मनमोहन सिंह ऐसे प्रधानमंत्री बन गए हैं, जिनके कोयला घोटाले संबंधी बयान पर सुप्रीम कोर्ट ने विश्‍वास नहीं किया और कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को शपथपत्र के साथ अपना बयान अदालत में दाखिल करना होगा. मनमोहन सिंह भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्हें अपना बयान शपथपत्र के साथ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करना पड़ा. मनमोहन सिंह सरकार के अटॉर्नी जनरल सुप्रीम कोर्ट में बार-बार झूठ बोलते रहे, उनके क़ानून मंत्री बार-बार झूठ बोलते रहे. उनके न्याय सचिव और क़ानून सचिव सुप्रीम कोर्ट में ग़लत हलफनामे देते रहे. 

Santosh-Sirहमने कोयला घोटाले पर सबसे ज़्यादा इसलिए ध्यान दिया, क्योंकि जब यह घोटाला हुआ था, तो इसकी पहली जानकारी भारतीय जनता पार्टी के एक सांसद को मिली थी. उन सांसद ने इस घोटाले का ज़िक्र अपनी पार्टी के अध्यक्ष और महामंत्री सहित कई लोगों से किया, लेकिन उन्होंने इस घोटाले को नहीं उठाया. फिर यह घोटाला एक पत्रकार के पास पहुंचा. पत्रकार के अख़बार ने इस घोटाले को उठाने से मना कर दिया. तब हमें लगा कि इसके पीछे ज़रूर कोई लंबा और गंभीर षड्यंत्र है. तो फिर हमने इसकी छानबीन शुरू की. हमारी छानबीन ने हमें बताया कि कोयला घोटाला ऑक्टोपस की तरह सत्ता चलाने वाले तमाम अंगों में फैला हुआ है, जिनमें राजनेता, ब्यूरोक्रेट्स, कॉरपोरेट, अंडरवर्ल्ड और जर्नलिस्ट शामिल हैं. इनमें कुछ का सीधा रिश्ता है और कुछ का परोक्ष रिश्ता है.
जब हमारी जांच पूरी हो गई, तो हमने उसे हिम्मत के साथ दिखाया. हमारे ऊपर दबाव आए, प्रलोभन आए. हम यह नहीं कहते कि हम बहुत बहादुर हैं, लेकिन हमने उन सारे दबावों और प्रलोभनों को एक किनारे कर दिया और इस घोटाले पर सतत नज़र रखी, जांच भी जारी रखी और कई अंकों में फॉलोअप स्टोरियां कीं. एक कवर स्टोरी की हेडिंग थी कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जेल जा सकते हैं. हमें इसकी तस्दीक मनमोहन सिंह के नज़दीकी वरिष्ठ क़ानूनी सलाहकारों द्वारा हुई और साथ ही सुप्रीम कोर्ट की जांच के ऊपर पैनी नज़र रखने वाले कुछ भूतपूर्व जजों की बातचीत से हमें लगा कि मनमोहन सिंह इस कोयला घोटाले में प्रत्यक्ष रूप से शामिल हैं.
और, जब सीबीआई के जज ने बीते 11 मार्च को भूतपूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आरोपी बनाने की बात की, तो हमें यकीन हो गया कि हमारी रिपोर्ट सही थी. हालांकि, हमारी रिपोर्ट सही होने का एक और प्रमाण हमारे पास था. हमने मनमोहन सिंह को लेकर एक और स्टोरी की थी, जिसमें उनकी पत्नी, बहन और तत्कालीन सेनाध्यक्ष पद पर दावा करने वाले जनरल विक्रम सिंह के रिश्ते की बात हमने की थी. स्टोरी बाज़ार में आई, उसके साथ ही प्रधानमंत्री कार्यालय ने उसका खंडन जारी कर दिया. पर मजे की बात यह कि खंडन हमें नहीं भेजा, बाकी सबको भेज दिया. यानी जिसने रिपोर्ट छापी, उसे खंडन नहीं भेजा. शायद उन्हें लगा कि हमारे पास इस संबंध में और जानकारी होगी और हम इसकी फॉलोअप स्टोरी करेंगे. कोयला घोटाले के ऊपर जब हमने लिखा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जेल जा सकते हैं, तो प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस रिपोर्ट के ऊपर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. शायद तत्कालीन प्रधानमंत्री का कार्यालय इस विषय की गंभीरता को समझता था. इसीलिए उसने इसका कोई खंडन जारी नहीं किया.
