rajnathकेन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह 9 से 11 सितंबर तक कश्मीर घाटी में थे. इसके बाद उन्होंने एक दिन जम्मू में भी गुजारा. यह पहला अवसर है, जब देश का कोई गृहमंत्री लगातार चार दिन तक जम्मू कश्मीर में रहा हो. नई दिल्ली से श्रीनगर रवाना होने से पहले राजनाथ सिंह ने टि्‌वट किया कि ‘मैं वहां (जम्मू कश्मीर) एक खुले दिमाग से जा रहा हूं और हर उस व्यक्ति से मिलने के लिए तैयार हूं, जो जम्मू कश्मीर में पेश आ रही कठिनाइयों का हल निकालने में हमारी मदद करेगा.’ जाहिर है कि गृहमंत्री के सकारात्मक दृष्टिकोण से बहुत से हलकों में उनके दौरे को लेकर काफी उम्मीदें जगी थीं.

ऐसा इसलिए भी कि अभी एक महीना भी नहीं गुजरा, जब प्रधानमंत्री मोदी ने नई दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर संबोधित करते हुए कहा था कि ‘कश्मीर का मसला गाली और गोली से नहीं, बल्कि कश्मीरियों को गले लगाने से हल होगा.’ मोदी के इस मुबारक वक्तव्य के केवल तीन हफ्ते बाद गृहमंत्री का प्रदेश के चार रोज के दौरे पर आना अपने आप में एक अहम बात थी. बहुत से टिप्पणीकारों ने उम्मीद जाहिर की थी कि शायद राजनाथ सिंह जम्मू कश्मीर के दौरे के दौरान यहां की समस्याओं का हल पेश करेंगे, जो इस समय कश्मीर में परेशानी का कारण बनी हुई हैं. इनमें से सबसे बड़ा मसला संविधान की दफा 35 ए को खत्म करने के कथित प्रयास और दूसरा प्रदेश में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की असामान्य गतिविधियां.

35 ए जिसके तहत जम्मू कश्मीर में नागरिकता से संबंधित विशेष कानून का संरक्षण प्राप्त है. उसको खत्म करने की अपील के साथ सुप्रीम कोर्ट में आरएसएस ने एक याचिका दाखिल करवाई है. मसला यह है कि मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस कानून का बचाव करने के बजाय यह स्टैंड लिया कि इस पर चर्चा होनी चाहिए. एक आम धारणा यह है कि केन्द्रीय सरकार संविधान के इस प्रावधान को खत्म करना चाहती है, ताकि प्रदेश में आबादी का अनुपात बिगाड़ा जा सके, यानी बाहरी प्रदेशों के लोगों के लिए जम्मू कश्मीर की नागरिकता हासिल करने का कानूनी अधिकार पैदा करके इस प्रदेश के असल नागरिकों को अल्पसंख्यक में तब्दील किया जा सके. इस आशंका के कारण कश्मीर में चिंता की एक लहर फैली हुई है. दूसरी मुख्य समस्या यह है कि एनआईए कश्मीर में असामान्य रूप से गतिशील हो गई है. तीन महीने पहले टेरर फंडिंग के तहत एक केस दर्ज किया गया और उसके बाद गिरफ्तारियां शुरू हो गईं.

