मोदी जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत से मिले, तो उन्होंने मोहन भागवत से स़िर्फ एक बात कही कि अगर आप मुझे खुला हाथ दें तो मैं देश का प्रधानमंत्री बनकर दिखा सकता हूं. मोहन भागवत ने सारे व्यक्तित्वों के बारे में सोचा और अंततः वह इस नतीजे पर पहुंचे कि सबसे अच्छा चेहरा नरेंद्र मोदी का ही है. नरेंद्र मोदी ने उसके पहले संघ को उसके दायरे में घेर दिया था. इससे मोहन भागवत संघ की खंडित होती प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करना चाहते थे. नरेंद्र मोदी के ज़रिए वह लालकृष्ण आडवाणी, जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा या सत्तर साल से ऊपर के सारे लोगों को एक सबक़ सिखाना चाहते थे.
page-1Aइए हम भी नरेंद्र मोदी की जय-जयकार करें. क्योंकि सारे देश में नरेंद्र मोदी की रैलियां हो रही हैं. भीड़ आ रही है और ये माना जा रहा है कि नरेंद्र मोदी ही अगले प्रधानमंत्री बनेंगे. नरेंद्र मोदी की ताजपोशी में इस समय सबसे ज्यादा अगर कोई उनकी छवि चमका रहा है, तो वह हिंदुस्तान का मीडिया है. जब हम मीडिया कहते हैं तो उसमें टेलीविज़न न्यूज चैनल पहले होते हैं और कुछ अख़बार बाद में आते हैं. यह नरेंद्र मोदी की होशियारी थी कि उन्होंने तीन साल पहले से अपने को देश में प्रधानमंत्री के रूप में स्थापित करने की तैयारी शुरू कर दी थी. गुजरात के सारे उत्सव चाहे कच्छ के रण का महोत्सव हो या फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर की पतंग प्रतियोगिता हो, यह सब देश के लोगों में नरेंद्र मोदी का नाम स्थापित करने की योजना के हिस्से रहे हैं. नरेंद्र मोदी ने मास्टर स्ट्रोक अमिताभ बच्चन को लेकर खेला. उन्होंने उन्हें गुजरात टूरिज्म और गुजरात की संस्कृति का ब्रांड ऐंबेस्डर बनाया. अमिताभ बच्चन को सचमुच कितनी फ़ीस दी गई, पता नहीं, लेकिन अमिताभ बच्चन के चेहरे ने अचानक नरेंद्र मोदी को देश के सबसे चर्चित श़ख्स के रूप में स्थापित कर दिया और देश के लोगों को यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि जो श़ख्स अमिताभ बच्चन को अमिताभ बच्चन में लेकर आ सकता है, वह श़ख्स देश में क्या नहीं कर सकता.
