कई वर्ष हुए, मायावती का शासन खत्म हुआ था और मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बन गए थे. मायावती के अनेक परमप्रिय अधिकारी उस समय वनवास में हो गए थे तथा साधारण विभागों में भेज दिए गए थे. उन्हें बापू भवन के प्रथम तल पर कक्ष आवंटित हुए थे. मैंने इसका उल्लेख करते हुए उस समय बापू भवन की दुखिया मंजिल शीर्षक से आलेख भी लिखा था. उस समय बापू भवन की दुखिया मंजिल के एक कक्ष में गोपबंधु पटनायक बैठते थे तथा उनके पास वैकल्पिक ऊर्जा विभाग था. मैंने उनसे एक सवाल पूछा था कि हमारे देश में जब सौर ऊर्जा असीमित मात्रा में उपलब्ध है तो सरकार उस अपार शक्ति-भंडार के उपयोग को बढ़ावा क्यों नहीं दे रही है? उत्तर में उन्होंने कहा था कि सौर ऊर्जा का उपयोग बहुत मंहगा पड़ता है. उन्होंने यह भी बताया था कि सौर ऊर्जा के लिए जो अनुदान दिया जाता है, उस व्यवस्था को समाप्त किया जा रहा है, ताकि लोग अपने बूते पर सौर ऊर्जा की ओर आकृष्ट हों.
पिछली आधी शताब्दी से अधिक हो गए, मेरा दृढ़ मत रहा है कि हमारे यहां इफरात मात्रा में सौर ऊर्जा उपलब्ध है, इसलिए शासन द्वारा उसके अधिकाधिक उपयोग के उपाय किए जाने चाहिए तथा अधिक से अधिक बढ़ावा दिया जाना चाहिए. सौर ऊर्जा हमारे देश में विकास की अद्भुत क्रांति ला सकती है तथा इसके बल पर भविष्य में हमारा देश अतिविकसित देश बन सकता है. मैंने गोपबंधु पटनायक से अनुरोध किया था कि वह किसी भी दशा में सौर ऊर्जा के अधिकाधिक उपयोग का कार्यक्रम लागू करें. सरकार शुरुआत में ही यदि समस्त सरकारी भवनों, सरकारी कॉलोनियों, गांवों आदि में सौर ऊर्जा का उपयोग अनिवार्य कर देती तो इससे देश में बिजली का उपयोग बहुत कम किया जा सकता था. पिछले दिनों मेरी भेंट उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. चंद्रभानु गुप्त द्वारा स्थापित भारत सेवा संघ के अंतर्गत संचालित नवचेतना केंद्र के प्रभारी सदस्य डॉ. जागेश्वरनाथ मिश्र से हुई तो यह जानकर बड़ा अच्छा लगा कि वह भी सौर ऊर्जा के प्रबल समर्थक हैं. उन्होंने कहा कि यह हमारे देश का सौभाग्य है कि हमारे यहां सूर्यदेव की कृपा से इतनी अधिक मात्रा में सौर ऊर्जा उपलब्ध है कि हम इसे अपने यहां वैकल्पिक ऊर्जा नहीं, बल्कि उसे मुख्य ऊर्जा-स्रोत बना सकते हैं.
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डॉ. जागेश्वर नाथ मिश्र ने मत व्यक्त किया कि सौर ऊर्जा के उपयोग में लाभ ही लाभ है तथा इससे प्रदूषण से मुक्ति पाई जा सकती है. अभी हमारे यहां कोयले के उपयोग द्वारा ताप-संयत्रों से तथा जल विद्युत परियोजनाओं द्वारा बिजली पैदा की जाती है. कोयले का भंडार सीमित समय तक ही चलेगा तथा जलविद्युत परियोजनाओं से नदियों का स्वाभाविक प्रवाह बाधित हुआ है. लेकिन सौर ऊर्जा का हमारे पास ऐसा अनंत स्रोत है, जो कभी समाप्त नहीं होगा. डॉ. मिश्र ने यह महत्वपूर्ण बात भी कही कि वर्तमान समय में सौर ऊर्जा में लागत बहुत अधिक बैठ रही है, लेकिन जब इसका बहुत बड़े पैमाने पर उपयोग व उत्पादन होने लगेगा तो धीरे-धीरे लागत कम होती जाएगी तथा एक समय ऐसा आएगा, जब सौर ऊर्जा बहुत सस्ती हो जाएगी. सौर ऊर्जा को अधिक से अधिक सस्ता बनाने के लिए नए वैज्ञानिक उपाय भी ढूंढ़े जा सकते हैं.
