यूं तो कोई भी वैक्सीन ‘फ्री’ में देने का शाब्दिक अर्थ मुफ्त में लगाए जाने वाला टीका ही होता है, लेकिन राजनीति के संदर्भ में इसका मूल्य और महत्ता अलग-अलग होती है,खासकर तब, जब सामने चुनाव हों। इस मामले में वाम और दक्षिण में कोई खास फर्क नहीं है। इसका ताजा उदाहरण केरल है, जहां वाम मोर्चे के मुख्यमंत्री पी. विजयन ने राज्य में सभी लोगों को कोविड 19 निरोधक वैक्सीन फ्री में देने का ऐलान किया है। यह ऐलान प्रदेश में हो रहे स्थानीय निकायों चुनावों के तीन दिन पहले किया गया। इस घोषणा का राज्य में मुख्य विपक्षी मोर्चे यूडीएफ ने ‘यह केरल की जनता को चुनावी प्रलोभन है’, कहकर विरोध किया ही, लेकिन विरोधी भाजपा ने भी इसके खिलाफ राज्य चुनाव आयोग में शिकायत की है। वही भाजपा, जिसने बिहार विधानसभा चुनाव में अपने ‘संकल्प पत्र में’ राज्य में सभी को ‘फ्री वैक्सीन’ देने का खुला ऐलान किया था। उसके बाद तो तमिलनाडु और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने भी प्रदेश में फ्री वैक्सीन देने के ताब़ड़तोड़ ऐलान कर डाले थे। क्योंकि इन राज्यों में भी उपचुनाव थे। नतीजों ने साबित किया कि ‘फ्री वैक्सीन’ की घोषणा ने भाजपा को लाभ ही पहुंचाया। जहां बिहार में कड़े मुकाबले में वो जद (यू) के साथ फिर सत्तासीन हुई तो मप्र में भी उसने खासी सफलता पाई।
ध्यान रहे कि अगले साल जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं,उनमें केरल भी है। यूं केरल की प्रादेशिक राजनीति का राष्ट्रीय फलक पर बहुत असर भले न होता हो, लेकिन राज्य में सत्तारूढ़ माकपानीत वाम मोर्चा (एलडीएफ), कांग्रेसनीत संयुक्त मोर्चा ( यूडीएफ) और भाजपानीत एनडीए के राजनीतिक वजूद की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने के इरादे से केरल में दो राजनीतिक प्रयोग हुए। पहला था केरल सरकार द्वारा, सोशल मीडिया में अपमानजनक अथवा धमकाने वाली टिप्पणी डालने वाले यूजर को 3 साल की जेल व 10 हजार रू. जुर्माने के प्रावधान वाला अध्यादेश लाया जाना और भारी विरोध के बाद तीन दिन बाद ही उसे वापस ले लेना। यह अध्यादेश लगभग उसी दौरान वापस लिया गया था, जब देश में कृषि कानूनों की वापसी की मांग को लेकर किसानों का आंदोलन शुरू हो रहा था। केरल सरकार के इस यू टर्न में छुपा संदेश यह था कि सरकार को अपनी ‘भूल सुधारने’ में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। हालांकि अध्यादेश वापसी के साथ ही इस पर मचे बवाल पर विराम लग गया।
अब दूसरा मामला कोरोना वैक्सीन का है। देश में केन्द्र सरकार ने अभी किसी वैक्सीन को अंतिम रूप से मंजूरी नहीं दी है। तीन वैक्सीन ट्रायल के तीसरे चरण में हैं। लेकिन ‘फाइजर इंडिया’ ने वैक्सीन के आपात उपयोग की अनुमति के लिए भारत सरकार को अर्जी दी है। इस दौरान मोदी सरकार ने देश भर में वैक्सीन (टीका) लगाने की ऑपरेशनल गाइड लाइंस जारी कर दी हैं। हालांकि कोई भी दावे के साथ यह कहने की स्थिति में नहीं है कि वैक्सीन वास्तव में कब आएगी?