इसके बाद जिसे चाहे पूछताछ के नाम पर नई दिल्ली बुलाया जा रहा है. अलगाववादियों और सिविल सोसायटी का आरोप है कि टेरर फंडिंग केस के नाम पर कश्मीर में लोगों को आतंकित किया जा रहा है. सच तो यह है कि तीन महीने की जांच, कई गिरफ्तारियों और दर्जनों लोगों से पूछताछ के बावजूद एनआईए के हाथ अभी तक ऐसा कोई सबूत नहीं लगा है, जिससे किसी पर आतंकवाद की फंडिंग करने जैसा गंभीर आरोप साबित किया जा सके. किन्तु एनआईए ने हुर्रियत के कुछ नेताओं की संपत्ति की लिस्ट जारी करते हुए बताया है कि ये संपत्ति उनकी स्पष्ट आय से कहीं ज्यादा है. अगर ये साबित भी हो जाता है तो ये करप्शन का एक केस हो सकता है. बहरहाल, एनआईए की तफ्तीश जारी है, इसलिए कोई भी अंतिम बात नहीं कही जा सकती. आशा थी कि राजनाथ सिंह कश्मीर के दौरे के मौके पर इन दो समस्याओं अर्थात 35 ए और एनआईए के मामले पर कोई ऐसा फैसला सुनाएंगे जिससे कश्मीरियों की आशंकाएं दूर हो सकें.

लेकिन कश्मीर में चार दिन तक मौजूदगी के दौरान गृहमंत्री ने केवल बयान ही दिए. उदाहरण के लिए उन्होंने कहा कि ‘35 ए पर कोई फैसला कश्मीरी जनता की भावनाओं के विरुद्ध नहीं किया जाएगा.’ अर्थात उन्होंने भरोसा दिलाया कि 35 ए को खत्म नहीं किया जाएगा. लेकिन जब कश्मीर में ये आवाजें उठने लगीं कि अगर राजनाथ सच कह रहे हैं तो केन्द्रीय सरकार को फौरन सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर करके कोर्ट को बताना चाहिए कि केन्द्रीय सरकार संविधान के इस प्रावधान को खत्म करना नहीं चाहती है. कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अगर केन्द्रीय सरकार ऐसा करेगी तो सुप्रीम कोर्ट 35 ए के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर देगा. लेकिन सच तो ये है कि इस संदर्भ में राजनाथ सिंह का बयान केवल बयान ही साबित हुआ. केन्द्रीय सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को अपने स्टैंड से आगाह नहीं किया, जिसका मतलब यह है कि 35 ए के बारे में अभी खतरे की तलवार कश्मीरियों पर लटक रही है.

दिलचस्प बात यह है कि जिस दिन केन्द्रीय मंत्री घाटी के दौरे पर आए, उसी दिन पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस का ‘पॉलिसी प्लानिंग ग्रुप’ जम्मू के दो दिन के दौरे पर आया था. इस ग्रुप में डॉ. मनमोहन सिंह के अलावा पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम, राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, महासचिव अंबिका सोनी और डॉ. कर्ण सिंह शामिल थे. कांग्रेस के अनुसार इस ग्रुप का मकसद प्रदेश के मौजूदा हालात को जानना और कश्मीर मसले पर शांतिपूर्ण हल की राहें तलाश करना. कांग्रेस के बड़े लीडरों का यह ग्रुप जम्मू के दो दिन के दौरे के दौरान राजनीतिक और सामाजिक नेताओं के अलावा अन्य लोगों के प्रतिनिधिमंडल से भी मिला.

उसके कई दिन बाद यानी 16 सितंबर को कांग्रेसी नेताओं का ये प्रतिनिधिमंडल घाटी के दौरे पर भी आया. यहां अपने प्रवास के दौरान कांग्रेसी नेता 1200 लोगों पर आधारित 54 पब्लिक डेलिगेशन से भी मिले. इनमें वकील, शहाफी, व्यापारी, हाउस बोट और होटल के मालिकान भी शामिल थे. विभिन्न पार्टियों से संबंधित राजनीतिक कार्यकर्ता भी थे और सबसे अहम बात ये लोग न केवल श्रीनगर बल्कि घाटी के विभिन्न जिलों से आए हुए थे. इस तरह कहा जा सकता है कि दो दिन तक घाटी में प्रवास के दौरान कांग्रेस के इन बड़े नेताओं ने खुल कर कश्मीरियों को सुना.

