page-4-finalसन् 1947 में भारत और पाकिस्तान को अंग्रेजों से आजादी मिली. भारतीय स्वतंत्रता एक्ट 1947 के अनुसार तमाम रियासतों को यह चयन करने की सुविधा दी गई कि वे भारत के साथ रहना चाहते हैं या फिर पाकिस्तान के साथ. उस समय जम्मू-कश्मीर देश की सबसे बड़ी रियासत थी, जिस पर महाराजा हरि सिंह का शासन था. पाकिस्तान को भरोसा था कि यह रियासत पाकिस्तान के साथ जाएगी, लेकिन हरि सिंह अपने राज्य को न तो पाकिस्तान और न ही भारत में मिलाना चाहते थे. लिहाजा उन्होंने स्वतंत्र रहने का फैसला लिया.

पाकिस्तान ने कश्मीर को हथियाने का एक दूसरा हथकंडा अपनाया. उसने पाकिस्तानी सेना को पश्तून आक्रमणकारियों के वेश में जम्मू कश्मीर पर कब्जा करने को भेजा, जिसमें उसे कश्मीर में रह रहे कुछ स्थानीय मुस्लिमों का भी सहयोग मिला. इससे परेशान होेकर महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी.

26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ समझौता किया. उन्होंने जम्मू-कश्मीर को भारत में शामिल करने की आधिकारिक स्वीकृति दे दी, लेकिन शर्त यह रखी कि भारत सेना भेजकर आक्रमणकारियों को जम्मू-कश्मीर से खदेड़ दे.

भारत ने 1 जनवरी 1948 को संयुक्तराष्ट्र की सुरक्षा परिषद के सामने कश्मीर मुद्दा रखा. संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 21 अप्रैल 1948 को प्रस्ताव 47 पारित किया. इसके तहत दोनों देशों को संघर्ष विराम के लिए कहा गया. साथ ही पाकिस्तान से कहा गया कि वह जम्मू-कश्मीर से शीघ्र पीछे हटे.

जब भारतीय सेना कश्मीर में दाखिल हुई थी तब शेख अब्दुल्ला ने इस मुद्दे पर जनमत संग्रह कराने का समर्थन किया था. नवंबर 1948 में दोनों देश जनमत संग्रह पर राजी हुए. बाद में भारत ने इससे किनारा कर लिया और कहा कि पाकिस्तान पहले अपनी सेनाएं कश्मीर से हटाए.

भारत की संविधान सभा ने 17 अक्टूबर 1949 को धारा 370 को अपनाया, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया.

अगस्त 1952 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और शेख अब्दुल्ला के बीच एक समझौता हुआ. इसके अनुसार पं. नेहरू ने यह स्वीकार किया कि राज्य का अपना अलग झंडा होगा. राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति नहीं, बल्कि विधानसभा द्वारा होगी. भारतीय संविधान के अंतर्गत मौलिक अधिकार एवं कर्तव्य संबंधी प्रावधान पूरी तौर पर लागू नहीं होंगे. भारत के सर्वोच्च न्यायालय का अधिक्षेत्र नहीं होगा, केवल अपीलीय मामले उसके समक्ष प्रस्तुत होंगे. युद्ध अथवा बाहरी आक्रमण को छोड़कर किसी भी स्थिति में केंद्र द्वारा बिना राज्य की सहमति के आपात स्थिति लागू नहीं की जाएगी.

1954 में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जनमत संग्रह के मुद्दे पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मोहम्मद अली बोगरा से बातचीत की. नेहरू जनमत संग्रह के लिए प्रशासक नियुक्त करने पर सहमत थे. उसके बाद पाकिस्तान केंद्रीय संधि संगठन (सेन्टो) गठबंधन में शामिल हो गया और भारत ने इसे जनमत संग्रह को अस्वीकार करने और वार्ता को रद्द करने के लिए इस्तेमाल किया. कश्मीर के मामले में प्रधानमंत्री नेहरू द्वारा लिए गए तीन फैसलों पर सबसे ज्यादा सवाल खड़े होते हैं. पहला कश्मीर मसले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाना. दूसरा 1948 में भारत-पाक जंग के बीच अचानक सीजफायर का एलान और तीसरा आर्टिकल 370 के जरिए कश्मीर को विशेष राज्य का

दर्जा देना.

1962 में चीन ने भारत से युद्ध कर अक्साई चीन इलाके पर कब्जा कर लिया. दोनों देशों को अलग करने के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा खींची गई. फिर, पाकिस्तान ने अपने 30,000 घुसपैठियों के साथ 1965 में कश्मीर पर हमला कर दिया, जवाब में भारत ने भी अपनी सेना भेजी. पाकिस्तान और भारत के बीच यह युद्ध 1 सितंबर से 23 सितंबर 1965 तक चला और इसमें पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी. उसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच ताशंकद समझौता हुआ. दोनों ने सीमाओं से अपनी-अपनी सेनाएं बुला लीं और तय हुआ कि दोनों देश एक दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे.

