नीतीश सरकार ने भूमिहीन महादलितों व बीपीएल के उत्थान के लिए जमीन उपलब्ध कराकर आशियाना सजाने का कार्यक्रम तो बनाया, लेकिन नौकरशाह व बिचौलियों के कारण महादलितों का सपना चकनाचूर हो गया. हालात ये हैं कि कहीं-कहीं नदियों के गर्भ की जमीन भी महादलितों को आवंटित कर इंदिरा आवास बनाने का फरमान जारी कर दिया गया. पीड़ित परिवार के लोगों ने कई बार पदाधिकारियों के पास जाकर गुहार लगाई, जनता दरबार में भी हाजिरी लगाई, लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह गई. नदियों के गर्भ की जमीन उपलब्ध कराने के पीछे नौकरशाहों की मंशा तो जांच के बाद ही स्पष्ट होगी, लेकिन इस कदम ने सुशासन की हवा निकाल दी है. महादलित दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं. पटना में बैठे आला अधिकारियों ने मामले को गंभीर रूप लेता देख जांच के आदेश दे दिए. लेकिन वरीय पदाधिकारियों के आदेश का असर भी जिला स्तरीय पदाधिकारियों पर नहीं दिख रहा है. जब चौथी दुनिया ने इस मामले की जांच की, तो कई चौंकाने वाले खुलासे सामने आए. खगड़िया जिले के ओलापुर गंगौर पंचायत में वित्तीय वर्ष 2008-09 में 300 लोगों को इंदिरा आवास योजना के तहत लाभान्वित किया गया था. लेकिन प्रशासनिक अक्षमता या बिचौलियों की करतूत के कारण लाभुकों को दिए गए एकरारनामे में जमीन का ब्योरा ही नहीं दिया गया. इतना ही नहीं वित्तीय वर्ष 2009-10 में भी छह दर्जन महादलितों को इंदिरा आवास योजना का लाभ दिया गया. इनमें भी कई ऐसे हैं, जिनके जमीन का विवरण या तो फर्जी है या उस जमीन पर उनका कब्जा नहीं है. ऐसी स्थिति में कई महादलित परिवार के लोग अपने लिए इंदिरा आवास नहीं बना पाए, अब उनकी गर्दन पर तलवार लटकनेे लगी है. इंदिरा आवास की राशि ऐसे परिजनों ने किसी दूसरे मद में खर्च कर दी. अब इंदिरा आवास का निर्माण आखिर हो तो कैसेे?Read more.. संकट में मानपुर का वस्त्र उद्योग
अनियमितता सामने आने के बाद ग्रामीण विकास विभाग पटना के सहायक निदेशक(सांख्यिकी) ने ( 6 जुलाई 2011) को इस मामले की जांच का जिम्मा जिलाधिकारियों को सौंप दिया था. लेकिन जिलाधिकारियों ने जांच को ठंढे बस्ते में डाल दिया. सवाल ये है कि एकरारनामे में अगर जमीन का विवरण नहीं था या अगर विवरण फर्जी था तो इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की गई. महादलित परिवार के अशिक्षित लोगों से यह उम्मीद करना बेमानी होगी कि वे इन सरकारी प्रावधानों को समझें और नियम कानून के तहत विवरणी भरकर संबंधित विभाग के पदाधिकारियों के समक्ष जमा कर सकें. जाहिर है कि बिचौलियों ने महादलित परिवार के लोगों को ठगा और संबंधित अधिकारियों ने भी लाभुकों द्वारा जमा किए गए जमीन के विवरण पर गौर करना मुनासिब नहीं समझा. बात सामने आने के बाद वर्तमान प्रभारी प्रखंड विकास पदाधिकारी तत्कालीन प्रखंड विकास पदाधिकारी के सिर ठीकरा फोड़ रहे हैं. प्रभारी प्रखंड विकास पदाधिकारी का कहना है कि तत्कालीन प्रखंड विकास पदाधिकारी की गलती से ऐसी स्थिति पैदा हुई है. भूदान की जमीन कोे न तो खरीदा जा सकता है और न ही बेचा जा सकता है. भूदान की जमीन का पर्चा भूमिहीनों को देकर बसाने का प्रावधान है. इसके बावजूद तत्कालीन अंचलाधिकारी अशोक कुमार सिंह ने करोड़ों रुपए के भूदान की जमीन का बागमती नदी के अस्तित्व की जमीन से बदलेन( अदल-बदल) कर दिया. वर्षों पूर्व राष्ट्रीय राजमार्ग 31 से सटे परमानंदपुर मौजे के करोड़ों रुपए की बेशकीमती जमीन को उजियार साह ने भूदान के तहत दान किया था.
कई भूमिहीनों कोे पर्चा देकर इस जमीन पर आशियाना सजाने का आदेश भी दे दिया गया. लेकिन जब इस जमीन की कीमत में काफी उछाल आ गया तब उजियार साह के पोते ने अंचलाधिकारी को मिलाकर इस जमीन का बदलेन बागमती नदी के अस्तित्व की जमीन से करा लिया. हद तो तब हो गई जब अंचलाधिकारी ने उजियार साह के पोते के नाम से भूदान केउक्त जमीन का नया जमाबंदी कायम करने का आदेश दे दिया . जबकि इसके पूर्व परमानंदपुर मौजे के राजस्वकर्मी ने स्पष्ट कर दिया था कि उजियार साह ने चार एकड़ आठ कट्ठा 19 धूर जमीन भूदान में दिया था. लेकिन भूदान की जमीन का बदलेन फरकिया स्थित बागमती की जमीन थाना नम्बर 189, खेसरा नंबर 02,08 एवं 98 से कर लिया गया है. जिला निबंधन कार्यालय के अभिलेख भी इस बात की गवाही दे रहे हैं कि यह बागमती के अस्तित्व की जमीन है. जिलाधिकारी साकेत कुमार का कहना है कि भूदान की उक्त जमीन एवं बदलेन की गई जमीन के बीच कोई तालमेल नहीं हैै. यह मामला गंभीर जांच का विषय है. वहीं तत्कालीन अंचलाधिकारी अशोक कुमार सिंह का कहना है कि पूर्व डीसीएलआर द्वारा पारित वाद संख्या 01.05. 2006 के आलोक में इस तरह का आदेश दिया गया.
Read more.. भोपाल एनकाउंटर से जुड़ा एक और खुलासा, एमपी पुलिस पर फिर उठ खड़े हुए सवाल
खगड़िया जिले के साथ-साथ कोसी के विभिन्न प्रखंडों में भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन गुजर बसर कर रहे महादलितों के साथ कुछ ऐसा ही खेल खेला गया. सात नदियों से घिरे खगड़िया या कोसी में भूमि विवाद के कारण अब तक दर्जनों लोगों की जान गई है. सात वर्ष पूर्व खगड़िया जिले के अलौली प्रखंड अंतर्गत अमौसी में नरसंहार की घटना को अंजाम दिया गया था और 11 लोगों की नृशंस हत्या कर दी गई थी. तब मुंगेर के डीआईजी ने स्वीकार किया था कि अगर पुलिस अधिकारी समय रहते भूमि विवाद का निपटारा कर लिए होते तो यह नरसंहार नहीं होता. नीतीश सरकार ने समय रहते अगर इस मामले में दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं की, तो यह विपक्ष के हाथ में सरकार को घेरने के लिए मुद्दा बन सकता है.