मनमोहन सिंह ऐसे प्रधानमंत्री बन गए हैं, जिनके कोयला घोटाले संबंधी बयान पर सुप्रीम कोर्ट ने विश्‍वास नहीं किया और कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को शपथपत्र के साथ अपना बयान अदालत में दाखिल करना होगा. मनमोहन सिंह भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्हें अपना बयान शपथपत्र के साथ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करना पड़ा. मनमोहन सिंह सरकार के अटॉर्नी जनरल सुप्रीम कोर्ट में बार-बार झूठ बोलते रहे, उनके क़ानून मंत्री बार-बार झूठ बोलते रहे. उनके न्याय सचिव और क़ानून सचिव सुप्रीम कोर्ट में ग़लत हलफनामे देते रहे. मनमोहन सिंह सरकार के सीबीआई के डायरेक्टर ऐसे डायरेक्टर बन गए, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में लिखकर यह कहा कि रिपोर्ट में कोई छेड़छाड़ नहीं हुई और फिर दोबारा हलफनामा दिया कि रिपोर्ट में छेड़छाड़ हुई और फिर कहां-कहां छेड़छाड़ हुई, यह भी उन्होंने बताया. मनमोहन सिंह की सरकार को छोड़ दें, मनमोहन सिंह के बारे में बात करें. मनमोहन सिंह कोयला मंत्री थे. क्या मनमोहन सिंह ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिसके न आंख थी, न कान थे? आख़िर वह सरकार चला कैसे रहे थे? जिस विषय पर तत्कालीन कोयला सचिव उन्हें बार-बार कह रहे हों कि यह प्रक्रिया ग़लत है और उसे मनमोहन सिंह अनदेखा कर रहे हों, तो क्या इसके लिए मनमोहन सिंह को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए?
जब यह कोयला घोटाला सामने आ गया, तब मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते उनके वरिष्ठ मंत्रियों ने, वकील मंत्रियों ने कहा कि यह जीरो लॉस है और सीएजी की रिपोर्ट ग़लत है, कोई ऩुकसान हुआ ही नहीं, क्योंकि कोयला तो ज़मीन के अंदर ही दबा हुआ है. मनमोहन सिंह उन बयानों को सुनते रहे और शायद उन्हें अपनी टेबल से क्लियर भी करते रहे, क्योंकि यह घोटाला मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्वकाल में उनके कोयला मंत्री रहते हुआ था. इसलिए यह मानना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट में जो भी दलीलें दी जाती रहीं या राजनीतिक तौर पर उनके मंत्री जो रणनीति बनाते रहे, उनमें मनमोहन सिंह की सहमति अवश्य रही होगी.
अब मनमोहन सिंह को यह बयान देना चाहिए कि जिस नुक़सान की बात सीएजी ने कही थी यानी कि देश को 1.86 लाख करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ है, वह रकम अब दो लाख नौ हज़ार करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है, क्योंकि दो लाख नौ हज़ार करोड़ रुपये नीलामी के ज़रिये सरकार के पास आ चुके हैं. और, यह स़िर्फ 33 कोल ब्लॉक्स की नीलामी में हुआ है. अभी दो सौ के आसपास कोल ब्लॉक्स की नीलामी होनी बाकी है. हम यहां याद दिला दें, हमने बार-बार कहा कि यह कोयला घोटाला 26 लाख करोड़ रुपये का है, यह 1.76 या 1.86 लाख करोड़ रुपये का घोटाला नहीं है. इसके ऊपर सीएजी भी खामोश रही और संसद भी. अब हमें लगता है कि यह कोयला घोटाला 26 लाख करोड़ रुपये से भी ज़्यादा बड़ा साबित होने जा रहा है, क्योंकि जब बाकी कोल ब्लॉक्स की नीलामी होगी और अभी जिस तरह से नीलामी में पैसा आ रहा है, उससे लगता है कि यह कोयला घोटाला 40 लाख करोड़ रुपये के आसपास पहुंचेगा.
