कुछ राहत की आवश्यकता है, क्योंकि कॉरपोरेट सेक्टर और वेतनभोगी लोगों, जिनसे स्रोत पर ही टैक्स ले लिया जाता है, के अलावा व्यवसायियों द्वारा करों का भुगतान नहीं किया जाता. वे अपने खातों में हेराफेरी करते हैं. एक करोड़ रुपये का कारोबार और एक लाख रुपये का मुनाफा दिखाते हैं. यह अविश्‍वसनीय है, हास्यास्पद है. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि आयकर अधिकारी इसमें मिलीभगत से काम करते हैं. यह सब इस देश में बंद होना चाहिए. क़ानून उपयोगकर्ता के अनुकूल हों. व्यापारियों को करों का भुगतान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. आप कितने लोगों पर छापे मारेंगे? कितने लोगों की जांच करेंगे? 
बजट आगामी 11 जुलाई को आना है. जनता के सामने सबसे बड़ा सवाल है कि आने वाला बजट किस तरह का होगा? दो महत्वपूर्ण बातें हैं. पहला वैट है. इसमें जबरदस्त बदलाव की आवश्यकता है और ऐसा होना भी चााहिए, क्योंकि पहली बार एक विशेष विचारधारा वाली पार्टी को आज़ादी के बाद एक स्पष्ट बहुमत मिला है. अगर भाजपा या इसके पिछले अवतार जनसंघ या संघ परिवार अपनी ही विचारधारा का अनुसरण करते हैं, तो बजट पूरी तरह से एक नोबल कांसेप्ट होना चाहिए. इसे ट्रेड फ्रेंडली होना होगा, इसे मध्य वर्ग के अनुकूल, इंस्पेक्टर राज और नौकरशाही के भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ होना होगा. इसके लिए बड़े बदलाव की आवश्यकता है. कांग्रेस या छोटी अवधि के लिए आए पिछले शासनों में एक ही सूत्र थोड़ा-बहुत परिवर्तन के साथ अपनाया जाता रहा है, जिसका कोई महत्वपूर्ण परिणाम सामने नहीं आया. आज हमारे पास एक ऐसी व्यवस्था है, जहां नौकरशाही, विशेष रूप से लोअर ब्यूरोक्रेसी, ऐसी है कि जहां से फाइल को गुजारे और रिश्‍वत दिए बिना कुछ नहीं हो सकता. क्या भाजपा और यह पहला बजट इन समस्याओं का समाधान दे सकते हैं. जनता के मन में पहली बात यही आती है.
दूसरी बात ज़्यादा गंभीर है, इतनी बड़ी है, जिसे यह बजट छेड़ना नहीं चाहेगा या कहें कि उसे छूने की हिम्मत नहीं कर सकता. इसलिए वे सॉफ्ट ऑप्शन तलाशेंगे. जैसे आयकर की सीमा थोड़ी बढ़ा दो, ताकि मध्य वर्ग को कुछ राहत मिले. यानी इतना तय है कि वे कोई बड़े बदलाव नहीं करेंगे. यह आम मान्यता बनती जा रही है. दुर्भाग्य से चुनाव के समय मुद्रास्फीति एक प्रमुख मुद्दा था. जीवनयापन की लागत, अनाज-सब्जियों के दाम और हमेशा की तरह प्याज के आंसू, इन सबकी क़ीमतें इतनी बढ़ गई थीं कि ये सब सुर्खियों में थे. भाजपा को जब लगा कि वह सत्ता में आ रही है, तो उसने कहना शुरू कर दिया कि मुद्रास्फीति एक दिन में नियंत्रित नहीं की जा सकती है. इस काम के लिए छह महीने का समय लग सकता है यानी छह महीने के बाद मुद्रास्फीति की दर में कमी आएगी, लेकिन महंगाई या क़ीमतों में तब भी कमी नहीं आएगी. उन्होंने ऐसा कभी वादा किया था ही नहीं. यह मुश्किल होगा.
अब क़ीमतें कम करने के व्यवहारिक तरीके पर बात करते हैं. गेहूं और चावल के दाम काम किए जा सकते हैं. अगर सरकार इन्हें अपने स्टॉक से रिलीज कर दे, चाहे ये पीडीएस यानी सार्वजनिक वितरण प्रणाली में जाएं या खुले बाज़ार में, क़ीमतें अपने आप गिर जाएंगी. इन्हें बाज़ार में आने तो दे, उपलब्धता अधिक होगी, तो क़ीमत नीचे आ जाएगी. लेकिन, यह तरीका सब्जियों के दाम कम करने के लिए लागू नहीं किया जा सकता. सब्जियों के दाम अलग-अलग जगहों पर अलग होते हैं. दिल्ली में एक क़ीमत, गुड़गांव में दूसरी, तो मानेसर में तीसरी. वजह, सब्जी उत्पादक स्थानीय हैं और सब्जी का खुद का जीवन छोटा होता है. इस सब पर केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रण नहीं किया जा सकता है.
फिर सरकार क्या कर सकती है? वह मंडियों तक इन सब्जियों को जल्दी से जल्दी पहुंचाने के लिए बेहतर परिवहन सुविधा दे सकती है और इसके लिए जिला स्तर पर अधिकारियों को सक्रिय करना होगा. यही एकमात्र रास्ता है. मैं राजस्थान के बारे में कुछ बताना चाहता हूं. यहां के नवलगढ़ में लोगों ने मुझे बताया कि यहां पूरे शेखावाटी क्षेत्र के मुकाबले सब्जियों के दाम सबसे अधिक हैं. मैंने उनसे पूछा, क्यों? मुझे बताया गया कि स्थानीय सब्जी विक्रेताओं ने एकजुट होकर यह निर्णय लिया है कि वे एक खास क़ीमत से कम पर सब्जी नहीं बेचेंगे. अब कैसे इस समस्या को केंद्र सरकार द्वारा हल किया जा सकता है? लेकिन, हमें तरीके खोजने होंगे.

