कोकराझार से कश्मीर तक की साइकिल यात्रा आरंभ हो गयी है. साठ दिनों का सफर तय करते हुए यह यात्रा कश्मीर पहुंचेगी. कोकराझार असम के दक्षिण पश्चिम में है. यह क्षेत्र बोडोलैंड टैरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्स के अंतर्गत आता है. इसके अंतर्गत असम के और तीन जिले चिरांग, बाक्सा और उदालगिरि आते हैं. चार साल पहले यहां भीषण नस्लीय हिंसा हुई थी. यह हिंसा न सिर्फ बोडोलैंड टैरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्स के लिए बल्कि पूरे असम के लिए संकट का दौर था. इस हिंसा में 114 लोग मारे गए थे और चार लाख लोग बेघर हो गए थे. नस्लीय हिंसा में सब एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे. बोडो और मुस्लिम के बीच अविश्वास की खाई बढ़ती जा रही थी. कोकराझार और चिरांग में हजारों लोग अपना घर छोड़कर शरणार्थी शिविरों में पनाह लेने को बाध्य हो गए थे. जातीय हिंसक संघर्ष स्थायी तत्व बनता जा रहा था. बोडो, बंगाली मुस्लिम व आदिवासियों के बीच निरंतर अपनी पहचान व जमीन के मुद्दे पर संघर्ष होता रहता है. आजादी के बाद हिंदू व मुस्लिमों के बीच संघर्ष हुआ, जिसमें मूल निवासी बोडो मुस्लिम समुदाय के खिलाफ रहे. राज्य की जनसंख्या में बोडो 5 प्रतिशत हैं और मुस्लिम आबादी 33 प्रतिशत है. बोडो व गैर बोडो समुदायों के बीच गहरे अविश्वास का फायदा कुछ असामाजिक तत्व बखूबी उठा रहे थे.
जयनाल हुसैन कहते हैं कि इस माहौल के बीच सर्वसेवा संघ गांधीजनों ने पहल की और इस क्षेत्र के बोडो, मुस्लिम, असमी, राजबंशी राभा, नेपाली, संथाली आदिवासी, बिहारी, बंगाली को दहशत से उबारकर यहां संवाद का माहौल बनाया.
चंदन पाल के मुताबिक पिछले चार वर्षों से बोडोलैंड टैरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्स के चार कोकराझार, चिरांग, बाक्सा, उदालगिरि और आसपास के कुछ जिलों के ग्राम मुखिया युवा पीढ़ी, शिक्षकों को एकजुट कर शांति की पहल की.
हिंसा के लिए बदनाम कोकराझार से पूरे देश में मोहब्बत का पैगाम लेकर निकले हैं यहां के युवक और युवतियां. इसे नेतृत्व प्रदान कर रही हैं सुप्रसिद्ध गांधीवादी नेत्री राधा भट्ट. गत तीन सितंबर को यह यात्रा बीटीडीए के सचिवालय भवन से आरंभ हुई. इस यात्रा को बीटीसी के उपप्रमुख खंपा बरगयारी, बीटीसी के पर्यटन विभाग के प्रमुख मोहनब्रह्म ने रवाना किया. यह यात्रा पश्चिम बंगाल में प्रवेश कर गयी है. जगह- जगह लोगों में बढ़ती हिंसा के प्रति आम लोगों की चिंता यात्रा के प्रति दिलचस्पी से परिलक्षित हो रही है. यह यात्रा बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर की 3500 किलोमीटर सफर तय कर श्री नगर में पूर्ण होगी.