समझौते की मुख्य शर्तें-

  1. भारत और पाकिस्तान शक्ति का प्रयोग नहीं करेंगे और शांति से हल निकालेंगे.
  2. दोनों देश 25 फरवरी 1966 तक अपनी सेनाएं 5 अगस्त 1965 की सीमा रेखा के पीछे हटा लेंगे.
  1. भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने पर आधारित होंगे.
  2. दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध फिर से स्थापित किए जाएंगे.
  3. आर्थिक एवं व्यापारिक संबंधों तथा संचार संबंधों की फिर से स्थापना तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान फिर से शुरू करने पर विचार किया जाएगा.
  4. जुल्फिकार अली भुट्टो ने 20 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान में राष्ट्रपति पद संभाला. इसके बाद जून 1972 के अंत में शिमला में भारत-पाकिस्तान शिखर बैठक हुई. इंदिरा गांधी और भुट्टो ने उन विषयों पर चर्चा की जो 1971 के युद्ध से उत्पन्न हुए थे. इनमें कुछ प्रमुख विषय थे-युद्ध बंदियों की अदला-बदली, पाकिस्तान द्वारा बांग्लादेश को मान्यता का प्रश्‍न, भारत और पाकिस्तान के राजनयिक संबंधों को सामान्य बनाना और कश्मीर में नियंत्रण रेखा स्थापित करना.

शिमला समझौता के मुख्य बिंदु-

  1. दोनों देशों के बीच भविष्य में जब बातचीत होगी, तब कोई मध्यस्थ या तीसरा पक्ष नहीं होगा.
  2. शिमला समझौता के बाद भारत ने 93 हजार पाकिस्तानी युद्धबंदियों को रिहा कर दिया.
  1. 1971 के युद्ध में भारत द्वारा कब्जा की गई पाकिस्तान की जमीन भी वापस कर दी गई.
  1. दोनों देशों ने तय किया कि 17 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण के बाद दोनों देशों की सेनाएं जिस स्थिति में थी, उस रेखा को वास्तविक नियंत्रण रेखा माना जाएगा.
  2. दोनों देश इस रेखा को बदलने या उसका उल्लंघन करने की कोशिश नहीं करेंगे.
  3. आवागमन की सुविधाएं स्थापित की जाएंगी ताकि दोनों देशों के लोग आसानी से आ-जा सकें.

1975 में इंदिरा गांधी-शेख अब्दुल्ला समझौते के अनुसार मुख्यमंत्री को वजीर-ए-आजम और राज्यपाल को सदर-ए-रियासत कहा जाएगा. समझौते में यह भी कहा गया था कि 1953 के बाद जम्मू एवं कश्मीर में लागू केंद्रीय कानून की समीक्षा होगी और प्राप्त विशेष दर्जा प्रभावित होने की स्थिति में केंद्रीय कानून हटा लिए जाएंगे. भारतीय संविधान, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गान का अपमान करने का अपराध रोकने के लिए भारतीय संसद को सक्षम कानून बनाने का अधिकार होगा, जो भारतीय संघ के किसी भी क्षेत्र या हिस्से को भारत से अलग करने या इसकी भौगोलिक एकता को खंडित करने की नीयत से किया गया हो.

1986 में गुलाम मोहम्मद शाह के मुख्यमंत्रित्व काल में दंगे की शुरुआत हुई. यह दंगा कश्मीर में मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा कश्मीरी पंडितों को राज्य से बाहर निकालने की वजह से हुआ था. इस दंगे में 1000 से ज्यादा लोगों की जानें गई थीं और कई हजार कश्मीरी पंडित बेघर हो गए थे.

19 जनवरी 1990 को घटी घटना आज तक देश के लोगों और कश्मीरी पंडितों के मन से मिटी नहीं है. 1990 में कश्मीर में हथियारबंद आंदोलन शुरू हुआ. कश्मीर में रहने वाले लाखों कश्मीरी पंडित अपने घर-बार छोड़कर चले गए. माना जाता है कि उस दिन तीन लाख कश्मीरी पंडित अपना घर-बार छोड़कर कश्मीर से चले गए. इसकी शुरुआत कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता मकबूल बट को मौत की सजा सुनाने के बाद हुई. सजा सुनाने वाले सेवानिवृत्त सत्र न्यायाधीश नीलकंठ गंजू की हत्या कर दी गई. इसके बाद 13 फरवरी 1990 को श्रीनगर के टेलीविजन केंद्र के निदेशक लासा कौल की निर्मम हत्या कर दी गई. घाटी में शुरू हुए इस आतंक ने कश्मीरी पंडितों को अपने निशाने पर ले लिया. कश्मीरी पंडितों से कहा जाने लगा कि वे अपना घर जल्द खाली कर दें, नहीं तो फिर अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहें.

