गांव व शहर के साथ-साथ बिहार की राजधानी पटना को एक सूत्र में पिरोने की केंद्र व राज्य सरकार की पुरजोर मुहिम जारी है, लेकिन कोसी के कहर के आगे सरकारों का दम फूल रहा है. सोनमनकी पुल का उद्घाटन कर बिहार सरकार कोसी के दियारा का विकास होने की संभावना देख रही थी, लेकिन कोसी के कहर ने इन संभावनाओं पर ब्रेक लगाना शुरू कर दिया है. कोसी की लाइफ लाइन माना जाने वाला बीपी मंडल पुल समय से पहले जवाब दे गया. 42.5 करोड़ की लागत से सोनमनकी पुल का निर्माण कराया गया था. कोसी व बागमती नदी पर स्वीकृत अन्य दो पुल नहीं बन पाने की वजह से कोसी की लाइफ लाइन नहीं बन सके, बल्कि लाइफ लाइन पुल माने जाने वाले बीपी मंडल पुल को बचाने के चक्कर में 17 करोड़ की लागत से बने स्टील पाइल ब्रिज को कोसी बहा ले गई. 17 करोड़ रुपये से बना पुव महज 17 दिनों के ही अंदर कोसी में बह गया. कोसी, कमला व बागमती का दियारा क्षेत्र सोनमनकी पुल बनने के बाद भी विकास के मामले में हाशिए पर है. 16 नवंबर 2013 को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोनमनकी घाट पर आयोजित सभा के दौरान सोनमनकी पुल का शिलांयास किया और 42.5 करोड़ की लागत से 457 मीटर लम्बे तथा 24 मीटर चौड़े 19 पायों वाले टू लेन पुल को तीस माह के अंदर पूरा करने का आश्वासन दिया. निर्धारित समय से पूर्व ही तैयार किए गए पुल को जनता के लिए सौंपकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने दियारा के सर्वांगीण विकास का दावा किया था. कहा गया था कि कोसी, कमला व बागमती के दियारा को जोड़ने वाला यह पुल विकास के मामले में मील का पत्थर साबित होगा. उत्तर माड़र, सोनमनकी, मधुरा, छमसिया, बेलोर, छिमा, बोझगसका, खैरी खुटहा, सिमराहा, मोरकाही, अमौसी, मोहनपुर, भमरी सहित खगड़िया तथा सहरसा के अन्य इलाकों में विकास का बयार बहने के कयास भी लगाए गए, लेकिन सुगरकोल सहित अन्य दो पुल का निर्माण नहीं होने से सोनमनकी पुल दियारा के विकास का मार्ग प्रशस्त नहीं कर सका. नतीजतन कोसी, बागमती सहित अन्य नदियों के गर्भ से निकली जमीन आज तक विकास के मामले में बंजर ही साबित हुई है. बात अलग है कि उद्योगविहीन कोसी इलाके में विकास की रफ्तार तेज करने के ख्याल से 1984-85 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह के द्वारा कोसी-बागमती नदी के संगम पर निर्मित होने वाले डुमरी पुल का शिलांयास किए जाते ही कोसीवासियों की बांछे खिल गई थीं और विकास का तारा नजदीक दिखने लगा था. तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के द्वारा वर्ष 1990 में डुमरी पुल को आम जनता के नाम सुपूर्द किया गया जिसके बाद तो मानों कोसी के विकास का द्वार ही खुल गया. लेकिन कोसी की विनाशलीला के आगे
कोसीवासियों का सपना बीस वर्षों में ही चकनाचूर होकर रह गया. कोसी के रौद्र रूप की वजह से डुमरी पुल के तीन-तीन पाए जवाब दे गए और पुल के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा. करोड़ों रुपये खर्च किए जाने के बाद भी जब बीपी मंडल पुल पर आवागमन बहाल नहीं किया जा सका तब लगभग 17 करोड़ की लागत से तत्काल स्टील पाइल ब्रिज का निर्माण कराया गया. महज एक साल के लिए बनाए गए इस स्टील पाइल ब्रिज का हाल यह हुआ कि 17 दिन तक भी यह पुल अपने जीवंत होने का प्रमाण नहीं दे सका और कोसी की तेज धारा में नेस्तनाबूत हो गया. कोसी की लाइफ लाइन माने जाने वाले इस पुल के ध्वस्त होते ही एक बार फिर कोसी की व्यवसायिक स्थिति चरमराने लगी. स्थानीय लोगों द्वारा आंदोलन का ताना-बाना बुने जाने के बीच सरकारी स्तर पर नौका सेवा बहाल कर लोगों के आवागमन की परेशानी को दूर करने का प्रयास किया गया. धीरे-धीरे गंभीर होती जा रही समस्या से निजात पाने के लिए राज्य सरकार के द्वारा डुमरी स्टील पाइल ब्रिज का मरम्मत कार्य कराकर किसी तरह छोटे वाहनों के आवागमन के लायक बनाया गया. लेकिन इसके बाद सरकारी उदासीनता की वजह से डुमरी पुल के निर्माण व जीर्णोद्धार की बातें भूला दी गईं. कार्य स्थल पर मरम्मत अथवा जीर्णोद्धार का कार्य नहीं होने की वजह से 22 सितंबर 2014 को स्टील पाइल ब्रिज का लगभग 100 मीटर भाग कोसी की तेज धारा में बह गया.