नरेंद्र मोदी जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत से मिले, तो उन्होंने मोहन भागवत से स़िर्फ एक बात कही कि अगर आप मुझे खुला हाथ दें तो मैं देश का प्रधानमंत्री बनकर दिखा सकता हूं. मोहन भागवत ने सारे व्यक्तित्वों के बारे में सोचा और अंततः वह इस नतीजे पर पहुंचे कि सबसे अच्छा चेहरा नरेंद्र मोदी का ही है. नरेंद्र मोदी ने उसके पहले संघ को उसके दायरे में घेर दिया था. इससे मोहन भागवत संघ की खंडित होती प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करना चाहते थे. नरेंद्र मोदी के ज़रिए वह लालकृष्ण आडवाणी, जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा या सत्तर साल से ऊपर के सारे लोगों को एक सबक़ सिखाना चाहते थे. दरअसल, लालकृष्ण आडवाणी संघ और भाजपा में सबसे वरिष्ठ हैं. इसलिए संघ का कोई भी आदमी आडवाणी जी के पास जाकर ज्यादा बात नहीं कर पाता था. आडवाणी जी भी संघ के लोगों को इसलिए तरजीह नहीं देते थे, क्योंकि उन्हें मालूम था कि ये सारे लोग उनके सामने संघ में आए हैं और उन्हें राजनीति के अंदरूनी समीकरणों का कुछ भी ज्ञान नहीं है. इसलिए जब नरेंद्र मोदी ने मोहन भागवत के सामने अपनी ख्वाहिश रखी कि उन्हें खुली छूट दी जाए या खुला हाथ दिया जाए तो मोहन भागवत ने इसका फैसला कर लिया. जिसके पहले शिकार मुंबई अधिवेशन में संजय जोशी हुए. संजय जोशी भारतीय जनता पार्टी के ऐसे लोगों में रहे हैं, जिनके ऊपर कार्यकर्ताओं का अगाध विश्‍वास रहा है. संजय जोशी एक कथित सीडी की वजह से भाजपा से हटाए गए. बाद में वह सीडी फेक साबित हुई और लगा कि संजय जोशी फिर से संघ और भारतीय जनता पार्टी में शीर्ष स्थान पर पहुंचेंगे. पर मोहन भागवत और नरेंद्र मोदी के समझौते ने पहली बलि संजय जोशी की ली.
इसके बाद तो भारतीय जनता पार्टी के संगठन में जो भी परिवर्तन हुए वो सभी नरेंद्र मोदी की इच्छानुसार हुए. नितिन गडकरी नरेंद्र मोदी के दूसरे शिकार बने. दरअसल, राजनाथ सिंह का अध्यक्ष बनना भी नरेंद्र मोदी की ही इच्छा का परिणाम रहा है. नरेंद्र मोदी ने अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभार दिया और उन्हें अपने सबसे विश्‍वस्त व्यक्ति के रूप में गुजरात से निकालकर भारतीय जनता पार्टी की केंद्रीय राजनीति में ले आए. अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभार नरेंद्र मोदी ने इसलिए दिया, क्योंकि उन्हें लगा कि उत्तर प्रदेश का कोई भी नेता उन्हें धोखा दे सकता है. इसलिए वो अपने सबसे विश्‍वासपात्र व्यक्ति को उत्तर प्रदेश में इसलिए लाए, क्योंकि वो वहां पर ऐसे उम्मीदवारों की तलाश करना चाहते थे, जिनकी पहली स्वामिभक्ति नरेंद्र मोदी के प्रति हो, संघ या भाजपा के प्रति नहीं.
इसके बाद नरेंद्र मोदी ने देश में सभाओं की धूम मचा दी. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते हैं कि जिस एंगल से तस्वीरें खींची गईं वो बताता है कि पटना का गांधी मैदान पूरा भरा था. लेकिन वो कहते हैं कि उनके पास ऐसे फोटोग्राफ्स हैं जो यह साबित करते हैं कि मैदान आधे से थोड़ा-सा ही ज्यादा ही भरा था, पूरा नहीं भरा था. नरेंद्र मोदी एक कुशल संगठनकर्ता हैं और उन्होंने भव्यता के साथ अपने को भारत का भावी प्रधानमंत्री घोषित करवा लिया. नरेंद्र मोदी हर सभा को भव्यतम तरी़के से करने के आदी रहे हैं. राज्यों में होनी वाली रैलियों में कितना पैसा ख़र्च हो रहा है, लोग कहां से आ रहे हैं, कैसे आ रहे हैं, किनके द्वारा लाए जा रहे हैं, ये सारे सवाल नेपथ्य में चले गए. नरेंद्र मोदी ने और उनके सिपहसालारों ने माहौल ऐसा बना दिया है कि जो भीड़ है, वो अल्टीमेट है और ये भीड़ नरेंद्र मोदी को ही प्रधानमंत्री बनाना चाहती है. नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री आज ही बन गए दिखाई देते हैं, अगर हम भाजपा के प्रचार तंत्र का चश्मा अपनी आखों पर लगा लें.