हमें तो पिछली संसद के ऊपर भी थोड़ी हैरानी होती है. हमने राजनीतिक पार्टियों को कोयला घोटाले के बारे में अपनी छपी हुई रिपोर्ट्स भेजीं, सांसदों को भेजीं, लेकिन किसी ने उसके ऊपर ध्यान नहीं दिया. अगर सुप्रीम कोर्ट सजग न होता, तो कोयला घोटाला कभी देश के सामने आ नहीं सकता था, क्योंकि यह घोटाला इतनी सोच-समझ की रणनीति के साथ हुआ है कि इसके बारे में खुलासा होना असंभव था. इसका श्रेय स़िर्फ और स़िर्फ सुप्रीम कोर्ट को जाता है. पिछली संसद भी यह श्रेय ले सकती थी. यहां हम पिछली संसद की अवमानना नहीं कर रहे हैं, स़िर्फ यह बता रहे हैं कि पिछली संसद भ्रष्टाचार को लेकर गंभीर थी ही नहीं, उसके लिए भ्रष्टाचार कोई मुद्दा था ही नहीं और देश की व्यवस्था ठीक करने में उसकी रुचि ही नहीं थी. शायद इसीलिए उस संसद के ज़्यादातर सांसद हार गए और आज की संसद नए सांसदों की संसद है. पर हमें लगता है कि यह संसद भी भ्रष्टाचार को लेकर शायद उतनी गंभीर नहीं है.
कोयला घोटाला एक ऐसा घोटाला है, जो देश के लिए आईने का काम कर सकता है. कौन-सा ऐसा बड़ा कॉरपोरेट हाउस है, जो कोयला घोटाले में शामिल नहीं रहा? कुछ बड़े मीडिया समूहों ने भी कोल ब्लॉक्स पाने में सफलता हासिल की थी. कोल ब्लॉक एक ऐसा विषय है, जिस पर भविष्य में शोध होगा. पर सबसे ज़्यादा अफ़सोस अपने साथियों पर होता है कि इतना बड़ा मुद्दा सामने रहा, लेकिन किसी प्रिंट या टेलीविजन के पत्रकार ने इसकी परतें खोलने में रुचि नहीं दिखाई. अब कई टेलीविजन चैनल और पत्रकार दावा करते हैं कि उन्होंने सबसे पहले कोयला घोटाले को देश के सामने लाने में रोल प्ले किया. हम सबसे विनम्रतापूर्वक कहते हैं कि आप दावे कीजिए, लेकिन झूठे दावे मत कीजिए, क्योंकि यह चीज हमने 2011 में ही 26 लाख करोड़ का
महाघोटाला शीर्षक से छाप दी थी. और, 2013 में जब सारी बात सामने आने लगी और सुप्रीम कोर्ट का डंडा सीबीआई के ऊपर चलने लगा, तब जाकर आपको याद आया कि देश में कोई कोयला घोटाला भी हुआ है. हमें डर है कि आगे चलकर इस कोयला घोटाले में तत्कालीन बड़े राजनीतिक दलों के कुछ अध्यक्षों के भी नाम आ सकते हैं. और, जिन लोगों को इसका फ़ायदा हुआ है, उन्होंने अपने उस फ़ायदे का हिस्सा कुछ राजनीतिक दलों के पास भी शायद पहुंचाया हो. हमें तो सोचते हुए भी डर लगता है कि अगर यह सच्चाई सामने आई, तो देश के लोगों का विश्‍वास राजनीतिक दलों की ईमानदारी से उठ जाएगा. अब तक राजनीतिक दल जाति, धर्म, संप्रदाय के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाते रहे, लेकिन भ्रष्टाचार की इस महागंगा में राजनीतिक दल भी महान पुण्य एक समझौते के तहत कहीं कमा चुके हों और उसका खुलासा हो जाए, तो यह देश के लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ा अभिशाप साबित होगा.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here