लंबा इंतजार… बड़ी ज़रूरत… आसमां तक हिलोरें मारती तमन्नाएं, ख्वाहिशें, चाहतें… शुभ मुहूर्त आखिर आ ही गया…! मुखिया जी को सुविधाजनक, व्यवस्थित, भरोसेमंद, समय की बचत करने वाले उड़नखटोले की सवारी नसीब हो गई…! तिरुपति बालाजी के द्वार माथा टेक मुखिया जी भविष्य के हर सफर की खैर मांगने वाले हैं…! नई उड़ान की शुरुआत इस धार्मिक यात्रा से होना जरूरी भी थी…! एक अनगढ़ जिम्मेदार के हाथों बरसों रही व्यवस्था ने दसों बार मुखिया की जान मुसीबत में झोंकी है… कभी खटारा हो चुके उड़नखटोले के चटकते पंख तो कभी बिना सूचना रद्द हो जाने वाला इसका लायसेंस, मुखिया जी की मुसीबत बना…! किराए से होने वाली मोटी कमीशन राशि के लिए गुजरात और राजस्थान से उड़ान भर कर आने वाले चार्टर ने जमकर खेल रचा…! सरकारी फायदे उठाने के विभाग में ही होती तोड़फोड़, बदलते नियम, लायक नालायक लोगों की आवाजाही ने भी यहां कम धमाल नहीं मचाया…! उम्मीद की जाना चाहिए कि किराए के चार्टर के नाम पर होने वाले करोड़ी खर्च की बचत की पहली उड़ान प्रदेश के लिए शुभ होगी…!

पुछल्ला,अंगूर खट्टे हो गए

सामने आई थाली भूखे छोड़कर सरक जाने के हालात काका जी से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। सिंहासन मिला, छिटक गया। उड़नखटोले की झलक मिलने से पहले ओझल हो गई। दसों खुद के खटोले होने का दंभ भले हो, सरकारी सवारी का सफ़र कुछ ज्यादा ही सुखद लगने जैसा हो सकता था।

खान अशु

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