डॉ. मिश्र अच्छे प्रशासक तो माने ही जाते हैं, उनकी विद्वता की भी प्रशंसा होती है. विभिन्न विषयों में उनका गहन अध्ययन है. जिस प्रकार वह सौर ऊर्जा के प्रबल समर्थक हैं, उसी प्रकार प्रदूषण से मुक्ति की दिशा में भी वह लंबे समय से सक्रिय हैं. कई वर्ष पहले अमेरिका के न्यू जर्सी में प्रदूषण की समस्या पर एक सम्मेलन हुआ था, जिसमें डॉ. मिश्र ने महत्वपूर्ण व्याख्यान दिया था. उन्होंने अपने व्याख्यान में आगाह किया था कि प्रदूषण एक वैश्विक समस्या है तथा यदि विश्व ने उस पर अभी से गंभीरतापूर्वक ध्यान नहीं दिया तो भविष्य में मानवता के लिए बहुत बड़ा खतरा उत्पन्न हो जाएगा. कई वर्ष पूर्व जिस ख़तरे की ओर आगाह किया गया था, वह ख़तरा अब सत्य सिद्ध हो रहा है. प्रदूषण के तरह-तरह के दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं तथा समस्या विकराल होती जा रही है. प्रदूषण के कारण बीमारियां बढ़ रही हैं तथा लोगों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है. विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शीर्षस्थ नगरों में उत्तर प्रदेश के चार नगर हैं, जो हमारे लिए चिंतनीय है.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाईजेशन के ताजा आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश के शहरों में लगातार हवा का स्तर गिर रहा है. सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, कानपुर, फिरोजाबाद और संगम नगरी इलाहाबाद जैसे शहर शुमार हो गए हैं. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक कानपुर इस सूची में 15वें स्थान पर है जबकि फिरोजाबाद और लखनऊ 17वें और 18वें स्थान पर हैं. इलाहाबाद में प्रदूषण की स्थिति तो और भी खराब है. अनुसंधान एवं पक्षपोषण संगठन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण को देखें तो उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद और इलाहाबाद में प्रदूषण का स्तर चौंकाने वाला है. इलाहाबाद और ग़ाजियाबाद में वायु प्रदूषण लखनऊ, फिरोजाबाद, आगरा, मथुरा, खुर्जा व गजरौला से तीन गुना अधिक है. जबकि लखनऊ और कानपुर के बीच स्थित उन्नाव में हवा स्वास्थ्य के लिहाज से अपेक्षाकृत बेहतर है. दिल्ली के सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरमेंट के सर्वे के मुताबिक ग़ाजियाबाद, इलाहाबाद, कानपुर व बरेली में प्रदूषण का स्तर 10 माइक्रॉन है.
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लखनऊ, फिरोजाबाद, सहारनपुर, मथुरा, गजरौला व आगरा में वायु प्रदूषण का स्तर निर्धारित स्तर से करीब तीन गुना अधिक है. मेरठ, गोरखपुर, ग़ाजियाबाद और कानपुर में नाइट्रोजन डाइ-ऑक्साइड की मात्रा तेज़ी से बढ़ी है और वर्तमान में खतरनाक स्तर पर जा पहुंची है. लखनऊ और इलाहाबाद के मध्य स्थित रायबरेली में इस गैस की वायुमंडल में मौजूदगी सबसे कम है. खुर्जा व ग़ाजियाबाद सल्फर डाइ-ऑक्साइड की दृष्टि से भी घातक स्तर पर पाए गए हैं. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के प्रमुख इलाके मसलन आलमबाग, अमौसी, चौक, चारबाग वगैरह प्रदूषण की दृष्टि से सबसे अधिक प्रभावित पाए गए हैं. गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री अखिलेश यादव भी कुछ समय पहले इस समस्या को लेकर जागरूकता फैलाने की कोशिश करते नज़र आ रहे थे लेकिन फिर सब कुछ ठंडा ही पड़ गया. मुख्यमंत्री की भी बातों का कोई असर होता दिखाई नहीं दिया. उत्तर प्रदेश सरकार ने पॉलीथिन भी बैन कर दी है, इसके बावजूद लोग बड़ी मात्रा में पॉलीथिन का इस्तेहमाल कर ही रहे हैं. ऐसे में यह असंभव है कि इसका कोई समाधान निकल पाएगा.
यदि यही स्थिति बनी रही तो लोग शुद्ध वायु को तरस जाएंगे. वातावरण को शुद्ध बनाने के लिए अन्य उपायों का अनुसरण तो किया ही जाना चाहिए, किन्तु सबसे बड़ा उपाय अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना है. पिछले दशकों में हमारे यहां पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हुई है तथा वन-क्षेत्र घटता जा रहा है. इसी से मौसम भी असामान्य होने लगे हैं. हमें वृक्षारोपण के लिए युद्ध स्तर पर जुट जाना चाहिए तथा जहां-जहां भी संभव हो, चप्पा-चप्पा हरियाली से भर देना चाहिए.