संगठन तो बुनियादी शर्त है. बिना संगठन के कोई काम कैसे होगा? गांव-गांव में ग्राम शांति सेना का संगठन होना चाहिए, जिसमें पुरुषों एवं स्त्रियों के अलग-अलग दस्ते हों. अपने गांव के महिला दस्ते से कहिए कि बूथ कैप्चरिंग रोकने की अगुवाई उसे करनी चाहिए. पुरुष दस्ते साथ रहें, किंतु नेतृत्व महिलाओं का हो. 
खर्च कैसे इकट्ठा किया जाएगा?
मतदाताओं का वोट, मतदाताओं का उम्मीदवार और मतदाताओं का पैसा, यह बात मन में रखिए. क्या अपने उम्मीदवार के लिए हर मतदाता एक रुपया नहीं दे सकता? प्रति मतदाता एक रुपया (ईच वन रुपी वन) की मांग कीजिए. कुछ लोग ज़्यादा भी देंगे, कुछ लोग नहीं भी देंगे. अगर कुछ रुपया बच जाएगा, तो निर्वाचक मंडल के कोष में जमा रहेगा.
प्रचार का ढंग क्या होगा?
प्रचलित ढंग से बिल्कुल भिन्न.
किस तरह?
हमारा काम चुनाव के काफी पहले शुरू होगा. हम जल्दी में काम नहीं करेंगे. हमारी टोलियां हर गांव, हर मतदाता के पास पहुंचेंगी, ताकि वे समझें कि चुनाव एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें हर मतदाता का स्थान है. हम महत्व मतदाता को देंगे, न कि उसकी जाति, धर्म, वर्ण, वर्ग, भाषा, धन या दल को. हम प्रचार में इन बातों का नाम भी नहीं लेंगे. हम मतदाताओं को बताएंगे कि किस तरह ये बातें कह-कहकर हम स्वयं अपने लोकतंत्र को गंदा और कमजोर बनाते हैं. हमें मतदाता के दिमाग़ में गलत नारे नहीं भरने हैं, उसे समझदार बनाना है.

हमारे उम्मीदवार को यह सब नहीं करना है. मतदाताओं ने जिस व्यक्ति को लोक उम्मीदवार बनाया है, उसे जिताने की ज़िम्मेदारी मतदाताओं की है, निर्वाचक मंडल की है. लोक उम्मीदवार अपने आप नहीं खड़ा हुआ है, उसे मतदाताओं ने खड़ा किया है. वोट खरीदने के लिए एक पैसा भी खर्च नहीं किया जाएगा, न निर्वाचक मंडल करेगा और न उम्मीदवार.

चुनाव में तो और बहुत कुछ होता है. शराब की बोतलें चलती हैं, तरह-तरह की चीजें बांटी जाती हैं, बूथ लूटने के लिए लठैत बुलाए जाते हैं. उनसे जान कैसे बचेगी?
मत कीजिए यह काम, अपने-आप जान बच जाएगी. जिन मतदाताओं ने स्वयं अपना उम्मीदवार तय किया है, क्या वे अपने ही उम्मीदवार से घूस मांगेंगे? ऐसे गलत काम करने की बात तो सोचनी भी नहीं चाहिए. हमारी टोलियों की ज़िम्मेदारी होगी कि चुनाव में किसी प्रकार का भ्रष्ट काम न होने दें, बूथ कैप्चरिंग तो कदापि न होने दें. चुनाव के दिन लोग मतदान केंद्र पर जुलूस बनाकर जाएं और उत्साह के साथ मतदान करें.
बूथ लूटने के लिए लठैत बुलाए जाते हैं, जो बम-बंदूक से लैस होते हैं, उनका मुकाबला कैसे होगा?
उत्तर-कौन नहीं जानता कि बूथ की लूट कैसे होती है? यह कहिए कि लूट कराई जाती है. वोट नहीं, लूट-यह है हमारी राजनीति का प्रचलित रवैया. अगर इस राजनीति को बदलना है, तो बूथ की लूट सबसे पहले ख़त्म करनी पड़ेगी. एक ओर लोक उम्मीदवार खड़ा किया जाए और दूसरी ओर बूथ की लूट जारी रहे, यह कैसे हो सकता है! अगर गांव के लोग डट जाएं और संगठित होकर चौकसी रखें, तो बाहर के लोग गांव में आकर बूथ की लूट कदापि नहीं कर सकते.
लेकिन इसके लिए गांव को संगठित होना पड़ेगा, बिना संगठन के मुकाबला नहीं हो सकता.
संगठन तो बुनियादी शर्त है. बिना संगठन के कोई काम कैसे होगा? गांव-गांव में ग्राम शांति सेना का संगठन होना चाहिए, जिसमें पुरुषों एवं स्त्रियों के अलग-अलग दस्ते हों. अपने गांव के महिला दस्ते से कहिए कि बूथ कैप्चरिंग रोकने की अगुवाई उसे करनी चाहिए. पुरुष दस्ते साथ रहें, किंतु नेतृत्व महिलाओं का हो.
लठैतों के सामने महिलाएं!
जी हां, लठैतों का मुकाबला महिलाएं करेंगी. आग बुझाने के लिए पानी चाहिए. महिलाओं को कमज़ोर मत समझिए. उनकी शक्ति के सामने लठैत और लुटेरे कभी नहीं ठहर सकते.
एक ओर लठैत बूथ लूटते हैं, दूसरी ओर उम्मीदवार मतदाताओं को खरीदने की कोशिश करते हैं. आजकल लगभग सभी उम्मीदवार ऐसा करते हैं. मतदाताओं की भी आदत बिगड़ गई है…
हमारे उम्मीदवार को यह सब नहीं करना है. मतदाताओं ने जिस व्यक्ति को लोक उम्मीदवार बनाया है, उसे जिताने की ज़िम्मेदारी मतदाताओं की है, निर्वाचक मंडल की है. लोक उम्मीदवार अपने आप नहीं खड़ा हुआ है, उसे मतदाताओं ने खड़ा किया है. वोट खरीदने के लिए एक पैसा भी खर्च नहीं किया जाएगा, न निर्वाचक मंडल करेगा और न उम्मीदवार. मतदान शुद्ध होगा. पैसा, शराब एवं सवारी आदि का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं होगा. लोक उम्मीदवार की जीत मतदाताओं की जीत है और हार मतदाताओं की हार है, यह बात हर मतदाता के दिल में बैठ जानी चाहिए.

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