अब वित्त मंत्री के सामने चुनौती है कि वह कुछ बड़े बदलाव करते हैं या थोड़े परिवर्तन या जोखिम के साथ एक ही पैटर्न को जारी रखना चाहते हैं. 1985 में जब राजीव गांधी के नेतृत्व में विश्‍वनाथ प्रताप सिंह वित्त मंत्री बने, तो उन्होंने कई जोखिम भरे निर्णय लिए. विश्‍वनाथ प्रताप सिंह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने यह कहने का साहस किया कि आयकर की दर नीचे लानी चाहिए, क्योंकि बहुत सारे लोग आयकर का भुगतान नहीं करते, लोग धोखाधड़ी करते हैं और उन्होंने यह दर नीचे की.

रहने की लागत, भोजन की लागत अगर एक उचित अवधि में नीचे नहीं आती है, तो लोग कहना शुरू कर देंगे कि यह सरकार भी पिछली सरकार की तरह है. और सच कहूं तो, देश के इस तरह के अर्थशास्त्र, जटिल अर्थशास्त्र को समझने वाले जानते हैं कि ऐसी समस्याओं का बहुत तेजी से निराकरण नहीं किया जा सकता है. इसमें समय लगेगा. यह तो सब ठीक है, लेकिन नेतृत्व कर रहे व्यक्ति को आलोचना सहनी ही पड़ेगी. चिदंबरम की न स़िर्फ विपक्ष, बल्कि खुद कांग्रेसियों ने भी आलोचना की थी. लेकिन, चिदंबरम ने खुद कहा था कि वित्त मंत्री का काम बहुत कठिन है. अगर वैश्‍विक अर्थव्यवस्था अच्छी तरह चल रही हो, तो सब ठीक है, वर्ना मुसीबत. अगर अमेरिका की अर्थव्यवस्था नीचे चली गई है, यूरोप की नीचे चली गई है, तो भारत में कैसे यह ऊपर जा सकती है? वैसे भारत में अर्थव्यवस्था ज़्यादा नीचे नहीं गई.
अब वित्त मंत्री के सामने चुनौती है कि वह कुछ बड़े बदलाव करते हैं या थोड़े परिवर्तन या जोखिम के साथ एक ही पैटर्न को जारी रखना चाहते हैं. 1985 में जब राजीव गांधी के नेतृत्व में विश्‍वनाथ प्रताप सिंह वित्त मंत्री बने, तो उन्होंने कई जोखिम भरे निर्णय लिए. विश्‍वनाथ प्रताप सिंह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने यह कहने का साहस किया कि आयकर की दर नीचे लानी चाहिए, क्योंकि बहुत सारे लोग आयकर का भुगतान नहीं करते, लोग धोखाधड़ी करते हैं और उन्होंने यह दर नीचे की. उन्होंने कहा कि अगले पांच सालों तक आयकर की दरें नहीं बढ़ाई जाएंगी. यह होती है लंबी अवधि की राजकोषीय नीति. मैं नए वित्त मंत्री से कहना चाहूंगा कि वह विश्‍वनाथ प्रताप सिंह से कुछ सीखें. वह ऐसा कुछ कहें, जिससे करदाता आश्‍वस्त हों, स्थिरता आए. उन्हें कहना चाहिए कि चिंता मत करो, हम समस्याओं को बढ़ाने नहीं जा रहे हैं. और, इसी के साथ कर संग्रह को आसान बनाया जाए.
कुछ राहत की आवश्यकता है, क्योंकि कॉरपोरेट सेक्टर और वेतनभोगी लोगों, जिनसे स्रोत पर ही टैक्स ले लिया जाता है, के अलावा व्यवसायियों द्वारा करों का भुगतान नहीं किया जाता. वे अपने खातों में हेराफेरी करते हैं. एक करोड़ रुपये का कारोबार और एक लाख रुपये का मुनाफा दिखाते हैं. यह अविश्‍वसनीय है, हास्यास्पद है. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि आयकर अधिकारी इसमें मिलीभगत से काम करते हैं. यह सब इस देश में बंद होना चाहिए. क़ानून उपयोगकर्ता के अनुकूल हों. व्यापारियों को करों का भुगतान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. आप कितने लोगों पर छापे मारेंगे? कितने लोगों की जांच करेंगे? कौन जांच करेगा, वही जो पैसे लेकर अभी कर चोरी में इनकी सहायता करता है? इससे क्या फ़ायदा होगा? वित्त मंत्री को याद रखना चाहिए कि इंस्पेक्टर राज से कोई फ़ायदा नहीं होता. आज समय का चक्र पूरा घूम चुका है, आज आप सत्ता में हैं, क्या आप ये सब सुधार लागू करेंगे? यही कारण है, आज इस पहले बजट की परीक्षा की घड़ी है. देखते हैं, क्या होता है?

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