समय आ गया है, अब मोदी को कहना चाहिए कि उन्हें इन सब चीजों के साथ कुछ भी लेना-देना नहीं है. वह देश को तेज विकास और रोज़गार देना चाहते हैं तथा विश्व में भारत की एक मजबूत पहचान कायम करना चाहते हैं. उन्हें इसके लिए कम से कम दस साल चाहिए. उन्हें एक ऐसी पार्टी की ज़रूरत है, जो सही राजनीतिक दिशा के साथ पूरी तरह समावेशी हो और सभी को साथ लेकर चलने वाली हो. नरेंद्र मोदी के बारे में बताया भी गया है कि उन्होंने गुजरात में संघ और विहिप को हाशिये पर लाकर विकास को तेज गति दी थी. यह उनके लिए आसान काम नहीं होगा.
लॉर्ड एक्शन ने कहा था कि सत्ता लोगों को भ्रष्ट बनाती है और संपूर्ण सत्ता, संपूर्ण भ्रष्टाचारी. अब भाजपा कार्यकर्ताओं के नेता सत्ता में सौ दिन व्यतीत भी कर चुके हैं. इसके बावजूद नरेंद्र मोदी द्वारा प्राप्त किए गए इतने बड़े बहुमत के बारे में पार्टी कार्यकर्ता यही मानते हैं कि यह सफलता उनकी वजह से मिली है, न कि मोदी द्वारा चुनाव प्रचार के दौरान किए गए वादों के चलते. इस सफलता को वे अपने सांप्रदायिक विश्वासों की पुष्टि के तौर पर भी देखते हैं. शायद यही वजह है कि उनके द्वारा दुर्व्यवहार शुरू हो गया है. लव जिहाद जैसे प्रबल मुस्लिम विरोधी शब्दों का इस्तेमाल किया जाने लगा. निश्चित रूप से इसमें मुख्य निशाना अपनी लड़कियों को बनाया गया और यह बताया गया कि मुस्लिम युवक उन्हें फांस लेते हैं, फिर बलपूर्वक उनका धर्म-परिवर्तन करा देते हैं. लेकिन, हमारे लड़के उनकी लड़कियों के साथ विवाह कर लें, चाहे बलपूर्वक ही क्यों नहीं, तो यह कोई परेशानी वाली बात नहीं है. गाय के मांस और उसके निर्यात को लेकर मुसलमानों के बारे में झूठे बयान भी आने शुरू हो गए, यहां तक कि एक मंत्री द्वारा भी. मदरसे एक बार फिर आतंकियों की पनाहगार बताए जाने लगे. गोवा के ईसाइयों से कहा गया कि वे अपने आपको हिंदू घोषित कर दें.
लेकिन, सौभाग्य से भारतीय मतदाता ज़्यादा संवेदनशील साबित हुए. उत्तर प्रदेश में उन्होंने घृणा की बात करने वालों को हरा दिया. इस वजह से अपने हनीमून पीरियड के दौरान ही भाजपा को जागृत करने वाला झटका लग गया है. लोगों ने मोदी को इसलिए चुना था, क्योंकि उनका संदेश सकारात्मक और समावेशी था, जिसमें सबको साथ लेकर चलने की बात कही गई थी.
मतदाताओं ने भाजपा को उस बात के लिए वोट नहीं दिया था, जो संघ सोचता है. आम मतदाता कांग्रेस के भ्रष्टाचार, असमर्थता और घमंड से आजिज आ चुका था. लोग मुद्रास्फीति, धीमी विकास दर और बेरोज़गारी से निराश हो चुके थे. असली विषय हिंदुओं की पहचान और मुसलमानों की वफादारी नहीं थी, बल्कि जनता ने इस बात के लिए वोट दिया कि प्रशासन अच्छा हो. उसने इस बात के लिए वोट नहीं दिया था कि उसे इस तरह के वैचारिक ज़हर दिए जाएं. प्रधानमंत्री की एक अजीब प्रतिष्ठा इस बात के लिए बन रही है कि वह अपने मंत्रियों पर निगरानी रखते हैं. उनके बारे में कई कहानियां, हो सकता है झूठी भी, हैं कि वह मंत्रियों को गलत कपड़े पहनने पर वापस बुला लेते हैं या पंच सितारा होटल में किसी व्यापारी के साथ कॉफी पीने पर भी.