नवंबर 2014 में जीतन राम माझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपकर नीतीश कुमार सम्पर्क यात्रा पर थे और खगड़िया जिले के बेलदौर में आयोजित होने वाले कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए नीतीश कुमार को जाना था. लेकिन डुमरी पुल पर आवागमन बहाल नहीं होने की वजह से क्षतिग्रस्त डुमरी पुल पर पैदलयात्रा कर नीतीश को कार्यक्रम स्थल पर जाना पड़ा. कार्यक्रम स्थल पर पहुंचते ही तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा तत्काल स्टील पुल निर्माण के लिए 11 करोड़ देने का अश्वासन दिया गया. आश्वासन के मुताबिक पुल निर्माण कार्य तो पूरा नहीं हो सका, लेकिन एसपी सिंघला कंपनी को 50 कारोड़ की लागत से डुमरी पुल के 10 पाए को तोड़ कर झूलता हुआ पुल बनाने का टेंडर दे दिया गया, लेकिन टेंडर देने के महीनों बाद भी पुल का निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका, यहां तक कि कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा लगाए गए उपकरण भी अब जंग लगकर खराब होने लगे हैं. डुमरी पुल पर आवागमन कब तक बहाल होगा या सरकार इसका कोई दूसरा विकल्प खोजेगी, यह तो अब आने वाला समय ही बताएगा. लेकिन खगड़िया जिले के सबलपुर निवासियों का कहना है कि कोसी-बागमती नदी के संगम पर पुल निर्माण के बाद कोसीवासी महज कुछ ही घंटों में पटना पहुंच जाते थे. सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, खगड़िया सहित कोसी के अन्य इलाकों का भी सर्वांगीण विकास होने लगा था.
यही नहीं पड़ोसी देश नेपाल के लोगों का भी भारत के अन्य प्रदेशों से व्यवसायिक संबंध प्रगाढ़ हो चला था. इस पुल की वजह से लोगों को काफी फायदा होता था. डुमरी पुल के क्षतिग्रस्त होने की वजह से 29 अगस्त 2010 से बड़े वाहनों के परिचालन पर प्रशासन द्वारा रोक लगा दी गई, जबकि छोटे वाहनों, बाइक, ठेला, रिक्शा के साथ-साथ लोगों का पैदल चलना जारी रहा. सरकारी स्तर पर नौका सेवा बहाल कर बड़े वाहनों को भी नाव के जरिए पार कराया जाता रहा. लेकिन कभी भी कोसी वासियों के लिए स्थायी समाधान नहीं निकाला गया, जिसकी वजह से वहां के लोगों में काफी नाराजगी है. एनएच के कार्यपालक अभियंता रणविजय सिंह का कहना है कि सरकारी दिशा-निर्देश के आलोक में डुमरी पुल पर आवागमन बाधित कर निर्माण कार्य शुरू किया जाना है. कोसी की बढ़ती जलधारा की वजह से अभी इस समय परेशानियां सामने खड़ी हैं, लेकिन जल्द ही लोगों के लिए आवागमन का राह आसान हो जाएगा.
दियारा पुल बन गया सोनमनकी पुल
बीपी मंडल पुल ध्वस्त होने का बाद अब सोनमनकी पुल भी महज दियारा का पुल बनकर रह गया है. 42.5 करोड़ की लागत से निर्मित सोनमनकी पुल का उद्घाटन होने के बाद उत्तर माड़र, सोनमनकी, मधुरा, छमसिया, बेलोर, छिमा, बोझगसका, खैरी खुटहा, सिमराहा, मोरकाही, अमौसी, मोहनपुर, भमरी सहित खगड़िया तथा सहरसा के लोगों ने विकास का सपना संजोया था, लेकिन सोनमनकी पुल के बाद कोसी तथा बागमती नदी पर दो अन्य पुल नहीं बन पाने की वजह से कोसीवासियों का सपना चकनाचूर होकर रह गया. खेतों की पगडंडियोंे पर सफर करने वाले महादलित समाज के लोगों के लिए विकास अब भी आकास कुसुम बना हुआ है. बाढ़ का मौसम आते ही नाव की सवारी करने को मजबूर अधिकांश दियारावासियों को अब भी समस्याओं से निजात नहीं मिल सका है. खगड़िया जिले के सोनमनकी निवासियों का कहना है कि सोनमनकी पुल के बाद कोसी तथा बागमती नदी पर दो अन्य पुल का निर्माण कर अगर सहरसा जिले से जोड़ दिया जाता, तो न केवल कोसी, कमला व बागमती नदी के दियारा का विकास होता बल्कि कोसीवासियों के लिए सोनमनकी पुल भी लाइफ लाइन बन