उनकी राय जानी. इतने लोगों से मिलने के बाद कांग्रेस की टीम ने कश्मीर के मौजूदा हालात और कश्मीर के हल के बारे में क्या राय बनाई, उसका अनुमान यहां दिए गए उनके बयान से बखूबी लगाया जा सकता है. गुलाम नबी आजाद ने यहां मीडिया से बात करते हुए भाजपा की केन्द्रीय सरकार पर आरोप लगाया कि इसने अपनी गलत नीतियों से कश्मीर में मिलिटेंसी को बढ़ावा दिया है. उन्होंने कहा कि भाजपा कश्मीर में मिलिटेंसी को पूरे देश के खिलाफ करके सत्ता में आ गई है. कश्मीर दौरे के दौरान कांग्रेस के इन नेताओं ने केन्द्रीय सरकार पर जोर दिया कि वो कश्मीरियों के साथ बातचीत का दरवाजा खोल ले. हालांकि कांग्रेस नेताओं से मिलने वाले प्रतिनिधिमंडल और लोगों ने उन्हें खरी-खरी भी सुनाई. कांग्रेस के नेताओं को वो वादे याद दिलाए गए,

जो उन्होंने अपने शासनकाल में कश्मीरियों के साथ किए थे. पत्रकार माजिद हैदरी भी कांग्रेस नेताओं से मुलाकात करने वालों में शामिल थे. उन्होंने चौथी दुनिया को बताया कि ‘मैंने कांग्रेस पैनल को बताया कि कांग्रेस ने खुद कश्मीर का मसला हल करने के लिए वर्किंग कमिटियां बनाईं, वार्ताकारों को तैनात किया और फिर खुद ही वर्किंग ग्रुपों और वार्ताकारों की रिपोर्टों को डस्टबीन में डाल दिया. मैंने उन्हें याद दिलाया कि 70 साल में किस तरह से कांग्रेस ने कश्मीर के मसले को उलझाने का किरदार निभाया. मैंने उन्हें बताया कि कांग्रेस कश्मीर में अपना विश्वास पहले ही खो चुकी है.’

बहरहाल, सत्ताधारी और विपक्ष यानी गृहमंत्री और कांग्रेस नेताओं ने अपने कश्मीर दौरे के दौरान खूब अच्छी-अच्छी बातें की. लेकिन सच्चाई यह है कि कश्मीर के हालात और कश्मीर के मसले अब उस दौर से कहीं आगे चले गए, जहां केवल बातों से स्थिति बदली जा सकती है. केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह आए और चार दिन यहां रहने के बाद चले गए. कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व यहां आया और दो दिन के बाद चला गया, लेकिन कश्मीर के हालात में न कोई बदलाव आया है और न ही भविष्य में इसकी कोई उम्मीद है. जिस दिन गृहमंत्री ने श्रीनगर एयरपोर्ट पर लैंड किया, उसी दिन जम्मू कश्मीर की सरहद हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के फौजियों की मुठभेड़ से दहल उठी. उसी दिन उत्तरी कश्मीर में मिलिटेंट्‌स और फोर्सेस के दौरान खुली झड़प हुई.

उसके बाद यह सिलसिला कई दिनों तक चला. इस तरह के हालात में इस वक्त बदलाव के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं. सच तो यह है कि जब तक केन्द्रीय सरकार कश्मीर का मसला हल करने के लिए गंभीर कदम नहीं उठाती और वार्ता का प्रभावी सिलसिला नहीं शुरू करती, तब तक यहां के हालात में किसी बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती. कश्मीर की हालत को बदलने के लिए गंभीरता दिखाना और तथ्यों को स्वीकार करना अनिवार्य है. केन्द्रीय सरकार इस संदर्भ में वाकई गंभीर हो तो 35 ए पर कश्मीरी जनता की चिंता को व्यावहारिक कार्रवाई से दूर करके एक अच्छी शुरुआत कर सकती है. अब केवल जुबानी जमा खर्च और वक्त गुजारी से काम नहीं चलेगा.

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