इन हालात से सियासी-सामाजिक स्तर पर भी कौम की छवि धूमिल हो रही है।
पिछली कांग्रेस सरकार ने अपने 15 माह के कार्यकाल के दौरान महज हज कमेटी, उर्दू अकादमी और मसाजिद कमेटी में नियुक्तियां की थीं। इसके अलावा मप्र वक्फ बोर्ड के अधीन काम करने वाली जिला मुतवल्ली कमेटी औकाफ-ए-आम्मा का गठन भी हुआ था। सरकार बदलने के साथ ही सामान्य प्रशासन विभाग ने 20 अप्रैल को एक पत्र जारी किया था, जिसमें प्रदेश के सभी निगम, मंडल और प्राधिकरण, समितियों का कार्यकाल शून्य घोषित कर दिया था। इसके लिहाज से सभी विभागों में पदस्थ पदाधिकारियों ने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देकर खुद को पद से अलग कर लिया था। मप्र उर्दू अकादमी में तत्कालीन अध्यक्ष के रूप में मौजूद पूर्व राज्यपाल डॉ. अजीज कुरैशी भी इस दौर में पद से अलग हो गए थे। लेकिन इस आदेश को मसाजिद कमेटी पदाधिकारियों ने मानने से इंकार कर दिया और लगातार पद पर बने रहे। हालात यह है कि करीब 7 माह का समय गुजर जाने के बाद भी यहां पदस्थ अध्यक्ष, सचिव और सदस्यों ने खुद को मसाजिद कमेटी में बरकरार ही रखा।
अब हुए नए आदेश से बवाल
सूत्रों के मुताबिक दो दिन पहले अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने मसाजिद कमेटी की व्यवस्था में बदलाव करते हुए कमेटी के अधीक्षक यासिर अराफात को प्रभारी सचिव के तौर पर जिम्मेदारी सौंप दी है। वे पूर्व में भी इस पद पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं और उनके बेहतर प्रशासन के मद्देनजर ही यह आदेश किए गए हैं। लेकिन इस आदेश को अपदस्थ सचिव एसएम सलमान ने मानने से इंकार कर लिया है। बताया जाता है कि वे इस मामले को लेकर अदालत जाने की बात कह रहे हैं। उनका तर्क है कि सरकार द्वारा एक निश्चित अवधि के लिए उनकी नियुक्ति की गई है। इससे पहले उन्हें हटाए जाने का न किसी को अधिकार है और न ही कोई कानूनी नियम।
नियमों की गलत व्याख्या
संवैधानिक दर्जा रखने वाले विभिन्न आयोगों में हुई नियुक्तियों पर अदालत द्वारा स्टे दिया गया है। जिसके चलते अल्पसंख्यक आयोग सहित कई आयोगों के नवनियुक्त सदस्यों को राहत मिल गई है। बताया जा रहा है कि इसी को आधार बनाकर मसाजिद कमेटी सचिव भी पद पर बने रहना चाहते थे। लेकिन नियम के मुताबिक मसाजिद कमेटी को संवैधानिक अधिकार हासिल नहीं हैं, जिसके मुताबिक कमेटी सचिव को अदालत से किसी तरह की राहत मिलने की उम्मीद कम ही नजर आ रही है।
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न हटने के पीछे भी हैं कारण
जानकारी के मुताबिक मसाजिद कमेटी में पाबंद की जाने वाली कमेटी के ओहदेदार पूरी तरह से ऑनरेरी होते हैं और इनके लिए किसी तरह के मानदेय या वेतन का प्रावधान नहीं है। ईमाम-मुअज्जिन और मस्जिदों की खिदमत के लिए आगे आने वाले लोगों को इस कमेटी में निशुल्क सेवाएं देना होती हैं। लेकिन सूत्रों का कहना है मसाजिद कमेटी में पदस्थ किए गए मौजूदा अध्यक्ष, सचिव और सदस्यों के लिए वेतन का प्रावधान कर लिया गया था। बताया जाता है कि वेतन की यह राशि उन सीनियर कर्मचारियों के वेतन से भी बहुत ज्यादा है, जो स्थायी तौर पर यहां बरसों से सेवाएं दे रहे हैं। तय किए गए इस वेतन के चलते ही पदाधिकारी अब पद छोडऩे में कोताही करते दिखाई दे रहे हैं।
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खींचतान में रुका कई महीनों का वेतन
मसाजिद कमेटी से जुड़े सैकड़ों ईमाम-मुअज्जिन का वेतन पिछले कई महीनों से अटका हुआ है। इसकी वजह पिछली कमलनाथ सरकार द्वारा वेतन में की गई बढ़ोत्तरी बताई जा रही है। वित्त विभाग से बढ़ी हुई राशि जारी न होने के चलते ईमाम-मुअज्जिन को वेतन मिलने में कठिनाई आ रही है। लेकिन इस दौरान इस बात का भी जिक्र किया जा रहा है कि मसाजिद कमेटी की मौजूदा कार्यकारिणी इस बात को लेकर सरकार के आमने-सामने है कि वह वेतन की पूरी राशि कमेटी में ट्रांसफर करवाना चाहती है और ईमाम-मुअज्जिन को अपने हिसाब से वेतन बांटना चाहती है। जबकि शासन द्वारा ईमाम-मुअज्जिन के व्यक्तिगत खातों की मांग कर सीधे उनके बैंक एकाउंट में राशि ट्रांसफर करने पर जोर दिया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि कमेटी के खाते में आकर ईमाम-मुअज्जिन को पहुंचने वाले वेतन के बीच कई गड़बडिय़ों की आशंका बनी रहती है, जबकि सीधे ईमाम-मुअज्जिन को ट्रांसफर होने वाली राशि से उचित व्यक्ति तक माकूल रािश पहुंचने की उम्मीद बनी रहती है।
खान अशु
भोपाल।