आज के ही दिन ! दक्षिण अफ्रीका में, आवागमन की पाबंदी के खिलाफ कस्तूरबा गांधी ने अपने अन्य महिला साथियों के साथ ! 23 सितंबर 1913 के दिन, किए सत्याग्रह को आज 109 साल पूरे हो रहे हैं ! शायद भारतीय उपमहाद्वीप की पहली महिला सत्याग्रही ! कस्तुरबा गांधी के इस कदम से ! भारत की समस्त महिलाओं को ! पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर ! आंदोलन करने की प्रेरणा उनके, इस सत्याग्रह के कारण मिली होगी ! और काल का महिमा देखिए !
22 फरवरी 1944 के दिन पुणे के आगा खाँ पैलेस में कस्तूरबा की उम्र के पचहत्तर साल के दौरान गिरफ्तारी के समय, मृत्यु हुई है ! विनम्र अभिवादन ! लेकिन बांको इस सत्याग्रह आंदोलन में शामिल करने के लिए महात्मा गाँधी ने कैसे तैयार किया था इसका विवरण उन्होंने अपने दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास नाम की किताब में खुद ही लिखा है ! ” गांधीजी ने एकाएक कस्तूरबा से पुछाः
तुम्हें कुछ पता चला !”
जिज्ञासा से कस्तुरबा ने पुछा की “क्या?”
गांधीजी ने हसते हुए उत्तर दियाः “आज तक तुम मेरी विवाहिता स्री थी ; लेकिन अब तुम मेरी विवाहिता स्री नही रही !”
कस्तुरबा ने कुछ भौहें-चढ़ाकर कहाः ” यह और किसने कह दिया? आप तो रोज नई – नई समस्याएं ढूंढ निकालते हैं !”
गांधीजी हंसते – हंसते बोलेंः ” मै कहा ढूंढ निकालता हूँ ? यह जनरल स्मटस कहता है कि ईसाई विवाहोकी तरह हमारा विवाह कोर्ट में दर्ज नहीं किया गया है, इसलिए वह गैरकानूनी माना जायेगा ; तुम मेरी विवाहिता पत्नी नही किन्तु उपपत्नि (रखेली) मानी जाओगी ! ”
कस्तूरबा ने क्रोध में आकर कहाः “अपना सिर कहा जनरल स्मटस ने ! इस निठल्ले को ऐसी बातें कहांसे सुझ जाती है ? ”
गांधीजी ने कहाः लेकिन तुम बहनें क्या करोगी ?”
” हम भला क्या कर सकती है ? ” कस्तूरबा ने पूछा !
” हम पुरुष जैसे सरकार से लडते है वैसे तुम भी लडो ! अगर तुम्हे सच्ची विवाहिता पत्नी बनना हो और उपपत्नि न बनना हो और अपनी इज्जत तुम लोगों को प्यारी हो, तो तुम भी हमारी तरह सरकारसे लडो! ”
” आप लोग तो जेल जाते है ! ”
तो तुम भी अपनी इज्जत के खातिर जेल जाने को तैयार हो जाओ !”
गांधीजी के यह वाक्य सुनकर कस्तूरबा आस्चर्य से बोली ” क्या कहते है ? मै जेल में जाऊ ! स्री से कही जेल में जाया जाता है ? ”
” क्यों भला ? स्त्रियोंसे जेल में क्यों नहीं जाया जा सकता ? पुरुष तो सुख – दुख भोगते है, उन्हें स्त्रिया क्यो नही भोग सकती? राम के पिछे सिता गई थी ! हरिश्चंद्र के पिछे तारामती गई थी ! नल के पीछे दमयन्ती गई थी ! और सबने जंगल में अपार दुःख सहन किये थे ! ”
गांधीजी का विवेचन सुनकर कस्तूरबा बोल उठीः वे सब देवताओं के जैसे थे ! उनके कदमों पर चलने की शक्ति हमारे पास कहा है ? ”
गांधीजी ने गंभीरता से कहाः इसमें क्या हुआ ? हम भी उनके जैसा व्यवहार करे, तो उनके जैसे बन सकते हैं ! हम भी देवता बन सकते हैं ! राम के कुलका मै हूँ और सिता के कुलकी तुम हो ! मै राम बन सकता हूँ और तुम सिता बन सकती हो ! सिता धर्म के लिए राम के साथ न गई होती और राजमहल में बैठी रहती, तो उसे कोई सिता माता नही कहता ! तारामती यदि हरिश्चंद्र सत्यव्रत के लिए बिकी न होती, तो हरिश्चंद्र के सत्यव्रत में दोष रह जाता! हरिश्चंद्र को कोई सत्यवादी न कहता और तारामती को कोई सती भी नहीं कहता ! दमयन्ती नल के पीछे जाकर जंगलके दुःख सहनेमे शामिल न हुई होती, तो उसे भी कोई सती नही कहता ! उसी तरह अगर तुम्हे अपनी इज्जत बचानी हो, मेरी विवाहिता पत्नी कहलाना हो और उपपत्नि कहलाने के कलंक से मुक्त होना है, तो तुम सरकारसे लडो, और जेल जाने के लिए तैयार हो जाओ ! ”
कस्तूरबा चुप रही ! मै देख रहा था कि बा इसका क्या उत्तर देती है ! दोनों की बातचीत सुनने में मुझे आनंद आ रहा था ! इतने में कस्तूरबा बोल उठीः” तो आपको मुझे जेल भेजना है, यही बात है न? अब इतना ही बाकी रहा है ! ठीक है, मैं जाऊंगी ! लेकिन जेल का भोजन मुझे माफीक आयेगा ?
” मै नही कहता कि तुम जेल जाओ ! तुम्हे अपनी इज्जत के खातिर जेल जाने की उमंग हो तो जाओ ! और जेल का भोजन माफीक नही आये तो वहां फलाहार करना !”
” जेल में सरकार फलाहार देगी ?”
फलाहार पाने का उपाय बताते हुए गांधीजी ने कहाः ” सरकार फलाहार न दे तब तक उपवास करना !”
कस्तुरबा ने हंसकर कहाः” अच्छा यह तो मुझे मरने का ही रास्ता बताया है ! मुझे लगता है कि जेल जाऊंगी तो जरूर मर जाऊँगी ! ”
गांधीजी सिर हिलाते हुए खिलखिला उठे और बोलेंः” हां हां मै भी यही चाहता हूँ ! तुम जेल में मर जाओगी, तो मैं तुम्हें जगदम्बा की समान पूजूंगा !”
अच्छा तब मैं जेल जाने के लिए तैयार हूँ !”
कस्तुरबा ने दृढ़तासे अपना निश्चय प्रकट किया !
गांधीजी खुब हंसे ! उन्हें बड़ा आनंद हुआ !
इस तरह महात्मा गाँधी जी ने जीवन के कई महत्वपूर्ण पडाओ पर काठेवाडी पारंपारिक समाज में पैदा हुई कस्तूर के साथ उम्र के तेरहवें साल में शादी करने के बाद अपने सत्य के प्रयोग में सत्याग्रह से लेकर छुआछूत की परंपरा से ब्रम्हचर्य व्रत तथा अपरिग्रह के लिए कस्तुरबा को भी अपनी जीवन यात्रा में शामिल किया और खुद और अपनी जिवनसंगिनि के साथ अपने चालिस सालों से अधिक समय का सफर तय किया है ! ऐसे महान जोडी को शत-शत प्रणाम !
डॉ सुरेश खैरनार 23 सितंबर 2022, नागपुर.