1999 में पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने अपने पड़ोसी पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध बनाने के विचार से फरवरी 1999 में बस द्वारा नई दिल्ली से लाहौर तक की ऐतिहासिक यात्रा की. उस समय उन्हें इसका तनिक भी आभास नहीं था कि कारगिल युद्ध की नींव उसी समय पड़ गई थी. पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी आईएसआई और वहां की फौज ने मिलकर यह षड्यंत्र रचा. 1999 में आईएसआई और पाक फौज ने मिलकर साजिश के तहत अपने फौजियों को मुजाहिद्दीन के रूप में कारगिल में खाली चौकियों पर माकूल रसद और गोला बारूद के साथ तैनात कर दिया. जब भारतीय फौज पेट्रोलिंग करने पहुंची तो पाकिस्तानियों ने उन्हें पकड़ लिया और उनमें से पांच की हत्या कर दी. इसके बाद भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई की और पाकिस्तान को मैदान छोड़कर भागना पड़ा. प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऑपरेशन विजय दिवस का ऐलान किया, जिसे 26 जुलाई को कारगिल दिवस के रूप में मनाया जाता है.

फारूक अब्दुल्ला को क्यों हटाया गया

8 सितंबर 1982 को शेख अब्दुल्ला की मृत्यु के बाद उनके बेटे फारूक अब्दुल्ला जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री बने. फारूक अब्दुल्ला अंतत: केंद्र सरकार के साथ पक्ष में नहीं रहे. भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त कर आवामी नेशनल कांफ्रेंस के नेता गुलाम मोहम्मद शाह को मुख्यमंत्री बना दिया. उसके बाद होने वाले चुनाव में फारूक अब्दुल्ला ने सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन करने की घोषणा की. कहा जाता है चुनाव में फारूक अबदुल्ला के पक्ष में धांधली की गई. चुनाव में धांधली के बाद हारे नेता आंशिक रूप से विद्रोह की ओर अग्रसर हुए.

शेख़ अब्दुल्ला की गिरफ्तारी

जम्मू-कश्मीर में कुछ कानूनी प्रावधानों की वजह से राज्य में प्रवेश करने के लिए परमिट लेने की व्यवस्था बहाल कर दी गई थी, जिसके खिलाफ जनसंघ ने देशव्यापी आंदोलन छेड़ दिया. जनसंघ के संस्थापक एवं अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बिना परमिट राज्य में प्रवेश करने का प्रयास किया, जिस पर जम्मू-कश्मीर की तत्कालीन शेख अब्दुल्ला सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया, जहां 23 जून 1953 को उनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई. इसी के बाद जम्मू-कश्मीर के वजीरे-आजम शेख अब्दुल्ला को गिरफ्तार कर लिया गया.

शेख अब्दुल्ला को गिरफ्तार करने के बाद जम्मू कश्मीर का वजीर-ए-आजम बख्शी गुलाम मोहम्मद को बनाया गया, जो 1953 से लेकर 12 अक्टूबर 1963 तक मुख्यमंत्री के पद पर काबिज रहे. इसके बाद नेशनल कांफ्रेस के ही ख्वाजा शम-उद-दिन को जम्मू-कश्मीर का वजीरे आजम बनाया गया. उसके बाद कांग्रेस ने गुलाम मोहम्मद शादिक को जम्मू-कश्मीर का वजीर-ए-आजम बनाया, जो 29 फरवरी 1964 से 30 मार्च 1965 तक इस पद पर रहे.

अपने अंतिम दिनों में जवाहरलाल नेहरू ने शेख अब्दुल्ला से बात कर स्थिति को दुरुस्त करने की कोशिश की. 6 अप्रैल 1964 को शेख अब्दुल्ला को जम्मू जेल से रिहा किया गया और नेहरू से उनकी मुलाक़ात हुई. शेख ने कहा कि उनके नेतृत्व में ही जम्मू कश्मीर का विलय भारत में हुआ था. वे हर उस बात को अपनी बात मानते हैं, जो उन्होंने अपनी गिरफ्तारी के पहले 8 अगस्त 1953 तक कही थी. नेहरू भी पाकिस्तान से बात करना चाहते थे और किसी तरह से समस्या को हल करना चाहते थे. नेहरू ने इसी सिलसिले में शेख अब्दुल्ला को पाकिस्तान जाकर संभावना तलाशने का काम सौंपा. शेख गए और 27 मई 1964 के दिन जब पाक अधिकृत कश्मीर के मुज़फ्फराबाद में उनके लिए दोपहर के भोजन की व्यवस्था की गई, तभी जवाहरलाल नेहरू की मौत की खबर आई. बताते हैं कि खबर सुन कर शेख अब्दुल्ला फूट-फूट कर रोये थे. नेहरू के मरने के बाद तो हालात बहुत तेज़ी से बिगड़ने लगे. कश्मीर के मामलों में नेहरू के बाद के नेताओं ने कानूनी हस्तक्षेप की तैयारी शुरू कर दी, वहां संविधान की धारा 356 और 357 लागू कर दी गई. इसके बाद शेख अब्दुल्ला को एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया गया. इस बीच पाकिस्तान ने एक बार फिर कश्मीर पर हमला कर उस पर कब्जा करने की कोशिश की लेकिन पाकिस्तानी फौज ने मुंह की खाई और ताशकंद में जाकर रूसी दखल से सुलह हुई.

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