अगर कुछ करने का जज्बा हो तो प्रतिभा को उभरने में न ही कोई भौगोलिक सीमा बाधा बन सकती है और न ही आर्थिक बाधा. बिहार के छोटे से जिले खगड़िया की कुछ होनहार लड़कियों ने अपने बुलंद हौसलों से यह बात साबित कर दिया है. खेल की दुनिया में चमक रही खगड़िया की इन लड़कियों पर पूरा सूबा इन दिनों गर्व कर रहा है. खगड़िया के गोगरी प्रखंड के श्रीशिरनिया गांव निवासी अभय कुमार झा की दोनों लाडली दिव्या व साक्षी की उम्र तो महज 17 व 19 वर्ष है, लेकिन शह व मात के खेल ‘शतरंज’ में ये दोनों बहनें धुरंधरों के भी पसीने छुड़ा रही हैं.
ग्रामीण परिवेश में पली बढ़ी इन दोनों बहनों से प्रदेश के निवासियों को काफी उम्मीदें हैं. दिव्या का छोटा भाई अनुभव कुमार भी इस खेल में कई रिकॉर्ड तोड़ रहा है. 2014 में मुजफ्फरपुर में आयोजित बिहार स्टेट जूनियर चेस चैंपियनशिप अंडर-19 में पहला स्थान लाकर उसने सबको चौंका दिया था. इस चैंपियनशिप में उनकी बड़ी बहन दिव्या चौथे स्थान पर रही थी.
साक्षी ने वर्ष 2015 में मुंबई में आयोजित चेस चैंपियनशिप में बिहार में दूसरा स्थान हासिल किया था. इससे पहले दिव्या सब- जूनियर अंडर-16 में दूसरे स्थान पर रहकर अपनी प्रतिभा साबित कर चुकी है. दिव्या का कहना है कि यदि टाइम मैनेजमेंट ठीक रहता तो वह इस चैंपियनशिप में पहले स्थान पर होतीं. दोनों बहनें कई बार शतरंज में बिहार का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. विभिन्न प्रतियोगिताओं में जीते गए दर्जनों शील्ड व मेडल उनकी घर की शोभा बढ़ा रही हैं. उनके पिता अभय कुमार झा भी शतरंज में अपने जमाने के चर्चित खिलाड़ी रह चुके हैं. दोनों बहनें विश्वविद्यालय व राज्यस्तर के चैंपियनशिप में भी भाग ले चुकी हैं.
साक्षी 12 वीं कक्षा की छात्रा हैं. वे इंजीनियरिंग की भी तैयारी कर रही हैं, जबकि उसकी बड़ी बहन दिव्या झा बीसीए की पढ़ाई कर रही हैं. साक्षी व दिव्या कहती हैं कि दुनिया में कोई काम नहीं है, जो लड़कियां नहीं कर सकती हैं. उन्होंने बताया कि उनके चचेरे दादा विधानचन्द मिश्र अपने जमाने में फुटबॉल के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थे. रूस और पाकिस्तान के खिलाफ आयोजित मैच में दागे गए गोल के कारण राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहचान थी. इस मैच के बाद तो वे अपने साथी खिलाड़ियों के भी चहेते बन गए थे. हालांकि कुछ वर्ष पहले उनका निधन हो गया है. साक्षी व दिव्या के पिता अभय कुमार झा ने बताया कि अपनी बहनों से प्रेरणा लेकर उनका छोटा बेटा अनुभव भी शतरंज में अपनी प्रतिभा दिखा रहा है.
शतरंज से बाहर निकलें तो खगड़िया जिले में हॉकी की भी कई प्रतिभाएं हैं, जो अपनी मेहनत से प्रदेश का नाम रौशन कर रही हैं. मजदूर परिवार में जन्मी अंजू बंदिशें तोड़ हॉकी खेल की आदर्श बन गई हैं. खगड़िया की जिला हॉकी टीम में पचास से अधिक लड़कियां जुड़ी हैं. उसमें अंजू अपनी उत्कृष्ट प्रतिभा की बदौलत कप्तान के रूप में टीम का नेतृत्व कर रही हैं. शहर के हाजीपुर धोबी टोला के कैलाश रजक व गौरी देवी भी अपनी बेटी की प्रतिभा से फूले नहीं समा रहे हैं. अंजू बताती हैं कि अपने-माता-पिता के सकारात्मक सहयोग के कारण ही वे इस खेल में अपनी पहचान बना सकी हैं. अंजू के पिता मजदूरी कर परिवार चलाते हैं. अंजू पांच नेशनल गेम व बीस से अधिक राज्यस्तरीय गेम खेल चुकी हैं.
2013 में पंजाब के भटिंडा में स्कूल स्तरीय नेशनल गेम में अंजू की पांच गोल के बदौलत ही बिहार टीम क्वार्टर फाइनल तक पहुंची. इसी वर्ष पटियाला में आयोजित सब जूनियर हॉकी टीम में भी उन्होंने बिहार का प्रतिनिधित्व किया. 2014 में पूर्णिया में आयोजित राज्यस्तरीय मेजर ध्यानचंद हॉकी में अंजू की कप्तानी में खगड़िया की टीम उपविजेता बनी. 2016 में महिला हॉकी प्रतियोगिता में खगड़िया तीसरे नंबर पर रहा. हॉकी का जिले में माहौल नहीं रहने के बाद भी अंजू ने अपनी प्रतिभा से जिले में हॉकी को नई ऊचाइयां दी है. आज अंजू जिले ही नहीं, सूबे की लड़कियों के लिए भी प्रेरणास्रोत बन गई है. जिले की लड़कियां आर्थिक संसाधनों के अभाव में भी हॉकी खेल में बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं.
हॉकी इंडियन फेडरेशन के तहत गुवाहाटी में 2014 में बिहार की ओर से खेलते हुए अंजू ने टीम को तीसरा स्थान दिलाया था. वर्ष 2016 में महिला खेल व स्कूली स्तरीय प्रतियोगिता में भी उसने उम्दा प्रदर्शन किया. जिला प्रशासन द्वारा हॉकी में बेहतर प्रदर्शन के लिए वह कई बार सम्मानित हो चुकी हैं. वहीं जिले की एक अन्य खिलाड़ी नेहा फुटबॉल में जिले के नाम रौशन कर रही हैं. शंकर कुमार सिंह व रौशन गुप्ता के कुशल प्रशिक्षण में उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिला. अपने माता पिता के सहयोग के लिए आभार जताते हुए भारतीय टीम में शामिल होने का जज्बा रखने वाली नेहा ने अन्य लड़कियों को भी इस खेल के प्रति आकर्षित किया. नेहा की खेल प्रतिभा को देखकर बिहार सरकार उन्हें दो बार सम्मानित कर चुकी है.
2015 में बिहार सरकार के तत्कालीन खेलमंत्री विनय बिहारी व 2016 में खेलमंत्री शिवचन्द्र राम ने भी उन्हें सम्मानित किया. नेहा अपनी प्रतिभा के कारण जिले की अन्य महिला फुटबॉलरों की आदर्श बनी हैं. नेहा ने बता दिया है कि कठिन परिश्रम व सच्ची लगन से किसी भी खेल में बेहतर मुकाम हासिल किया जा सकता है. इनके माता-पिता समेत जिलेवासियों को लाडली नेहा से काफी उम्मीदें हैं.