भाद्रपद्र शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन गणेश जी कि विशेष पूजा अर्चना की जाती है. भाद्रपद्र कृष्ण चतुर्थी को गणेश जी का जन्म हुआ था, इस कारण यह तिथि और भी विशेष बन जाती है. इस दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत होकर भगवान श्री गणेश जी की प्रतिमा बनाई जाती है, गणेश जी की इस मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाकर षोड्शोपचार से पूजन किया जाता है, और लडडुओं का भोग लगाया जाता है. ज्योतिष में भी श्रीगणेश को चतुर्थी का स्वामी कहा गया है.
भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन मिथ्या कलंक देने वाला होता है. इसलिए इस दिन चंद्र दर्शन करना मना होता है. इस चतुर्थी को कलंक चौथ के नाम से भी जाना जाता है.
13 सितंबर 2018 को इस व्रत का प्रतिपादन होगा. कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के इस तिथि पर चंद्र दर्शन करने के पश्चात मिथ्या कलंक लग गया था.
गणेश चतुर्थी और कलंक चतुर्थी व्रत कथा
द्वारिकापुरी में सत्राजित नाम का एक सूर्यभक्त निवास करता था, उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उसे एक अमूल्य मणि प्रदान की. मणि के प्रभाव स्वरूप किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता है और राज्य आपदाओं से मुक्त हो जाता है. एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने राजा उग्रसेन को उक्त मणि प्रदान करने की बात सोची, परंतु सत्राजित इस बात को जान जाता है. इस कारण वह मणि अपने भाई प्रसेन को दे देता है.
परंतु एक बार जब प्रसेन वन में शिकार के लिए जाता है तो वहां सिंह के द्वारा मृत्यु को प्राप्त होता है और सिंह के मुंह में मणि देख कर जांबवंत शेर को मारकर वह मणि पा लेता है, प्रजा को जब जांबवंत के पास उस मणि होने की बात का पता चलता है तो वह इसके लिए कृष्ण को प्रसेन को मारकर मणि लेने की बात करने लगते हैं. इस आरोप का पता जब श्रीकृष्ण को लगता है तो वह बहुत दुखी होते हैं और प्रसेन को ढूंढने के लिए निकल पड़ते हैं.
घने वन में उन्हें प्रसेन के मृत शरीर के पास में सिंह एवं जाम्बवंत के पैरों के निशान दिखाई पड़ते हैं. वह जाम्बवंत के पास पहुंच कर उससे मणि उसके पास होने का कारण पूछते हैं तब जांबवंत उन्हें सारे घटना क्रम की जानकारी देता है. जाम्बवंत अपनी पुत्री जाम्बवती का विवाह श्रीकृष्ण से कर देता है और उन्हें स्यमंतक मणि प्रदान करता है.
प्रजा को जब सत्य का पता चलता है तो वह श्री कृष्ण से क्षमा याचना करती है. यद्यपि यह कलंक मिथ्या सिद्ध होता है परंतु इस दिन चांद के दर्शन करने से भगवान श्री कृष्ण को भी मणि चोरी का कलंक लगा था और श्रीकृष्ण जी को अपमान का भागी बनना पड़्ता है.
चंद्रमा के दर्शन करने से व्यक्ति कलंक का भागी बनता है
इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से व्यक्ति कलंक का भागी बनता है. क्योंकि एक बार चंद्रमा ने गणेश जी का मुख देखकर उनका मजाक उड़ाया था इस पर क्रोधित होकर गणेश जी ने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि, आज से जो भी तुम्हें देखेगा उसे झूठे अपमान का भागीदार बनना पडे़गा परंतु चंद्रमा के क्षमा याचना करने पर भगवान उन्हें श्राप मुक्त करते हुए कहते हैं कि वर्ष भर में एक दिन भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी को चंद्र दर्शन से कलंक लगने का विधान बना रहेगा.
चतुर्थी व्रत से सभी संकट-विघ्न दूर होते हैं. चतुर्थी का संयोग गणेश जी की उपासना में अत्यंत शुभ एवं सिद्धिदायक होता है. चतुर्थी का माहात्म्य यह है कि इस दिन विधिवत् व्रत करने से श्रीगणेश तत्काल प्रसन्न हो जाते हैं. चतुर्थी का व्रत विधिवत करने से व्रत का सम्पूर्ण पुण्य प्राप्त हो जाता है.
यह कथा चंद्रमा देखने के पश्चात् की जाती है, क्योंकि इस दिन चंद्रमा देखना वर्जित है अगर कोई देख लेता है तो उस पर झूठा कलंक लग जाता है. उस कलंक को दूर करने के लिए की जाती है.
पूजन विधि
– शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन गुरुवार होने पर गणेश जी को सर्वोषधि और सुंगन्धित द्रव्य पदार्थों से उपलिप्त करें .
– भगवान विघ्नेश के सामने बैठकर ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन कराएं.
– भगवान शंकर जी पार्वती जी और गणेश जी की पूजा करके सभी पितरों और ग्रहों की पूजा करें.
– कलश स्थापित करके उसमें सप्तमृत्तिका गुग्गल आदि द्रव्य तथा सुगन्धित पदार्थ छोड़े.
– शंकर जी पार्वती जी और गणेश जी को पंचामृत से स्नान करा कर शुद्ध जल से स्नान कराएं.
– शंकर जी पार्वती जी और गणेश जी को सिंहासन प्रदान करें.
– शंकर जी और गणेश जी को यज्ञोपवित पहनाएं.
– सभी को वस्त्र अर्पित करें.
– चन्दन रोली सिन्दूर और फिर चांवल चढ़ाएं.
– सभी देवी देवताओं को पुष्प माला और आभूषण से अलंकृत करें.
– गणेश जी को अष्टदुर्वा अर्पित करें.
– मिष्ठान का भोग लगाएं, गणेश जी को मोदक और बूंदी के लड्डू अति प्रिय हैं उनका भोग अवश्य लगाएं.
– उसके पश्चात् ऋतु फल अर्पित करें.
– पान लौंग इलायची और द्रव्य चढ़ाएं.
– उसके पश्चात् गणेश जी की और शंकर जी की आरती करें. जो लोग मूर्ति स्थापित करे वह पूर्ण वाले दिन जिस दिन विसर्जन करे उस दिन हवन अवश्य करें.