भारतीय जनता पार्टी के सामने एक ब़डी समस्या आम आदमी पार्टी का दिल्ली में उभरना भी है. भारतीय जनता पार्टी अब किसी भी तरह अरविंद केजरीवाल को असफल होते देखना चाहती है. उसे ये लगता है कि तीसरा मोर्चा तो नहीं बन पाएगा, लेकिन शायद अरविंद केजरीवाल भविष्य में यानी चार महीने के बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में, भाजपा विरोधी ताक़तों का केंद्र बन सकते हैं. उन्हें ये भी डर सता रहा है कि अगर अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में बिजली, पानी और अवैध कालोनियों को नियमित करने के फैसले पर अमल कर लिया तो फिर भारतीय जनता पार्टी के सामने सारे देश में समस्या ख़डी हो जाएगी.

इसी बीच दिल्ली के चुनाव आ गए. दिल्ली के चुनाव में नरेंद्र मोदी ने काफ़ी ताक़त लगाई और पार्टी ने उनकी मीटिंगें उन जगहों पर कराईं, जहां पर उन्हें लगता था कि भारतीय जनता पार्टी कमज़ोर है. नरेंद्र मोदी ने राजस्थान में भी सभाएं कीं और छत्तीसगढ़ में भी, यहां तक कि वे मध्य प्रदेश भी गए. इन चुनावों के नतीजे आए और नतीजे आने के बाद सबसे पहले अगर किसी की आंख खुली, तो उसका नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जिसे हम आरएसएस या संघ के नाम से ज्यादा जानते हैं, के लोगों में आपस में चर्चाएं शुरू हुईं, मंथन शुरू हुआ और विश्‍लेषण के बाद संघ ने ये माना कि देश में मोदी की लहर या मोदी वेव नहीं है. उन्होंने अपनी इस प्रतीति को छिपाया नहीं, बल्कि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं को बुलाकर खुलासा किया कि उन्हें लगता है कि नरेंद्र मोदी संभवतः अकेले देश में प्रधानमंत्री पद के लिए सीटें लाने में बहुत कारगर साबित नहीं हो पाएंगे और संघ ने इसके पीछे जो विष्लेषण भारतीय जनता पार्टी के लोगों के कुछ नेताओं के सामने रखा उसका लब्बोलुआब यह था कि छत्तीसगढ़ में इतनी सभाओं के बाद भी दो तिहाई बहुमत नहीं आया, बल्कि सामान्य बहुमत के लिए भी भाजपा को
ऐड़ी-चोटी का ज़ोर लगाना पड़ा. मध्य प्रदेश के बारे में संघ का यह मानना है कि वहां पर कांग्रेस की आपसी लड़ाई की वजह से वह कभी युद्ध में आ ही नहीं पाई. वहां की जीत शिवराज सिंह के चेहरे की और उनके काम की जीत है. संघ ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि कांग्रेस पार्टी न केवल आपस में लड़ रही थी, बल्कि कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार दिन में सभाओं में रहते थे और रात में वह दिल्ली सोने के लिए चले आते थे. इस बात का प्रचार संघ ने अपने कार्यकर्ताओं के ज़रिए मध्य प्रदेश में कराया. मध्य प्रदेश में कांग्रेस के झगड़ों का हाल इतना उत्तम था कि एक जगह तो मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार ज्योतिरादित्य सिंधिया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में अकेले जाने की इच्छा को पूरी करने के लिए दिग्विजय सिंह को दरवाज़े से बाहर खड़ा कर दिया. वे दरवाज़ा खटखटाते रहे, लेकिन सिंधिया ने दरवाज़ा अंदर से नहीं खुलवाया. राजस्थान में संघ का मानना है कि वहां की हार अशोक गहलोत की बेवकूफ़ियों की हार है और वसुंधरा की जीत भी अशोक गहलोत की मूर्खताओं की वजह से हुई जीत है, अन्यथा आजतक राजस्थान में इतना बड़ा बहुमत किसी का आया ही नहीं. कांग्रेस अपने जीवन के निकृष्टतम स्कोर के ऊपर पहुंच गई. दिल्ली में सबसे ज्यादा संघ को इस ़फैसले पर पहुंचने में मदद की. भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में 31 सीटों पर आकर रुक गई. संघ का मानना है कि अगर ये मोदी का करिश्मा होता या उनकी लहर होती तो भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में दो तिहाई बहुमत हासिल करती, यहां वो सामान्य बहुमत भी हासिल नहीं कर पाई. यहां तक कि उसने जितने निर्दलीय उम्मीदवार खड़े किए, उन्होंने भी भारतीय जनता पार्टी के वोट काटे, कांग्रेस के नहीं. यह अलग बात है कि भारतीय जनता पार्टी के नेता ये दावा करते हैं कि दूसरे नंबर पर आई आम आदमी पार्टी के भीतर उसके सात से आठ सदस्य विधानसभा में पहुंच गए हैं.
