-विभाष
आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर एक ओर जहां सभी राजनीतिक पार्टियों ने कमर कसनी शुरू कर दी है, वहीं मिथिलांचल की प्रतिष्ठित दरभंगा सीट को लेकर बीजेपी में संशय की स्थिति बनी हुई हैं. यहां से वर्तमान सांसद कीर्ति आजाद ने क्रिकेट की दुनिया को अलविदा कह राजनीति को अपने करियर के रूप में चुना था. उन्होंने दो टर्म तक दरभंगा के राजनीतिक मैदान पर सांसद के रूप में अपने विरोधियों को पटकनी भी दी. लेकिन 2014 में चुनाव जीत कर पूर्ण बहुमत के साथ जैसे ही बीजेपी सत्ता में आई, विरोधियों के साथ-साथ पार्टी के कुछ बड़बोले नेताओं पर भी पार्टी ने लगाम लगाना शुरू कर दिया. डीडीसीए के प्रकरण पर पार्टी आलाकमान के निर्देश की अवेहलना कीर्ति को मंहगी पड़ गई. पार्टी ने अपनी साख को बनाए रखने और ऐसे उपजते बागी सांसदों को सबक सिखाने के उद्देश्य से कीर्ति को निलंबित करना ही उचित समझा. इधर, कीर्ति को पार्टी से निलंबित किए जाने के बाद से बीजेपी में दावेदारी को लेकर खिचड़ी पकनी शुरू हो गई है. चुनाव में उम्मीदवारी को लेकर पार्टी के पुराने कार्यकर्ता से लेकर मौजूदा विधायक तक अभी से ही रेस में शामिल नजर आ रहे हैं. इतना ही नहीं, अन्य राजनीतिक दलों के नेता भी कई बीजेपी नेताओं के संपर्क में हैं. ऐसे में 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर अभी से ही बिसात बिछनी शुरू हो गई हैं.
कीर्ति के निलंबन के बाद से ही कई विरोधी गुट यहां की राजनीति में सक्रिय हो गए हैं. यहां तक कि कभी इनके खासमखास लोगों ने भी इनसे दूरियां बना ली है. बीजेपी के लिए भी आगामी चुनाव में उम्मीदवार खड़ा करना कम जोखिम भरा नहीं होगा. बीजेपी से टिकट नहीं मिलने की सूरत में कीर्ति कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं. गौरतलब है कि कीर्ति के पिता व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद पुराने कांग्रेसी नेता रहे हैं. दरभंगा लोकसभा सीट से तीसरी बार सांसद चुने गए कीर्ति ने पहली बार वर्ष 1999 में चुनाव जीत कर आरजेडी के कद्दावर नेता अली अशरफ फातमी को करारी शिकस्त दी थी.

इस क्षेत्र में मैथिल ब्राह्मण व मुस्लिम आबादी की संख्या अधिक होने के कारण हमेशा से ये दो वर्ग ही चुनाव में निर्णायक भूमिका अदा करते रहे हैं. ब्राह्मण बहुल इस इलाके में ब्राह्मण उम्मीदवार नहीं होने का फायदा राजद को मिलता रहा. लेकिन जब कीर्ति आजाद ने दरभंगा लोकसभा सीट से पहली बार अपनी किस्मत आजमाई, तो इन्हें ब्राह्मण सहित अगड़ी जाति के लोगों का साथ मिला. लेकिन एक सांसद के रूप में इनका ये अपने क्षेत्र के विकास के लिए कुछ खास नहीं कर पाए. अब जब पार्टी ने कीर्ति को निलंबित कर दिया है, तो ऐसे में मिथिलाचंल की अघोषित राजधानी दरभंगा लगभग सांसद विहीन सी हो गईं है. कीर्ति का पार्टी से निलंबन दूसरे नेताओं के लिए संजीवनी बन गया है. इन सब सवालों को लेकर ‘चौथी दुनिया’ से बातचीत में कीर्ति आजाद ने कहा कि ‘जब तक पार्टी मुझे निष्काषित नहीं करती, तबतक मैं पार्टी में बना हुआ हूं. हालांकि उन्होंने सभी विकल्प खुले होने की भी बात कही. इधर कीर्ति के निलंबन के बाद से कई नेता एकाएक जाग उठे हैं. कीर्ति के निलंबन के बाद से भाजपा के प्रवक्ता शहनवाज हुसैन तीन बार यहां आ चुके हैं. पारिवारिक कार्यक्रम के बहाने ही सही, उन्होंने दरभंगा से अपने प्रेम के जाहिर कर दिया है. इसके सियासी मतलब यही हैं कि वे दरभंगा में अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं.

इधर, मिथिलांचल की राजनीति में पिछले एक दशक से अधिक समय से सक्रिय जदयू के राष्ट्रीय महासचिव संजय झा भी दरभंगा से ताल ठोकने के मूड में दिख रहे हैं. राजनीति में इनका पदार्पण भी बीजेपी के एमएलसी के रूप में ही हुआ था. इसके बाद धीरे-धीरे ये नीतीश कुमार के करीबी होते चले गए. एमएलसी का टर्म पूरा करने के बाद ये जदयू में शामिल हो गए. उसके बाद इन्होंने 2014 में जदयू उम्मीदवार के रूप में दरभंगा सीट से चुनाव भी लड़ा, लेकिन हार गए. हार के बाद कुछ समय तक इन्होंने राजनीति और इस क्षेत्र से दूरी बना ली थी. लेकिन नीतीश कुमार द्वारा जदयू का राष्ट्रीय महासचिव बनाए जाने के बाद ये फिर से एक्टिव हो गए हैं. राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में इन्हें भाजपा से नजदीकी और नीतीश कुमार के चेहेते होने का मिल सकता है. भाजपा के बड़े नेता अरुण जेठली से भी इनका व्यक्तिगत सम्पर्क है. इन सबके मद्देनजर, 2019 में संजय झा दरभंगा से ताल ठोक सकते हैं. इस बारे में ‘चौथी दुनिया’ से बात करते हुए उन्होंने कहा, कि पार्टी उम्मीदवारों का चयन शीर्ष नेता ही करते हैं. मैं इस बारे में कुछ नहीं बोल सकता. वहीं स्थानीय सांसद के बारे में सवाल पूछने पर उन्होंने कहा कि सांसद को क्षेत्र में रहना चाहिए और अपने काम का हिसाब जनता को जरूर देना चाहिए. वैसे चार टर्म से नगर विधायक रहे संजय सरावगी भी गुपचुप तौर पर बीजेपी के चेहरे के रूप में यहां से अपनी उम्मीदवारी को मजबूत बनाए रखने के लिए पार्टी आलाकमान के संपर्क में हैं.

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