इस यात्रा में असम के सिंग, नेपाली, बिहारी, बंगाली और असमी समुदाय का प्रतिनिधित्व है. इस यात्रा की खासियत है कि तीन युवतियां आशा बसुमतारी, जमुना बसुमतारी, जयश्री राय भी साइकिल चलाकर सफर में शामिल हैं. इनके अभिभावकों ने शांति और भाइचारे की अहमियत को समझा है. इसके अलावा लखिन्द्र बसुमतारी ने उन्हें यह पैगाम लोगों तक पहुंचाने को कहा है. इसके अलावा विनय खुंगर ब्रह्मा, धनंजय नाथ, महेन्द्र नाथ, खारगेश्वर नाथ, अमर कुमार दत्त, हर कुमार नाथ, गुतल बसुमतारी, अब्दुल मोजीद, शहीदुल इस्लाम, शोइदुल इस्लाम, बैदुल इस्लाम, इदी मुसाराय, विम्बेश्वर गोरई, धर्मेन्द्र राजपूत, जायनाल होसेन हैं. यहां के लोगों ने कभी अपना अमन-चैन खोया था, लेकिन अब ये लोग देश के प्रति अपने फर्ज को समझ रहे हैं. ‘हिंसा नाई, शांति चाई’ नारे के उद्घोष के साथ निकल पड़े हैं. इनका सड़कों पर आना दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन रहा है. इसका एक उदाहरण जलपाईगुड़ी के धूपगुड़ी के सुकांता महाविद्यालय में देखने को मिला. जब वे लोग यहां पहुंचे तो कई कॉलेज के युवक और युवतियां भी इनके साथ चलने लगीं. दरअसल वे यह संदेश दे रहे थे कि हिंसा पर चुप्पी कतई उचित नहीं है. इसके विरोध में चुप्पी तोड़कर आगे आना होगा. अमन-चैन की बहाली के लिए जगह-जगह लोगों से संवाद स्थापित किया जा रहा है.
यात्रा में शामिल युवक अशांति और अहिंसा के कारकों तथा देश के ज्वलंत मुद्दों के खिलाफ लोगों को जागरूक कर रहे हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी यात्रा ने कहा है कि यात्रा अपने मकसद में कामयाव हो. त्रिपुरा के हरिपद विश्वास कहते हैं कि यह एक सार्थक पहल है. सर्वोदय समाज के आदित्य पटनायक कहते हैं कि हम महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती मनाने जा रहे हैं तो गांधी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि लोगों तक उनके संदेश को पहुंचाया जाए. असम में जो पहल चार वर्ष पहले शुरू की गई थी, उसे अब यहां के युवक दूसरे क्षेत्रों में ले जा रहे हैं, यह एक अहम बात है.
हिंसा के खिलाफ नहीं चेते तो मानव के लिए ख़तरा: राधा भट्ट
राधा भट्ट का नाम आज गांधी-विनोबा युग के बचे हुए थोड़े से गांधीवादियों में प्रमुखता से शुमार किया जाता है. वे आज देश और दुनिया के शीर्षस्थ गांधीवादी संस्थाओं और संगठनों में महत्वपूर्ण पदों पर हैं और इन पदों की जिम्मेदारियों का निर्वाह एक मिसाल की तरह करती रही हैं.
वे अपने जीवन के 83वें साल के सफर में आज जिस मुकाम पर हैं, वह उनकी सूझ-बूझ, दृढ़ता और हिम्मत की उपलब्धि है. वे इस अभियान का नेतृत्व कर रही हैं. उनका कहना है कि पूरी दुनिया में हिंसा हद से ज्यादा पार कर गयी है. ग्वाटेमाला हो या मैक्सिको या उत्तरी अमेरिका, हर जगह हिंसा के कारण लोग विस्थापित हो रहे हैं. ऐसे समय में ये बच्चे समानता, अहिंसा का संदेश देने को निकले हैं. शांति और सद्भाव लोगों की मौलिक भूख है. इस यात्रा को पूरे विश्व की हिंसा के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए. पिछले चार वर्षों से शिविरों के माध्यम से युवाओं को प्रशिक्षित किया गया हैै. इसका नतीजा यह निकला है एक समुदाय से दूसरे समुदाय के बीच नफरत की आग खत्म हो गयी है. कश्मीर तक की यात्रा के सवाल पर उनका कहना है कि जितना संवेदनशील कश्मीर है, उतना ही संवेदनशील है असम. आज संवेदना का स्तर कम हो रहा है. उस संवेदना के स्तर को जगाने की आवश्यकता है. कट्टरता समाज के लिए घातक है, तो फिर क्यों न अहिंसावादी इस कट्टरता के खिलाफ बड़ी लकीर खींचें.