संघ ने तत्काल नरेंद्र मोदी के साथ आडवाणी जी को भी साधना शुरू कर दिया, क्योंकि मोहन भागवत का यह बयान केवल शिष्टाचार नहीं है, जिसमें उन्होंने कहा कि आडवाणी जी को भारतीय जनता पार्टी से दूर नहीं जाना चाहिए. मोहन भागवत चाहते तो ये वक्तव्य अकेले कमरे में बैठकर अपने चार दोस्तों के साथ कह सकते थे. लेकिन उन्होंने सार्वजनिक मंच चुना और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के लोगों को संकेत दिया कि अगर नरेंद्र मोदी 272 सीटें नहीं ला पाते हैं तो आडवाणी जी को प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है. जहां संघ पहले 75 वर्ष से ज्यादा के लोगों को टिकट देने के लिए तैयार नहीं था, जिसमें उसने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, जसवंत सिंह को यह साफ संदेश पहुंचा दिया था कि इस बार उन्हें टिकट नहीं मिलने वाला. यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा भी इसी श्रेणी के नेता आंके गए. लेकिन अचानक संघ ने अपना ़फैसला बदला और जसवंत सिंह राजस्थान से और आडवाणी गुजरात से चुनाव लड़ेंगे, इस तरह के समाचार लीक कर दिए. संघ का ये भी आकलन है कि मोदी 80 से 100 सीटें लाने में क़ामयाब होंगे जो गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से आ सकती हैं. बाक़ी की सीटें कहां से आएंगी, इस पर संघ माथापच्ची कर रहा है. इसीलिए संघ ने भविष्य के सहयोगियों की तलाश भी शुरू कर दी है. लेकिन इस बार संघ को आशंका है कि भाजपा का सबसे विश्‍वस्त सहयोगी रहा जनता दल यूनाइटेड इस बार उनका
साथ नहीं देगा. सिद्धांतों के आधार पर शरद यादव और नीतीश कुमार ने यह ़फैसला लिया कि वे अब भारतीय जनता पार्टी की तरफ़ नहीं मु़डेंगे, बल्कि वे देश में एक नई राजनीति का केंद्र बनेंगे. जनता दल यूनाइटेड के महासचिव केसी त्यागी हर जगह बातचीत में कहते हैं कि कांग्रेस और बीजेपी की तरफ़ जाने वाला कोई भी रास्ता अब जेडीयू के सामने नहीं है. उसके सामने एक ही रास्ता है कि दिल्ली में कैसे गैर-भाजपा और गैर-कांग्रेस सरकार बने.