समय आ गया है, अब मोदी को कहना चाहिए कि उन्हें इन सब चीजों के साथ कुछ भी लेना-देना नहीं है. वह देश को तेज विकास और रोज़गार देना चाहते हैं तथा विश्व में भारत की एक मजबूत पहचान कायम करना चाहते हैं. उन्हें इसके लिए कम से कम दस साल चाहिए. उन्हें एक ऐसी पार्टी की ज़रूरत है, जो सही राजनीतिक दिशा के साथ पूरी तरह समावेशी हो और सभी को साथ लेकर चलने वाली हो. नरेंद्र मोदी के बारे में बताया भी गया है कि उन्होंने गुजरात में संघ और विहिप को हाशिये पर लाकर विकास को तेज गति दी थी. यह उनके लिए आसान काम नहीं होगा. दरअसल, ऐसा करने में उन्हें अपने मुख्य काम से ध्यान भी भटकाना पड़ सकता है. हो सकता है कि ऐसा करने के बाद भाजपा के नेतृत्व में उनके पास बहुत सारे दोस्त न बचें, लेकिन अगर इस पर कुछ भी न किया जाए, तो इसकी क़ीमत बहुत ज़्यादा हो सकती है. महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना की बीच अंदरूनी रार चल ही रही है. पृथ्वीराज चव्हाण भले ही अपनी पार्टी के चहेते न हों, लेकिन अभी तक पार्टी के सभी मुख्यमंत्रियों (महाराष्ट्र के) में उनकी छवि सबसे ज़्यादा साफ़ है. राज्य में चुनावों में निश्चित रूप से शिवसेना अपना सांप्रदायिक कार्ड खेलेगी और इसमें कोई संदेह नहीं है कि वह मराठी कार्ड भी खेलेगी.
मोदी ने देखा है, जो उनकी पार्टी बहुत पहले देख चुकी है, कि स़िर्फ हिंदू वोट जीत का आधार नहीं है. हिंदू भी आपस में कई जातियों में विभाजित हैं. पिछले 25 सालों में दलित और पिछड़े वर्ग की पार्टियों की सफलता ने कांग्रेस पार्टी के सवर्ण प्रभुत्व वाले विचार को ख़त्म किया है. इसे समाजवाद के रूप में भी देखा गया. आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदू राष्ट्रवादियों के लिए इस उत्पीड़न को शर्म की बात बताया था. उन्होंने कहा कि पीड़ित जातियों ने खुद इस उत्पीड़न को स्वीकार किया था, क्योंकि मुस्लिम शासन के समय में उक्त जातियां अपने हिंदू (उच्च जाति के) उत्पीड़कों के साथ एकता प्रदर्शित करना चाहती थीं. अब जब इतिहास लेखन की बातें और तेज होंगी, तो इस तरह की और बातें भी सामने आने वाली हैं. लेकिन, यह बताता है कि हिंदू राष्ट्रवादी इस बात को जानते हैं कि हिंदू बहुलवाद एक कोरी कल्पना ही है. महान नेता अक्सर नए गठबंधन बनाते हैं और अपनी पार्टी को दोबारा सांगठनिक रूप से मजबूत करते हैं. फ्रैंकलिन डिलानो रूजवेल्ट ने अफ्रीकी अमेरिकीयों को डेमोक्रेटिक पार्टी में रिकू्रट किया, यह जानते हुए कि उनका अब्राहम लिंकन की रिपब्लिकन पार्टी के साथ पुराना नाता है. मार्गरेट थैचर ने लेबर पार्टी से वर्किंग क्लास का वोट खींच लिया था. टोनी ब्लेयर अपने कार्यकाल में वह वोट वापस ले आए और उपनगरीय मध्यमवर्गीय मतों को टोरियों से छीन लिया. एक क्रांतिकारी बनने के लिए 64 वर्ष की उम्र पर्याप्त है. यह बात मोदी के लिए है. वह भारत का विकास भी करना चाहते हैं. हाल के समय में कुछ गतिरोधों को छोड़ दिया जाए, तो विपक्ष में एक खालीपन रहा ही है. मोदी को जन्मदिन की देर से शुभकामनाएं.
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