लेकिन अपने देश में कोरोना वैक्सीन राजनीति का मुद्दा कब से बन चुकी है। इसका पहला सफल ‘राजनीतिक टीकाकरण’ भाजपा ने बिहार विधानसभा चुनाव में किया। चुनाव में बीजेपी का विजन डाक्युमेंट जारी करते हुए केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा था कि हर बिहारवासी को कोरोना वैक्सीन फ्री में लगाया जाएगा। वित्त मंत्री के इस बयान पर काफी सियासी बवाल मचा। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने ट्वीट किया था कि “भारत सरकार ने कोविड वैक्सीन वितरण की घोषणा कर दी है। ये जानने के लिए कि वैक्सीन और झूठे वादे आपको कब मिलेंगे, कृपया अपने राज्य के चुनाव की तारीख देखें। एक और कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने तंज भरा ट्वीट किया ‘तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हें वैक्सीन…।”विपक्षी आरजेडी ने कहा था कोरोना का टीका देश का है, भाजपा का नहीं! जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सवाल किया कि क्या बीजेपी पार्टी के खजाने से इन टीकों का भुगतान करेगी? तब भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव भूपेंद्र यादव ने पार्टी की इस घोषणा का यहकर बचाव किया था कि हमने सिर्फ इतना कहा है कि यदि बिहार में हमारी सरकार फिर बनती है तो हम राज्य में सभी को कोरोना वैक्सीन मुफ्त में दिलवाएंगे। यादव ने यह भी कहा था कि सार्वजनिक स्वास्थ्य पर सभी सरकारों को गंभीर होना चाहिए। हमने अगर बिहार को लेकर कुछ घोषणा की है तो कुछ लोगों को आपत्ति क्या है? तब इसी मुद्दे को लेकर विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग में भी शिकायत की थी। तब आयोग ने आपत्ति यह कहकर खारिज कर दी थी कि ‘फ्री वैक्सीन’ की घोषणा चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है।
मजे की बात यह है कि उसी भाजपा को अब केरल सरकार द्वारा ‘फ्री वैक्सीन’ की घोषणा पर आपत्ति है। केरल भाजपा प्रदेशाध्यक्ष के. सुरेन्द्रन ने राज्य चुनाव आयोग में विपक्षी कांग्रेस की तर्ज पर शिकायत की है कि मुख्यमंत्री की घोषणा का उद्देश्य राज्य में हो रहे स्थानीय निकाय चुनावों में मतदाताओं को लुभाना है। उल्लेखनीय है कि केरल के चार उत्तरी जिलों में 14 दिसंबर को स्थानीय निकायों के चुनाव होने हैं। इन चुनावो के नतीजों को प्रदेश में पांच माह बाद होने वाले विधानसभा चुनावों को संदर्भ में परखा जाएगा। हालांकि सत्तारूढ़ माकपा ने भाजपा और कांग्रेस के आरोपों को यह कहकर खारिज कर दिया है कि कोरोना फ्री वैक्सीन भी कोरोना के इलाज का ही एक हिस्सा है। भाजपा व कांग्रेस द्वारा फ्री वैक्सीन के खिलाफ की गई शिकायतें औपचारिक ज्यादा लगती हैं, क्योंकि बिहार के मामले में भारत निर्वाचन आयोग जब भाजपा को क्लीन चिट दे चुका है तो राज्य निर्वाचन आयोग केरल में भाजपा की आपत्ति को सही कैसे ठहरा सकता है? और जब बीजेपी की ‘फ्री वैक्सीन’ जायज है तो वाम मोर्चे की फ्री वैक्सीन नाजायज कैसे हो सकती है? इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि मुख्यमंत्री पी. विजयन की घोषणा में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा लोगों को मुफ्त मुहैया कराने की प्रतिबद्धता के साथ साथ राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर चुनावी शोशा भी है। केरल में विधानसभा चुनाव अगले साल मई में होने हैं। फ्री वैक्सीन वादे की टेस्टिंग अगर स्थानीय निकाय चुनावों में कामयाब रही तो अगले विधानसभा चुनाव में भी यह कारगर मुद्दा बन सकता है। हालांकि केरल में किसी भी सरकार की सत्ता लगातार वापसी चमत्कार की तरह ही है। और विजयन सरकार भी भ्रष्टाचार के आरोपो में घिरी है। फिर भी सीएम पी. विजयन ने इस ‘चमत्कार’ को हकीकत में बदलने का दांव फ्री वैक्सीन के रूप में चला है। बिहार और मप्र के चुनाव नतीजों का निहितार्थ यही है कि ‘फ्री वैक्सीन’ जैसी घोषणाएं राजनीतिक मदद तो करती हैं। बावजूद इसके कि देश में किसे ,कहां और कब फ्री वैक्सीन हकीकत में मुफ्त में मिलेगी या नहीं अथवा इसका कोई ठोस खाका साफ नहीं है। हाल में केन्द्र सरकार ने साफ किया कि कोरोना वैक्सीन सभी को मुफ्त में देना संभव नहीं है। यानी कुछ ही लोगों को यह निरोधक टीका ‘फ्री’ में मिल पाएगा। जो वैक्सीन लगेगी, उनकी कीमतें भी अभी तय नहीं हैं। पिछले दिनो यह खबर आई थी कि कोरोना वैक्सीन के लिए मोदी सरकार ने 50 हजार करोड़ रू. का प्रावधान किया है। अव्वल तो भारत में 140 करोड़ लोगो को तय समयावधि में वैक्सीन लगाना बहुत मुश्किल काम है। अगर सरकार सभी को यह वैक्सीन मुफ्त में देना भी चाहे तो इसके लिए कितना पैसा चाहिए? और ये पैसा कहां से आएगा? राजनीतिक दृष्टि से ऐसी घोषणाएं भले फायदे का सौदा हो, लेकिन व्यावहारिक दृष्टि से आसमान के तारे तो़ड़ने जैसा ही है। क्योंकि फ्री वैक्सीन के लिए या तो दूसरे खर्चो में कटौती की जाए या फिर कोई नया टैक्स लगाया जाए। दोनो ही स्थिति में असल कीमत जनता को ही चुकानी होगी।
अजय बोकिल
वरिष्ठ संपादक
‘सुबह सवेरे’