भारतीय जनता पार्टी के सामने एक ब़डी समस्या आम आदमी पार्टी का दिल्ली में उभरना भी है. भारतीय जनता पार्टी अब किसी भी तरह अरविंद केजरीवाल को असफल होते देखना चाहती है. उसे ये लगता है कि तीसरा मोर्चा तो नहीं बन पाएगा, लेकिन शायद अरविंद केजरीवाल भविष्य में यानी चार महीने के बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में, भाजपा विरोधी ताक़तों का केंद्र बन सकते हैं. उन्हें ये भी डर सता रहा है कि अगर अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में बिजली, पानी और अवैध कालोनियों को नियमित करने के ़फैसले पर अमल कर लिया तो फिर भारतीय जनता पार्टी के सामने सारे देश में समस्या ख़डी हो जाएगी.
संघ इस बात से भी चिंतित है कि जहां एक तरफ़ 272 सीटें न आने की स्थिति में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे. वहीं अगर 200 सीटें भी भाजपा ले आती है, तब भी भाजपा का प्रधानमंत्री बनने की राह में नीतीश कुमार और ममता बनर्जी ख़डे हो सकते हैं. ये दो मुख्यमंत्री ऐसे हैं जिनके मिलने की संभावना भविष्य में दिखाई दे रही है और ये दोनों मिलकर देश में गैर-कांग्रेस और गैर-भाजपा सरकार बनने की संभावना को मज़बूत कर सकते हैं. दोनों ही व्यक्ति ऐसे हैं जो प्रधानमंत्री पद के लिए नहीं ल़डेंगे और अगर वक्त आया तो वे किसी तीसरे को भी प्रधानमंत्री बना सकते हैं. दरअसल, इन दोनों मुख्यमंत्रियों का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस-दोनों की आर्थिक नीतियां एक हैं और दोनों ही देश में बेरोज़गारी, महंगाई और भ्रष्टाचार को ब़ढावा देने में एक-दूसरे से पीछे नहीं हैं. दोनों ही पार्टियां विकास नहीं चाहतीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को खोखला करना चाहती हैं. दोनों ही मुख्यमंत्रियों ने गांव आधारित आर्थिक नीति की वकालत करनी शुरू कर दी है. गांव को मज़बूत करना, राइट टू रिकॉल, राइट टू रिजेक्ट, कृषि आधारित उद्योगों का जाल, नये सिरे से इन्फ्रास्ट्रक्चर की योजना आदि ऐसे विषय हैं, जिनपर दोनों ही मुख्यमंत्री एकमत हैं. संघ की सबसे ब़डी चिंता अन्ना हजारे हैं. अगर कहीं अन्ना हजारे ने इस नई धारा का समर्थन कर दिया तो फिर बीजेपी के हाथ से सत्ता फ़िसल जाएगी. बीजेपी को या संघ को कांग्रेस की चिंता ही नहीं है, क्योंकि वे देख रहे हैं कि कांग्रेस ने राजस्थान और मध्य प्रदेश की हार से कोई सबक नहीं सीखा है. उनकी चिंता स़िर्फ ममता बनर्जी और नीतीश कुमार हैं. उनकी सबसे बडी चिंता अन्ना हजारे हैं. इसलिए इस समय संघ ने अपने सारे सूत्रों को अन्ना हजारे के पीछे लगा दिया है, ताकि वे उन्हें ये समझाएं कि बीजेपी अगर सत्ता में आती है तो वह अन्ना हजारे की बहुत सारी मांगों को पूरा कर देगी. बीजेपी ग्रामसभा को मज़बूत करने की बात तो करती है, लेकिन वह गांव आधारित आर्थिक नीति बनाने की बात नहीं करती.
जनवरी महीना और फरवरी का पहला हिस्सा देश में नये राजनीतिक गुल खिला सकता है जिसकी ज़ड में नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी का अति उत्साह है. देखते हैं संघ का ये आकलन और संघ का ये डर भविष्य में कितना सच साबित होता है. और यह भी देखना है कि देश को मोदी की जय-जयकार करना नसीब होता है  या नहीं.
 
 
 
 
 

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