सकता था. लेकिन इस समय सोनमनकी पुल महज दियारा का पुल ही बनकर रह गया है. स्थानीय लोगों के मुताबिक खगड़िया के उत्तरी क्षेत्र तथा सहरसा के दक्षिणी क्षेत्र अर्थात कोसी और बागमती का यह दियारा इलाका फसल के मायने में काफी महत्व रखता है. महादलित बहुल इस इलाके के किसानों द्वारा मेहनत मजदूरी कर फसलें उगाई जाती हैं. लेकिन आवागमन का साधन आसान नहीं होने की वजह से किसानों को औने-पौने दाम पर ही अनाज को बेचना पड़ता है. हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आजादी के कई दशक बीत जाने के बाद भी यहां के लोगों को बैलगाड़ी अथवा घोड़ों की ही सवारी करनी होती है. दूसरी तरफ फरकिया विकास मंच के बुद्वन सदा तथा समाजसेवी सुभाष चन्द्र जोशी ने सरकार की नियत पर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि ध्वस्त हुए बीपी मंडल पुल का जीर्णोद्धार तो होना ही चाहिए. साथ ही सोनमनकी पुल के बाद कोसी तथा बागमती नदी पर दो अन्य पुल का निर्माण कर कोसीवासियों की किस्मत संवारी जा सकती है.– मुकेश कुमार
जुगाड़ पुल के सहारे जनता
करीब साढ़े चार वर्षों से क्षतिग्रस्त कोसी की लाइफ लाइन माने जाने वाला बीपी मंडल पुल अभियंताओं की काबिलयित पर सवाल खड़ा कर रहा है. लेकिन नाविकों की काबिलियत का लोहा मानने के लिए शासन-प्रशासन को मजबूर कर रहा है. नाविकों के द्वारा बनाए गए जुगाड़ पुल पर सुरक्षा के दृष्टिकोण से बार-बार आवागमन बाधित कर जिला प्रशासन आमजन को चाहे जो भी संदेश दे रहा हो, लेकिन हकीकत यह है कि जुगाड़ पुल ही कोसीवासियों की लाइफ लाइन माने जाने लगा है. यही वजह है कि जब भी क्षतिग्रस्त डुमरी पुल का मरम्मत कार्य का हवाला देकर कई बार नाविकों द्वारा निर्मित जुगाड़ पुल पर पूरी तरह रोक लगाने की प्रशासनिक कोशिश की गई, तो लोगों ने यह कहकर विरोध किया कि पहले स्टील पाइल ब्रिज को चलने लायकबनाया जाए फिर डुमरी पुल तथा जुगाड़ पुल पर परिचालन बाधित किया जाए. पुल पर पूर्णत: परिचालन ठप्प होने की वजह से नदी की दोनों तरफ रहने वाले लोग अपने-अपने क्षेत्रों में ही रहने को विवश हो जाएंगे. जनसहयोग से बनाए गए नाव के जुगाड़ पुल पर रोक लगाना स्थानीय लोगों के साथ सरासर अन्याय है. बात अलग है कि आवागमन के लिए नाविकों द्वारा बनाया गया पुल नाविकों के साथ-साथ दबंगों के लिए कामधेनु साबित होने लगा. कोसीवासियों की मजबूरी को देखते हुए जुगाड़ पुल से गुजरने के एवज में वाहन चालकों से मनमाने रकम की वसूली आम बात हो गई. कोसी की तेज धारा तथा जुगाड़ पुल पर मनमाने रकम की वसूली होने के कारण प्रशासन के द्वारा भले ही जुगाड़ पुल बंद करा दिया गया हो, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि कोसी के रौद्र रूप के आगे सरकार भले ही असहाय नजर आती हो, लेकिन नाविकों द्वारा बनाया गया जुगाड़ पुल कोसीवासियों के लिए लाइफ लाइन साबित हो सकता है. इधर एनएच विभाग के कार्यपालक अभियंता रणविजय सिंह का कहना है कि ग्रामीणों को समझा-बुझाकर पुल के दोनों छोर पर मरम्मत कार्य पूरा होने तक परिचालन को पूर्णत: बाधित किया गया है. जिला प्रशासन के आदेशानुसार डुमरी पुल पैदल समेत दो पहिया वाहनों के परिचालन पर भी रोक लगा दी गई है. दूसरी तरफ रालोसपा के प्रधान महासचिव शैलेन्द्र वर्मा, सीपीआई के विनय सिंह, अमीर सिंह, कुलदीप सिंह आदि ने कार्यपालक अभियंता को आवेदन देकर वैकल्पिक मार्ग बहाल किए बगैर डुमरी पुल पर आवागमन बंद करने के प्रति नाराजगी व्यक्त की है और कहा है कि कोसीवासियों के लिए लाइफ लाइन माने जाने वाले डुमरी पुल पर अगर अविलंब परिचालन शुरू नहीं किया गया, तो कोसी आंदोलन की आग में झुलस सकता है.– गीता कुमार